॥गन्धाष्टकं तत् त्रिविधं शक्तिविष्णुशिवात्मकम्
शारदातिलकम् २८२
॥ गन्धाष्टकं तत् त्रिविधं शक्तिविष्णुशिवात्मकम् ।
चन्दनागुरुकर्पूरचोरकुंकुमरोचनाः । ॥ ७९ ॥ जटामांसीकपियुताः शक्तर्गन्धाष्टकं विदुः । । चन्दनागुरुहनीवेरकुष्ठकुङ्कुमसेव्यकाः ॥ ८० ॥ जटामांसीमुरमिति विष्णोर्गन्धाष्टकं विदुः । चन्दनागुरुकर्पूरतमालजलकुंकुमम् ।
कुशीतकुष्ठ संयुक्त शैवं गन्धाष्टकं स्मृतम् ॥ ८१ ॥
शक्ति , विष्णु तथा शिव के भेद से गन्धाष्टक तीन प्रकार का होता है ।
१~चन्दन , अगुरु , कपूर , चोर , कंकम , गोरोचन , जटामांसी तथा कपि - ये आठ शक्ति के गन्धाष्टक कहे गये हैं ।
२~चन्दन , अगुरु , ह्रीवेर , कुष्ठ , कंकुम , सेव्यक , जटामांसी और मुरा - ये विष्णु के गन्धाष्टक हैं ।
३~चन्दन , अगुरु , कपूर , तमाल , जल , कुंकुम , कुशीत तथा कुष्ठ - ये ८ शैव गन्धाष्टक कहे गये हैं । ।
गणपतिसंहितायां गणेशगन्धाष्टकमप्युक्तम्
स्वरूपं चन्दनं चोरं रोचनागुरुमेव च ।
मदं भृगद्वयोद्भूतं कस्तूरीचन्द्रसंयुतम् ।
अष्टगन्धं विनिर्दिष्टं गणेशस्य महाविभोः ॥
गंधाष्टक या अष्टगंध आठ गंधद्रव्यों के मिलाने से बना हुआ एक संयुक्त गंध है जो पूजा में चढ़ाने और यंत्रादि लिखने के काम में आता है।
तंत्र के अनुसार भिन्न-भिन्न देवताओं के लिये भिन्न-भिन्न गंधाष्टक का विधान पाया जाता है। तंत्र में पंचदेव (गणेश, विष्णु, शिव, दुर्गा, सूर्य) प्रधान हैं, उन्हीं के अंतर्गत सब देवतामाने गए हैं; अतः गंधाष्टक भी पाँच यही हैं।
शक्ति के लिये-
चंदन, अगर, कपूर, चोर, कुंकुम, रोचन, जटामासी, कपि
विष्णु के लिये-
चंदन, अगर, ह्रीवेर, कुट, कुंकुम, उशीर, जटामासी और मुर;
शिव के लिये-
चंदन, अगर, कपूर, तमाल, जल, कुंकुम, कुशीद, कुष्ट;
गणेश के लिये-
चंदन, चोर, अगर, मृग और मृगी का मद, कस्तूरी, कपूर; अथवाचंदन, अगर, कपूर, रोचन, कुंकुम, मद, रक्तचंदन, ह्रीवेर;
सूर्य के लिये-
जल, केसर, कुष्ठ, रक्तचंदन, चंदगन, उशीर, अगर, कपूर।
शास्त्रों में तीन प्रकार की अष्टगन्ध का वर्णन है, जोकि इस प्रकार है-
शारदातिलक के अनुसार अधोलिखति आठ पदार्थों को अष्टगन्ध के रूप में लिया जाता है-
चन्दन, अगर, कर्पूर, तमाल, जल, कंकुम, कुशीत, कुष्ठ।
यह अष्टगन्ध शैव सम्प्रदाय वालों को ही प्रिय होती है।
दूसरे प्रकार की अष्टगन्ध में अधोलिखित आठ पदार्थ होते हैं-
कुंकुम, अगर, कस्तुरी, चन्द्रभाग, त्रिपुरा, गोरोचन, तमाल, जल आदि।
यह अष्टगन्ध शाक्त व शैव दोनों सम्प्रदाय वालों को प्रिय है।
वैष्णव अष्टगन्ध के रूप में इन आठ पदार्थ को प्रिय मानते है-
चन्दन, अगर, ह्रीवेर, कुष्ठ, कुंकुम, सेव्यका, जटामांसी, मुर।
अन्य मत से अष्टगन्ध के रूप में निम्न आठ पदार्थों को भी मानते हैं-
अगर, तगर, केशर, गौरोचन, कस्तूरी, कुंकुम, लालचन्दन, सफेद चन्दन।
ये पदार्थ भली-भांति पिसे हुए, कपड़छान किए हुए, अग्निद्वारा भस्म बनाए हुए और जल के साथ मिलाकर अच्छी तरह घुटे हुए होने चाहिए। श्री रांदल ज्योतिष कार्यालय पंडयाजी सुरेन्द्रनगर गुजरातराज्य+919824417090/+917802000033...*विशेष:- जो व्यक्ति सुरेन्द्रनगर से बाहर अथवा देश से बाहर रहते हो, वह ज्योतिषीय परामर्श हेतु paytm या phonepe या Bank transfer द्वारा परामर्श फीस अदा करके, फोन द्वारा ज्योतिषीय परामर्श प्राप्त कर सकतें है शुल्क- 551/-*+919824417090...
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