गुरुवार, 30 सितंबर 2021

*શું આપ વિજયલક્ષ્મી પ્રાપ્તિ યંત્ર વિશે જાણો છો..???*


*શું આપ વિજયલક્ષ્મી પ્રાપ્તિ યંત્ર વિશે જાણો છો..???*

આ યંત્રથી શું લાભ થાય,
આ યંત્રથી શું સિદ્ધિ પ્રાપ્ત થાય
આ યંત્રને ક્યાં સ્થાન અને સમય પર સ્થાપિત કરાય આવા અનેક સવાલો વિશે *શ્રી રાંદલ જ્યોતિષ કાર્યાલય સુરેન્દ્રનગરના જ્યોતિષાચાર્ય શાસ્ત્રી શ્રી ભગીરથ ભાઈ પડંયા* દ્વારા આ વિજયલક્ષ્મી પ્રાપ્તિ (વિજય પતાકા) યંત્ર વિશે વિસ્તૃત માહિતી આપવામાં આવી છે....

*૧-વિજયલક્ષ્મી પ્રાપ્તિ યંત્ર એટલે શું ?*
નવ પ્રકારનાં કાર્યોને સિદ્ધ કરનાર  એટલે વિજયલક્ષ્મી પ્રાપ્તિ યંત્ર.
*૨-વિજયલક્ષ્મી પ્રાપ્તિ યંત્રથી થતા લાભો.*
વિજય પતાકા યંત્રમાં નવ પ્રકારના યંત્રો છે તે નવ યંત્રો નવ પ્રકારની કાર્યસિદ્ધિ કરનાર છે તેની ફળશ્રુતિ નીચે મુજબ છે
(1) દ્રષ્ટિદોષ (નજર લાગવી ), શાકિની-ડાકિની, ભૂત-પ્રેત વગેરેનો ભય (ડર) નાશ પામે છે.
(2) આપના ઉપરી અધિકારીઓ (બોસ=સર) વગેરે ને પ્રસન્ન કરનાર છે.
(3) આગનો ભય અને  ઝેરી જીવજંતુ સાપ વગેરે નો ઉપદ્રવ નાશ પામે છે. 
(4) તાવ, મેલેરીયા, એકાન્તરીયો તાવ, વગેરે ની ‌પિડા નો નાશ થાય છે.
(5) સૂર્યાદિ નવ ગ્રહો ને પ્રસન્ન કરનાર આ યંત્ર છે.અશુભ ફળ નો નાશ કરી શુભ ફળ આપે છે.
(6) તમામ પ્રકારના કાર્યો માં વિજય પ્રાપ્ત થાય છે.
(7) મંદિર ની ધ્વજા પર યંત્ર લખાય તો દિવસે  ને દિવસે જેમ ધ્વજા પવન માં લહેરાય તેમ જાતક ની દિન પ્રતિદિન વૃધ્ધિ  પ્રગતિ થાય છે. 
(8) હથિયાર, ધનુષ વગેરે પર બાંધવાથી વિજય મળે છે.
વાહન પર યંત્ર રક્ષણ કરે છે.
(9) દિવાળીના દિવસે યંત્ર લખવાથી  ધારણ કરવાથી નોકરીમાં  ધંધામાં  વ્યવસાયમાં વ્યવહાર માં વિજય મળે છે.
૩-વિજય પતાકા યંત્ર ઉત્તમ પ્રકારના ભોજપત્ર ઉપર સિદ્ધ કરીને સ્થાપન વિધિ ની માર્ગદર્શિકા પુસ્તક સાથે આપના ઘેર પહોંચતું કરી આપવામાં આવશે.
*૪-વિજય પતાકા યંત્ર માટેની ન્યોછાવર રકમ પેમેન્ટ કેસ ચેક ઓનલાઇન ના માધ્યમથી સ્વીકારવામાં આવશે એડવાન્સ પેમેન્ટ ની પાકી રસીદ પણ આપને આપવામાં આવશે*.
૫-વિજય પતાકા યંત્ર સિદ્ધ કરવાનું મુહૂર્ત ઘણા લાંબા સમય પછી ઘણા વર્ષો બાદ આ વર્ષે ઉત્તમ શ્રેષ્ઠ યોગ આવે છે એક પક્ષમાં ત્રણ અમૃતસિદ્ધિ યોગ આવવા એ ઘણો દુર્લભ યોગ છે, તેથી આ આ દુર્લભ અમૃતસિદ્ધિ યોગ માં બનાવેલ વિજય પતાકા યંત્ર મેળવવાનું આપ આ ચૂકશો નહિ.
૬-આપને વિજય પતાકા યંત્ર સળંગ અગીયાર દિવસ સંપૂર્ણ શાસ્ત્રોક્ત વિધિ-વિધાન પૂર્વક વિદ્વાન બ્રાહ્મણો પાસે સિદ્ધ કરીને આપવામાં આવશે.
૭-આપને વિજય પતાકા યંત્ર લાભપાંચમ થી ( તારીખ-૦૫/૧૧/૨૦૨૧ થી ૧૫/૧૧/૨૦૨૧ સુધી માં) કાર્તિકી પૂર્ણિમાના દિવસ સુધીમાં આપના ઘેર કુરિયર દ્વારા અથવા સ્પીડ પોસ્ટથી યંત્ર પહોંચાડવામાં આવશે.
૮-વિજય પતાકા યંત્ર સિદ્ધ કરવાનું શુભ મુહૂર્ત વિક્રમ સવંત ૨૦૭૭ નાં આસો વદ પાંચમને સોમવાર મૃગશીર્ષ નક્ષત્ર અમૃતસિદ્ધિ યોગ માં શુભ પ્રારંભ થશે જેની પૂર્ણાહુતિ દિવાળીના દિવસે કરવામાં આવશે( તારીખ-૦૯/૧૧/૨૦૨૧ થી ૧૯/૧૧/૨૦૨૧ સુધી માં)... 
૯ - સિદ્ધ કરેલ વિજય પતાકા યંત્ર પ્રાપ્ત (મેળવવા માટે) કરવા માટે નિચે ના નંબર પર સંપર્ક કરો વહેલાં તે પહેલાં નાં ધોરણે યંત્ર પ્રાપ્ત કરવા માટે તુરંત સંપર્ક કરો,  *ગુજરાત શાસ્ત્રી ભગીરથ રમણલાલ પંડ્યાજી+919824417090*.

* જો તમે કોઈપણ પ્રકારના યંત્રો સિદ્ધ કરવા ઇચ્છતા હોય તો શ્રી રાંદલ જ્યોતિષ કાર્યાલય નો સંપર્ક કરો.*

*વહેલાં તે પહેલાં નાં ધોરણે યંત્ર પ્રાપ્ત કરવા માટે તુરંત સંપર્ક કરો*  
*શાસ્ત્રી રોહિત કુમાર પંડ્યા +919714540244*.

*ગુજરાત રાજકોટ શાલિન ભાઈ ત્રિવેદી(જય મહારાજ) +9198256 96003*
*મહારાષ્ટ્ર  મુંબઈ શ્રી કિશોરભાઈ જાની+919653190761*  

*લી.શ્રી રાંદલ જ્યોતિષ કાર્યાલય,શાસ્ત્રી ભગીરથ આર.પંડ્યાજી* +919824417090

*क्या आप विजय लक्ष्मी प्राप्ति यंत्र के बारे में जानते हैं..???*
 इस यंत्र के क्या फायदे हैं,
 इस यंत्र से क्या हासिल होता है
 इस विजय लक्ष्मी प्राप्ति यंत्र के बारे में विस्तृत जानकारी *श्री रांदल ज्योतिष कार्यालय सुरेन्द्रनगर के ज्योतिषाचार्य शास्त्री श्री भगीरथ भाई पण्ड्याजी* ने ऐसे ही कई प्रश्नों के बारे में दी है कि यह विजय लक्ष्मी प्राप्ति यंत्र की जानकारी आइए जानते है विजय लक्ष्मी प्राप्ति यंत्र के बारे मे....

 1-विजयलक्ष्मी प्राप्ति यंत्र क्या है ?,
 विजयलक्ष्मी प्राप्ति यंत्र वह है जो नौ प्रकार के कर्यो को सिद्ध करता है।
 2-विजयलक्ष्मी प्राप्ति यंत्र के लाभ।
 विजय लक्ष्मी ( विजय पताका) यंत्र में नौ प्रकार के यंत्रो हैं, नौ यंत्रो में नौ प्रकार की सिद्धियां हैं।
 (१) दृष्टिदोष (दृष्टि), शाकिनी-डाकिनी, भूत-प्रीत आदि का भय नष्ट हो जाता है।
 (२) आपके वरिष्ठों (बॉस = सर) आदि को प्रसन्न करता है।
 (३) अग्नि का खतरा और विषैले सांप आदि का प्रकोप नष्ट हो जाता है।
 (4) बुखार, मलेरिया, बार-बार होने वाला बुखार आदि दूर होते हैं।
 (५) सूर्यादि नौ ग्रहों को प्रसन्न करता है और अशुभ फल का नाश करके शुभ फल प्रदान करता है, यह विजयलक्ष्मी प्राप्ति यंत्र ।
 (६) सभी प्रकार

के कार्यों में विजय प्राप्त होती है।
 (७) यदि मंदिर के झंडे पर यंत्र लिखा जाय तो दिन-ब-दिन जैसे हवा में झंडा फहरता है, वैसे ही जातक की दिन-ब-दिन उन्नति होती है।
 (८) अस्त्र - शस्त्र, धनुष आदि पर बांधने से विजय प्राप्त होती है, यंत्र वाहन की सुरक्षा करती है।
 (९) दिपावली के दिन विजय लक्ष्मी प्राप्ति यंत्र लिखे जाय तो   व्यवसाय में नौकरी में दिन प्रतिदिन वृध्धि होती है।
 3-विजय लक्ष्मी प्राप्ति यंत्र को सर्वोत्तम प्रकार के भोजपत्र पर सिद्ध करके स्थापना विधि की गाइडबुक के साथ आपके घर पहुँचाया जाएगा।
 4- विजय लक्ष्मी प्राप्ति यंत्र के लिए अनुदान राशि ऑनलाइन पेमेंट केस चेक के माध्यम से स्वीकार की जाएगी, आपको अग्रिम भुगतान की रसीद भी दी जाएगी।
 5- विजय लक्ष्मी प्राप्ति यंत्र को प्राप्त करने का समय (उत्तम मुहूर्त) कई वर्षों के बाद, इस वर्ष सबसे अच्छा योग आता है। एक पक्ष में तीन अमृतसिद्धि योग होना बहुत दुर्लभ है, इसलिए इस दुर्लभ अमृतसिद्धि में बने इस विजय लक्ष्मी प्राप्ति यंत्र को प्राप्त करना भूल कर भी ना भूलें ।
 6 - आपको विद्वान ब्राह्मणों द्वारा पूरे शास्त्रोक्त विधि विधान कर अनुष्ठान लगातार ग्यारह दिनों तक विजय लक्ष्मी प्राप्ति यंत्र सिध्ध करके आपको दिया जायेगा ।
7 - विजय लक्ष्मी प्राप्ति यंत्र की प्राप्ति का शुभ मुहूर्त विक्रम सावंत 2077 का आश्विन कृष्ण पंचमी मृगशीर्ष नक्षत्र अमृतसिद्धि योग में सोमवार को शुभ प्रारंभ होगा जो दीपावली के दिन (09/11/2021 से 19/11/2021 तक) संपन्न होगा. ..
8 -  विजय लक्ष्मी प्राप्ति यंत्र लाभपंचमी ( ग्यान पंचमी से)
कार्तिकी पूर्णिमा के दिन तक (दिनांक-05/11/2021 से 15/11/2021 तक)  आपको कुरियर या स्पीड पोस्ट द्वारा आपके घर पहुँचा दिया जाएगा।
 9 -  विजय लक्ष्मी प्राप्ति यंत्र प्राप्त करने के लिये कृप्या निम्नलिखित नंबर पर संपर्क करें यंत्र को प्राप्त करने के लिए कृपया तुरंत संपर्क करें।
 *यदि किसी भी प्रकार के यंत्र सिध्ध करना है तो श्री रांदल ज्योतिष कार्यालय का संपर्क करे*
 *विजय लक्ष्मी प्राप्ति यंत्र  प्राप्त करने में कही देर ना हो जाये क्यु निश्चित संख्या मे ही यंत्रो सिध्ध करते हे इसी, लिए तुरंत संपर्क करें*
 *शास्त्री रोहित कुमार गुजरात +919714540244*
*महाराष्ट्र मुंबई दहिंसर पश्चिम श्री किशोरभाई जानी* *+919653190761* ... 
*लि. श्री रांदल ज्योतिष कार्यालय शास्त्री भगीरथ रमणीकलाल पण्ड्याजी+919824417090*

*इस साल 7 अक्टूबर से नवरात्री शुरुआत होने जा रही है* नवरात्री महोत्सव

                  नवरात्री के दिनों में मां की भक्ति-भाव से पूजा-अर्चना करने से वे अपने भक्तों पर प्रसन्न होती हैं और भक्तों पर अपनी कृपा बरसाती हैं। इतना ही नहीं, ये नौ दिन सभी भक्तिमय रंग में रंग जाते हैं। मां को प्रसन्न करने के लिए व्रत रखे जाते हैं।

    
*इस साल 7 अक्टूबर से नवरात्री शुरुआत होने जा रही है*

नवरात्री 7 अक्टूबर से शुरू होकर 15 अक्टूबर तक चलेगी।  नवरात्र के दिनों में मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा करने से विशेष पुण्य मिलता है।  मां दुर्गा अपने भक्तों के हर कष्ट हर लेती हैं।
           
नवरात्री के ये नौ दिन मां दूर्गा को समर्पित होते हैं। मां दूर्गा के नौ रुपों की पूजा की जाती है। 14 अक्टूबर तक चलने वाले इन दिनों में मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाएगी। नवरात्री का हर दिन मां के विशिष्ट स्वरूप को समर्पित होता है, और हर स्वरूप की अलग महिमा होती है। आदिशक्ति जगदम्बा के हर स्वरूप से अलग-अलग मनोरथ पूर्ण होते हैं। यह पर्व नारी शक्ति की आराधना का पर्व है। नवरात्री के दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी चंद्रघंटा कूष्मांडा स्कंदमाता कात्यायनी कालरात्रि महागौरी और सिद्धिदात्री माता की पूजा अर्चना की जाती है।
*नवदुर्गा: नौ रूपों में स्त्री जीवन का पूर्ण बिम्ब एक स्त्री के पूरे जीवनचक्र का बिम्ब है नवदुर्गा के नौ स्वरूप।*

1. जन्म ग्रहण करती हुई कन्या "शैलपुत्री" स्वरूप है।

2. कौमार्य अवस्था तक "ब्रह्मचारिणी" का रूप है।

3. विवाह से पूर्व तक चंद्रमा के समान निर्मल होने से
वह "चंद्रघंटा" समान है।

4. नए जीव को जन्म देने के लिए गर्भ धारण करने पर
वह "कूष्मांडा" स्वरूप में है।

5. संतान को जन्म देने के बाद वही स्त्री
"स्कन्दमाता" हो जाती है।

6. संयम व साधना को धारण करने वाली स्त्री
"कात्यायनी" रूप है।

7. अपने संकल्प से पति की अकाल मृत्यु को भी जीत
लेने से वह "कालरात्रि" जैसी है।

8. संसार (कुटुंब ही उसके लिए संसार है) का उपकार
करने से "महागौरी" हो जाती है।

9 धरती को छोड़कर स्वर्ग प्रयाण करने से पहले संसार
में अपनी संतान को सिद्धि(समस्त सुख-संपदा) का
आशीर्वाद देने वाली "सिद्धिदात्री" हो जाती है।

*इस बार मां दुर्गा की सवारी*

धार्मिक मान्यता के अनुसार इन नौ दिनों तक मातारानी पृथ्वी पर आती हैं और अपने भक्तों की मनोकामनाओं को पूर्ण करती हैं, ऐसा श्री रांदल ज्योतिष कार्यालय सुरेन्द्रनगर गुजरात से पंड्याजी बताते है, और देवी उनके दुखों को हर लेती हैं। देवी भागवत पुराण में बताया गया है कि वार के अनुसार मां दुर्गा किस चीज की सवारी करके प्रथ्वी लोक में आएंगी। अगर नवरात्री की शुरुआत सोमवार या रविवार से होती है तो माता हाथी पर सवार होकर आएंगी। शनिवार और मंगलवार को माता अश्व पर सवार होकर आती हैं। वहीं अगर नवरात्री गुरुवार या शुक्रवार से प्रारंभ होते हैं तो माता डोली पर सवार होकर आएंगी। इस साल नवरात्री गुरुवार से प्रारंभ हो रहे हैं। जिसके कारण वह डोली पर सवार होकर आएंगी।

कई बार तिथि घटने बढ़ने के कारण अष्टमी (Ashtami) और नवमी (Navmi) की तिथि में असमंजस की स्थिति बन जाती है। इस बार नवरात्री की एक तिथि घट रही है। इस बार 9 नहीं बल्कि 8 दिन के ही नवरात्री रखे जाएंगे। ज्योतिषियों के अनुसार इस बार चतुर्थी तिथि का क्षय होने से नवरात्री 8 दिन के पड रहे हैं। इसबार नवरात्री के तीसरे दिन 9 अक्टूबर को एक ही दिन मां दूर्गा के चंद्रघंटा और कुष्मांडा स्वरुप की पूजा होगी। वहीं 13 अक्टूबर को अष्टमी व्रत रखा जाएगा। इस दिन महागौरी की पूजा की जाती है। 14 अक्टूबर को नवमी तिथि का व्रत रखा जाएगा। नवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। वहीं 15 अक्टूबर को धूमधाम के साथ विजयदशमी यानी दशहरा मनाया जाएगा। इसी दिन दुर्गा विसर्जन भी किया जाएगा।

प्रतिपदा तिथि घटस्थापना शुभ मुहूर्त

विक्रम सम्वत 2077 अश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि आरंभ- 06 अक्टूबर 2021 दिन बृहस्पतिवार को शाम 04 बजकर 34 मिनट से

विक्रम सम्वत 2077 अश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि समाप्त- 07 अक्टूबर 2021 दिन शुक्रवार दोपहर 01 बजकर 46 मिनट पर

घटस्थापना मुहूर्त- 07 अक्टूबर को सुबह 06 बजकर 17 मिनट से 07 बजकर 07 मिनट तक।

शारदीय नवरात्रि विक्रम सम्वत 2077 तिथियां(2021)

7 अक्टूबर (पहला दिन)- मां शैलपुत्री की पूजा

8 अक्टूबर (दूसरा दिन)- मां ब्रह्मचारिणी की पूजा

9 अक्टूबर (तीसरा दिन)- मां चंद्रघंटा व मां कुष्मांडा की पूजा

10 अक्टूबर (चौथा दिन)- मां स्कंदमाता की पूजा

11 अक्टूबर (पांचवां दिन)- मां कात्यायनी की पूजा

12 अक्टूबर (छठवां दिन)- मां कालरात्रि की पूजा

13 अक्टूबर (सातवां दिन)- मां महागौरी की पूजा

14 अक्टूबर (आठवां दिन)- मां सिद्धिदात्री की पूजा

15 अक्टूबर- दशमी तिथि ( व्रत पारण), विजयादशमी।

श्री रांदल ज्योतिष कार्यालय पंडयाजी सुरेन्द्रनगर गुजरातराज्य+919824417090/
+917802000033...
*विशेष:- जो व्यक्ति सुरेन्द्रनगर से बाहर अथवा देश से बाहर रहते हो, वह ज्योतिषीय परामर्श हेतु paytm या phonepe या Bank transfer द्वारा परामर्श फीस अदा करके, फोन द्वारा ज्योतिषीय परामर्श प्राप्त कर सकतें है शुल्क- 551/-*+919824417090

सोमवार, 27 सितंबर 2021

ये पितृपक्ष के सोलह दिनोंमें अमावस्या को सर्वपितृ श्राद्ध करने से सात पीढियो के सभी पितरो की पूजा हो जाती है और गोत्र देवताओ सहित सर्व पितृलोक आशीर्वाद बरसाता है ।

*अमावस्या सर्वपितृ श्राद्ध*
  ये पितृपक्ष के सोलह दिनोंमें अमावस्या को सर्वपितृ श्राद्ध करने से सात पीढियो के सभी पितरो की पूजा हो जाती है और गोत्र देवताओ सहित सर्व पितृलोक आशीर्वाद बरसाता है ।

   ब्रह्मांड बाराह राशीओ से बंधा हुवा है । मेष राशि ब्रह्मांड का प्रवेश द्वार है । मीन राशि का द्वार देवलोक ( सूर्यलोक ) की ओर है । कन्या राशि का द्वार पितृलोक ( चंद्रलोक ) की ओर है । जब किसी की मृत्यु हिती है तब जीव कर्मानुसार इनमे से एक द्वार की ओर गति करता है । सद कर्म , सदाचार ओर पैरोकारी जीव अपने पुण्यबल से सूर्यलोक जाता है । बाकी जीव पितृयान ( चन्त्रलोक ) में गति करते है ।  चंद्र सूक्ष्म सृष्टि का नियमन करते है । 

     सूर्य जब कन्या राशिमें प्रवेश करते है तब पाताल ओर पितृलोक की सृष्टि का जागरण हो जाता है । चंद्र की 16 कला है । पूर्णिमा से अमावस्या तक कि 16 तिथि सोलह कला है । जिसदिन मनुष्य की मृत्यु होती है उसदिन जो तिथि हो वो कला खुली होती है इसलिए वो जीवको उस कलामे स्थान मिलता है । भाद्रपद की पूर्णिमा से पितृलोक जागृत हो जाता है और जिस दिन जो कला खुली होती है उसदिन उस कलामे रहे जीव पृथ्वीलोकमें अपने स्नेही स्वजन , पुत्र पौत्रादिक के घर आते है । उस दिन परिवार द्वारा उनकेलिए श्रद्धापूर्वक जो भी पूजा , नैवेद्य , दान पुण्य हो रहा हो वो देखकर तृप्त होते है और आशीर्वाद देते है । कुल के आराध्य देवी देवता मृतक जीवोंको तृप्त देखकर प्रसन्न होते है और परिवार को सुख संपदा प्रदान करते है । ऐसे ही जिस घरमे श्राद्ध पूजा कुछ नही होता ये देखकर पितृ व्यथित होकर चले जाते है । और कुलके आराध्य देवी देवता उन जीवात्माओं के व्यथित होने से खिन्न होते है । जीवात्मा की गति का ये सूक्ष्म विज्ञान को समझकर हमारे ऋषि मुनियों ने मनुष्य की सुखकारी केलिए ये धर्म परम्परा स्थापित की है । 

  अमावस्या के दिन चंद्र की सभी 16 कला खुली रहती है इसलिए उसदिन भूले बिसरे सभी पितृओ पृथ्वीलोक पर आते है । इसलिए उस दिन के श्राद्ध कार्य अति महत्वपूर्ण है । चंद्र देव का दूध पर आधिपत्य है इसलिए श्राद्धमें दुधपाक या क्षीर भोजन बनाकर पितृओ को नैवेद्य भोग लगाया जाता है । श्राद्धपूजा में ये सब किया जा सकता है 

1  ब्राह्मण के पास पिंडदान तर्पण पूजा
2  दुधपाक क्षीर का नैवेद्य बनाकर घरमे पितृदेव को भोग लगाना 
3  पितृओ के नाम ब्राह्मण , भिक्षु , बटुक , कन्या को भोजन करवाना 
4  कौवे ओर पक्षियो को भोजन देना 
5  गाय , कुते ओर पशुओं को भोजन देना 
6  जलचर जीव ओर किट पतंगे जैसे जीवो को भोजन
7  पितृओ के नाम दान दक्षिणा जैसे पुण्यकार्य 
8  शिवमन्दिरमे पूजा कर पितृओ की दिव्यगति केलिए प्रार्थना करना  ।

इनमेसे जो भी शक्य हो वो करना चाहिए । पितृ पूर्वजो के आशीर्वाद से परिवार सुख सम्पति धन धान्य सुआरोग्य संतति ओर सन्मान प्राप्त करता है । कुलगोत्र के देवी देवता सह तमाम आराध्य देवी देवता पितृ पूर्वजो की प्रसन्नता देखकर ही कृपा करते है । मनुष्य जीवन को सफल और सुखी बनाने और स्वआत्मा कि दिव्य गति प्राप्त करने केलिए हिन्दू धर्म शास्त्रों की ये सर्वश्रेष्ठ भावपूजा है । जीव की सूक्ष्म गति को समझनेवाले अनेक साधक प्रतिमास अमावस्या को ये भावपूजा अवश्य ही करते है। जगत के पालनहार नारायण इस पूजा से अति प्रसन्न होते है । श्री रांदल ज्योतिष कार्यालय सुरेन्द्रनगर पण्ड्याजी गुजरात राज्य सम्पर्क सुत्रम +919824417090...
श्री रांदल ज्योतिष कार्यालय पंडयाजी सुरेन्द्रनगर गुजरातराज्य+919824417090/
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रविवार, 26 सितंबर 2021

ब्राह्मण के दश प्रकार जन्मना ब्राह्मणो ज्ञेयः

ब्राह्मण के दश प्रकार जन्मना ब्राह्मणो ज्ञेयः - अत्रि स्मृति १३८
ब्राह्मण कुल में जन्म लेने वाला जन्म से ही ब्राह्मण है। 

भले ही वो नीच कार्य भी क्यों न करें वह अंत तक ब्राह्मण ही रहेगा। महर्षि अत्रि ने ब्राह्मणों का कर्म अनुसार विभाग किया है।
              देवो मुनिर्द्विजो राजा वैश्यः शूद्रो निषादकः ।
              पशुम्लेच्छोपि चंडालो विप्रा दशविधाः स्मृताः॥ 
                                अत्रि स्मृति ३७१
देव, मुनि, द्विज, राजा, वैश्य, शूद्र, निषाद, पशु, म्लेच्छ, चांडाल यह दश प्रकार के ब्राह्मण कहे हैं ॥ ३७१ ॥

१.देव ब्राह्मण -  ब्राह्मणोचित श्रोत स्मार्त कर्म करने वाला हो 

२. मुनि ब्राह्मण - शाक पत्ते फल आहार कर वन में रहने वाला

३. द्विज ब्राह्मण - वेदांत,सांख्य,योग आदि अध्ययन व ज्ञान पिपासु

४. क्षत्रिय ब्राह्मण - युद्ध कुशल हो

५. वैश्य ब्राह्मण - व्यवसाय गोपालन आदि

६. शुद्र ब्राह्मण - लवण,लाख,घी,दूध,मांस आदि बेचने वाला

७. निषाद ब्राह्मण - चोर, तस्कर, मांसाहारी,व्यसनी हो

८. पशु ब्राह्मण - शास्त्र विहीन हो किन्तु मिथ्याभिमान हो

९. म्लेच्छ ब्राह्मण - बावड़ी,कूप,बाग,तालाब को बंद करने वाला

१०. चांडाल ब्राह्मण - अकर्मी, क्रियाहीन, कर्मसंकर,वर्णसंकर
                (अत्रिस्मृति ३७२-३८१ के आधार पर।) 

            *#विचार_करें_कि_आप_कौन_से_ब्राह्मण_हैं ?*

सरकार से अनुरोध है कि देश में गोहत्या पूर्णतः बंद हो और भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित किया जाये । श्री रांदल ज्योतिष कार्यालय सुरेन्द्रनगर गुजरात राज्य पंडयाजी सम्पर्क सुत्रम +919824417090...

गुरुवार, 23 सितंबर 2021

संतान प्राप्ति के उपाय नक्षत्र के चरण से

संतान प्राप्ति के उपाय  नक्षत्र के चरण से
१ - *अश्विनीनक्षत्र*
(अ) *प्रथम चरण* -: गायत्री मंत्र तथा त्र्यम्बकं मंत्र का पांच लाख जप दशांश होम तर्पण मार्जन ब्रह्म भोजन अवश्य करना चाहिये ... 
एकादशी तथा रविवार युक्त सप्तमी का व्रत करे सत्य वचन बोलने का नियम रखे ही पूर्व जन्म के पापो की शुद्धि होगी...
पुत्र सहित ब्राह्मण नी मूर्ति नु पुजन करी योग्य ब्राह्मण ने दान देना चाहिये...
(ब) *द्वितीय चरण*-: हरिवंश पुराण सुने या पठे दश गौदान ओर शय्या दान ब्राह्मण को दे ओर गायत्री मंत्र का एक लाख जप दशांश होम तर्पण मार्जन ब्रह्म भोजन अवश्य करना चाहिये ... 
(क) *तृतीय चरण*-:हरिवंश पुराण सुने या पठे सुवर्ण तथा वस्त्रों से युक्त की हुई दश गौ का दान ब्राह्मण को दे...
(ड)* चतुर्थ चरण*-: गायत्री मंत्र का एक लाख जप दशांश होम तर्पण मार्जन ब्रह्म भोजन अवश्य करना चाहिये ... 
कूष्माण्ड (पेढे) को अथवा नारियल को सोने से भर के वस्त्र से आच्छादित करके गंगा जी के मध्य में उसका दान करे...
सोने के सिंगडी और रुपे के खुर बनाके पट्ट वस्त्र के साथ दोहिनी आदि पात्र से गौ का दान ब्राह्मण को करे...

२ - भरणीनक्षत्र
(अ) प्रथम चरण
(ब) द्वितीय चरण
(क) तृतीय चरण
(ड) चतुर्थ चरण

३ - कृत्तिकानक्षत्र
(अ) प्रथम चरण
(ब) द्वितीय चरण
(क) तृतीय चरण
(ड) चतुर्थ चरण

४ - रोहिणीनक्षत्र
(अ) प्रथम चरण
(ब) द्वितीय चरण
(क) तृतीय चरण
(ड) चतुर्थ चरण

५ - मृगशिर्षनक्षत्र
(अ) प्रथम चरण
(ब) द्वितीय चरण
(क) तृतीय चरण
(ड) चतुर्थ चरण

६ - आर्द्रानक्षत्र
(अ) प्रथम चरण
(ब) द्वितीय चरण
(क) तृतीय चरण
(ड) चतुर्थ चरण

७ - पुनर्वसुनक्षत्र
(अ) प्रथम चरण
(ब) द्वितीय चरण
(क) तृतीय चरण
(ड) चतुर्थ चरण

८ - पुष्यनक्षत्र
(अ) प्रथम चरण
(ब) द्वितीय चरण
(क) तृतीय चरण
(ड) चतुर्थ चरण

९ - आश्लेषानक्षत्र
(अ) प्रथम चरण
(ब) द्वितीय चरण
(क) तृतीय चरण
(ड) चतुर्थ चरण

१० - मघानक्षत्र
(अ) प्रथम चरण
(ब) द्वितीय चरण
(क) तृतीय चरण
(ड) चतुर्थ चरण

११ - पूर्वा फाल्गुनीनक्षत्र
(अ) प्रथम चरण
(ब) द्वितीय चरण
(क) तृतीय चरण
(ड) चतुर्थ चरण

१२ - उत्तरा फल्गुनीनक्षत्र
(अ) प्रथम चरण
(ब) द्वितीय चरण
(क) तृतीय चरण
(ड) चतुर्थ चरण
१३ - हस्तनक्षत्र
(अ) प्रथम चरण
(ब) द्वितीय चरण
(क) तृतीय चरण
(ड) चतुर्थ चरण
१४ - चित्रानक्षत्र
(अ) प्रथम चरण
(ब) द्वितीय चरण
(क) तृतीय चरण
(ड) चतुर्थ चरण
१५ - स्वाती नक्षत्र
(अ) प्रथम चरण
(ब) द्वितीय चरण
(क) तृतीय चरण
(ड) चतुर्थ चरण
१६ - विशाखानक्षत्र
(अ) प्रथम चरण
(ब) द्वितीय चरण
(क) तृतीय चरण
(ड) चतुर्थ चरण
१७ - अनुराधानक्षत्र
(अ) प्रथम चरण
(ब) द्वितीय चरण
(क) तृतीय चरण
(ड) चतुर्थ चरण
१८ - ज्येष्ठानक्षत्र
(अ) प्रथम चरण
(ब) द्वितीय चरण
(क) तृतीय चरण
(ड) चतुर्थ चरण
१९ - मूलनक्षत्र
(अ) प्रथम चरण
(ब) द्वितीय चरण
(क) तृतीय चरण
(ड) चतुर्थ चरण
२० - पूर्वाषाढानक्षत्र
(अ) प्रथम चरण
(ब) द्वितीय चरण
(क) तृतीय चरण
(ड) चतुर्थ चरण
२१ - उत्तराषाढानक्षत्र
(अ) प्रथम चरण
(ब) द्वितीय चरण
(क) तृतीय चरण
(ड) चतुर्थ चरण
२२ - श्रवणनक्षत्र
(अ) प्रथम चरण
(ब) द्वितीय चरण
(क) तृतीय चरण
(ड) चतुर्थ चरण
२३ - धनिष्ठानक्षत्र
(अ) प्रथम चरण
(ब) द्वितीय चरण
(क) तृतीय चरण
(ड) चतुर्थ चरण

२४ - शतभिषानक्षत्र
(अ) प्रथम चरण
(ब) द्वितीय चरण
(क) तृतीय चरण
(ड) चतुर्थ चरण
२५ - पूर्वा भाद्रपदनक्षत्र
(अ) प्रथम चरण
(ब) द्वितीय चरण
(क) तृतीय चरण
(ड) चतुर्थ चरण
२६ - उत्तरा भाद्रपदनक्षत्र
(अ) प्रथम चरण
(ब) द्वितीय चरण
(क) तृतीय चरण
(ड) चतुर्थ चरण
२७ - रेवतीनक्षत्र
(अ) प्रथम चरण
(ब) द्वितीय चरण
(क) तृतीय चरण
(ड) चतुर्थ चरण

रविवार, 19 सितंबर 2021

*भरणी श्राद्ध:

*भरणी श्राद्ध: निधन के पहले वर्ष निषेध*
*
*भरणी श्राद्ध प्रतिवर्ष करने का शास्त्र संकेत है। भरणी श्राद्ध पितृपक्ष के भरणी नक्षत्र के दिन एकोद्दिष्ट पितृ को उद्देश्य से किया जाता है परन्तु व्यक्ति के निधन के पहले वर्ष भरणी श्राद्ध नहीं होता। इसका कारण यह है कि प्रथम वार्षिक अब्दपूर्ति एवं वर्षश्राद्ध होने तक मृत व्यक्ति को प्रेतत्व रहता है।

पहले वर्ष महालय के अन्तर्गत किसी भी श्राद्ध का अधिकार नहीं होता। एसा होने पर भी आग्रहपूर्वक पहले वर्ष भरणी श्राद्ध सम्पन्न किया जाता है। इसके लिए कोई ठोस शास्त्राधार नहीं है। प्रथम वर्ष के बाद भरणी श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। वास्तव में भरणी श्राद्ध प्रतिवर्ष करने का शास्त्र संकेत है। किन्तु एक ही बार करने वाले व्यक्ति कम से कम प्रथम वर्ष भरणी श्राद्ध न करें। अनेक लोग अपने जीवन में कोई भी तीर्थ यात्रा नहीं कर पाते। एसे लोगों की मृत्यु होने पर उन्हें मातृगया, पितृगया, पुष्कर तीर्थ एवं बद्रिकेदार आदि तीर्थो पर किए गए श्राद्ध का फल मिले, इसके लिए भरणी श्राद्ध किया जाता है। जिन लोगों को अपने पितरों का श्राद्ध गयादि तीर्थो पर करने की तीव्र इच्छा हो किन्तु आर्थिक स्थिति या समयाभाव के कारण वे असमर्थ हों तो एसे समय मृत व्यक्ति को उद्देश्य कर भरणी श्राद्ध करना चाहिए। प्रत्येक वर्ष भरणी श्राद्ध करना हंमेशा श्रेयस्कर रहता है।

इसे प्रथम महालय में न करते हुए दूसरे वर्ष से अवश्य करें। नित्य तर्पण में मृत व्यक्ति को पितृत्व का अधिकार प्राप्त होने पर ही उसके नाम का उच्चारण करें। इसे पहले साल न करें। फिर भी कुछ पुरोहितों के मतानुसार सपिंडीकरण तथा षोडशमासिक श्राद्ध आदि सभी विधि की तरह भरणी श्राद्ध भी करवा लें तो कोई दोष नहीं है। शास्त्रों के अनुसार भरणी श्राद्ध प्रथम वर्ष करवा लेने में भी कोई दोष नहीं होता * श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध अवश्य ही करना चाहिए*
श्री रांदल ज्योतिष कार्यालय सुरेन्द्रनगर गुजरात राज्य सम्पर्क सुत्रम+९१९८२४४१७०९०/+९१७८०२००००३३....

मंगलवार, 14 सितंबर 2021

।। *ऋणमोचन मंगलस्तोत्रम्* ।।

।। *ऋणमोचन मंगलस्तोत्रम्* ।। 

मंगलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रद:। 
स्थिरासनो महाकाय: सर्वकर्मविरोधक:।। 

लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरः। 
धरात्मज: कुंजौ भौमो भूतिदो भूमिनंदन:।। 

धरणीगर्भसंभूतं विद्युत्कान्ति समप्रभम् । 
कुमारं शक्तिहस्तं च मंगलं प्रणमाम्यहम्। 

अंगारको यमश्चैव सर्वरोगापहारक:। 
वृष्टे: कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रद:।। 

एतानि कुंजनामानि नित्यं य: श्रद्धया पठेत्। 
ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात् ।। 

स्तोत्रमंगारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभि:। 
न तेषां भौमजा पीड़ा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित्

अंगारको महाभाग भगवन्भक्तवत्सल। 
त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय:।। 

ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये ह्यपमृत्यव:। 
भयक्लेश मनस्तापा: नश्यन्तु मम सर्वदा।। 

अतिवक्र दुराराध्य भोगमुक्तजितात्मन:। 
तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।। 

विरञ्चि शक्रविष्णुनां मनुष्याणां तु कथा। 
तेन त्वं सर्वसत्वेन ग्रहराजो महाबल:।। 

पुत्रां देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गत:। 
ऋणदारिद्रय दु:खेन शत्रूणां च भयात्तत:।। 

एभिर्द्वादशभि: श्लोकैर्य: स्तौति च धरासुतम्। 
महतीं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा:। 

।। इति श्रीस्कन्दपुराणे भार्गवप्रोक्त ऋणमोचन मंगलस्तोत्रम् ।। 
*श्री रांदल ज्योतिष कार्यालय* पंडयाजी सुरेन्द्रनगर गुजरात राज्य सम्पर्क सुत्रम +९१९८२४४१७०९०/+९१७८०२००००३३...

शुक्रवार, 10 सितंबर 2021

*💥श्री गणेश चतुर्थी एवं श्री गणेश महोत्सव 10 सितम्बर से 19 सितंबर 2021 विशेष💥*

*💥श्री गणेश चतुर्थी एवं श्री गणेश महोत्सव  10 सितम्बर से 19 सितंबर 2021 विशेष💥*
*_🚩 श्री रांदल ज्योतिष कार्यालय से पंड्याजी 🚩_*
सभी सनातन धर्मावलंबी प्रति वर्ष गणपति की स्थापना तो करते है लेकिन हममे से बहुत ही कम लोग जानते है कि आखिर हम गणपति क्यों बिठाते हैं ? आइये जानते है।

हमारे धर्म ग्रंथों के अनुसार, महर्षि वेद व्यास ने महाभारत की रचना की है।
लेकिन लेखन के लिए उन्होंने श्री गणेश जी की आराधना की और गणपति जी से महाभारत लिखने की प्रार्थना की।

गणपति जी ने सहमति दी और दिन-रात लेखन कार्य प्रारम्भ हुआ और इस कारण गणेश जी को थकान तो होनी ही थी, लेकिन उन्हें पानी पीना भी वर्जित था। अतः गणपति जी के शरीर का तापमान बढ़े नहीं, इसलिए वेदव्यास ने उनके शरीर पर मिट्टी का लेप किया और भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेश जी की पूजा की। मिट्टी का लेप सूखने पर गणेश जी के शरीर में अकड़न आ गई, इसी कारण गणेश जी का एक नाम पार्थिव गणेश भी पड़ा। महाभारत का लेखन कार्य 10 दिनों तक चला। अनंत चतुर्दशी को लेखन कार्य संपन्न हुआ।

वेदव्यास ने देखा कि, गणपति का शारीरिक तापमान फिर भी बहुत बढ़ा हुआ है और उनके शरीर पर लेप की गई मिट्टी सूखकर झड़ रही है, तो वेदव्यास ने उन्हें पानी में डाल दिया। इन दस दिनों में वेदव्यास ने गणेश जी को खाने के लिए विभिन्न पदार्थ दिए। तभी से गणपति बैठाने की प्रथा चल पड़ी। इन दस दिनों में इसीलिए गणेश जी को पसंद विभिन्न भोजन अर्पित किए जाते हैं।

गणेश चतुर्थी को कुछ स्थानों पर डंडा चौथ के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि गुरु शिष्य परंपरा के तहत इसी दिन से विद्याध्ययन का शुभारंभ होता था। इस दिन बच्चे डण्डे बजाकर खेलते भी हैं। गणेश जी को ऋद्धि-सिद्धि व बुद्धि का दाता भी माना जाता है। इसी कारण कुछ क्षेत्रों में इसे डण्डा चौथ भी कहते हैं।

 पार्थिव श्रीगणेश पूजन का महत्त्व

अलग अलग कामनाओ की पूर्ति के लिए अलग अलग द्रव्यों से बने हुए गणपति की स्थापना की जाती हैं।

(1) श्री गणेश👉 मिट्टी के पार्थिव श्री गणेश बनाकर पूजन करने से सर्व कार्य सिद्धि होती हे!                         

(2) हेरम्ब👉 गुड़ के गणेश जी बनाकर पूजन करने से लक्ष्मी प्राप्ति होती हे। 
                                         
(3) वाक्पति👉 भोजपत्र पर केसर से पर श्री गणेश प्रतिमा चित्र बनाकर।  पूजन करने से विद्या प्राप्ति होती हे।

 (4) उच्चिष्ठ गणेश👉 लाख के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से स्त्री।  सुख और स्त्री को पतिसुख प्राप्त होता हे घर में ग्रह क्लेश निवारण होता हे। 

(5) कलहप्रिय👉 नमक की डली या। नमक  के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से शत्रुओ में क्षोभ उतपन्न होता हे वह आपस ने ही झगड़ने लगते हे। 

(6) गोबरगणेश👉 गोबर के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से पशुधन में व्रद्धि होती हे और पशुओ की बीमारिया नष्ट होती है (गोबर केवल गौ माता का ही हो)।
                           
(7) श्वेतार्क श्री गणेश👉 सफेद आक मन्दार की जड़ के श्री गणेश जी बनाकर पूजन करने से भूमि लाभ भवन लाभ होता हे। 
                       
(8) शत्रुंजय👉 कडूए नीम की की लकड़ी से गणेश जी बनाकर पूजन करने से शत्रुनाश होता हे और युद्ध में विजय होती हे।
                           
(9) हरिद्रा गणेश👉 हल्दी की जड़ से या आटे में हल्दी मिलाकर श्री गणेश प्रतिमा बनाकर पूजन करने से विवाह में आने वाली हर बाधा नष्ठ होती हे और स्तम्भन होता हे।

(10) सन्तान गणेश👉 मक्खन के श्री गणेश जी बनाकर पूजन से सन्तान प्राप्ति के योग निर्मित होते हैं।

(11) धान्यगणेश👉 सप्तधान्य को पीसकर उनके श्रीगणेश जी बनाकर आराधना करने से धान्य व्रद्धि होती हे अन्नपूर्णा माँ प्रसन्न होती हैं।    

(12) महागणेश👉 लाल चन्दन की लकड़ी से दशभुजा वाले श्री गणेश जी प्रतिमा निर्माण कर के पूजन से राज राजेश्वरी श्री आद्याकालीका की शरणागति प्राप्त होती हैं।

पूजन मुहूर्त

गणपति स्वयं ही मुहूर्त है। सभी प्रकार के विघ्नहर्ता है इसलिए गणेशोत्सव गणपति स्थापन के दिन दिनभर कभी भी स्थापन कर सकते है। सकाम भाव से पूजा के लिए नियम की आवश्यकता पड़ती है इसमें प्रथम नियम मुहूर्त अनुसार कार्य करना है।
श्री रांदल ज्योतिष कार्यालय पंडयाजी सुरेन्द्रनगर गुजरात से गणेशोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ 🙏🙏🙏