शुक्रवार, 12 जुलाई 2019

नवधा भक्ति

*भारतीय धर्मग्रंथों में भक्ति के 9 प्रकार बताए गए हैं। भक्ति के इन 9 प्रकारों को ही नवधा भक्ति कहते हैं। यहां जानिए, कौन-से हैं भक्ति के ये 9 प्रकार और क्या है हमारे जीवन में इनका महत्व? साथ ही जानें, कैसे करते हैं ये हमारे जीवन को प्रभावित….*

श्लोक रूप में नवधा भक्ति का वर्णन…

*श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्।*
*अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥*

हिंदी में इस तरह समझें नवधा भक्ति के प्रकार

*1. श्रवण (परीक्षित), 2. कीर्तन (शुकदेव), 3. स्मरण (प्रह्लाद), 4. पादसेवन (लक्ष्मी), 5. अर्चन (पृथुराजा), 6. वंदन (अक्रूर), 7. दास्य (हनुमान), 8. सख्य (अर्जुन), 9.आत्मनिवेदन (बलि राजा)*

*श्रवण:* ईश्वर के चरित, उनकी लीला कथा, शक्ति, स्रोत इत्यादि को श्रद्धा सहित प्रतिदिन सुनना और प्रभु में लीन रहना श्रवण भक्ति कहलाता है।


*कीर्तन:* भगवान की महिमा का भजन करना, उत्साह के साथ उनके पराक्रम को काव्य रूप में याद करना और उन्हें वंदन करना ही भक्ति का कीर्तन स्वरूप है।

*स्मरण:* शुद्ध मन से भगवान का प्रतिदिन स्मरण करना, उनकी कृपा के लिए उन्हें धन्यवाद करते रहना और मन ही मन उनके नाम का जप करते रहना स्मरण भक्ति कहलाता है।

*पाद सेवन:* स्वयं को ईश्वर के चरणों में समर्पित कर देना। जीवन की नैया और अच्छे-बुरे कर्मों के साथ उनकी शरण में जाना ही पाद सेवन कहलाता है।

*अर्चन:* मन, वचन और कर्म द्वारा पवित्र सामग्री से ईश्वर की पूजा करना अर्चन कहलाता है।

*वंदन:* भगवान की मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा करके प्रतिदिन विधि-विधान से पूजन के बाद उन्हें प्रणाम करना वंदन कहलाता है। इसमें भगवान के साथ माता-पिता, आचार्य, ब्राह्मण, गुरुजन का आदर-सत्कार करना और उनकी सेवा करना भी है।

*दास्य:* ईश्वर को स्वामी मानकर और स्वयं को उनका दास समझकर परम श्रद्धा के साथ प्रतिदिन भगवान की सेवा एक सेवक की तरह करना दास्य भक्ति कहलाता है।

*सख्य:* ईश्वर को ही अपना परम मित्र समझकर अपना सर्वस्व उसे समर्पित कर देना और सच्चे भाव से अपने पाप पुण्य का निवेदन करना ही सख्य भक्ति है।

*आत्मनिवेदन:* अपने आपको भगवान के चरणों में सदा के लिए समर्पित कर देना और अपनी कोई स्वतंत्र सत्ता न रखना ही भक्ति की आत्मनिवदेन अवस्था है। यही भक्ति की सबसे उत्तम अवस्था मानी गई हैं।

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