सोमवार, 24 जून 2019

गुरु का खगोलीय स्वरुप #Astronomical form of the master(Jupiter)

~~~#गुरु का खगोलीय स्वरुप ~~~
~~~ #Astronomical form of the master(Jupiter)~~~
गुरु एक पीत वर्ण का ग्रह है ।
इसका सौर मंडल में पांचवां स्थान है ।
यह सूर्य से लगभग 77 80 0000 कि . मी . की दूरी पर है और लगभग 11 वर्षों में सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करत है ।
पृथ्वी से बहुत दूर होते हुए भी गुरु अत्यधिक देदीप्यमान दिखाई देता है ।
यह सौर मण्डल का सम्राट ग्रह है ।
अतः शास्त्रों में इसके लिए ' ' गुरु ' तथा ' गुरु ' ' नामों का प्रयोग किया गय हैं ।
इसका व्यास 1 , 43 640 किमी . है ।
गुरु यदि भीतर से खोखला हो तो पृथ्वी जैसे 1600 पिण्ड उसमें समा सकते हैं ।
इसका गुरुत्व भी पृथ्वी से 317 गुन्ना हैं ।
यदि कोई व्यक्ति पृथ्वी पर 77 कि . ग्रा. भार का हो तो ' ' गुरु ' ' पर जाकर उसका भार 22 टन हो जायेगा ।
गुरु के चंद्रमा की संख्या तेरह हैं ।
गुरु ग्रह अस्त होने के 30 दिन बाद वक्री होता है । उदय के 129 दिन बाद वक्री होता है ।
वक्री के 128 दिन बाद मार्गी होता है तथा मार्गी के 129 दिन बाद पुनः अस्त होता हैं ।
गुरु के अतिरिक्त गुरु , देवगुरु , वांगिश , अंगिरा , जीव आदि नाम भी इसके पर्याय माने गये हैं ।
गुरु की गति - गुरु अपनी धुरी पर 9 घंटा 55 मिनट में एक चक्कर लगता है ।
यह एक सैकंड में 8 मील चलता है तथा सूर्य की परिक्रमा  332 दिन 35 घंटे 5 पल में पूरी करता है । स्थूल तौर पर यह 12 या 13 महीनों में एक राशि ,
160 दिन में एक नक्षत्र , 43 दिन एक चरण पर रहता है । गुरु ग्रह अस्त होने के 30 दिन बाद उदय होता है । उदय के 128 दिन बाद वक्री होता है ।
वक्री के 120 दिन बाद मार्गी होता है तथा मार्गी के 128 दिन बाद पुनः अस्त हो जाता है ।
गणितागत स्पष्टीकरण से चार राशि या 120 डिग्री अंश के पीछे रहने पर गुरु वक्री हो जाता है ।
सूर्य से चार राशि 120 डिग्री अंश के आगे रहने पर यह मार्गी होता है ।
वक्री अवस्था में 12 डिग्री अंश तक पीछे हटता है तथा चार मास तक वक्री रहता है तथा पुन : ४ मास तक मार्गी रहता है ।
जब इसकी गति 14 / 4 की होती है . तब यह शीघ्रगामी ( अतिचारी ) हो जाता है ।
गुरु 45 दिन जुक अतिचारी रहता है । यह सूर्य से दूसरी राशि पर शीघ्रगामी , तीसरी पर समचारी , चौथी पर मंदचारी , पांचवीं और छठी पर वक्री , सातवीं और आठवीं पर अतिवक्री , नवम और दशम पर कुटिल और ग्यारहवीं तथा बारहवीं राशि पर पुनः शीघ्रगामी हो जाता हैं । वक्री होने के पांच दिन आगे या पीछे यह स्थिर रहता है ।
#श्री रांदलज्योतिषकार्यालय
#पंडयाजी+919824417090
#सुरेन्दनगर

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें [Atom]

<< मुख्यपृष्ठ