बुधवार, 21 अप्रैल 2021

*पत्नी वामांगी क्यों कहलाती है?*

पत्नी वामांगी क्यों कहलाती है?*
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शास्त्रों में पत्नी को वामंगी कहा गया है, जिसका अर्थ होता है बाएं अंग का अधिकारी। इसलिए पुरुष के शरीर का बायां हिस्सा स्त्री का माना जाता है।
इसका कारण यह है कि भगवान शिव के बाएं अंग से स्त्री की उत्पत्ति हुई है जिसका प्रतीक है शिव का अर्धनारीश्वर शरीर। यही कारण है कि हस्तरेखा विज्ञान की कुछ पुस्तकों में पुरुष के दाएं हाथ से पुरुष की और बाएं हाथ से स्त्री की स्थिति देखने की बात कही गयी है।
शास्त्रों में कहा गया है कि स्त्री पुरुष की वामांगी होती है इसलिए सोते समय और सभा में, सिंदूरदान, द्विरागमन, आशीर्वाद ग्रहण करते समय और भोजन के समय स्त्री पति के बायीं ओर रहना चाहिए। इससे शुभ फल की प्राप्ति होती।
वामांगी होने के बावजूद भी कुछ कामों में स्त्री को दायीं ओर रहने के बात शास्त्र कहता है। शास्त्रों में बताया गया है कि कन्यादान, विवाह, यज्ञकर्म, जातकर्म, नामकरण और अन्न प्राशन के समय पत्नी को पति के दायीं ओर बैठना चाहिए।
पत्नी के पति के दाएं या बाएं बैठने संबंधी इस मान्यता के पीछे तर्क यह है कि जो कर्म संसारिक होते हैं उसमें पत्नी पति के बायीं ओर बैठती है। क्योंकि यह कर्म स्त्री प्रधान कर्म माने जाते हैं।
यज्ञ, कन्यादान, विवाह यह सभी काम पारलौकिक माने जाते हैं और इन्हें पुरुष प्रधान माना गया है। इसलिए इन कर्मों में पत्नी के दायीं ओर बैठने के नियम हैं।
क्या आप जानते हैं?????
सनातन धर्म में पत्नी को पति की वामांगी कहा गया है, यानी कि पति के शरीर का बांया हिस्सा, इसके अलावा पत्नी को पति की अर्द्धांगिनी भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है पत्नी, पति के शरीर का आधा अंग होती है, दोनों शब्दों का सार एक ही है, जिसके अनुसार पत्नी के बिना पति अधूरा है।
*पत्नी ही पति के जीवन को पूरा करती है,* उसे खुशहाली प्रदान करती है, उसके परिवार का ख्याल रखती है, और उसे वह सभी सुख प्रदान करती है जिसके वह योग्य है, पति-पत्नी का रिश्ता दुनिया भर में बेहद महत्वपूर्ण बताया गया है, चाहे सोसाइटी कैसी भी हो, लोग कितने ही मॉर्डर्न क्यों ना हो जायें, लेकिन पति-पत्नी के रिश्ते का रूप वही रहता है, प्यार और आपसी समझ से बना हुआ।
हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध ग्रंथ महाभारत में भी पति-पत्नी के महत्वपूर्ण रिश्ते के बारे में काफी कुछ कहा गया है, भीष्म पितामह ने कहा था कि पत्नी को सदैव प्रसन्न रखना चाहिये, क्योंकि, उसी से वंश की वृद्धि होती है, वह घर की लक्ष्मी है और यदि लक्ष्मी प्रसन्न होगी तभी घर में खुशियां आयेगी, इसके अलावा भी अनेक धार्मिक ग्रंथों में पत्नी के गुणों के बारे में विस्तारपूर्वक बताया गया है।
आज हम आपको गरूड पुराण, जिसे लोक प्रचलित भाषा में गृहस्थों के कल्याण की पुराण भी कहा गया है, उसमें उल्लिखित पत्नी के कुछ गुणों की संक्षिप्त व्याख्या करेंगे, गरुण पुराण में पत्नी के जिन गुणों के बारे में बताया गया है, उसके अनुसार जिस व्यक्ति की पत्नी में ये गुण हों, उसे स्वयं को भाग्यशाली समझना चाहिये, कहते हैं पत्नी के सुख के मामले में देवराज इंद्र अति भाग्यशाली थे, इसलिये गरुण पुराण के तथ्य यही कहते हैं।
*सा भार्या या गृहे दक्षा सा भार्या या प्रियंवदा।
सा भार्या या पतिप्राणा सा भार्या या पतिव्रता।।*
गरुण पुराण में पत्नी के गुणों को समझने वाला एक श्लोक मिलता है, यानी जो पत्नी गृहकार्य में दक्ष है, जो प्रियवादिनी है, जिसके पति ही प्राण हैं और जो पतिपरायणा है, वास्तव में वही पत्नी है, गृह कार्य में दक्ष से तात्पर्य है वह पत्नी जो घर के काम काज संभालने वाली हो, घर के सदस्यों का आदर-सम्मान करती हो, बड़े से लेकर छोटों का भी ख्याल रखती हो।
जो पत्नी घर के सभी कार्य जैसे- भोजन बनाना, साफ-सफाई करना, घर को सजाना, कपड़े-बर्तन आदि साफ करना, यह कार्य करती हो वह एक गुणी पत्नी कहलाती है, इसके अलावा बच्चों की जिम्मेदारी ठीक से निभाना, घर आये अतिथियों का मान-सम्मान करना, कम संसाधनों में भी गृहस्थी को अच्छे से चलाने वाली पत्नी गरुण पुराण के अनुसार गुणी कहलाती है, ऐसी पत्नी हमेशा ही अपने पति की प्रिय होती है।
प्रियवादिनी से तात्पर्य है मीठा बोलने वाली पत्नी, आज के जमाने में जहां स्वतंत्र स्वभाव और तेज-तरार बोलने वाली पत्नियां भी है, जो नहीं जानती कि किस समय किस से कैसे बात करनी चाहियें, इसलिए गरुण पुराण में दिए गए निर्देशों के अनुसार अपने पति से सदैव संयमित भाषा में बात करने वाली, धीरे-धीरे व प्रेमपूर्वक बोलने वाली पत्नी ही गुणी पत्नी होती है। *श्री रांदल ज्योतिष कार्यालय* *पंडयाजी* सुरेन्द्रनगर गुजरात +919824417090...919714540244...+917802000033...

सोमवार, 19 अप्रैल 2021

આજની પરિસ્થીતિના સંદર્ભમાં આપણા પૂર્વજો કેટલા દીર્ઘદ્રષ્ટા હતા, 5000 વર્ષ પહેલાં સુક્ષ્મદર્શકયંત્ર વિના પણ વાયરસને ઓળખી તે સામે લડવાની સાવચેતી રોજ બરોજના જીવનમાં સદાચાર તરીકે શીખવાડી દિધી હતી. વંદન છે તે સંસ્કૃતિને

लवणं व्यञ्जनं चैव धृतं तैलं तथैव च ।
लेह्यं पेयं च विविधं हस्तदत्तं न भक्षयेत ।।

મીઠું/નમક, તેલ, ચોખા / ભાત અને અન્ય ખોરાકના વ્યંજનો આંગળીઓની મદદથી પીરસવા ન જોઈએ. હંમેશા ચમચાનો ઉપયોગ કરવો.
 
            -ધર્મસિન્ધુ 3 પૂ.આહ્નિક

अनातुर खानि खानि न स्पृशेहनिमित्ततः ।।

ખાસ કારણ વગર પોતાની ઈન્દ્રિયોને આંખ,નાક, કાન વગેરેને સ્પર્શ નહિં જ કરવો.

             મનુસ્મૃતિ 4/144

अपमृज्यान्न च सन्नातो गात्राण्यम्बरपाणिभिः ।।

પોતે અગાઉ પહેરેલાં કપડાંનો ઉપયોગ કરવો જોઈએ નહિં,સ્નાન કર્યા પછી પોતે જ પોતાનું શરીરને કોરું કરી નાખવું.

        માર્કડેંય પુરાણ 34/52

हस्तपादे मुखे चैव पञ्चाद्रे भोजनं चरेत ।।

જમતાં પહેલાં હાથ, પગ, મોઢું બરાબર ધોઈ જ નાંખવા.

       પદ્મસૃષ્ટિ-51/88

स्न्नानाचारविहीनस्य सर्वाः स्युः निष्फलाः क्रियाः ।

સ્નાન કર્યા વિના કરેલાં સઘળા કામો નિષ્ફળ જાય છે.

         વાઘલસ્મૃતિ - 69

न धारयेत् परस्यैतं स्न्नानवस्त्रं कदाचन् ।।

સ્નાન કર્યા પછી બીજાના કપડાં કે ટુવાલનો ઉપયોગ કરવો જ નહિં.

           પદ્મસૃષ્ટિ- 51/86

अन्यदेव भवद्वासः शयनीये नरोत्तम।
अन्यद् रथ्यासु देवनाम् आचार्याम् अन्यदेव हि ।।

સુતી વખતે, બહાર જતી વખતે કે પૂજા કરતી વખતે અલગ અલગ વસ્ત્રો ધારણ કરવા.

          મહાભારત -104/86

न अप्रक्षालितं पूर्वधृतं वसनं बिभृयाद् ।।

પહેરેલાં  વસ્ત્રો ધોયા વગર ફરી પહેરવાં નહિં.

            વિષ્ણુસ્મૃતિ -64

तथा न अन्यथृतं (वस्त्रं) थार्यम् ।।

બીજાના પહેરેલાં વસ્ત્રો કદાપિ ન પહેરવા.

          મહાભારત -104/86

न आद्रंपरिदधीत

 ભીના વસ્ત્રો કદાપિ ન પહેરવા.

          ગોભિસગુહ્યમસૂત્ર-3/5/24

चिताधूमसेवने सर्वे वर्णाः स्न्नानम् आचयेयुः वमनेश्मश्रुकर्मणि कृते च ।

સ્મશાનમાં જઈને આવ્યા પછી અચૂક સ્નાન કરવું જ વાળ કપાવ્યા પછી પણ અચૂક સ્નાન કરવું જ.

           વિષ્ણુસ્મૃતિ -22


આજની પરિસ્થીતિના સંદર્ભમાં આપણા પૂર્વજો કેટલા દીર્ઘદ્રષ્ટા હતા, 5000 વર્ષ પહેલાં સુક્ષ્મદર્શકયંત્ર વિના પણ વાયરસને ઓળખી તે સામે લડવાની સાવચેતી રોજ બરોજના જીવનમાં સદાચાર તરીકે શીખવાડી દિધી હતી.
    વંદન છે તે સંસ્કૃતિને 
     " दुर्लभ भारते जन्म "
श्री रांदल ज्योतिष कार्यालय पंडयाजी सुरेन्द्रनगर+919824417090...

शुक्रवार, 2 अप्रैल 2021

संतान प्राप्ति में बाधक ग्रहो के उपाय

एवं_हि_जन्म_समये_बहुपूर्वजन्मकर्माजितं_दुरितमस्य_वदन्ति_तज्ज्ञाः |
ततद_ग्रहोक्त_जप_दान_शुभ_क्रिया_भिस्तददोषशान्तिमिह_शंसतु_पुत्र_सिद्धयै ||

अर्थात जन्म कुंडली से यह ज्ञात होता है कि पूर्व जन्मों के किन पापों के कारण संतान_हीनता है | 

बाधाकारक ग्रहों या उनके देवताओं का जाप ,दान ,हवन आदि शुभ क्रियाओं के करने से पुत्र प्राप्ति होती है |

सूर्य संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण पितृ पीड़ा है |  पितृ शान्ति के लिए गयाजी में पिंड दान कराएं |  हरिवंश पुराण का श्रवण करें |सूर्य रत्न माणिक्य धारण करें | रविवार को सूर्योदय के बाद गेंहु,गुड ,केसर ,लाल चन्दन ,लाल वस्त्र ,ताम्बा, सोना  तथा लाल रंग के फल दान करने चाहियें | सूर्य के बीज मन्त्र ॐ  ह्रां ह्रीं ह्रों सः सूर्याय नमः  के 7000 की संख्या में जाप करने  से भी सूर्य कृत अरिष्टों की निवृति हो जाती है | गायत्री जाप से , रविवार के मीठे व्रत रखने से तथा ताम्बे के पात्र में जल में  लाल चन्दन ,लाल पुष्प ड़ाल कर नित्य सूर्य को अर्घ्य  देने पर भी शुभ  फल प्राप्त होता है |  विधि पूर्वक बेल पत्र की जड़ को रविवार में लाल डोरे में धारण करने से भी सूर्य प्रसन्न हो कर शुभ फल दायक हो जाते हैं  |

चन्द्र_संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण माता का शाप या माँ दुर्गा की अप्रसन्नता है  जिसकी शांति के लिए रामेश्वर तीर्थ का स्नान ,गायत्री का जाप करें | श्वेत तथा गोल मोती चांदी की अंगूठी में रोहिणी ,हस्त ,श्रवण नक्षत्रों में जड़वा कर सोमवार या पूर्णिमा तिथि में पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की अनामिका या कनिष्टिका अंगुली में धारण करें | धारण करने से पहले ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूप,दीप ,पुष्प ,अक्षत आदि से पूजन कर लें |
सोमवार के नमक रहित व्रत रखें , ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः मन्त्र का ११००० संख्या में जाप करें |सोमवार को चावल ,चीनी ,आटा, श्वेत वस्त्र ,दूध दही ,नमक ,चांदी  इत्यादि का दान करें |

मंगल संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण भ्राता का शाप ,शत्रु का अभिचार या  श्री गणपति या श्री हनुमान की अवज्ञा होता है जिसकी शान्ति के लिए प्रदोष व्रत तथा रामायण का पाठ करें |लाल रंग का मूंगा  सोने या ताम्बे  की अंगूठी में  मृगशिरा ,चित्रा या अनुराधा नक्षत्रों में जड़वा कर मंगलवार  को सूर्योदय के बाद  पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की अनामिका अंगुली में धारण करें | धारण करने से पहले ॐ  क्रां क्रीं क्रों सः भौमाय नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूप,दीप , लाल पुष्प, गुड  ,अक्षत आदि से पूजन कर लें
मंगलवार के नमक रहित व्रत रखें , ॐ  क्रां क्रीं क्रों सः भौमाय नमः  मन्त्र का १०००० संख्या में जाप करें | मंगलवार को गुड शक्कर ,लाल रंग का वस्त्र और फल ,ताम्बे का पात्र ,सिन्दूर ,लाल चन्दन केसर ,मसूर की दाल  इत्यादि का दान करें |

बुध संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण मामा का शाप ,तुलसी या भगवान विष्णु की अवज्ञा है जिसकी शांति के लिए विष्णु पुराण का श्रवण ,विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करें |हरे  रंग का पन्ना सोने या चांदी की अंगूठी में आश्लेषा,ज्येष्ठा ,रेवती  नक्षत्रों में जड़वा कर बुधवार को सूर्योदय के बाद  पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की कनिष्टिका अंगुली में धारण करें | धारण करने से पहले ॐ  ब्रां ब्रीं ब्रों सः बुधाय  नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूप,दीप , लाल पुष्प, गुड  ,अक्षत आदि से पूजन कर लें | बुधवार  के नमक रहित व्रत रखें ,  ॐ  ब्रां ब्रीं ब्रों सः बुधाय  नमः मन्त्र का १७००० संख्या में जाप करें | बुधवार को कर्पूर,घी, खांड, ,हरे  रंग का वस्त्र और फल ,कांसे का पात्र ,साबुत मूंग  इत्यादि का दान करें | तुलसी को जल व दीप दान करना भी शुभ रहता है |

बृहस्पति संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण गुरु ,ब्राह्मण का शाप या फलदार वृक्ष को काटना है जिसकी शान्ति के लिए  पीत रंग का  पुखराज सोने या चांदी की अंगूठी मेंपुनर्वसु ,विशाखा ,पूर्व भाद्रपद   नक्षत्रों में जड़वा कर गुरुवार को सूर्योदय के बाद  पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की तर्जनी अंगुली में धारण करें | धारण करने से पहले ॐ  ग्रां ग्रीं ग्रौं सःगुरुवे नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूप,दीप , पीले पुष्प, हल्दी ,अक्षत आदि से पूजन कर लें |पुखराज की सामर्थ्य न हो तो उपरत्न सुनैला या पीला जरकन भी धारण कर सकते हैं | केले की जड़ गुरु पुष्य योग में धारण करें |गुरूवार के नमक रहित व्रत रखें ,  ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सःगुरुवे  नमः मन्त्र का १९०००  की संख्या में जाप करें | गुरूवार को घी, हल्दी, चने की दाल ,बेसन पपीता ,पीत रंग का वस्त्र ,स्वर्ण, इत्यादि का दान करें |फलदार पेड़ सार्वजनिक स्थल पर लगाने से या ब्राह्मण विद्यार्थी को भोजन करा कर दक्षिणा देने और गुरु की पूजा सत्कार से भी बृहस्पति प्रसन्न हो कर शुभ फल देते हैं |

शुक्र संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण गौ -ब्राह्मण ,किसी साध्वी स्त्री को कष्ट देना या पुष्प युक्त पौधों को काटना है  जिसकी शान्ति के लिए गौ दान ,ब्राह्मण दंपत्ति को वस्त्र फल आदि का दान ,श्वेत रंग का  हीरा प्लैटिनम या चांदी की अंगूठी में  पूर्व फाल्गुनी ,पूर्वाषाढ़ व भरणी नक्षत्रों में जड़वा कर शुक्रवार को सूर्योदय के बाद  पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करें | धारण करने से पहले ॐ  द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय  नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूप,दीप , श्वेत  पुष्प, अक्षत आदि से पूजन कर लें

हीरे की सामर्थ्य न हो तो उपरत्न श्वेत जरकन भी धारण कर सकते हैं |शुक्रवार  के नमक रहित व्रत रखें ,  ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय  नमः मन्त्र का १६ ०००  की संख्या में जाप करें | शुक्रवार को  आटा ,चावल दूध ,दही, मिश्री ,श्वेत चन्दन ,इत्र, श्वेत रंग का वस्त्र ,चांदी इत्यादि का दान करें |

शनि संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण पीपल का वृक्ष काटना या प्रेत बाधा है जिसकी शान्ति के लिए पीपल के पेड़ लगवाएं,रुद्राभिषेक करें ,शनि की लोहे की मूर्ती तेल में डाल कर दान करें|  नीलम लोहे या सोने की अंगूठी में पुष्य ,अनुराधा ,उत्तरा भाद्रपद नक्षत्रों में जड़वा कर शनिवार  को  सूर्यास्त  के बाद  पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करें | धारण करने से पहले ॐ  प्रां प्रीं प्रों  सः शनये  नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूप,दीप , नीले पुष्प,  काले तिल व अक्षत आदि से पूजन कर लें|

नीलम की सामर्थ्य न हो तो उपरत्न संग्लीली , लाजवर्त भी धारण कर सकते हैं | काले घोड़े कि नाल या नाव के नीचे के कील  का छल्ला धारण करना भी शुभ रहता है |शनिवार के नमक रहित व्रत रखें | ॐ  प्रां प्रीं प्रों  सः शनये  नमः मन्त्र का २३०००  की संख्या में जाप करें | शनिवार को काले उडद ,तिल ,तेल ,लोहा,काले जूते ,काला कम्बल , काले  रंग का वस्त्र इत्यादि का दान करें |श्री हनुमान चालीसा का नित्य पाठ करना भी शनि दोष शान्ति का उत्तम उपाय है | 
*श्री रांदल ज्योतिष कार्यालय पंडयाजी सुरेन्द्रनगर+919824417090..*

*भगवान श्रीकृष्ण और जामवंत का युद्ध*

*भगवान श्रीकृष्ण और जामवंत का युद्ध*
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार सत्राजित ने भगवान सूर्य की उपासना की जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने अपनी स्यमन्तक नाम की मणि उसे दे दी। एक दिन जब कृष्ण साथियों के साथ चौसर खेल रहे थे तो सत्राजित स्यमन्तक मणि मस्तक पर धारण किए उनसे भेंट करने पहुंचे। उस मणि को देखकर कृष्ण ने सत्राजित से कहा की तुम्हारे पास जो यह अलौकिक मणि है, इनका वास्तविक अधिकारी तो राजा होता है। इसलिए तुम इस मणि को हमारे राजा उग्रसेन को दे दो। यह बात सुन सत्राजित बिना कुछ बोले ही वहाँ से उठ कर चले गए। सत्राजित ने स्यमन्तक मणि को अपने घर के मन्दिर में स्थापित कर दिया। वह मणि रोजाना आठ भार सोना देती थी. जिस स्थान में वह मणि होती थी वहाँ के सारे कष्ट स्वयं ही दूर हो जाते थे।

एक दिन सत्राजित का भाई प्रसेनजित उस मणि को पहन कर घोड़े पर सवार हो आखेट के लिये गया। वन में प्रसेनजित पर एक सिंह ने हमला कर दिया जिसमें वह मारा गया। सिंह अपने साथ मणि भी ले कर चला गया। उस सिंह को रीछराज जामवंत ने मारकर वह मणि प्राप्त कर ली और अपनी गुफा में चला गया। जामवंत ने उस मणि को अपने बालक को दे दिया जो उसे खिलौना समझ उससे खेलने लगा।

जब प्रसेनजित लौट कर नहीं आया तो सत्राजित ने समझा कि उसके भाई को कृष्ण ने मारकर मणि छीन ली है। कृष्ण जी पर चोरी के सन्देह की बात पूरे द्वारिकापुरी में फैल गई। अपने उपर लगे कलंक को धोने के लिए वे नगर के प्रमुख यादवों को साथ ले कर रथ पर सवार हो स्यमन्तक मणि की खोज में निकले। वन में उन्होंने घोड़ा सहित प्रसेनजित को मरा हुआ देखा पर मणि का कहीं पता नहीं चला। वहाँ निकट ही सिंह के पंजों के चिन्ह थे। सिंह के पदचिन्हों के सहारे आगे बढ़ने पर उन्हें मरे हुए सिंह का शरीर मिला।

वहाँ पर रीछ के पैरों के पद-चिन्ह भी मिले जो कि एक गुफा तक गये थे। जब वे उस भयंकर गुफा के निकट पहुँचे तब श्री कृष्ण ने यादवों से कहा कि तुम लोग यहीं रुको। मैं इस गुफा में प्रवेश कर मणि ले जाने वाले का पता लगाता हूँ। इतना कहकर वे सभी यादवों को गुफा के मुख पर छोड़ उस गुफा के भीतर चले गये। वहाँ जाकर उन्होंने देखा कि वह मणि एक रीछ के बालक के पास है जो उसे हाथ में लिए खेल रहा था। श्री कृष्ण ने उस मणि को उठा लिया। यह देख कर जामवंत अत्यन्त क्रोधित होकर श्री कृष्ण को मारने के लिये झपटा। जामवंत और श्री कृष्ण में भयंकर युद्ध होने लगा। जब कृष्ण गुफा से वापस नहीं लौटे तो सारे यादव उन्हें मरा हुआ समझ कर बारह दिन के उपरांत वहाँ से द्वारिकापुरी वापस आ गये तथा समस्त वृतांत वासुदेव और देवकी से कहा। वासुदेव और देवकी व्याकुल होकर महामाया दुर्गा की उपासना करने लगे। उनकी उपासना से प्रसन्न होकर देवी दुर्गा ने प्रकट होकर उन्हें आशीर्वाद दिया कि तुम्हारा पुत्र तुम्हें अवश्य मिलेगा.

 
श्री कृष्ण और जामवंत दोनों ही पराक्रमी थे। युद्ध करते हुये गुफा में अट्ठाईस दिन बीत गए। कृष्ण की मार से महाबली जामवंत की नस टूट गई। वह अति व्याकुल हो उठा और अपने स्वामी श्री रामचन्द्र जी का स्मरण करने लगा। जामवंत के द्वारा श्री राम के स्मरण करते ही भगवान श्री कृष्ण ने श्री रामचन्द्र के रूप में उसे दर्शन दिये। जामवंत उनके चरणों में गिर गया और बोला, “हे भगवान! अब मैंने जाना कि आपने यदुवंश में अवतार लिया है.” श्री कृष्ण ने कहा, “हे जामवंत! तुमने मेरे राम अवतार के समय रावण के वध हो जाने के पश्चात मुझसे युद्ध करने की इच्छा व्यक्त की थी और मैंने तुमसे कहा था कि मैं तुम्हारी इच्छा अपने अगले अवतार में अवश्य पूरी करूँगा. अपना वचन सत्य सिद्ध करने के लिये ही मैंने तुमसे यह युद्ध किया है.” जामवंत ने भगवान श्री कृष्ण की अनेक प्रकार से स्तुति की और अपनी कन्या जामवंती का विवाह उनसे कर दिया।

कृष्ण जामवंती को साथ लेकर द्वारिका पुरी पहुँचे। उनके वापस आने से द्वारिका पुरी में चहुँ ओर प्रसन्नता व्याप्त हो गई। श्री कृष्ण ने सत्राजित को बुलवाकर उसकी मणि उसे वापस कर दी। सत्राजित अपने द्वारा श्री कृष्ण पर लगाये गये झूठे कलंक के कारण अति लज्जित हुआ और पश्चाताप करने लगा। प्रायश्चित के रूप में उसने अपनी कन्या सत्यभामा का विवाह श्री कृष्ण के साथ कर दिया और वह मणि भी उन्हें दहेज में दे दी। किन्तु शरणागत वत्सल श्री कृष्ण ने उस मणि को स्वीकार न करके पुनः सत्राजित को वापस कर दिया।
भागवताचार्य परम पूज्य श्री भरतलाल शास्त्री जी
📱9887799966
[2/4, 13:20] +91 98877 99966: *जानिए किस कारण से भगवान विष्णु ने देवी लक्ष्मी को दिया श्राप और कैसे मिली इससे मुक्ति*
 पुराणों में ऐसी कई पौराणिक कथाएं मिलती है जिनसे सभी मनुष्यों को कोई न कोई प्रेरणा अवश्य मिलती है. भगवान विष्णु से जुड़ी हुई कहानियां किसी न किसी रूप में आज वर्तमान में भी मनुष्यों को जीवन के प्रति सकरात्मक सोच रखने के लिए प्रेरित करती है. जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भगवान विष्णु ने विभिन्न अवतार, मानव कल्याण के लिए रचे थे. भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी के अश्व रूप की ऐसी ही एक कहानी भागवत पुराण में मिलती है.एक बार भगवान विष्णु बैकुण्ठ लोक में लक्ष्मी के साथ विराजमान थे. उसी समय उच्चेः श्रवा नामक अश्व पर सवार होकर रेवंत का आगमन हुआ. उच्चेः श्रवा अश्व सभी लक्षणों से युक्त, देखने में अत्यंत सुन्दर था.

उसकी सुंदरता की तुलना किसी अन्य अश्व से नहीं की जा सकती थी. अतः लक्ष्मी जी उस अश्व के सौंदर्य को एकटक देखती रह गई. ये देखकर भगवान विष्णु द्वारा बार-बार झकझोरने पर भी लक्ष्मी एकटक अश्व को देखती रही. तब इसे अपनी अवहेलना समझकर भगवान विष्णु को क्रोध आ गया और खीझंकर लक्ष्मी को श्राप देते हुए कहा- ‘तुम इस अश्व के सौंदर्य में इतनी खोई हो कि मेरे द्वारा बार-बार झकझोरने पर भी तुम्हारा ध्यान इसी में लगा रहा, अतः तुम अश्वी (घोड़ी) हो जाओ.’जब लक्ष्मी का ध्यान भंग हुआ और शाप का पता चला तो वे क्षमा मांगती हुई समर्पित भाव से भगवान विष्णु की वंदना करने लगी- ‘मैं आपके वियोग में एक पल भी जीवित नहीं रह पाऊंगी, अतः आप मुझ पर कृपा करे एवं अपना शाप वापस ले ले.’

तब विष्णु ने अपने शाप में सुधार करते हुए कहा- ‘शाप तो पूरी तरह वापस नहीं लिया जा सकता. लेकिन हां, तुम्हारे अश्व रूप में पुत्र प्रसव के बाद तुम्हे इस योनि से मुक्ति मिलेगी और तुम पुनः मेरे पास वापस लौटोगी’.भगवान विष्णु के श्राप से अश्वी बनी हुई लक्ष्मी यमुना और तमसा नदी के संगम पर भगवान शिव की तपस्या करने लगी. लक्ष्मी के तप से प्रसन्न होकर शिव पार्वती के साथ आए. उन्होंने लक्ष्मी से तप करने का कारण पूछा तब लक्ष्मी ने अश्व हो जाने से संबंधित सारा वृतांत उन्हें सुना दिया और अपने उद्धार की उनसे प्रार्थना की.भगवान शिव ने उन्हें धीरज बंधाते हुए मनोकामना पूर्ति का वरदान दिया.इतना कहकर भगवान शिव अंतर्धान हो गए. कैलाश पहुंचकर भगवान शिव विचार करने लगे कि विष्णु को कैसे अश्व बनाकर लक्ष्मी के पास भेजा जाए.

अंत में, उन्होंने अपने एक गण-चित्ररूप को दूत बनाकर विष्णु के पास भेजा. चित्ररूप भगवान विष्णु के लोक में पहुंचे. भगवान शिव का दूत आया है, यह जानकर भगवान विष्णु ने दूत से सारा समाचार कहने को कहा. दूत ने भगवान शिव की सारी बातें उन्हें कह सुनाई.अंत में, भगवान विष्णु शिव का प्रस्ताव मानकर अश्व बनने के लिए तैयार हो गए. उन्होंने अश्व का रूप धारण किया और पहुंच गए यमुना और तपसा के संगम पर जहां लक्ष्मी अश्वी का रूप धारण कर तपस्या कर रही थी. भगवान विष्णु को अश्व रूप में आया देखकर लक्ष्मी काफी प्रसन्न हुई. दोनों एक साथ विचरण एवं रमण करने लगे. कुछ ही समय पश्चात अश्वी रूप धारी लक्ष्मी गर्भवती हो गई. अश्वी के गर्भ से एक सुन्दर बालक का जन्म हुआ. तत्पश्चात लक्ष्मी बैकुण्ठ लोक श्री हरि विष्णु के पास चली गई।
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संतान प्राप्ति में बाधक ग्रहो के उपाय

एवं_हि_जन्म_समये_बहुपूर्वजन्मकर्माजितं_दुरितमस्य_वदन्ति_तज्ज्ञाः |
ततद_ग्रहोक्त_जप_दान_शुभ_क्रिया_भिस्तददोषशान्तिमिह_शंसतु_पुत्र_सिद्धयै ||

अर्थात जन्म कुंडली से यह ज्ञात होता है कि पूर्व जन्मों के किन पापों के कारण संतान_हीनता है | 

बाधाकारक ग्रहों या उनके देवताओं का जाप ,दान ,हवन आदि शुभ क्रियाओं के करने से पुत्र प्राप्ति होती है |

सूर्य संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण पितृ पीड़ा है |  पितृ शान्ति के लिए गयाजी में पिंड दान कराएं |  हरिवंश पुराण का श्रवण करें |सूर्य रत्न माणिक्य धारण करें | रविवार को सूर्योदय के बाद गेंहु,गुड ,केसर ,लाल चन्दन ,लाल वस्त्र ,ताम्बा, सोना  तथा लाल रंग के फल दान करने चाहियें | सूर्य के बीज मन्त्र ॐ  ह्रां ह्रीं ह्रों सः सूर्याय नमः  के 7000 की संख्या में जाप करने  से भी सूर्य कृत अरिष्टों की निवृति हो जाती है | गायत्री जाप से , रविवार के मीठे व्रत रखने से तथा ताम्बे के पात्र में जल में  लाल चन्दन ,लाल पुष्प ड़ाल कर नित्य सूर्य को अर्घ्य  देने पर भी शुभ  फल प्राप्त होता है |  विधि पूर्वक बेल पत्र की जड़ को रविवार में लाल डोरे में धारण करने से भी सूर्य प्रसन्न हो कर शुभ फल दायक हो जाते हैं  |

चन्द्र_संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण माता का शाप या माँ दुर्गा की अप्रसन्नता है  जिसकी शांति के लिए रामेश्वर तीर्थ का स्नान ,गायत्री का जाप करें | श्वेत तथा गोल मोती चांदी की अंगूठी में रोहिणी ,हस्त ,श्रवण नक्षत्रों में जड़वा कर सोमवार या पूर्णिमा तिथि में पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की अनामिका या कनिष्टिका अंगुली में धारण करें | धारण करने से पहले ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूप,दीप ,पुष्प ,अक्षत आदि से पूजन कर लें |
सोमवार के नमक रहित व्रत रखें , ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः मन्त्र का ११००० संख्या में जाप करें |सोमवार को चावल ,चीनी ,आटा, श्वेत वस्त्र ,दूध दही ,नमक ,चांदी  इत्यादि का दान करें |

मंगल संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण भ्राता का शाप ,शत्रु का अभिचार या  श्री गणपति या श्री हनुमान की अवज्ञा होता है जिसकी शान्ति के लिए प्रदोष व्रत तथा रामायण का पाठ करें |लाल रंग का मूंगा  सोने या ताम्बे  की अंगूठी में  मृगशिरा ,चित्रा या अनुराधा नक्षत्रों में जड़वा कर मंगलवार  को सूर्योदय के बाद  पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की अनामिका अंगुली में धारण करें | धारण करने से पहले ॐ  क्रां क्रीं क्रों सः भौमाय नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूप,दीप , लाल पुष्प, गुड  ,अक्षत आदि से पूजन कर लें
मंगलवार के नमक रहित व्रत रखें , ॐ  क्रां क्रीं क्रों सः भौमाय नमः  मन्त्र का १०००० संख्या में जाप करें | मंगलवार को गुड शक्कर ,लाल रंग का वस्त्र और फल ,ताम्बे का पात्र ,सिन्दूर ,लाल चन्दन केसर ,मसूर की दाल  इत्यादि का दान करें |

बुध संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण मामा का शाप ,तुलसी या भगवान विष्णु की अवज्ञा है जिसकी शांति के लिए विष्णु पुराण का श्रवण ,विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करें |हरे  रंग का पन्ना सोने या चांदी की अंगूठी में आश्लेषा,ज्येष्ठा ,रेवती  नक्षत्रों में जड़वा कर बुधवार को सूर्योदय के बाद  पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की कनिष्टिका अंगुली में धारण करें | धारण करने से पहले ॐ  ब्रां ब्रीं ब्रों सः बुधाय  नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूप,दीप , लाल पुष्प, गुड  ,अक्षत आदि से पूजन कर लें | बुधवार  के नमक रहित व्रत रखें ,  ॐ  ब्रां ब्रीं ब्रों सः बुधाय  नमः मन्त्र का १७००० संख्या में जाप करें | बुधवार को कर्पूर,घी, खांड, ,हरे  रंग का वस्त्र और फल ,कांसे का पात्र ,साबुत मूंग  इत्यादि का दान करें | तुलसी को जल व दीप दान करना भी शुभ रहता है |

बृहस्पति संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण गुरु ,ब्राह्मण का शाप या फलदार वृक्ष को काटना है जिसकी शान्ति के लिए  पीत रंग का  पुखराज सोने या चांदी की अंगूठी मेंपुनर्वसु ,विशाखा ,पूर्व भाद्रपद   नक्षत्रों में जड़वा कर गुरुवार को सूर्योदय के बाद  पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की तर्जनी अंगुली में धारण करें | धारण करने से पहले ॐ  ग्रां ग्रीं ग्रौं सःगुरुवे नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूप,दीप , पीले पुष्प, हल्दी ,अक्षत आदि से पूजन कर लें |पुखराज की सामर्थ्य न हो तो उपरत्न सुनैला या पीला जरकन भी धारण कर सकते हैं | केले की जड़ गुरु पुष्य योग में धारण करें |गुरूवार के नमक रहित व्रत रखें ,  ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सःगुरुवे  नमः मन्त्र का १९०००  की संख्या में जाप करें | गुरूवार को घी, हल्दी, चने की दाल ,बेसन पपीता ,पीत रंग का वस्त्र ,स्वर्ण, इत्यादि का दान करें |फलदार पेड़ सार्वजनिक स्थल पर लगाने से या ब्राह्मण विद्यार्थी को भोजन करा कर दक्षिणा देने और गुरु की पूजा सत्कार से भी बृहस्पति प्रसन्न हो कर शुभ फल देते हैं |

शुक्र संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण गौ -ब्राह्मण ,किसी साध्वी स्त्री को कष्ट देना या पुष्प युक्त पौधों को काटना है  जिसकी शान्ति के लिए गौ दान ,ब्राह्मण दंपत्ति को वस्त्र फल आदि का दान ,श्वेत रंग का  हीरा प्लैटिनम या चांदी की अंगूठी में  पूर्व फाल्गुनी ,पूर्वाषाढ़ व भरणी नक्षत्रों में जड़वा कर शुक्रवार को सूर्योदय के बाद  पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करें | धारण करने से पहले ॐ  द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय  नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूप,दीप , श्वेत  पुष्प, अक्षत आदि से पूजन कर लें

हीरे की सामर्थ्य न हो तो उपरत्न श्वेत जरकन भी धारण कर सकते हैं |शुक्रवार  के नमक रहित व्रत रखें ,  ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय  नमः मन्त्र का १६ ०००  की संख्या में जाप करें | शुक्रवार को  आटा ,चावल दूध ,दही, मिश्री ,श्वेत चन्दन ,इत्र, श्वेत रंग का वस्त्र ,चांदी इत्यादि का दान करें |

शनि संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण पीपल का वृक्ष काटना या प्रेत बाधा है जिसकी शान्ति के लिए पीपल के पेड़ लगवाएं,रुद्राभिषेक करें ,शनि की लोहे की मूर्ती तेल में डाल कर दान करें|  नीलम लोहे या सोने की अंगूठी में पुष्य ,अनुराधा ,उत्तरा भाद्रपद नक्षत्रों में जड़वा कर शनिवार  को  सूर्यास्त  के बाद  पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करें | धारण करने से पहले ॐ  प्रां प्रीं प्रों  सः शनये  नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूप,दीप , नीले पुष्प,  काले तिल व अक्षत आदि से पूजन कर लें|

नीलम की सामर्थ्य न हो तो उपरत्न संग्लीली , लाजवर्त भी धारण कर सकते हैं | काले घोड़े कि नाल या नाव के नीचे के कील  का छल्ला धारण करना भी शुभ रहता है |शनिवार के नमक रहित व्रत रखें | ॐ  प्रां प्रीं प्रों  सः शनये  नमः मन्त्र का २३०००  की संख्या में जाप करें | शनिवार को काले उडद ,तिल ,तेल ,लोहा,काले जूते ,काला कम्बल , काले  रंग का वस्त्र इत्यादि का दान करें |श्री हनुमान चालीसा का नित्य पाठ करना भी शनि दोष शान्ति का उत्तम उपाय है |

વાસ્તુ પૂજન શા માટે જરૂરી છે અને કોણ છે આ વાસ્તુપુરુષ ?

વાસ્તુ પૂજન શા માટે જરૂરી છે અને કોણ છે આ વાસ્તુપુરુષ ?

નવું ઘર ખરીદ્યા પછી અથવા બનાવ્યા પછી દરેક ઘરમાં વાસ્તુ શાંતિ કરાવવામાં આવે છે. વાસ્તુશાંતિ વાસ્તુદેવને ખુશ કરવા માટે કરવા આવે છે. આ વાતની પાછળ એક એવી માન્યતા છે કે જમીનના કોઈ ભાગ ઉપર જ્યારે બાંધકામ કરવામાં આવે છે ત્યારે તે જમીન ઉપર નિવાસ કરતી શક્તિઓ જાગી જાય છે. આ શક્તિઓ જ વાસ્તુપુરુષ છે. વાસ્તુપુરુષ દેવતાના શરીર ઉપર જ દેવતાઓનો વાસ હોય છે. આ જ દેવતાઓને ખુશ કરવા માટે વાસ્તુ પૂજન કરવામાં આવે છે, જેથી આ તમામ દેવતાઓ ખુશ રહે અને આપણાં જીવનમાં સુખ વ્યાપેલું રહે.

નવા ઘરમાં શા માટે વધુ પ્રભાવિત કરી શકે છે વાસ્તુઃ-

કોઈ પણ નવા ઘરમાં વાસ્તુ પૂજનનું મહત્વ જૂના ઘર કરતા અનેક ગણું વધુ હોય છે, કારણ કે એવું માનવામાં આવે છે કે વાસ્તુપુરુષને જે પણ કષ્ટ મળે છે, તેનો બદલો(વેર) એ તે ઘરમાં રહેનારા સભ્યો પાસે પ્રથમ વર્ષમાં જ વાળી લે છે. જે પ્રકારે કોઈ પણ ઘા રુઝાતા સમય લાગે છે, તે જ રીતે વાસ્તુપુરુષને મળેલા કષ્ટો પણ દૂર થતા સમય લાગે છે. કોઈ પણ જગ્યાએ કરવામાં આવેલું બાંધકામ એક વર્ષ સુધી વાસ્તુપુરુષને વ્યાકુળ કરે છે, જેથી વાસ્તુપુરુષની ઊંઘમાં બાધા ઉત્પન્ન થાય છે. ઊંઘમાંથી જાગી ગયેલા વાસ્તુપુરુષને ભૂખ વધુ લાગે છે. વાસ્તુપુરુષની ભૂખ શાંત કરવા માટે હવન કરાવવો જોઈએ. આ જ કારણ છે કે ભૂમિપૂજનના સમયે પણ નારિયેળ ફોડી તેનો પ્રસાદ વાસ્તુપુરુષને ભોજન સ્વરુપમાં આપવામાં આવે છે.

મત્સ્યપુરાણમાં વાસ્તુપુરુષના જન્મ વિશે એક કથા આપવામાં આવેલી છે. જે મુજબ અંધકાસુર નામના રાક્ષસને મારવા માટે ભગવાન શંકરને તેની સાથે યુદ્ધ કરવું પડયું હતું. શિવ દ્વારા તે રાક્ષસનો સંહાર બાદ તેના માથા ઉપરથી પરસેવાના અમુક ટીપાં ધરતી ઉપર પડ્યા. આ ટીપાંમાંથી એક વિશાળ આકારનો પુરુષ જેવો દેખાતો જીવ ઉત્પન્ન થયો. આ જીવ જમીન ઉપર પડેલા અંધકાસુરનું ખૂન પીવા લાગ્યો, જ્યારે અંધકાસુરના ખૂનથી તેની ભૂખ શાંત ન થઈ તો તેણે શિવજી પાસે જઈ ત્રણેય લોકો (દેવલોક, પૃથ્વીલોક અને આકાશલોક)ને ખાવાની ઈચ્છા જાહેર કરી.

આ જીવે અંધકાસુરના નાશ માટે શિવજીની મદદ કરી હતી એટલે શિવજીએ તેને ઈચ્છા પૂરી કરી લેવા આજ્ઞા આપી દીધી. ત્યારબાદ આ જીવ દેવલોક અને આકાશલોક પાર કરી પૃથ્વીલોક પહોચ્યો. ત્રણેય લોકોના નાશથી ડરી ગયેલા દેવતાઓએ એ જીવને જોરનો ધક્કો આપ્યો, ત્યારે એ જીવ પૃથ્વી ઉપર ઊંધા મોં પડી ગયો. એ જીવ જે રીતે પૃથ્વી ઉપર પડ્યો હતો, તે જ સ્થિતિમાં બધા દેવતાઓ અને રાક્ષસોએ મળીને તેને દબાવી દીધો અને તેની ઉપર બેસી ગયા. આ જીવનું મોં સંપૂર્ણપણે જમીનમાં દબાવેલું હતું, જેના લીધે તેને ગૂંગળામણ થવા લાગી. બધા દેવતાઓએ તેને એ રીતે પકડી રાખ્યો હતો કે તે સહેજ પણ હલી નહોતો શકતો. દેવતાઓનો તે જીવના શરીર ઉપર વાસ હોવાને લીધે તેનું નામ વાસ્તુ પડી ગયું.

આ વાસ્તુપુરુષે દેવતાઓને વિનંતિ કરી કે તમે મને એ રીતે દબાવી રાખ્યો છે કે હું હલી પણ નથી શકતો. આ વિનંતિથી ખુશ થઈ બ્રહ્મા સહિત તમામ દેવતાઓએ તેને વરદાન આપ્યું કે તું જે સ્થિતિમાં અત્યારે છો, તે જ સ્થિતિમાં તારું શરીર આ ધરતી ઉપર વાસ કરશે. તમામ દેવતાઓનો તારા શરીર ઉપર વાસ રહેશે, જ્યારે પણ કોઈ માનવ આ પૃથ્વી ઉપર પોતાનું ઘર બનાવશે ત્યારે તે ઘરમાં નિવાસ કરતા પહેલા તમામ દેવતાઓ સહિત તારી પણ પૂજા કરવી જરુરી રહેશે.
વાસ્તુપૂજનના અંતમાં અને બલિ વૈશ્વેદેવના પૂજનમાં જે બલિ આપવામાં આવશે તે તારું ભોજન હશે. વાસ્તુપૂજનના અંતમાં જે યજ્ઞ કરવામાં આવશે તે પણ તને ભોજનના સ્વરુપમાં પ્રાપ્ત થશે. નવા ઘરના નિર્માણ બાદ જે વ્યક્તિ વાસ્તુપૂજન નહી કરે, તેમના દ્વારા અજાણતા જ ઘરમાં કરેલા કોઈ પણ યજ્ઞની આહૂતિનો ભાગ તને ચોક્કસ મળશે.વાસ્તુ મનુષ્યના જીવનમાં ખૂબ મહત્વ ધરાવે છે. આ દરેક વ્યક્તિના જીવન પર પ્રભાવ નાખે છે. અસલમાં વાસ્તુ ઘર વગેરેના નિર્માણ કરવાનુ પ્રાચીન ભારતીય વિજ્ઞાન છે. કેટલાક ઘરમાં જોવામાં આવે છે કે તેમના ઘરમાં વધુ ઝગડા થતા રહે છે કે પછી રોજ કોઈને કોઈ નુકશાન થતુ રહે છે.  કોઈપણ કાર્યને આગળ વધારવામાં મુશ્કેલીઓનો સામનો કરવો, ઘરમાં નકારાત્મકતા મહેસૂસ થવી વગેરે આ પરિસ્થિતિઓનુ કારણ વાસ્તુ પણ હોઈ શકે છે. 
ગૃહ પ્રવેશ વૈશાખ મહિનામાં કરનારાઓને ધન ધાન્યની કોઈ કમી રહેતી નથી. જે વ્યક્તિ પશુ અને પુત્ર સુખ ઈચ્છે છે એવી વ્યક્તિને પોતાના નવા મકાનમાં જેઠ મહિનામાં પ્રવેશ કરવો જોઈએ. બાકીના મહિના વાસ્તુ પૂજન અને ગૃહ પ્રવેશમાં સાધારણ ફળ આપનારા હોય છે.  ઘર ભલે પોતાનુ હોય કે પછી ભાડાનુ પણ કિંતુ ગૃહ પ્રવેશ થવો જ જોઈએ.  નહી તો આગળ જઈને ઘણી બધુ મુશ્કેલીઓનો સામનો કરવો પડી શકે છે.  પૂજા કર્યા વગર કે હવન કરાવ્યા વગર ઘરમાં પ્રવેશ કરવો વાસ્તુ દોષ કહેવાય છે. આને દૂર કરવા માટે પૂજા કરવામાં આવે છે.  આવુ કરવાથી બહા પ્રકારની નકારાત્મક શક્તિઓ દૂર થઈ જાય છે. 
માન્યતાઓ મુજબ મહા, ફાગણ, વૈશાખ, જેઠ મહિનો ગૃહ પ્રવેશ માટે સૌથી યોગ્ય બતાવ્યો છે.  જે ફાગણ મહિનામાં વાસ્તુ પૂજન કરવામાં આવે છે તેનાથી પુત્ર, પૌત્ર અને ધન પ્રાપ્તિ થાય છે. 

 આ દરમિયાન ન કરો ગૃહપ્રવેશ 

 અષાઢ, શ્રાવણ, ભાદરવો, અશ્વિન, પોષ આ બધા ગૃહ પ્રવેશ માટે શુભ નથી માનવામાં આવ્યા છે. ધનુ મીનના સૂર્ય મતલબ મલમાસમાં પણ નવા મકાનમાં પ્રવેશ ન કરવો જોઈએ. મંગળવારના દિવસે પણ ગૃહ પ્રવેશ કરવામાં આવી શકે છે.  વિધિપૂર્વક મંત્રોચ્ચાર કરીને જ ગૃહ પ્રવેશ કરવો જોઈએ. 

 આ હિસાબથી કરવો જોઈએ ગૃહ પ્રવેશ - 

 ગૃહ પ્રવેશ પહેલા વાસ્તુ શાંતિ કરાવવી શુભ હોય છે. આ માટે શુભ નક્ષત્ર વાર અને તિથિ આ પ્રકારને છે. 
શુભ વાર - સોમવાર-બુધવાર-ગુરૂવાર અને શુક્રવાર 
શુભ તિથિ - શુક્લપક્ષની દ્વિતીયા, તૃતીયા, પંચમી, સપ્તમી, દશમી, એકાદશી, દ્વાદશી અને ત્રયોદશી 
શુભ નક્ષત્ર - અશ્વિની, પુનર્વસુ, પુષ્ય, હસ્ત, ઉત્તરફાલ્ગુની, ઉત્તરાષાઢા, ઉત્તરાભાદ્રપદ, રોહિણી, રેવતી, શ્રવણ, ધનિષ્ઠા, શતભિષા, સ્વાતિ, અનુરાધા અને મધા. 
અન્ય વિચાર - ચંદ્રબળ, લગ્ન શુદ્ધિ અને ભ્રદ્રાદિનો વિચાર કરી લેવો જોઈએ. 
- જે ઘરમાં પ્રવેશ કરાવતા પહેલા પૂજા નથી કરાવાતી તેમા હંમેશા ક્લેશ રહે છે. અને ઘરના સભ્યો વચ્ચે ઝગડો થાય છે. 
- ગૃહ પ્રવેશ ન થતા ઘરના લોકોના આરોગ્ય પર ખરાબ અસર પડે છે. જેના કારણે હંમેશા કોઈને કોઈ બીમારીથી ગ્રસ્તિ રહે છે. 
- જે ઘરમાં આ દોષ પેદા થાય છે એ ઘરમાં ક્યારેય બરકત રહેતી નથી. તેનાથી વિપરિત વધુ ખર્ચ રહેવા માંડે છે.                 

नमस्ते वास्तु पुरुषाय भूशय्या भिरत प्रभो |
मद्गृहं धन धान्यादि समृद्धं कुरु सर्वदा ||