यज्ञीय पदार्थ तथा पात्र परिचय
Unlock the power of the cosmos with the expert guidance of Shree Bhagirath Pandya, a renowned astrologer, yantra specialist, and spiritual researcher. vedic astrology, Prasan Kundli Expert, lalkitab With years of experience, he offers insights, remedies, and spiritual practices, to help you live a harmonious and balanced life.
🚩अक्षय तृतीया दिन विशेष🚩
१) साडेतीन मुहूर्तो में से एक
२) अक्षय फल प्रदान करनेवाला
३) 'लीग ऑफ डिओटीज' की झान्सी मे स्थापना, 16 मई 1953 (श्रील प्रभूपाद द्वारा)
४) चंदन यात्रा प्रारंभ
५) श्री परशुराम एवं श्री हयग्रीव जयंती
६) श्री जगन्नाथ रथ का पुरी बनना शुरु
७) श्री बद्रीनाथ दर्शन एवं सेवा शुरु
८) श्री बांकेबिहारीजी चरण दर्शन
९) कृष्ण और सुदामा मिलन
१०) द्रौपदी चिरहरण से रक्षण
११) व्रज में पावन सरोवर का प्राकट्य
१२) सिंहाचलम नृसिंह के पूर्ण दर्शन
१३) सूर्यदेव द्वारा पांडवोंको अक्षयपात्र प्रदान
१४) महाभारत का युद्ध समापन
१५) कुबेर को धन और पद की प्राप्ती
१६) गंगामाता का पृथ्वीपर अवतरण
१७) चारों युग का प्रारंभ दिन
१८) महाभारत की रचना प्रारंभ
१९) ब्रह्माजी के पुत्र अक्षयकुमार का जन्म
२०) अन्नपूर्णा देवी का प्राकट्य
२१) आदिशंकराचार्य जी द्वारा कनकधारा स्तोत्ररचना
🌸श्री रांदल ज्योतिष कार्यालय सुरेन्द्रनगर पंडयाजी९८२४४१७०९०🌸
*यज्ञ कुंड के प्रकार :-
यज्ञ कुंड मुख्यत: आठ प्रकार के होते हैं और सभी का प्रयोजन अलग अलग होताहैं ।
1. योनी कुंड – योग्य पुत्र प्राप्ति हेतु ।
2. अर्ध चंद्राकार कुंड – परिवार मे सुख शांति हेतु । पर पतिपत्नी दोनों को एक साथ आहुति देना पड़ती हैं ।
3. त्रिकोण कुंड – शत्रुओं पर पूर्ण विजय हेतु ।
4. वृत्त कुंड - जन कल्याण और देश मे शांति हेतु ।
5. सम अष्टास्त्र कुंड – रोग निवारण हेतु ।
6. सम षडास्त्र कुंड – शत्रुओ मे लड़ाई झगडे करवाने हेतु ।
7. चतुष् कोणा स्त्र कुंड – सर्व कार्य की सिद्धि हेतु ।
8. पदम कुंड – तीव्रतम प्रयोग और मारण प्रयोगों से बचने हेतु ।
तो आप समझ ही गए होंगे की सामान्यतः हमें
चतुर्वर्ग के आकार के
इस कुंड का ही प्रयोग करना हैं । ध्यान रखने योग्य बाते :- अबतक आपने शास्त्रीय बाते समझने का
प्रयास किया यह बहुत जरुरी हैं । क्योंकि इसके बिना सरल बाते पर आप गंभीरता से विचार नही कर सकते । सरल विधान का यह मतलबआप ह्रद्यंगम ना करें ।
पर जप के बाद कितना और कैसे हवन किया जाता हैं ? कितने लोग और किस प्रकार के लोग की
आप सहायता ले सकते हैं ? कितना हवन किया जाना हैं ? हवन करते समय किन किन बातों का ध्यान रखना हैं ? क्या कोई और सरल उपाय भी जिसमे हवन ही न करना पड़े ? किस दिशा की ओर मुंह करके बैठना हैं ? किस प्रकार की अग्नि का आह्वान करना हैं ? किस प्रकार की हवन
सामग्री का उपयोग करना हैं ? दीपक कैसे और किस चीज का लगाना हैं ? कुछ ओर आवश्यक सावधानी ? आदि बातों के साथ अब कुछ बे हको देखे जब शास्त्रीय
गूढता युक्त तथ्य हमने समंझ लिए हैं तो अब सरल बातों और किस तरह से करना हैं पर भी
कुछ विषद चर्चा की आवश्यकता हैं ।
1. कितना हवन किया जाए ?
शास्त्रीय नियम
तो दसवे हिस्सा का हैं ।
इसका सीधा मतलब की एक अनुष्ठान मे
1,25,000 जप या 1250 माला मंत्र जप अनिवार्य हैं और इसका दशवा हिस्सा होगा 1250/10 =
125 माला हवन मतलब लगभग 12,500 आहुति । (यदि एक माला मे 108 की जगह सिर्फ100 गिनती ही माने तो) और एक आहुति मे मानलो 15 second लगे तब कुल 12,500 *
15 = 187500 second मतलब 3125 minute मतलब 52 घंटे लगभग। तो किसी एक व्यक्ति
के लिए इतनी देर आहुति दे पाना क्या संभव हैं ?
2. तो क्या अन्य
व्यक्ति की सहायता ली जा सकती हैं? तो इसका
उतर
हैं हाँ । पर वह सभी शक्ति मंत्रो से दीक्षित हो या अपने ही गुरु भाई बहिन हो तो अति उत्तम हैं । जब यह भी न संभव हो तो गुरुदेव के श्री चरणों मे अपनी असमर्थता व्यक्त कर मन ही मन
उनसे आशीर्वाद लेकर घर के सदस्यों की सहायता ले सकते हैं ।
3. तो क्या कोई और उपाय नही हैं ? यदि दसवां हिस्सा संभव न हो तो शतांश हिस्सा भी हवन
किया जा सकता हैं । मतलब 1250/100 = 12.5 माला मतलब लगभग 1250 आहुति = लगने वाला समय = 5/6 घंटे ।यह एक साधक के लिए
संभव हैं ।
4. पर यह भी हवन भी यदि संभव ना हो तो ? कतिपय साधक किराए के मकान में या फ्लैट में रहते हैं वहां आहुति देना भी संभव नही है तब क्या ? गुरुदेव जी ने यह भी विधान सामने रखा की साधक यदि कुल जप संख्या का एक चौथाई हिस्सा जप और कर देता है संकल्प ले कर की मैं दसवा हिस्सा हवन नही कर पा रहा हूँ । इसलिए यह मंत्र जप कर रहा हूँ तो यह भी संभव हैं । पर इस केस में शतांश जप नही चलेगा इस बात का ध्यान रखे ।
5. स्रुक स्रुव :- ये आहुति डालने के काम मे आते हैं । स्रुक 36 अंगुल लंबा और स्रुव 24 अंगुल लंबा होना चाहिए । इसका मुंह आठ अंगुल और कंठ एक अंगुल का होना चाहिए । ये दोनों स्वर्ण रजत पीपल आमपलाश की लकड़ी के बनाये जा सकते हैं ।
6। हवन किस चीज का किया जाना चाहिये ?
· शांति कर्म मे पीपल के पत्ते, गिलोय, घी का ।
· पुष्टि क्रम में बेलपत्र चमेली के पुष्प घी ।
· स्त्री प्राप्ति के लिए कमल ।
· दरिद्र्यता दूर करने के लिये दही और घी का ।
· आकर्षण कार्यों में पलाश के पुष्प या सेंधा नमक से ।
· वशीकरण मे चमेली के फूल से ।
· उच्चाटन मे कपास के बीज से ।
· मारण कार्य में धतूरे के बीज से हवन किया जाना चाहिए ।
7. दिशा क्या होना चाहिए ? साधरण रूप से
जो हवन कर रहे हैं वह कुंड के पश्चिम मे बैठे और उनका मुंह पूर्व
दिशा की ओर होना चाहिये । यह भी विशद व्याख्या चाहता है । यदि षट्कर्म किये
जा रहे हो तो ;
· शांती और पुष्टि कर्म में पूर्व दिशा की ओर हवन कर्ता का मुंह रहे ।
· आकर्षण मे उत्तर की ओर हवन कर्ता का मुंह रहे और यज्ञ कुंड वायु कोण में हो ।
· विद्वेषण मे नैऋत्य दिशा की ओर मुंह रहे यज्ञ कुंड वायु कोण में रहे ।
· उच्चाटन मे अग्नि कोण में मुंह रहे यज्ञ कुंड वायु कोण मे रहे ।
· मारण कार्यों में - दक्षिण दिशा में मुंह और दक्षिण दिशा में हवन कुंड हो ।
8. किस प्रकार के हवन कुंड का उपयोग किया जाना चाहिए ?
· शांति कार्यों मे स्वर्ण, रजत या ताबे का हवन कुंड होना चाहिए ।
· अभिचार कार्यों मे लोहे का हवन कुंड होना चाहिए।
· उच्चाटन मे मिटटी का हवन कुंड ।
· मोहन् कार्यों मे पीतल का हवन कुंड ।
· और ताबे के हवन कुंड में प्रत्येक कार्य में उपयोग किया जा सकता है ।
9. किस नाम की अग्नि का आवाहन किया जाना चाहिए ?
· शांति कार्यों मे वरद नाम की अग्नि का आवाहन किया जाना चहिये ।
· पुर्णाहुति मे मृृड नाम की ।
· पुष्टि कार्योंमे बलद नाम की अग्नि का ।
· अभिचार कार्योंमे क्रोध नाम की अग्नि का ।
· वशीकरण मे कामद नाम की अग्नि का आहवान किया जाना चहिये
: 10. कुछ ध्यान योग बाते :-
· नीम या बबुल की लकड़ी का प्रयोग ना करें ।
· यदि शमशान मे हवन कर रहे हैं तो उसकी कोई भी चीजे अपने घर मे न लाये ।
· दीपक को बाजोट पर पहले से बनाये हुए चन्दन के त्रिकोण पर ही रखे ।
· दीपक मे या तो गाय के घी का या तिल का तेल का प्रयोग करें ।
· घी का दीपक देवता के दक्षिण भाग में और तिल का तेल का दीपक देवता के बाए ओर लगाया जाना चाहिए ।
· शुद्ध भारतीय वस्त्र पहिन कर हवन करें ।
· यज्ञ कुंड के ईशान कोण मे कलश की स्थापना करें ।
· कलश के चारो ओर स्वास्तिक का चित्र अंकित करें ।
· हवन कुंड को सजाया हुआ होना चाहिए ।
अभी उच्चस्तरीय इस विज्ञानं के
अनेको तथ्यों को आपके सामने आना
बाकी हैं । जैसे की "यज्ञ कल्प सूत्र विधान"
क्या हैं । जिसके माध्यम से
आपकी हर प्रकार की इच्छा की पूर्ति केवल मात्र यज्ञ के
माध्यम से हो जाति हैं । पर यह यज्ञ कल्प
विधान हैं क्या ? यह और
भी अनेको उच्चस्तरीय तथ्य जो आपको विश्वास
ही नही होने देंगे की
यह भी संभव हैं । इस आहुति विज्ञानं के माध्यम
से आपके सामने
भविष्य मे आयंगे । अभी तो मेरा उदेश्य यह हैं
की इस विज्ञानं की
प्रारंभिक रूप रेखा से आप परिचित हो ।
तभी तो उच्चस्तर के ज्ञान की
आधार शिला रखी जा सकती हीं ।*
शारदातिलकम् २८२
॥ गन्धाष्टकं तत् त्रिविधं शक्तिविष्णुशिवात्मकम् ।
चन्दनागुरुकर्पूरचोरकुंकुमरोचनाः । ॥ ७९ ॥ जटामांसीकपियुताः शक्तर्गन्धाष्टकं विदुः । । चन्दनागुरुहनीवेरकुष्ठकुङ्कुमसेव्यकाः ॥ ८० ॥ जटामांसीमुरमिति विष्णोर्गन्धाष्टकं विदुः । चन्दनागुरुकर्पूरतमालजलकुंकुमम् ।
कुशीतकुष्ठ संयुक्त शैवं गन्धाष्टकं स्मृतम् ॥ ८१ ॥
शक्ति , विष्णु तथा शिव के भेद से गन्धाष्टक तीन प्रकार का होता है ।
१~चन्दन , अगुरु , कपूर , चोर , कंकम , गोरोचन , जटामांसी तथा कपि - ये आठ शक्ति के गन्धाष्टक कहे गये हैं ।
२~चन्दन , अगुरु , ह्रीवेर , कुष्ठ , कंकुम , सेव्यक , जटामांसी और मुरा - ये विष्णु के गन्धाष्टक हैं ।
३~चन्दन , अगुरु , कपूर , तमाल , जल , कुंकुम , कुशीत तथा कुष्ठ - ये ८ शैव गन्धाष्टक कहे गये हैं । ।
गणपतिसंहितायां गणेशगन्धाष्टकमप्युक्तम्
स्वरूपं चन्दनं चोरं रोचनागुरुमेव च ।
मदं भृगद्वयोद्भूतं कस्तूरीचन्द्रसंयुतम् ।
अष्टगन्धं विनिर्दिष्टं गणेशस्य महाविभोः ॥
गंधाष्टक या अष्टगंध आठ गंधद्रव्यों के मिलाने से बना हुआ एक संयुक्त गंध है जो पूजा में चढ़ाने और यंत्रादि लिखने के काम में आता है।
तंत्र के अनुसार भिन्न-भिन्न देवताओं के लिये भिन्न-भिन्न गंधाष्टक का विधान पाया जाता है। तंत्र में पंचदेव (गणेश, विष्णु, शिव, दुर्गा, सूर्य) प्रधान हैं, उन्हीं के अंतर्गत सब देवतामाने गए हैं; अतः गंधाष्टक भी पाँच यही हैं।
शक्ति के लिये-
चंदन, अगर, कपूर, चोर, कुंकुम, रोचन, जटामासी, कपि
विष्णु के लिये-
चंदन, अगर, ह्रीवेर, कुट, कुंकुम, उशीर, जटामासी और मुर;
शिव के लिये-
चंदन, अगर, कपूर, तमाल, जल, कुंकुम, कुशीद, कुष्ट;
गणेश के लिये-
चंदन, चोर, अगर, मृग और मृगी का मद, कस्तूरी, कपूर; अथवाचंदन, अगर, कपूर, रोचन, कुंकुम, मद, रक्तचंदन, ह्रीवेर;
सूर्य के लिये-
जल, केसर, कुष्ठ, रक्तचंदन, चंदगन, उशीर, अगर, कपूर।
शास्त्रों में तीन प्रकार की अष्टगन्ध का वर्णन है, जोकि इस प्रकार है-
शारदातिलक के अनुसार अधोलिखति आठ पदार्थों को अष्टगन्ध के रूप में लिया जाता है-
चन्दन, अगर, कर्पूर, तमाल, जल, कंकुम, कुशीत, कुष्ठ।
यह अष्टगन्ध शैव सम्प्रदाय वालों को ही प्रिय होती है।
दूसरे प्रकार की अष्टगन्ध में अधोलिखित आठ पदार्थ होते हैं-
कुंकुम, अगर, कस्तुरी, चन्द्रभाग, त्रिपुरा, गोरोचन, तमाल, जल आदि।
यह अष्टगन्ध शाक्त व शैव दोनों सम्प्रदाय वालों को प्रिय है।
वैष्णव अष्टगन्ध के रूप में इन आठ पदार्थ को प्रिय मानते है-
चन्दन, अगर, ह्रीवेर, कुष्ठ, कुंकुम, सेव्यका, जटामांसी, मुर।
अन्य मत से अष्टगन्ध के रूप में निम्न आठ पदार्थों को भी मानते हैं-
अगर, तगर, केशर, गौरोचन, कस्तूरी, कुंकुम, लालचन्दन, सफेद चन्दन।
ये पदार्थ भली-भांति पिसे हुए, कपड़छान किए हुए, अग्निद्वारा भस्म बनाए हुए और जल के साथ मिलाकर अच्छी तरह घुटे हुए होने चाहिए। श्री रांदल ज्योतिष कार्यालय पंडयाजी सुरेन्द्रनगर गुजरातराज्य+919824417090/+917802000033...*विशेष:- जो व्यक्ति सुरेन्द्रनगर से बाहर अथवा देश से बाहर रहते हो, वह ज्योतिषीय परामर्श हेतु paytm या phonepe या Bank transfer द्वारा परामर्श फीस अदा करके, फोन द्वारा ज्योतिषीय परामर्श प्राप्त कर सकतें है शुल्क- 551/-*+919824417090...
गोधूली का समय
यदा नातं गतो भानु गोधूल्या पूरित नभः ।
सर्व मंगल कार्येषु गोधूलिश्च प्रशस्यते ॥
अर्थ - सूर्य अस्त न होये और गोखुरन की धूर आकाश में पूरित हो रहा हो तो यह सम्य सम्पूण उत्तम कार्यों में मंगलदायक है , इसको गोधूलि कहते हैं ।
अष्टमें जीव भौमौ च बुधो वा भार्गवो ऽष्टमे ।
लग्ने षष्ठेऽष्टमें चन्द्रस्तदा गोधूलिनाशक ॥
जो लग्न से आठवें स्थान में भौम गुरु बुध शक ये ग्रह बैठे हो अथवा लग्न में वा छठवें चन्द्रमा हो तो गोधूजि नाशक दोष होता है । श्री रांदल ज्योतिष कार्यालय
सुरेन्द्रनगर पंडयाजी९८२४४१७०९०...
||हवन में कवच के इन चार मन्त्रों की आहुति नहीं देनी चाहीयें||
। अत्र के चित्कवचादि त्रयस्य रहस्य त्रयस्य च प्रति श्लोकं होम मनुतिष्ठन्ति ॥
तत्र कवचांशे होमोनयुक्तस्तन्त्रान्तरे निषेधात् ॥
चण्डी स्तवे प्रतिश्लोकमेकाहुतिरिहेष्यते ॥
रक्षा कवचगैर्मन्त्रैर्होमं तत्र न कारयेत् ॥
मौखर्यात्कवचगैमंत्रैः प्रति श्लोकं जुहोति यः ॥
स्याद्देहपतनं तस्य नरकं च प्रपद्यते ॥
अंधकाख्यो महादैत्यो दुर्गा भक्ति परायणः । ।
कवचाहुतिजात्यापान्महेशेन निपातितः ॥ इतिकात्यायनी तंत्रे ॥
जो इन ४ मन्त्रों की आहुति करता है ।
उसका देह नाश होता है ।
इस कारण इन ४ मन्त्रों के स्थान में " ॐनमश्चण्डिकायै स्वाहा " बोलकर आहुति देना मन्त्रों का केवल पाठ करना चाहिए ॥
तथा इनका पाठ करने से सब प्रकार का भय नष्ट हो जाता है । । शूलेनपाहि० इस मन्त्र का केवल १२५००० यथा विधि जप करके फूंक मारने से आधा शीशी आदि माथे के दर्द दूर होंगे सत्य है ।
...दुर्गार्चनसृतौ....२८२ पाना
ऐश्वर्यस्य समग्रस्य धर्मस्य यशसः श्रियः । ।
ज्ञान वैराग्ययोश्चापि षष्णां भग इतीर्यते । ।
नित्यं षड्गुणैश्चर्य शालिनीत्यर्थः ।
ध्यान सहित शक्रादयः स्तुति के १३ पाठ । सूर्योदय के पूर्व निरविच्छिन्न ४९ दिन तक निरन्तर करने से स्वाभीष्ट फल की प्राप्ति होगी तथा निशीथ कालानन्तर दीपक का पूजन करके दुर्गेस्मृता की ११ माला नमस्कारयुक्त जपने से ४९ दिन में धन की प्राप्ति अवश्य होगी और आपत्ति भी नष्ट होगी । स्नानान्तर शक्रादयः स्तुति का १ पाठ करने से भी लाभ होगा ।
श्री रांदल ज्योतिष कार्यालय
सुरेन्द्रनगर पंडयाजी९८२४४१७०९०...
संस्कृत व्यवहारिक शब्दावली
1. *अन्नवर्ग - अन्नों के नाम*
अणुः - बासमती चावल
अन्नम् - अन्न
आढ़ की- अरहर
कलायः- मटर
कोद्रवः - कोदो
गोधूमः-गेहूँ
चणकः- चना
चणकचूर्णम्- वेसन
चूर्णम् - आँटा
तण्डुलः - चावल
तिलः - तिल
द्विदलम्- दाल
धान्यम् - धान
प्रियंगुः – बाजरा मसूरः – मसूर
माषः – उड़द
मिश्रचूर्णम् – मिस्सा आटा
मुद् गः – मूँग
यवः – जौ
यवनालः – ज्वार
रसवती- रसोई
वनमुद्गः- लोभिया
व्रीहिः – धान
शस्यम् - अन्न (खेत में विद्यमान)
श्यामाकः – सावां
सर्षपः – सरसों
2. *आयुध वर्ग- अस्त्रों शस्त्रों के नाम*
आयुधम् - शास्त्र-अस्त्र
आयुधागारम् - शास्त्रागार
आहवः- युद्ध
कबन्धः - धड़
करबालिका - गुप्ती
कारा - जेल
कार्मुकम् - धनुष
कौक्षेयकः - कृपाण
गदा - गदा
छुरिका - चाकू
जिष्णुः - विजयी
तूणीरः - तूणीर
तोमरः - गँड़ासा 2 धन्विन् – धनुर्धर
प्रहरणम् - शस्त्र
प्रासः - भाला
वर्मन् - कवच
विशिखः - बाण
वैजयन्ती - पताका
शरव्यम् - लक्ष्य
शल्यम् - वर्छी
सायुंगीनः - रणकुशल
सादिन् - घुड़सवार
हस्तिपकः – हाथीवान
32. *सर्वनाम वर्ग*
कदा--कब,
यदा--जब,
सदा (सर्वदा)---हमेशा,
एकदा--एक समय,
तदीयः--उसका,
यदीयः--जिसका,
परकीयः (अन्यदीयः)--दूसरे का,
उपरि --ऊपर,
अधः --नीचे,
अग्रे, (पुरः, पुरस्तात्)---आगे,, (पश्चात्, पीछे),
बहिः--बाहर,
अन्तः--भीतर,
उपरि -अधः ---ऊपर-नीचे,
इदानीम् , (सम्प्रति, अधुना) अब,इस समय,
आत्मीयः(स्वकीयः,स्वीयः)अपना,
शीघ्रम् --जल्दी,
शनैः शनैः--धीरे-धीरे,
महत् --महान्,
कुर्वत् --करता हुआ
पठत् --पढता हुआ,
ददत् --देता हुआ,
गमिष्यत्--जाने वाला,
कुर्वत् --करता हुआ, ददत्--देता हुआ,
गमिष्यत्--
जाने वाला,
*पठत् --पढता हुआ,*
सद्यः --तत्काल (अतिशीघ्र),
पुनः --फिर,
अद्य --आज,
अद्यैव ---आज ही,
अद्यापि --आज भी,
श्वः --आने वाला कल,
ह्यः --बीता हुआ कल,
परश्वः --आने वाला परसों,
ह्यश्वः --गया हुआ परसों,
प्रपरश्वः --आने वाला नरसों,
प्रह्यश्वः --बीता हुआ नरसों
पुनः पुनः --बार-बार,
युगपत् ---एक ही समय में,
सकृत् --एक बार,
असकृत् --अनेक बार,
पुरा ,प्राक्--पहिले,
पश्चात् ---पीछे,
अथ ,अनन्तरम् --इसके बाद,
कियत् कालम् --कब तक,
एतावत् कालम् --अब तक,
तावत् कालम्—तब तक
31. *धातु वर्ग*
अभ्रकम् - अभ्रक
आयसम्- लोहा
इन्द्रनीलः - नीलम
कार्तस्वरम् , हाटक- सोना
कांस्यम्- कांसा
कांस्यकूटः - कसकूट
गन्धकः - गन्धक
चन्द्रलौहम्- जर्मन सिल्वर
ताम्रकम्- ताँबा
तुत्थाञ्जनम्- तूतिया
निष्कलंकायसम्- स्टेनलेस स्टील
पारदः - पारा
पीतकम् - हरताल पीतलम् - पीतल
पुष्परागः - पुखराज
प्रवालम् - मूँगा
मरतकम् - पन्ना
माणिक्यम् - चुन्नी
मौक्तिकम् - मोती
यशदम् - जस्ता
रजतम् - चाँदी
वैदूर्यम् - लहसुनिया
सीसम् - सीसा
स्फटिका - फिटकरी
हीरकः - हीरा
32. *सर्वनाम वर्ग*
अत्र---यहाँ,
तत्र --वहाँ,
कुत्र--कहाँ,
यत्र --जहाँ,
अन्यत्र---दूसरी जगह,
सर्वत्र---सब जगह,
उभयत्र---दोनों जगह
अत्रैव ---यहीं पर,
तत्रैव---वहीं पर,
यावत्---जितना,
तावत्---उतना,
एतावत् , (इयत्)---इतना,
कियत्--कितना,
इतः---यहाँ से, ततः --वहाँ से,
कुतः --कहाँ से,
यतः --जहाँ से,
इतस्ततः ---इधर-उधर,
सर्वतः ---सब ओर से,
उभयतः --दोनों ओर से,
कुत्रापि ---कहीं भी,
तत्रापि – उसमें भी
यत्र - कुत्रापि ---
जहाँ कहीं भी,
कुतश्चित् ---कहीं से,
कदाचित् ---कभी,
क्व --कब,
क्वापि --कभी भी,
तदा , तदानीम्---तब,
उस समय,
*3.कृषि वर्ग*
उर्वरा - उपजाऊ
ऊषरः – ऊसर
कणिशः – बाल
कोटिशः - धुर्मुश
कृषिः – खेती
कृषियन्त्रम् - खैती का औजार
कृषीवलः – किसान
क्षेत्रम् - खेत
खनित्रम् -फावड़ा
खनियन्त्रम् - ट्रैक्टर
खलम् – खलिहान
खाद्यम् – खाद
तुषः – भूसी
तोत्त्रम् - चाबुक
दात्रम् – दँराती
पलालः – पराल
फालः – हल की फाल
बुसभ् – भूसा
मृत्तिका – मिट्टी
लाड़्गलम् – हल
लोष्टम् – ढेला
लोष्टभेदनः –मुँगरी, पटरा
वसुधा – पृथ्वी
शाद्वलः – शस्य श्यामल
सीता – जुती भूमि
4. *क्रीडासन वर्ग- खेल सम्बन्धी नाम*
आसन्दिका – कुर्सी
उपस्करः – फर्नीचर
कन्दुकः – गेंद
काष्ठपरिष्करः – रैकेट
काष्ठमंजूषा – आलमारी
काष्ठासनम् – बेंच
क्रीडाप्रतियोगिता- मैच
क्षेपककन्दुकः – वालीवाल
खट्वा – खटिया
जालम् – नेट
निर्णायकः – रेफरी
निवारः – निवाड़
पत्रिक्रीड़ा – बैटमिंटन
पर्पः – चारों ओर मुड़ने वाली कुर्सी
पर्यंङ्कः – सोफा
पल्यङ्कः – पलंग
पादकन्दुकः – फुटबाल
पुस्तकाधानम् – बुकरैंक
प्रक्षिप्त- कन्दुक-क्रीडा – टेनिस का खेल
फलकम् - मेज
मञ्जूषा - संदूक, पेटी
यष्टि-क्रीड़ा – हाकी का खेल
लेखनपीडम् – डेस्क
संवेशः- स्टूल
पत्रिन् – चिड़िया
5. *दिक्काल वर्ग- समय सम्बन्धी नाम*
अपराह्नः – तीसरा पहर
उदीची – उत्तर
कला - मिनट
काष्ठा – दिशा
घटिका – घड़ी
दक्षिणा – दक्षिण
दिवसः – दिन
दिवा – दिन में
नक्तम् – रात में
निदाघः – ग्रीष्म ऋतु
निशीथः – आधी रात
पराह्नः – दोपहर के बाद का समय पूर्वाह्नः – दोपहर के पहले का समय
प्रत्यूषः – प्रातः
प्रदोषः – सूर्यास्त समय
प्रतीची – पश्चिम
प्राची – पूर्व
प्रावृष् – वर्षा – काल
मध्याह्नः – दोपहर का समय
रात्रिन्दिवम् – दिन-रात
वादनम् – बजे
विकला – सेकेण्ड
विभावरी – रात
वेला – समय
हीरा – घण्टा
6. *देव वर्ग- देवता सम्बन्धी नाम*
अच्युतः – विष्णु
असुरः – राक्षस
कृतान्तः – यम
कृशानुः – अग्नि
त्रयम्बकः – शिव
नाकः – स्वर्ग
पविः – वज्र
पीयूषम् – अमृत
पुष्पधन्वन् – कामदेव
पौलोमी – इन्द्राणी
प्रचेतस् – वरूण
मनुष्यधर्मन – कुबेर
मातरिश्वन् – वायु
लक्ष्मीः – लक्ष्मी
वेधस् – ब्रह्मा
शतक्रतुः - इन्द्र
शार्वाणी – पार्वती
सुरः – देवता
सेनानीः – कार्तिकेय
30. *सैन्यवर्ग*
अग्निचूर्णम - बारूद
आग्नेयास्त्रम् - बम
आग्नेयास्त्रक्षेपः- बम फेंकना
एकपरिधानम् - एकवेष, यूनिफार्म
गुलिका- गोली
जलपरमाण्वस्त्रम् - हाइड्रोजन बम
जलान्तरिपोतः- पनडुब्बी
धूमास्रम्- टीयर गैस
नौसेनाध्यक्षः- जलसेनापति
पदातिः- पैदल सेना
परमाण्वस्त्रम्- एटम बम
पोतः- पोत भुशुण्डिः- बन्दूक
भूसेनाध्यक्षः- भू-सेनापति
युद्धपोतः- लड़ाई का जहाज
युद्ध विमानम्- लड़ाई का विमान
रक्षिन् - सिपाही
लघुभुशुण्डिः- पिस्तौल
वायुसेनाध्यक्षः- वायुसेनापति
विमानम् – विमान
शतघन्नी- तोप
शिरस्त्रम्- लोहे का टोप
सैनिकः- फौजी आदमी
सैन्यवेषः- वर्दी
29. *सम्बन्ध सूचक शब्दाः*
अग्रज : -बडा भाई
अनुज:,
निष्ठसहोदर: -छोटा भाई
अरिः – दुश्मन
आत्मजः – पुत्र
आत्मजा – पुत्री
आलिः – सखी
आवुत्तः – बहनोई
उपपतिः – जार
गणिका – वेश्या
जनकः – पिता
जननी – माता
जामाता – दामाद
दूती – दूती
देवर : -देवर
ननान्दृ (ननान्दा) -ननद
नप्तृ (नप्ता) -नाती
पति: -पति
पितामह : -दादा
पितामही -दादी
पितृव्यपुत्र : -चचेरा भाई
पितृव्य : -चाचा
पितृव्यपत्नी -चाची
प्रपौत्र:,
प्रपौत्री -पतोतरा (तरी)
परिचारिका -नौकरानी प्रपितामह : -परदादा
पौत्री -पोती
पितृष्वसृ (पितृष्वसा) -फूआ
पितृष्वसृपति : -फूफा
पैतृष्वस्रीय : -फुफेरा भाई
प्रपितामही -परदादी
प्रमातामह: -परनाना
प्रमातामही -परनानी
पुत्री, आत्मजा - पुत्री
पौत्र : -पोता
प्रतिवेशी - पड़ोसी श्वसुरः – श्वसुर
सम्बन्धिन् – समधी
साध्वी –पतिव्रता
सौभाग्यवती – सोहागिन
स्वसृ - बहिन
गर्भिणी -गाभिन
बन्धुः –
रिश्तेदार
भागिनेयः – भानजा
भृत्यः – नौकर
भ्रात्रीयः – भतीजा
भातृसुता – भतीजी
मातामह : -नाना
मातामही -नानी
मातुलः –
माना
मातुली – मामी
मातृष्वसृपति : -मौसा -
मातृष्वस्रीय : -मौसेरा भाई
मातृष्वसृ -मौसी
यातृ - देवरानी
योषितः – स्त्री
वयस्यः – मित्र
विश्वस्ता – रण्डा
वृद्धप्रपितामहः – वृद्धपरनाना
श्यालः – साला
श्वश्रूः – सास
7. *नाट्यवर्ग/ संगीत /वाद्ययंत्र सम्बन्धी नाम*
अवरोहः – उतार
आरोहः – चढ़ाव
कोणः – मिजराव
जलतरङ्गः – जलतरङ्ग
डिण्डिमः – ढिढोरा
ढौलकः – ढोलक
तन्त्रीकवाद्यम् – पियानो
तानपूरः –तानापूरा
तारः – तीव्रस्वर
तूर्यम् – तुरही
दुन्दुभिः – नगाड़ा
नवरसाः - नवरस
पटहः – ढोल
मञ्जीरम् – मंजीरा
मध्यः - मध्यम स्वर
मनोहारिवाद्यम्
- हारमोनियम्
मन्द्रः – कोमल स्वर
मुरजः – तबला
मुरली – बाँसुरी
वादित्रगणः – बैण्ड
वीणावाद्यम् – बीनबाजा
सप्तस्वराः – सात स्वर
सारङ्गी – वायोलिन, सारंगी
संज्ञाशंखः – विगुल
8. *पक्षिवर्ग*
कीरः – तोता
कुक्कुटः – मुर्गा
कुलायः – घोंसला
कौशिकः – उल्लू
खञ्जनः – खञ्जन
गृध्रः – गिद्ध
चकोरः – चकोर
चटका – चिड़िया (गौरैया)
चक्रवाकः – चकवा
चातकः – चातक
चाषः – नीलकण्ठ
चिल्लः – चील
टिट्टिभिः – टिटिहीर
तित्तिरः – तीतर
दार्वाघाटः - कठफोड़ा
ध्वाङ्क्षः – कौआ
परभृतः – कोयल
पारावतः – कबूतर
बकः – बकुला
बर्हिन् - मोर
मरालः – हंस
लावः – बटेर
वर्तकः – बतख
वरटा – हंसी
शलभः – टिड्डी, पतंगा
श्येनः – बाज
षट्पदः – भौंरा
सरघा - मधुमक्खी
सारसः – सारस
सारिका – मैना
9. *पशुवर्ग - पशुओं के नाम*
उष्ट्र‚ क्रमेलकः - ऊट
कच्छप: - कछुआ
कर्कट: ‚
कुलीरः - केकड़ा
श्वान:, कुक्कुर:‚
सारमेयः - कुत्ता
सरमा‚ शुनि - कुतिया
कंगारुः -कंगारू
कर्णजलोका -कनखजूरा
शशक: - खरगोश
गो, धेनु: - गाय
खड्.गी - गैंडा
श्रृगाल:‚गोमायुः - गीदड (सियार)
चिक्रोड: -गिलहरी
कृकलास: -गिरगिट
गोधा - गोह
गर्दभ:, रासभ:‚
खरः - गधा
अश्व:,सैन्धवम्‚ सप्तिः‚वाजिन्‚हयः रथ्यः‚ - घोड़ा
मूषक: - चूहा -
तरक्षु:, चित्रक: - चीता
चित्ररासभ: -
चित्तीदार घोड़ा
छुछुन्दर: - छछूंदर
गृहगोधिका - छिपकली
चित्रोष्ट्र - जिराफ
मृग:- हिरन
नकुल: - नेवला
गवय: - नीलगाय
वृषभ: ‚ उक्षन्‚
अनडुह - बैल
मर्कट: - बन्दर
व्याघ्र:‚ द्वीपिन् - बाघ
अजा - बकरी
अज : - बकरा
वनमनुष्य : - बनमानुष
मार्जार:,
बिडाल: - बिल्ली
भल्लूक: - भालू
महिषी - भैस , महिषः भैंसा
वृक: - भेंडिया
मेष: - भेंड
उर्णनाभः‚
तन्तुनाभः‚ लूता - मकड़ी
मकर: ‚ नक्रः - मगरमच्छ
मत्स्यः ‚ मीनः‚
झषः - मछली
दर्दुरः‚ भेकः - मेंढक
लोमशः - लोमडी
सिंह:‚ केसरिन्‚
मृगेन्द्रः‚ हरिः - शेर
सूकर:‚ वराहः - सुअर
शल्यः - सेही
हस्ति, करि, गज: - हाथी
तरक्षुः - तेंदुआ
जलाश्व: - दरियाई घोड़ा
*28.वस्त्राणां नामानि – वस्त्रों के नाम*
अंगरक्षिका-
अंगरखा
उनी वस्त्र - रांकवम्
ओढनी - प्रच्छदपट:
कंबल - कम्बल:
कनात - काण्डपट:,
अपटी
कपड़ा - वस्त्रम्,
वसनम्, चीरम्
कमरबन्द - रसना,
परिकर:, कटिसूत्रम्
कुरता - कंचुक:,
निचोल:
कोट - प्रावार:
गात्रमार्जनी -
अंगोछा
गद्दा - तूलसंतर:
गलेबन्द - गलबन्धनांशुकम्
चादर - शय्याच्छादनम्,
प्रच्छद:
जांघिया - अर्धोरुकम्
जाकेट - अंगरक्षक:
मोजा - पादत्राणम्
रजाई - तूलिका,
नीशार:
रुई - कार्पास:, तूल:
सलवार - स्यूतवरः
साड़ी - शाटिका जूता - उपानह
तकिया - उपधानम्
दरी - आस्तरणम्
दुपट्टा - उत्तरीयम्
धोती - अधोवस्त्रम्,
धौतवस्त्रम्
नाइटड्रेस - नक्तकम्
नायलोन का - नवलीनकम्
पगड़ी - शिरस्त्रम्,
उष्णीषम्
परदा - यवनिका,
तिरस्करिणी,
पायजामा - पादयाम:
पेटीकोट - अन्तरीयम्
पैंट - आप्रपदीनम्
बिछौना - शैय्या
ब्लाउज - कंचुलिका
मरेठा (टोपी) - शिरस्त्राणम्
रेशमी- कौशेयम्
शेरवानी - प्रावारकम्
तक्षणी- बसुला
*वृत्तिः*
तैलकार :,
तैलिक: -तेली
तुन्दिल : -पेटू
त्वष्टा ,
स्थपति:, -बढई
द्यूतकर: -जुआरी
नापित:,
क्षौरिक: -नाई
निर्णेजक : -ड्राई क्लीनर
नीली - नील
अजाजीवः – गड़रिया
अनुपदीना – गमबूट
अन्त्यजः – हरिजन
उपानह – जूता
कुलालः – कुम्हार
चर्मकारः – चमार
चर्मप्रभेदिका- जूता सीने की सूई
तस्करः – चोर
पादुका – चप्पल शस्त्रमार्जक :,
असिजीवी -शाण्डवाला
शौण्डिक : -मांसविक्रेता
शौल्विक : -तांबे के बर्तन बनाने वाला
सूचिका - सूई
सूत्रम् –धागा
स्थापितः - बढ़ई
सौचिक :,
सूचक: -दर्जी
स्वर्णकारः - सुनार
प्रैस्यः – चपरासी
मायाकारः – जादूगर
मार्जनी – झाड़ू
मालाकारः – माली
मृगयुः – शिकारी
मृगया – शिकार
लेपकः – पुताई वाला
शाकुनिकः - बहेलिया
संमार्जकः - भंगी
*27.शैल वर्ग- पर्वत सम्बन्धी*
अद्रिः – पर्वत
अद्रिद्रोणी – घाटी
अधित्यका – पठार
उत्सः – सोता
उपत्यका – तराई
खानिः – खान
गह्वरम् – गुफा
ग्रावा – पत्थर दरीं –
दर्रा
निकुञ्जः – झाड़ी
निर्भरः – पहाड़ी नाला
प्रपातः – झरना
शिला – चट्टान
श्रृङ्गम् – चोटी
हिमसरित् – ग्लेशियर (बर्फीला)