*श्राद्ध पक्ष पर विशेष व विस्तृत जानकारी*
👉 *पूर्वाह्न काल* सन्ध्या और रात्रि में श्राद्ध नहीं करना चाहिए।
👉 *चतुर्दशी* तिथि को श्राद्ध नहीं करना चाहिए। परन्तु शस्त्र, दुर्घटना से मृतक का श्राद्ध चतुर्दशी को करना चाहिए।
👉 श्राद्ध काल के समय यदि *अतिथि* आ जाए तो उसका सत्कार अवश्य करें।
👉 श्राद्ध के निमित्त मांग कर लाया गया दूध, *भैंस* और एक खुर वाले पशुओं का *दूध* श्राद्ध के काम में नहीं लेना चाहिए।
(विष्णु पुराण 3/16/11), (मार्कण्डेय पुराण 32/ 17 से 19), (ब्रह्म पुराण 220/ 169)
👉 राजमाष, मसूर, *अरहर, चना, गाजर*, कुम्हड़ा, गोल लोकी, बैंगन, शलजम, हींग, प्याज, लहसुन, *काला नमक*, काला जीरा, सिंघाड़ा, जामुन, पिप्पली, सुपारी, कुलथी, कैथ, महुआ, अलसी, पीली सरसों यह सब वस्तुएं *श्राद्ध में वर्जित* है।
👉 मृत *कुंवारे बच्चों* की तिथि ज्ञात नहीं हो तो उनका *पञ्चमी तिथि* को श्राद्ध किया जाता है।
👉 *सौभाग्यवती* स्त्री की मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं हो तो उनका *नवमी तिथि* के दिन श्राद्ध किया जाता है।
👉 जिनकी *शस्त्रों से, दुर्घटना* से या अकाल मृत्यु हुई हो, किंतु उनकी मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं हो तो उनका श्राद्ध *चतुर्दशी तिथि* को किया जाता है।
👉 उन सभी *ज्ञात - अज्ञातजनों* की जिनकी मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है, उन सबका श्राद्ध *सर्वपितृ अमावस्या* के दिन किया जाता है।
👉 2 वर्ष से छोटे बालक का कोई श्राद्ध नहीं किया जाता है।
*द्वौ दैवे पितृकार्ये त्रीनेकैकमुभयत्र वा।*
*भोजयेत्सुसमृद्धोऽपि न प्रसज्जेत विस्तरे*।।
(मनुस्मृति, बौधायन स्मृति, श्रीमद् भागवत, मत्स्य पुराण, मार्कंडेय पुराण, वराह पुराण, अग्नि पुराण, पारस्कर गृह्यसूत्र परिशिष्ट)
👉 अर्थात् - देव कार्य में दो और *पितृकार्य में तीन* अथवा दोनों में एक - एक ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए।
👉 *अत्यन्त धनी* होने पर भी श्राद्धकर्म में *अधिक विस्तार* नहीं करना चाहिए।
👉 श्राद्ध में *मित्रता का सम्बंध* जोड़ने के *स्वार्थ* से भोजन नहीं करना चाहिए।
👉 श्राद्ध में *जौ*, मूंग, गेहूं, *खीर*, धान, *तिल*, मटर, कचनार, सरसों, परवल, कांगनी, सावा, चावल, आम, अमड़ा, बेल, अनार, बिजौरा, पुराना ऑंवला, नारियल, फालसा, नारंगी, खजूर, अंगूर, नीलकैथ, चिरौंजी, बेर, जङ्गली बेर, इन्द्रजौ और बतुआ - इनमें से *कोई भी वस्तु यत्नपूर्वक* लेना चाहिए।
👉 श्राद्ध के भोजन में *खीर और मालपुए* का अधिक महत्त्व है।
👉 खीर - पूरी भी विकल्प है, परन्तु *पूरी घी* में बनी हो।
👉 *तेल में बनी पूरी* और *खीर* साथ खाने से चर्म व अन्य *रोग* उत्पन्न होते हैं।
👉 श्राद्ध पक्ष में तर्पण और ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए।
👉 श्राद्ध का भोजन करने वाले ब्राह्मण के आसन के आसपास *काले तिल* बिखेर देना चाहिए।
👉 काले तिल व कुशा से पितृ प्रसन्न होते हैं।
👉 अनामिका उंगली में *चांदी* या *सोने* की अंगूठी पहन कर तर्पण करना चाहिए।
👉 श्राद्ध में *केले के पत्ते* व मिट्टी ( *चीनी*), स्टील के पात्र में ब्राह्मण को भोजन कराना निषेध है।
👉 श्राद्ध का भोजन करने वाले ब्राह्मण को *लोहे के पात्र* से भोजन नहीं परोसना चाहिए।
👉 श्राद्ध काल में *वस्त्र* का दान विशेष रुप से करना चाहिए।
👉 श्राद्ध व अमावस्या के दिन *घर में* मन्थन क्रिया ( *दही बिलोना* ) करना निषेध है।
👉 पितरों का स्थान आकाश और दक्षिण दिशा है। *दक्षिण दिशा* में मुंह कर *पितृ तर्पण* करना चाहिए।
👉 श्राद्ध के निमित्त *स्त्री* को भोजन नहीं कराना चाहिए। (बृहत्पराशर स्मृति 7/71)
👉 श्राद्ध में *श्रद्धा* होना जरूरी है। *क्रोध* व *जल्दबाजी* नहीं होना चाहिए।
👉 सोने चांदी और ताम्बे के पात्र पितरों के पात्र कहे जाते हैं। श्राद्ध में *चांदी* की चर्चा और दर्शन से पितर प्रसन्न होते हैं।
👉 श्राद्ध में *काले तिल* की मात्रा आवश्यक है।
👉 श्राद्ध के निमित्त भोजन *वेद ज्ञाता* ब्राह्मण, यति और जरूरतमंद को ही कराना चाहिए।
👉 श्राद्ध के निमित्त ब्राह्मणों को भोजन कराते समय उस दिन 10 कि. मी. के भीतर रहने वाले अपने *दामाद, भांजा - भांजी, बहन और भाई बन्धुओं* को भी आमन्त्रित कर पारिवारिक सद्भाव के साथ बैठकर भोजन करना चाहिए।
👉 श्राद्ध में मुख्य रूप से मालती, जूही, चम्पा, कमल के *सफेद पुष्प* लेना चाहिए।
👉 *तुलसी*, तिल, कुश, दूध, गंगा जल, शहद, दौहित्र और कुतप से पितृ *अधिक प्रसन्न* होते हैं।
👉 मृत्यु के 13 महीने बाद *मृत्यु तिथि* पर (वार्षिक मृत्यु तिथि पर) श्राद्ध करने की आवश्यकता नहीं है। *केवल* ब्राह्मण भोजन करा देना चाहिए।
👉 दूसरा वर्ष पूरा होने पर तीसरे वर्ष के प्रथम दिन अर्थात् *दूसरे वर्ष* की वार्षिक तिथि पर *श्राद्ध* करना चाहिए तथा इसके बाद आने वाले *पितृपक्ष में "मृत्यु तिथि वाली तिथि" के दिन श्राद्ध में मिलाना चाहिए।* (श्राद्ध चिन्तामणि)
👉 इस दौरान *अन्य पितरों* का *श्राद्ध* करते रहना चाहिए।
👉 श्राद्ध में *पितरों की तृप्ति* *वेदज्ञाता* ब्राह्मणों के द्वारा ही होती है।
👉 श्राद्ध के समय कषाय वस्त्र ( *रंगीन, काले - नीले* कपड़े) नहीं पहनना चाहिेए और ना ही श्राद्ध के निमित्त भोजन करने वाले ब्राह्मण को।
👉 *जिस दिन* श्राद्ध हो उस दिन क्षौरकर्म ( *कटिंग, शेविंग*) नहीं करना चाहिए।
👉 जिस दिन *अपने घर* में श्राद्ध हो, उस दिन *दूसरे के घर* में *भोजन* करना निषेध माना गया है।
👉 श्राद्ध में *क्रिया* और *वाक्य* की *शुद्धता* बहुत जरूरी है।
👉 *संयुक्त परिवार* हो तो श्राद्ध ज्येष्ठ पुत्र द्वारा *एक* ही स्थान पर सम्पन्न होना चाहिए।
👉 यदि पुत्र अलग-अलग रहते हों तो श्राद्ध भी *सभी* को *अलग - अलग* करना चाहिए।
👉 श्राद्ध करने का अधिकार इनमें से *कोई एक* - क्रमशः पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र, दौहित्र (पुत्री का पुत्र), पत्नी, भाई, भतीजा, पिता, माता, पुत्रवधू, बहन, भानजा, वंशज को है।
👉 हेमाद्रि के अनुसार श्राद्ध में *पिता* की पिण्ड दान आदि सम्पूर्ण क्रिया पुत्र को ही करनी चाहिए। पुत्र के अभाव में *पत्नी* करें और पत्नी के अभाव में सहोदर *भाई* को करनी चाहिए।
👉 यदि *गया श्राद्ध* कर दिया हो तो मृत्यु तिथि व श्राद्ध पक्ष में तिथि पर *धूप नहीं* देवें व *पिण्डदान ना* करें। उस दिन सिर्फ *तर्पण* करें, *गाय* और *ब्राह्मण* को श्राद्ध निमित्त भोजन कराएं।
👉 गया श्राद्ध *सभी पुत्र* (छोटे-बड़े) कर सकते हैं।
👉 बद्रीनाथ में *ब्रह्म कपाली नहीं* कराई हो तो गयाजी में *एक बार* नहीं, *अनेक बार* श्राद्ध कर सकते हैं।
👉 गया श्राद्ध *कराने के बाद ही* बद्रीनाथ तीर्थ में ब्रह्म कपाली कराएं। यदि बद्रीनाथ में *पहले* ब्रह्म कपाली करा दी हो तो *फिर गयाजी* में श्राद्ध *नहीं* करना चाहिए।
👉 घर की किसी भी *स्त्री* को श्राद्ध के निमित्त भोजन करने वाले ब्राह्मणों के *उच्छिष्ट* (झूठे) पात्रों ( *थाली*) को नहीं उठाना चाहिए। श्राद्धकर्ता ही उन पात्रों को उठाए।
👉 श्राद्ध में ब्राह्मणों को *सिर* ढककर (पगड़ी, टोपी आदि) श्राद्ध का भोजन नहीं करना चाहिए।
👉 जिस श्राद्ध में *क्रोध* और *उतावलापन* होता है, वह निष्फल हो जाता है।
👉 श्राद्ध में *देशी गाय* व उसका दूध, दही, घी का बहुत अधिक महत्त्व है।
👉 यदि श्राद्ध वाले दिन घर में *सूतक* हो तो गौशाला जाकर दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर अपने दोनों हाथ आकाश में ऊपर उठा कर सम्बंधित पितृदेव का नाम लेकर उनके निमित्त *गाय* को *घास* देने का संकल्प करें। फिर यथाशक्ति घास गाय को खिलाने से *पितृ प्रसन्न* हो जाते हैं।
👉 श्राद्ध में चन्दन, खस, कर्पूर सहित *सफेद चन्दन* ही पितृ कार्य के लिए प्रशस्त हैं।
👉 अन्य पुरानी लकड़ियों के चन्दन उपयोग में नहीं लेना चाहिए। कस्तूरी, *लाल चन्दन*, गोरोचन, सल्लक तथा पूतिक आदि निषिद्ध हैं।
👉 पितरों को सदैव *तर्जनी* उंगली से ही *चन्दन* देना चाहिए।
👉 श्राद्ध में कदम्ब, केवड़ा, मौलसिरी, बेलपत्र, करवीर, *लाल तथा काले* रंग के सभी फूल, उग्र गन्ध वाले और गन्ध रहित सभी *फूल वर्जित* हैं।
👉 *ब्राह्मण* के यहां श्राद्ध के निमित्त भोजन करने वाले ब्राह्मण द्वारा श्राद्ध समाप्ति के बाद *अस्तु स्वधा* बोलना चाहिए। इसी तरह *क्षत्रिय* के यहां *पितर: प्रीयन्ताम्* और *वैश्य* के यहां *अक्षय्य मस्तु* शब्द का उच्चारण करना चाहिए, तभी श्राद्ध *सम्पूर्ण* होता है।
👉 एकादशी होने से श्राद्ध में चावल की वजाय *साबूदाना* या अन्य फलियारी वस्तु की *खीर* बनाना चाहिए।
👉 एकादशी पर श्राद्ध निमित्त *फलाहारी भोजन* बनाना चाहिए।
👉 श्राद्ध समाप्ति पश्चात ब्राह्मण को *घर* की सीमा तक *पहुंचाने* के लिए नहीं जाना चाहिए।
👉 अशौच ( *सूतक*) में यदि श्राद्ध आ जाए तो तर्पण, ब्राह्मण भोजन तथा व्रत नहीं करना चाहिए। सिर्फ *गाय* को पितृ निमित्त *घास* डालना चाहिए।
👉 *ब्राह्मण* उपलब्ध ना हो तो कम से कम *गो ग्रास* निकालकर गाय को श्राद्ध के निमित्त खिला देना चाहिए।
👉 श्राद्ध में ब्राह्मणों को *बैठाकर पैर धोना* चाहिए। खड़े होकर पैर धोने पर पितर निराश होकर चले जाते हैं।
👉 *सात्विक अन्न - फलों* से पितरों की सर्वोत्तम तृप्ति होती है।
👉 श्राद्ध में *अग्नि* पर दूषित गुग्गल, बुरा गोंद और सिर्फ घी डालना निषिद्ध है। *घी* के साथ श्राद्ध निमित्त बनाए गए *भोजन* की आहुति देना चाहिए।
👉 श्राद्ध के निमित्त भोजन करने वाले ब्राह्मणों को *भोजन करते समय मौन* रहना चाहिए।
👉 पुत्र को कम से कम वर्ष में *दो बार* श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।
👉 जिस दिन व्यक्ति की मृत्यु होती है *उस तिथि* पर वार्षिक श्राद्ध तथा दूसरा *पितृपक्ष* में श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।
👉 श्राद्ध के दिन *पांच स्थानों* पर श्राद्ध के निमित्त बनी *समस्त थोड़ी - थोड़ी वस्तु दो - दो पूरी* के साथ पत्ते पर रखकर निकालना चाहिए।
👉 एक भाग *गाय* को, दूसरा भाग श्वान ( *कुत्ते* ) को, तीसरा भाग *कौवे* को, चौथा भाग *देवताओं* को और पांचवां भाग *चींटियों* को दे दें।
👉 *10 हजार* निरक्षर ब्राह्मण भोजन करते हैं, वहां यदि *वेदों का ज्ञाता एक* ही ब्राह्मण *श्राद्ध निमित्त* भोजन करके संतुष्ट हो जाए तो उन 10 लाख ब्राह्मणों के *बराबर फल* को देता है।(मनुस्मृति 3/131)
👉 श्राद्ध करने के पूर्व *क्षौरकर्म* नहीं करना या कराना चाहिए।
👉 श्राद्ध करने के पूर्व *कपड़े भी नहीं धोना* चाहिए।
👉 तर्पण में *दोनों हाथों* को संयुक्त कर जल देना चाहिए।
👉 *दूसरे की भूमि* पर श्राद्ध नहीं करना चाहिए।
👉 परिस्थितिवश घर से बाहर यदि श्राद्ध करना हो तो जङ्गल, पर्वत, *पुण्य तीर्थ, देव मन्दिर* में श्राद्ध कर सकते हैं, क्योंकि इन पर किसी का *स्वामित्व* नहीं होता है।
👉 *देव कार्य* में तो ब्राह्मणों की परीक्षा न करें, परन्तु *पितृकार्य* में तो प्रयत्न पूर्वक ब्राह्मण की *परीक्षा* करें। (मनु स्मृति, शंख स्मृति, व्याघ्रपाद स्मृति, स्कन्द पुराण)
👉 श्राद्ध में ब्राह्मण की *उपस्थिति* आवश्यक है।
👉 श्राद्ध में यदि ब्राह्मण *भोजन* कराना *सम्भव ना हो* तो सूखे अन्न, घृत, चीनी, नमक आदि षडरस वस्तुओं को दक्षिणा सहित *श्राद्ध भोजन* के निमित्त किसी वेदज्ञाता ब्राह्मण को दे देना चाहिए।
👉 परिस्थितिवश यदि वेदज्ञाता ब्राह्मण न प्राप्त हो तो कम से कम *गो ग्रास* निकालकर *गायों* को इस निमित्त खिला देना चाहिए।
👉 श्राद्ध के समय रेशमी, नेपाली कम्बल, *ऊन*, काष्ठ, तृण, पर्ण , *कुश* आदि के आसन श्रेष्ठ माने गए हैं।
👉 काष्ठ आसनों ( *लकड़ी के आसन*) में शमी, काश्मीरी, शल्ल, कदम्ब, जामुन, आम, मौलसिरी एवं वरुण के आसन श्रेष्ठ हैं।
👉 किसी भी आसन में *लोहे की कील* नहीं होनी चाहिए।
👉 जहां तक हो सके, आसन का रंग *सफेद* हो।
👉 जिनकी *मृत्यु तिथि ज्ञात* नहीं है, उनका *अमावस्या* के दिन श्राद्ध करना चाहिए।
👉 अमावस्या को *समस्त पितरों* के नाम पर *तर्पण* भी करना चाहिए।
👉 जिनके परिवार में कोई मातृशक्ति *सती* हुई हो तो अमावस्या के दिन *सती के निमित्त श्राद्ध* करना चाहिए।
👉 *देव कार्यादपि सदा पितृकार्यं विशिष्यते।*
*देवताभ्यो हि पूर्वं पितृणामाप्यायनं वरम्*।।
(हेमाद्रि में वायु तथा ब्रह्मवैवर्त का वचन)
अर्थात् - देव कार्य की अपेक्षा *पितृ कार्य* की विशेषता मानी गई है। अतः *देव कार्य से पूर्व* पितरों को *तृप्त* करना चाहिए।
👉 वृद्धिकाल में पुत्र जन्म तथा *विवाह आदि मांगलिक कार्य* में जो *श्राद्ध* किया जाता है, उसे वृद्धिश्राद्ध (नान्दी श्राद्ध) कहते हैं।
👉 इस नान्दी *श्राद्ध का स्वरूप* हम लोगों ने बदल दिया है। जब भी विवाह आदि माङ्गलिक कार्य होते हैं, तब हम *नान्दी श्राद्ध न करते* हुए मात्र पितरों के निमित्त *धन और वस्त्र* लेकर बहन - बेटियों, ब्राह्मण को दे देते हैं।
👉 कूर्म पुराण, याज्ञवल्क्य स्मृति, ब्रह्मोक्त याज्ञवल्क्य संहिता, महाभारत आदि में चतुर्दशी के दिन *श्राद्ध* नहीं करने का स्पष्ट उल्लेख है।
👉 चतुर्दशी तिथि का श्राद्ध *अमावस्या* के दिन करना चाहिए।
👉 चतुर्दशी के दिन *सिर्फ* युद्ध में शहीद हुए *सैनिक, दुर्घटना से, शास्त्राघात* से मृत हुए व्यक्ति का श्राद्ध होता है।
👉 शुक्ल पक्ष की अपेक्षा *कृष्ण पक्ष* और पूर्वाह्न की अपेक्षा *कुतप वेला* का समय श्राद्ध के लिए श्रेष्ठ माना जाता है।
👉 श्राद्ध *एकान्त* में और *गुप्त* रूप से करना चाहिए।
👉 श्राद्ध के भोजन पर *रज:स्वला* स्त्री और *श्वान* की दृष्टि नहीं पड़ना चाहिए।
👉 जिसके *घर में श्वान* होते हैं, *उसके घर* में पितृ प्रवेश नहीं करते हैं। (कूर्मपुराण,औशन स्मृति)
शास्त्री श्री भगीरथ आर.पण्ड्याजी
ज्योतिष ओर कर्मकांड के ज्ञाता. सुरेन्द्रनगर गुजरात
mo.+919824417090/+917802000033...