सोमवार, 29 जुलाई 2019

ग्रहो एवम वेदो की पत्नी ओके नाम

नवग्रहदेवता के पत्नी के नाम    
     
(1)सूर्य-संध्या, छाया देवी
(2)चन्द्र-रोहिणीदेवी 
(3मंगल-शकितदेवी                     
(4)बुध-इलादेवी     
(5)बृहस्पति-तारादेवी         
(6)शुक-सुकितीॅ-उजॅसवथीदेवी  
(7)शनि-नीला देवी   
(8)राहु-सीम्हीदेवी    
  (9)केतु-चित्रलेखादेवी   

    वेदो के पत्नी के नाम
                                
(1) ऋग्वेद-पत्नी सामधेन्याः     
(2) यजुवेॅद-पत्नी सृगायाः    
(3) सामवेद-पत्नी कुह्वाः          
(4) अथवॅवेद-पत्नी समिधः

પંખીની જેમ એક દિવસ ઉડી જાસુ, સાથે વિતાવેલી પળો સમેટીને લઈ જાસુ, ભીંજવીને તમારી આ સુંદર આંખો, ફક્ત સોનેરી યાદો છોડીને જાસુ.🌲🌲 PANDYA JI

*_दुनिया में लोग आईना कभी न देखते,_*

अगर...

*_आईने में चित्र नहीं, चरित्र दिखता..._*

शनिवार, 27 जुलाई 2019

मित्र कोने कहेवाय


आज प्रातःकाल सेवासंध्या करके जब में मेरी कुटियामें (गृह)बैठा हुआ था तो एक सुंदर श्लोकका स्मरण हुआ किन्तु समयाभावसे अब उस श्लोकको प्रेषित कर रहा हु..।
प्रायः fb मित्रोका संगठन हैं अतः मित्र कैसा होना चाहिए उसके 7गुणोंका इस श्लोकमें सुंदर दर्शन-
श्लोक-
शुचित्वं त्यागिता शौर्यं सामान्यं सुखदुःखयोः ।
दाक्षिण्यं चानुरक्तिश्च सत्यता च सुहृद्गुणाः ॥
भावार्थ:-
१.प्रामाणिकता २.औदार्य ३.शौर्य ४.सुख-दुःखमें समरस होना ५.दक्षता ६प्रेम और 7.सत्यता – ये मित्र के सात गुण हैं ऐसे गुण सम्पन्न मित्र होने चाहिए...।
               

शनिवार, 20 जुलाई 2019

ज्योतिषीयो को दक्षिणा लेनी चाहीये या नही?


*क्या आप भी  किसी की वर्षों की मेहनत का शुल्क देने से बचते है।*

आपको लगता है क्यों कोई ज्योतिष  अपनी थोड़ी सी सेवा के  लिये पैसे लेते है ,,।
क्यों यह दक्षिणा शुल्क लेते है ?
और क्यो होना चाहिये..?

समझते है एक  उदाहरण से

👇

_पिकासो (Picasso) स्पेन में जन्मे एक अति प्रसिद्ध चित्रकार थे। उनकी पेंटिंग्स दुनिया भर में करोड़ों और अरबों रुपयों में बिका करती थीं...!!_

_एक दिन रास्ते से गुजरते समय एक महिला की नजर पिकासो पर पड़ी और संयोग से उस महिला ने उन्हें पहचान लिया। वह दौड़ी हुई उनके पास आयी और बोली, 'सर, मैं आपकी बहुत बड़ी फैन हूँ। आपकी पेंटिंग्स मुझे बहुत ज्यादा पसंद हैं। क्या आप मेरे लिए भी एक पेंटिंग बनायेंगे...!!?'_

_पिकासो हँसते हुए बोले, 'मैं यहाँ खाली हाथ हूँ। मेरे पास कुछ भी नहीं है। मैं फिर कभी आपके लिए एक पेंटिंग बना दूंगा..!!'_

_लेकिन उस महिला ने भी जिद पकड़ ली, 'मुझे अभी एक पेंटिंग बना दीजिये, बाद में पता नहीं मैं आपसे मिल पाऊँगी या नहीं।'_

_पिकासो ने जेब से एक छोटा सा कागज निकाला और अपने पेन से उसपर कुछ बनाने लगे। करीब 10 मिनट के अंदर पिकासो ने पेंटिंग बनायीं और कहा, 'यह लो, यह मिलियन डॉलर की पेंटिंग है।'_

_महिला को बड़ा अजीब लगा कि पिकासो ने बस 10 मिनट में जल्दी से एक काम चलाऊ पेंटिंग बना दी है और बोल रहे हैं कि मिलियन डॉलर की पेंटिग है। उसने वह पेंटिंग ली और बिना कुछ बोले अपने घर आ गयी..!!_

_उसे लगा पिकासो उसको पागल बना रहा है। वह बाजार गयी और उस पेंटिंग की कीमत पता की। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि वह पेंटिंग वास्तव में मिलियन डॉलर की थी...!!_

_वह भागी-भागी एक बार फिर पिकासो के पास आयी और बोली, 'सर आपने बिलकुल सही कहा था। यह तो मिलियन डॉलर की ही पेंटिंग है।'_

_पिकासो ने हँसते हुए कहा,'मैंने तो आपसे पहले ही कहा था।'_

_वह महिला बोली, 'सर, आप मुझे अपनी स्टूडेंट बना लीजिये और मुझे भी पेंटिंग बनानी सिखा दीजिये। जैसे आपने 10 मिनट में मिलियन डॉलर की पेंटिंग बना दी, वैसे ही मैं भी 10 मिनट में न सही, 10 घंटे में ही अच्छी पेंटिंग बना सकूँ, मुझे ऐसा बना दीजिये।'_

_पिकासो ने हँसते हुए कहा, _'यह पेंटिंग, जो मैंने 10 मिनट में बनायी है_ ...

*_इसे सीखने में मुझे 30 साल का समय लगा है_।*

*_मैंने अपने जीवन के 30 साल सीखने में दिए हैं ..!!*

*तुम भी दो, सीख जाओगी..!!_*

_वह महिला अवाक् और निःशब्द होकर पिकासो को देखती रह गयी...!!_

*एक ज्योतिष  को कुछ मिनट की सलाह को फ्री में लेने वाले या यह समझने वाले कि जरा  ही तो देखना  है ।*

_वो इस कहानी को बयां करती है कि एक एक वाक्य के पीछे उसकी सालों की मेहनत होती है ।_

_*समाज समझता है कि बस बोलना ही तो होता है ज्योतिषी का काम मुफ्त का ही तो है!!!*_

*"ये मत भूलिए कि आज विश्व मे जितने भी सम्मानित ज्योतिष पर  हैं, उन्होने बर्षों तपस्या की है ज्ञान के लिये ,आज कुछ लोग इस महान विद्या का मजाक बनाते है ,केवल टाइम पास मान कर तफरी लेते है ज्योतिष को मनोरंजक का साधन समझते है।

आप भी अपनी जीविका को फ्री  देकर दिखा दीजीये, फिर आपको पता चल जाएगा कि ज्योतिष कार्य मूल्यवान है या मुफ्तखोरी का ।
आपको इसकी  क्षमता का एहसास हो जाएगा._.🙏🏻

*_Dedicated To All jyotishi.👍🏼_*

गुरुवार, 18 जुलाई 2019

अष्टगंध

गंधाष्टक या अष्टगंध आठ गंधद्रव्यों के मिलाने से बना हुआ एक संयुक्त गंध है जो पूजा में चढ़ाने और यंत्रादि लिखने के काम में आता है।


तंत्र के अनुसार भिन्न-भिन्न देवताओं के लिये भिन्न-भिन्न गंधाष्टक का विधान पाया जाता है। तंत्र में पंचदेव (गणेश, विष्णु, शिव, दुर्गा, सूर्य) प्रधान हैं, उन्हीं के अंतर्गत सब देवतामाने गए हैं; अतः गंधाष्टक भी पाँच यही हैं।

शक्ति के लिये-


चंदनअगरकपूर, चोर, कुंकुमरोचनजटामासी, कपि

विष्णु के लिये-


चंदन, अगर, ह्रीवेर, कुट, कुंकुम, उशीर, जटामासी और मुर;

शिव के लिये-


चंदन, अगर, कपूर, तमाल, जल, कुंकुम, कुशीद, कुष्ट;

गणेश के लिये-


चंदन, चोर, अगर, मृग और मृगी का मद, कस्तूरी, कपूर; अथवाचंदन, अगर, कपूर, रोचन, कुंकुम, मद, रक्तचंदन, ह्रीवेर;

सूर्य के लिये-


जल, केसर, कुष्ठ, रक्तचंदन, चंदगन, उशीर, अगर, कपूर।

शास्त्रों में तीन प्रकार की अष्टगन्ध का वर्णन है, जोकि इस प्रकार है-

शारदातिलक के अनुसार अधोलिखति आठ पदार्थों को अष्टगन्ध के रूप में लिया जाता है-


चन्दन, अगर, कर्पूर, तमाल, जल, कंकुम, कुशीत, कुष्ठ।

यह अष्टगन्ध शैव सम्प्रदाय वालों को ही प्रिय होती है।

दूसरे प्रकार की अष्टगन्ध में अधोलिखित आठ पदार्थ होते हैं-


कुंकुम, अगर, कस्तुरी, चन्द्रभाग, त्रिपुरा, गोरोचन, तमाल, जल आदि।

यह अष्टगन्ध शाक्त व शैव दोनों सम्प्रदाय वालों को प्रिय है।

वैष्णव अष्टगन्ध के रूप में इन आठ पदार्थ को प्रिय मानते है-


चन्दन, अगर, ह्रीवेर, कुष्ठ, कुंकुम, सेव्यका, जटामांसी, मुर।

अन्य मत से अष्टगन्ध के रूप में निम्न आठ पदार्थों को भी मानते हैं-


अगर, तगर, केशर, गौरोचन, कस्तूरी, कुंकुम, लालचन्दन, सफेद चन्दन।

ये पदार्थ भली-भांति पिसे हुए, कपड़छान किए हुए, अग्निद्वारा भस्म बनाए हुए और जल के साथ मिलाकर अच्छी तरह घुटे हुए होने चाहिए।

शनिवार, 13 जुलाई 2019

पितृ दोष निवारण


पितृ दोष दूर करने का उपाय

(१)इंदिरा एकादशी का व्रत करके पितृ दोष शांत हो जाता हे

(२)शालिग्राम पूजा से और उसको तुलसी अर्पित करना और मंजर का स्वस्तिक करके उसपर सालिग्राम बिराजित करते हे रोज पितृ दोष शांत हो जाता हे

(३)शिव जी का रुद्राभिषेक डेली नियामसे करने से भी पितृ दोष संत हो जाता हे

(४)पांच देव की पूजा जो करता हे सूर्य को जल अर्पित करता हे तो भी पितृ दोष शांत हो जाता हे

(५)गायत्री मंत्र का अनुष्ठान भी पितृ दोष शांत करता हे

(६)गुरु मंत्र से भी पितृ दोष शांत हो जाता हे

(७)अपनी कमाई मेसे डेली थोड़ा पैसा पितृ के लिए निकाल ने स भी पितुदोश शांत हो जाता हे

(८)और सूर्य उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र मेहो तब जो भी दान करे पितृ दोष शांत हो जायेगा

(९)वर्ष में एक बार तो पितृ को या समझो उसको जो चीज पसंद होती थी उसका दान करने से भी दोष शांत हो जाता हे

(१०)अमावस्या का उपवास रखना चाहिए
दुर्गा पाठ से भी पितृ दोष मुक्त मिलती हे

(११)भागवत का पाठ करे उससे भी मुक्ति मिलती है

(१२)पिंड दान तर्पण करने से भी मुक्ति मिल जाएगी

(१३)इतने उपाय दिए जो करने से पितृ पीड़ा से मुक्ति मिल जाएगी

(१४)विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र पाठ करने से भी दोष शांत होता हे

(१५)पुरुषोत्तम मास में करना चाहिए

(१६)विष्णु सहस्त्र स्तोत्र का पाठ
गुरु गीता जो पाठ करता हे लिखता हे तो इससे भी गुरु कृपा से पितृ दोष कम हो जाता हे

शुक्रवार, 12 जुलाई 2019

ભૂદેવ bhudev भूदेव

💠💠💠

જોશ ભરેલા જોષીજી
ને માયાળુ હોય મહેતા,
દવે હોય દિલદાર જોને
એવું મારા વડવા કહેતાં.

ભટ્ટ રાખે છે વટ્ટ વધારે
ને રાવલ કદી ના રોતાં,
વ્યાસ ની હોય વાત નીરાળી
એવું મારા વડવા કહેતાં.

ઓઝાની ઓળખાણ મોટી
ને જાની જોમે ઝુલતાં,
પંડ્યા કરે નઈ પંચાત ખોટી
એવું મારા વડવા કહેતાં.

ઠાકર નો હોય ઠાઠ ભલેને
પાધ્યા પ્રેમ સૌ ને કરતાં,
ત્રીવેદી હોય ત્રીકાળ જ્ઞાની
એવુ માર વડવા કહેતાં.

શુક્લ ભણે વેદો સઘળાં
ઉપાધ્યાય આંખેથી લખતાં,
હોય આચાર્ય અનોખા જોને
એવું મારા વડવા કહેતાં.

એક-એક ના ગુણો જોડીને
*કાનજી* સૌ ને લખતાં,
હળી મળીને રહેજો તમે સૌ
એવું મારા વડવા કહેતાં

सूर्य

सूर्य ग्रह

सूर्य स्वयं प्रकाशित ग्रह है। सूर्य ग्रह अग्नि का गोला है। चंद्र और दूसरे अन्य ग्रह सूर्य से प्रकाशित हैं। नौ ग्रहों में सूर्य नारायण को राजा माना गया है। सूर्य पुरुष ग्रह है। सूर्य देव का स्वभाव तमोगुणी है। सूर्य ज्योतिष में पिता, पुत्र, हृदय और सत्ता का कारक ग्रह है। सत्य को सूर्य से देखा जाता है। इसका तीखा स्वाद है। सूर्य के प्रभाव के बिना पृथ्वी अंधकारमय है। सृष्टि के सभी पेड़–पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा आपको आक्सीजन देते हैं जिससे यह जीवन सृष्टि चला करती है। सूर्य की किरणें मानवता के लिए वरदान है। इसलिए, सूर्य को पूरे संसार का पालक कह सकते हैं।
वैदिक ज्योतिष्य के अनुसार सूर्य का रत्न माणिक्य है। अगर आपकी कुंडली में सूर्य शुभ प्रभाव में है तो आपको अवश्य ही माणिक्य रत्न धारण करना चाहिए। सूर्य के लिए माणिक्य (रूबी) रत्न खरीदें।

सूर्य संजीवनी जैसा फल देता है। सूर्य आपकी आत्मा है। इसीलिए, जन्मकुंडली का विचार करते समय ज्योतिष गण सूर्य का विचार पहले करते हैं। यह दक्षिण दिशा में दिग्बली बनता है। राशि चक्र की 5वीं राशि यानी सिंह पर इसका आधिपत्य है। इसलिए, सिंह राशि में सूर्य स्वगृही बनता है। मेष राशि में 10 अंश का होने पर यह परम उच्च का हो जाता है। यानी यह बहुत ही अच्छी स्थिति में पहुंचकर अति शुभ हो जाता है। वहीं तुला राशि में 10 अंश का सूर्य नीच का गिना जाता है। इसके अलावा, मेष राशि में सूर्य में 0 से 10 अंश या डिग्री तक मूल त्रिकोण का होता है।

नक्षत्र के अनुसार मेष राशि में यह कृतिका नक्षत्र के प्रथम चरण, वृषभ राशि में 2,3,4 चरण, सिंह राशि में उत्तरा फाल्गुनी का प्रथम चरण, कन्या राशि में 2,3,4 चरण और धनु राशि में उत्तराषाढ़ा के प्रथम चरण और मकर राशि में उत्तराषाढ़ा के 2,3,4 चरण पर इसका आधिपत्य है।

विभिन्न ग्रहों की सूर्य से दूरी यह बताती है कि जातक पर सूर्य का कैसा शुभाशुभ प्रभाव पड़ेगा। साथ ही सूर्य किस राशि में है, वह उसकी नीच राशि, उच्च राशि, स्वगृही, मित्र या शत्रु राशि तो नहीं यह सब भी फलित ज्योतिष में फलादेश करते समय एक ज्योतिषी ध्यान में रखता है।

अपनी कुंडली में सूर्य के अशुभ प्रभावों को कम करने और सूर्य को अतिरक्ति बल प्रदान करने के लिए सूर्य यंत्र का प्रयोग करें। सूर्य यंत्र का विधि–विधान पूर्वक पूजन किया जाए तो शीघ्र ही शुभ फल मिलने लगते हैं। यह आपको अच्छी हेल्थ के साथ ही पद–प्रतिष्ठा और नौकरी में चार चांद दिलाता है।

सूर्य का भ्रमण और ऋतुओं के साथ इसका संबंध
सूर्य को संपूर्ण राशि चक्र पूरा करने में एक वर्ष का समय लगता है। एक राशि में यह एक महीने तक भ्रमण करता है। मकर राशि से मिथुन राशि के दौरान उत्तरायन और कर्क से धनु राशि के भ्रमण के दौरान दक्षिणायन बनाता है। ऋतुचक्र सूर्य के भ्रमण से ही होता है।

सूर्य की राशि
ऋतु
ग्रह का प्रभाव
मकर, कुंभ
शिशिर
शनि
मीन, मेष
वसंत
शुक्र
वृषभ, मिथुन
ग्रीष्म
सूर्य, मंगल
कर्क, सिंह
वर्षा
चंद्र
कन्या, तुला
शरद
बुध
वृश्चिक, धनु
हेमंत
गुरु

नक्षत्र के अनुसार देखा जाए तो आद्रा से चित्रा तक मानसून, स्वाति से घनिष्ठा तक सर्दी और शतभिषा से मृगशीर्ष तक ग्रीष्मकाल होता है।

हमारी ज्योतिषीय सेवाओं के जरिए ईश्वरीय शक्तियों की कृपा को आमंत्रित करके अपने व्यक्तिगत मुद्दों को शीघ्र हल करें।

ज्योतिष शास्त्र में सूर्य का महत्व
तो आपने देखा कि सृष्टि पर सूर्य ग्रह का असर व्यापक रूप में देखने को मिलता है। सूर्य के प्रकाश के बिना जीवन संभव ही नहीं है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार देखा जाए तो जातक की कुंडली में सूर्य के एक अच्छी स्थिति में होने पर जातक को यश, मान, कीर्ति और प्रतिष्ठा वगैरह प्राप्त होता है। मानन शरीर में पेट, आंख, हड्डियों, हृदय व चेहरे पर इसका आधिपत्य माना जाता है। कुंडली में खराब सूर्य के लक्षण तो सरदर्द, बुखार, हृदय से जुड़ी समस्या और आँखों की समस्या आदि हो सकती है।

विविध ग्रहों के साथ सूर्य की युति का कुंडली पर प्रभाव
सूर्य में से निकलने वाली किरणें प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अन्य ग्रहों को प्रकाशित करती है। इसलिए ज्योतिष शास्त्र में सूर्य ग्रह का प्रभाव महत्वपूर्ण कहा गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य यानी आत्मा और चंद्रमा यानी मन।

आइये अब देखते है जब सूर्य आपकी कुंडली में अलग–अलग ग्रहों के साथ होता है तो आपके लिए कैसे शुभ या अशुभ फल लेकर आता है।

सूर्य और चंद्र की युति
ज्योतिष के नजरिये से सूर्य और चंद्रमा की बात करें तो सूर्य–चंद्र की युति जातक को दृढ़ निश्चयी बनाती है। यहां पर चंद्रमा सूर्य के कारकत्व को बढ़ा देता है। अशुभ योग होने पर मानसिक रोगी भी बना देती है।

सूर्य और मंगल की युति
सूर्य व मंगल अर्थात आत्मा और साहस साथ–साथ हो तो वैदिक ज्योतिष के अनुसार अंगारक दोष बनता है। एेसे जातक बहुत गुस्सैल किस्म के होते हैं। किसी भी निर्णय में जल्दबाजी करते हैं जिसकी वजह से बहुधा अपनी टांग पर स्वयं ही कुल्हाड़ी मार लेते हैं। मुसीबत मोल ले लेते हैं।

सूर्य और बुध की युति
सूर्य और बुध की युति का विचार करें तो सूर्य (आत्मा) और बुध (बुद्धि) का समन्वय जातक को आंतरिक बुद्धि और वाह्य बुद्धि की एकरूपता को दर्शाता है। ग्रहों की एेसे युति वाले जातक निर्णय लेने में अत्यंत अडिग होते हैं। पिता और पुत्र दोनों की शैक्षणिक योग्यता अच्छी होती है। समाज में प्रतिष्ठित रहता है।

सूर्य और गुरु की युति
सूर्य व गुरु अगर कुंडली में अगर एक साथ हो तो बहुत ही अच्छे आध्यात्मिक योग का निर्माण होता है। वेदों में सूर्य को आत्मा और गुरु को आंतरिक बुद्धि यानी अंतर्मन कहा गया है। सूर्य व गुरु की युति जातक को धर्म और अध्यात्म की ओर ले जाती है। इस युति का नकारात्मक पक्ष केवल इतना रहता है कि इससे जातक जिद्दी सा हो जाता है।

सूर्य और शुक्र की युति
सूर्य व शुक्र यदि कुंडली में साथ आ जाए तो क्या कहने ! शुक्र जीवन की उमंग है तो सूर्य उसको देने वाली ऊर्जा। कुंडली में एेसे गुणों वाला जातक अपनी लाइफ को रॉयल यानी शाही तरीके से जीता है। हालांकि, पर्सनल लाइफ में मनमुटाव और असंतोष की भावना पैदा होने से भी इंकार नहीं किया जा सकता। जातक यदि अपनी लालसाओं पर काबू नहीं रख पाता तो वह विलासी, सौंदर्य प्रिय और स्त्री प्रिय होकर चीजों पर धन लुटाता रहता है।

सूर्य और शनि की युति
सूर्य और शनि की युति होने पर यानी सूर्य और शनि यदि कुंडली में साथ बैठ जाएं तो शापित दोष बना लेते हैं। एेसे जातक के जीवन के अधिकांश भाग में संघर्षपूर्ण स्थिति पैदा हो जाती है। यहां दिलचस्प बात यह है कि पुराणों के अनुसार सूर्य और शनि के पिता–पुत्र के संबंध होने पर भी एक दूसरे के शत्रु हैं। इस प्रकार से पिता–पुत्र के बीच वैर व नाराजगी बढ़ जाने की आशंका बढ़ जाती है। नौकरीपेशा लोगों का वरिष्ठ अधिकारियों के साथ मतभेद और असंतोष पैदा होता है।

सूर्य और राहु की युति
सूर्य और राहु अगर किसी कुंडली में युति में आ जाएं तो ज्योतिषीय दृष्टि से ग्रहण योग बना लेते हैं। अगर ये डिग्रीकल (अंशात्मक) नजदीक हो और यह दोष कुंडली में 2,6,8 या 12वें भाव में बन रहा हो तो पितृदोष भी बनाता है। एेसे जातक को अपने जीवन के तमाम क्षेत्रों में अवरोध का सामना करना पड़ता है। मुसीबतों के पीछा न छोड़ने की वजह से जातक का अपने ऊपर से से भी आत्मविश्वास उठ जाता है।

सूर्य और केतु की युति
सूर्य और केतु के साथ होने पर जातक के अंदर सूर्य के गुणों में कमी आ जाती है। वह मूर्ख, चंचल दिमाग का अस्थिर, विचित्र प्रवृत्ति, अन्याय का साथ देने वाला, हानिकारक एवं शंकालु स्वभाव का होता है।

इस प्रकार से आपने देखा कि कुंडली में सूर्य की अलग–अलग ग्रहों के साथ युति का परिणाम भिन्न–भिन्न होता है। अगर जातक की कुंडली में यह सूर्य शक्ति वाला हो तो सरकारी नौकरी मिलने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। समाज में यश–कीर्ति, मान–प्रतिष्ठा का हकदार बन जाता है। लेकिन, यदि यही सूर्य आपकी कुंडली में दुर्बल और शक्तिहीन होकर पड़ा है तो यह जातक के लिए स्वास्थ्य की समस्या खड़ी कर सकता है। ध्यान रहे – सूर्य पीड़ित होने पर जातक की आंखों में पीड़ा, सरदर्द, हृदय की धड़कनों में अनियमितता के साथ ही पाचन तंत्र से जुड़ी समस्या आदि को उपजा सकता है।

नवधा भक्ति

*भारतीय धर्मग्रंथों में भक्ति के 9 प्रकार बताए गए हैं। भक्ति के इन 9 प्रकारों को ही नवधा भक्ति कहते हैं। यहां जानिए, कौन-से हैं भक्ति के ये 9 प्रकार और क्या है हमारे जीवन में इनका महत्व? साथ ही जानें, कैसे करते हैं ये हमारे जीवन को प्रभावित….*

श्लोक रूप में नवधा भक्ति का वर्णन…

*श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्।*
*अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥*

हिंदी में इस तरह समझें नवधा भक्ति के प्रकार

*1. श्रवण (परीक्षित), 2. कीर्तन (शुकदेव), 3. स्मरण (प्रह्लाद), 4. पादसेवन (लक्ष्मी), 5. अर्चन (पृथुराजा), 6. वंदन (अक्रूर), 7. दास्य (हनुमान), 8. सख्य (अर्जुन), 9.आत्मनिवेदन (बलि राजा)*

*श्रवण:* ईश्वर के चरित, उनकी लीला कथा, शक्ति, स्रोत इत्यादि को श्रद्धा सहित प्रतिदिन सुनना और प्रभु में लीन रहना श्रवण भक्ति कहलाता है।


*कीर्तन:* भगवान की महिमा का भजन करना, उत्साह के साथ उनके पराक्रम को काव्य रूप में याद करना और उन्हें वंदन करना ही भक्ति का कीर्तन स्वरूप है।

*स्मरण:* शुद्ध मन से भगवान का प्रतिदिन स्मरण करना, उनकी कृपा के लिए उन्हें धन्यवाद करते रहना और मन ही मन उनके नाम का जप करते रहना स्मरण भक्ति कहलाता है।

*पाद सेवन:* स्वयं को ईश्वर के चरणों में समर्पित कर देना। जीवन की नैया और अच्छे-बुरे कर्मों के साथ उनकी शरण में जाना ही पाद सेवन कहलाता है।

*अर्चन:* मन, वचन और कर्म द्वारा पवित्र सामग्री से ईश्वर की पूजा करना अर्चन कहलाता है।

*वंदन:* भगवान की मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा करके प्रतिदिन विधि-विधान से पूजन के बाद उन्हें प्रणाम करना वंदन कहलाता है। इसमें भगवान के साथ माता-पिता, आचार्य, ब्राह्मण, गुरुजन का आदर-सत्कार करना और उनकी सेवा करना भी है।

*दास्य:* ईश्वर को स्वामी मानकर और स्वयं को उनका दास समझकर परम श्रद्धा के साथ प्रतिदिन भगवान की सेवा एक सेवक की तरह करना दास्य भक्ति कहलाता है।

*सख्य:* ईश्वर को ही अपना परम मित्र समझकर अपना सर्वस्व उसे समर्पित कर देना और सच्चे भाव से अपने पाप पुण्य का निवेदन करना ही सख्य भक्ति है।

*आत्मनिवेदन:* अपने आपको भगवान के चरणों में सदा के लिए समर्पित कर देना और अपनी कोई स्वतंत्र सत्ता न रखना ही भक्ति की आत्मनिवदेन अवस्था है। यही भक्ति की सबसे उत्तम अवस्था मानी गई हैं।

गुरुवार, 11 जुलाई 2019

हनुमान जी ११मुख


हनुमानजी की ये 11 मुखी मूर्तियां करती हैं अलग-अलग मनोकामनाओं की पूर्ति

प्रत्येक व्यक्ति को हनुमानजी की भक्ति करना चाहिए। कलियुग में हनुमान ही एकमात्र जाग्रत देव हैं।

उनका चारों युग में प्रताप है। उनकी भक्ति से व्यक्ति के भीतर साहस और आत्मविश्‍वास का संचार होता है। हनुमानजी की भक्ति हर संकट से बचाती है।

भक्तों ने अपनी भक्ति के चलते हनुमानजी के अलग-अलग रूप को पूजनीय बनाया है। कहते हैं कि हनुमानजी की भिन्न-भिन्न मूर्तियों की उपासना से भिन्न-भिन्न फल की प्राप्ति होती है।

वैसे हनुमाजी की और भी मुखों वाली मूर्तियां हैं लेकिन हम जानते हैं 11 मुख वाले हनुमाजी की मूर्तियों की उपासना के लाभ।



1. पूर्वमुखी....................

पूर्व की तरफ जो मुंह है उसे 'वानर' कहा गया है। जिसकी प्रभा करोड़ों सूर्यो के तेज समान हैं। इनका पूजन करने से समस्त शत्रुओं का नाश हो जाता है। इस मुख का पूजन करने से शत्रुओं पर विजय पाई जा सकती है।


2.पश्चिममुखी................
पश्चिम की तरफ जो मुंह है उसे 'गरूड़' कहा गया है। यह रूप संकटमोचन माना गया है। जिस प्रकार भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ अजर-अमर हैं उसी तरह इनको भी अजर-अमर माना गया है।


3.उत्तरामुखी हनुमान............
उत्तर दिशा देवताओं की मानी जाती है। यही कारण है कि शुभ और मंगल की कामना उत्तरामुखी हनुमान की उपासना से पूरी होती है। उत्तर की तरफ जो मुंह है उसे 'शूकर' कहा गया है। इनकी उपासना करने से अबाध धन-दौलत, ऐश्वर्य, प्रतिष्ठा, लंबी आयु तथा निरोगी  काया प्राप्त होती है।

4.दक्षिणामुखी हनुमान.....................
दक्षिण की तरफ जो मुंह है उसे 'भगवान नृसिंह' कहा गया है। यह रूप अपने उपासको को भय, चिंता और परेशानीयों से मुक्त करवाता है।

दक्षिण दिशा में सभी तरह की बुरी शक्तियों के अलावा यह दिशा काल की दिशा मानी जाती है। यदि आप अपने घर में उत्तर की दीवार पर हनुमानजी का चित्र लगाएंगे तो उनका मुख दक्षिण की दिशा में होगा। दक्षिण में उनका मुख होने से वह सभी तरह की बुरी शक्तियों से हमें बचाते हैं। इसलिए दक्षिणामुखी हनुमान की साधना काल, भय, संकट और चिंता का नाश करने वाली होती है।


5.ऊर्ध्वमुख..........
हनुमानजी का ऊर्ध्वमुख रूप 'घोड़े' के समरूप है। यह स्वरूप ब्रह्माजी की प्रार्थना पर प्रकट हुआ था। मान्यता है कि हयग्रीवदैत्य का संहार करने के लिए वे अवतरित हुए थे।

6.पंचमुखी हनुमान
राम लक्ष्मण को अहिरावण से मुक्त कराने के लिए हनुमानजी ने पंचमुखी रूप धारण किया था। पांचों दीपक को एक साथ बुझाने पर अहिरावन का वध हो जाएगा इसी कारण हनुमान जी ने पंचमुखी रूप धरा। उत्तर दिशा में वराह मुख, दक्षिण दिशा में नरसिंह मुख, पश्चिम में गरुड़ मुख, आकाश की तरफ हयग्रीव मुख एवं पूर्व दिशा में हनुमान मुख।
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वास्तुविज्ञान के अनुसार पंचमुखी हनुमानजी की मूर्ति जिस घर में होती है वहां उन्नति के मार्ग में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं और धन संपत्ति में वृद्घि होती है। पंचमुखी हनुमानजी का उपरोक्त चित्र भी अच्छा है।


7.एकादशी हनुमान....................
श्रीहनुमानजी रुद्र यानी शिव के ही ग्यारहवें अवतार माने गए हैं। ग्यारह मुख वाले कालकारमुख नामक एक भयानक बलवान राक्षस का वध करने के लिए श्रीराम की आज्ञा से हनुमानजी ने एकादश मुख रूप ग्रहण करके चैत्र पूर्णिमा (हनमान जयंती) को शनिश्चर के दिन उस राक्षस का उसकी सेना सहित वध कर दिया था। एकादशी और पंचमुखी हनुमान जी पूजा से सभी देवी और देवताओं की उपासना के फल मिलते हैं।


8.वीर हनुमान....................
जैसा की नाम से ही विदित है कि इस नाम से हनुमानजी की प्रतिमा की पूजा जीवन में साहस, बल, पराक्रम और आत्मविश्वास प्रदान कर सभी कार्यों की बाधाओं को दूर करती है।


9.भक्त हनुमान..................
राम की भक्ति करते हुए आपने हनुमानी का चित्र या मूर्ति देखी होगी। इस चित्र या मूर्ति की पूजा से जीवन के लक्ष्य को पाने में आ रहीं अड़चनें दूर होती है। साथ ही यह भक्ति जरूरी एकाग्रता और लगन देने वाली होती है। इस मूर्ति या चित्र में हनुमानजी हाथ में करताल लेकर राम की भक्ति करते नजर आएंगे।


10.दास हनुमान.................
हनुमानजी रामजी के दास हैं। सदा रामकाज करने को आतुर रहते हैं। दास हनुमान की आराधना से व्यक्ति के भीतर सेवा और समर्पण की भावना का विकास होता है। धर्म, कार्य और रिश्तों के प्रति समर्पण और सेवा होने से ही सफलता मिलती है। इस मूर्ति या चित्र में हनुमानजी प्रभु श्रीरामजी के चरणों में बैठे हुए हैं।


11.सूर्यमुखी हनुमान..................
शास्त्रों के मुताबिक श्रीहनुमान के गुरु सूर्यदेव हैं। सूर्य पूर्व दिशा से उदय होकर जगत को प्रकाशित करता है। सूर्यमुखी हनुमान की उपासना से ज्ञान, विद्या, ख्याति, उन्नति और सम्मान मिलता है। सूर्यमुखी

!! श्री राम  !!
!!सभी सुखी हों ,सभी निरोग