नवरात्र का रहस्य
नवरात्र का रहस्य
"नवशक्तिसमायुक्तां नवरात्रं तदुच्यते" नौ शक्तियों से युक्त होने से इसे नवरात्र कहा गया है।
"नवभि: रात्रिभि: सम्पद्यते य: स नवरात्र:" नौ रात्रियों में सम्पन्न होता है वह नवरात्र, चान्द्रमास के अनुसार चार नवरात्रि होते हैं–
आषाढ शुक्लपक्ष में आषाढी नवरात्र।
आश्विन शुक्लपक्ष में शारदीय नवरात्र।
माघ शुक्ल पक्ष में शिशिर नवरात्र।
चैत्र शुक्ल पक्ष में बासन्तिक नवरात्र।
परंपरा से दो नवरात्र चैत्र एवं आश्विन मास में सर्वमान्य है, चैत्रमास मधुमास एवं आश्विन मास ऊर्ज मास नाम से प्रसिद्ध हैं, जो शक्ति के पर्याय हैं, अतः शक्ति आराधना हेतु इस काल खण्ड को नवरात्र शब्द से सम्बोधित किया गया है "नवानां रात्रीणां समाहारः” अर्थात नौ रात्रियो का समूह" रात्रि का तात्पर्य है "विश्रामदात्री, सुखदात्री के साथ एक अर्थ जगदम्बा" भी है "रात्रिरुपयतो देवी दिवारुपो महेश्वरः" तंत्र ग्रन्थों में तीन रात्रियों का वर्णन है -
कालरात्रि - (महाशिवरात्रि) फाल्गुन कृष्णपक्ष चतुर्दशी महाकाली की रात्रि।
मोहरात्रि - आश्विन शुक्लपक्ष अष्टमी महासरस्वती की रात्रि।
महारात्रि -कार्तिक कृष्णपक्ष अमावस्या महालक्ष्मी की रात्रि।
एक अंक से सृष्टि का आरम्भ है,सम्पूर्ण मायिक सृष्टि का विस्तार आठ अंक तक ही है, इससे परे ब्रह्म है जो नौ अंक का प्रतिनिधित्व करता है, अस्तु नवमी तिथि के आगमन पर शिव शक्ति का मिलन होता है, शक्ति सहित शक्तिमान को प्राप्त करने हेतु भक्त को नवधा भक्ति का आश्रय लेना पड़ता है, जीवात्मा नौ द्वार वाले पुर(शरीर) का स्वामी है "नवछिद्रमयो देहः" इन छिद्रों को पार करता हुआ जीव ब्रह्मत्व को प्राप्त करता है, अतः नवरात्र की प्रत्येक तिथि के लिए कुछ साधन ज्ञानियों द्वारा नियत किये गये हैं .....
प्रतिपदा - इसे शुभेच्छा कहते हैं, जो प्रेम जगाती है प्रेम बिना सब साधन व्यर्थ है,अस्तु प्रेम को अविचल अडिग बनाने हेतु "शैलपुत्री" का आवाहन पूजन किया जाता है, अचल पदार्थों में पर्वत सर्वाधिक अटल होता है।
द्वितीया - धैर्यपूर्वक द्वैतबुद्धि का त्याग करके ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए माँ "ब्रह्मचारिणी" का पूजन करना चाहिए।
तृतीया - त्रिगुणातीत (सत,रज,तम से परे) होकर "माँ चन्द्रघण्टा" का पूजन करते हुए मन की चंचलता को वश में करना चाहिए।
चतुर्थी - अन्तःकरण चतुष्टय मन, बुद्धि, चित्त एवं अहंकार का त्याग करते हुए मन, बुद्धि को "कूष्माण्डा देवी" के चरणों में अर्पित करे।
पंचमी - इन्द्रियों के पाँच विषयो अर्थात् शब्द रुप रस गन्ध स्पर्श का त्याग करते हुए "स्कन्दमाता" का ध्यान करें।
षष्ठी - काम क्रोध मद मोह लोभ एवं मात्सर्य का परित्याग करके "कात्यायनी देवी' का ध्यान करें।
सप्तमी - रक्त, रस, मांसमाँस, मेदा, अस्थि, मज्जा एवं शुक्र इन सप्त धातुओं से निर्मित क्षण भंगुर दुर्लभ मानव देह को सार्थक करने के लिए "कालरात्रि देवी" की आराधना करें।
अष्टमी - ब्रह्म की अष्टधा प्रकृति पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि एवं अहंकार से परे "महागौरी" के स्वरुप का ध्यान करता हुआ ब्रह्म से एकाकार होने की प्रार्थना करें।
नवमी - "माँ सिद्धिदात्री" की आराधना से नवद्वार वाले शरीर की प्राप्ति को धन्य बनाता हुआ आत्मस्थ हो जाय।
पौराणिक दृष्टि से आठ लोकमाताएँ हैं तथा तन्त्र ग्रन्थों में आठ शक्तियाँ है----
1 ब्राह्मी - सृष्टिक्रिया प्रकाशित करती है।
2 माहेश्वरी - यह प्रलय शक्ति है।
3 कौमारी - आसुरी वृत्तियों का दमन करके दैवीय
गुणों की रक्षा करती है।
4 वैष्णवी - सृष्टि का पालन करती है।
5 वाराही - आधार शक्ति है इसे काल शक्ति कहते हैं।
6 नारसिंही - ये ब्रह्म विद्या के रुप में ज्ञान को प्रकाशित करती है।
7 ऐन्द्री - ये विद्युत शक्ति के रुप में जीव के कर्मों को प्रकाशित करती है।
8 चामुण्डा - प्रवृत्ति (चण्ड) निवृत्ति (मुण्ड) का विनाश करने वाली है।
आठ आसुरी शक्तियाँ ----
1 मोह - महिषासुर
2 काम - रक्तबीज
3 क्रोध - धूम्रलोचन
4 लोभ - सुग्रीव
5 मद,मात्सर्य - चण्ड-मुण्ड
6 राग-द्वेष - मधु-कैटभ
7 ममता - निशुम्भ
8 अहंकार - शुम्भ।
अष्टमी तिथि तक इन दुगुर्णों रुपी दैत्यों का संहार करके
नवमी तिथि को प्रकृति पुरुष का एकाकार होना ही नवरात्र का आध्यात्मिक रहस्य है।
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