महत्त्वपूर्ण ज्योतिष योग
महत्त्वपूर्ण ज्योतिष योग
पापकर्तरीयोग- चन्द्र या लग्न के दोनों ओर पापग्रह स्थित हों तो स्वास्थ्य कष्ट, आर्थिक कष्ट, अवगुण आदि फल प्राप्त होते हैं।
शकटयोग- गुरु से चन्द्र की स्थिति 6-8-12 हो तो जीवन में समृद्धि एवं आर्थिक कष्ट आते रहते हैं। वह दुराग्रही आदि अवगुण वाला होता है।
हर्षयोग- षष्ठेश किसी त्रिक स्थान में हो, या कोई त्रिकेश षष्ठस्थ हो, तो जातक अनेक शुभ फल प्राप्त करता है।
सरलयोग- अष्टमेश यदि किसी त्रिक भाव में हो, या त्रिकेश अष्टमस्थ हो तो जातक धनवान, निर्भय, विद्वान, दीर्घायु आदि होता है।
विमलयोग- द्वादशेश त्रिकस्थ हो, या त्रिकेश द्वादशस्थ हो तो धनसंग्रह, आत्मनिर्भर, सुखी, सम्मानित, प्रसिद्ध आदि होता है।
विपरीत राजयोग- जब त्रिकेश की स्थिति त्रिक भावों में एक दूसरे की राशि में हो, परस्पर परिवर्तन योग हो तो राजयोग का फल देते हैं। ये ऐसा फल तभी देते हैं, जब ये अन्य ग्रहों से न युत हों न दृष्ट हों।
बुधादित्ययोग- बुध एवं सूर्य की युति हो, तो जातक बुद्धिमान, कुशल, सम्मानित, विद्वान, आदि होता है।
पर्वतयोग- लग्नेश एवं द्वादशेश एक दूसरे से केन्द्र में हों या केन्द्र में शुभ ग्रह हों तथा 6-8 भाव पाप प्रभाव से मुक्त हो तो जातक धनवान, समृद्ध आदि होता है।
काहलयोग- चतुर्थेश एवं नवमेश एक दूसरे से केन्द्र में हों और लग्नेश सबल हो तो जातक दुराग्रही, नेतृत्व सम्पन्न, उदार, प्रसिद्ध आदि होता है।
चन्द्र-मङ्गलयोग- कुण्डली के शुभ भाव में इन ग्रहों की युति हो, विशेषतः दशम भाव में तो यह धनदायक योग होता है। गुरु की दृष्टि यदि इस युति पर हों तो इस योग से उत्पन्न दुर्गुण का शमन करती है।
गुरु-मङ्गलयोग- कुण्डली के शुभ भाव में इन ग्रहों की युति हो, तो जातक धनवान, सुदृढ़ प्रकृति वाला, अनेक स्रोतों से धन पाता है।
गुरु-चांडालयोग- इस युति के कारण जातक को भाग्यबाधा, अनैतिक कर्म, आजीविका में कष्ट आदि सहना पड़ता है।
लक्ष्मीयोग- नवमेश उच्च/मूलत्रिकोण/स्वक्षेत्री होकर केन्द्रस्थ हो तथा लग्नेश सबल हो तो जातक धनवान एवं उत्तम गुणों वाला होता है।
गौरीयोग- यदि स्वराशि या सर्वोच्च राशिगत शुक्र और नवमेश दोनों केन्द्र/ त्रिकोण में स्थित हो और उक्त स्थिति में चन्द्रमा व गुरु से दृष्ट हो तो जातक सम्मानित परिवार से युक्त, उत्तम सन्तति एवं प्रसंशनीय होता है।
चतुस्सागरयोग- समस्त शुभ एवं अशुभ ग्रह केन्द्रस्थ हो तो जातक उत्तम सम्मान, समृद्धशाली, स्वस्थ, नाम एवं यश पाता है।
श्रीकण्ठयोग- लग्नेश, सूर्य तथा चन्द्र केन्द्र/त्रिकोण में होकर उच्च/स्वराशि/मित्रराशिस्थ हों तो जातक धार्मिक, पुण्यकर्मा होता है।
श्रीनाथयोग- सप्तमेश दशमस्थ हो तथा दशमेश उच्चस्थ होकर नवमेश से युत हो तो जातक धनी, चतुर, धार्मिक, सर्वप्रिय होता है।
सरस्वतीयोग- गुरु एवं चन्द्र में राशि परिवर्तन योग हो तथा गुरु की चन्द्र पर दृष्टि हो तो जातक कवित्त्व योग्यता, कौशल युत,प्रशंसनीय एवं उत्तम परिवार वाला होता है।
शंखयोग- पञ्चमेश एवं षष्ठेश परस्पर केन्द्रस्थ हों तथा लग्नेश सबल हो। अथवा लग्नेश एवं दशमेश चर राशि में हो और नवमेश सबल हो तो जातक विद्वान, धार्मिक, उत्तम परिवार वाला, दीर्घायु आदि होता है।
श्री रांदल ज्योतिष कार्यालय सुरेन्द्रनगर पंड्याजी+919824417090...+918702000033...
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