शुक्रवार, 25 मार्च 2022

परम मन्त्र

परम मन्त्र
१. मन्त्र-
मननात् त्रायते इति मन्त्रः। जिसके मनन से त्राण या मुक्ति मिलती है वह मन्त्र है। मनन के कई स्तर हैं-स्पष्ट उच्चारण, उपांशु (मानसिक उच्चारण), मनन, चिन्तन।
मन्त्र के ११ अंग हैं।
(१) विनियोग-मन्त्र का उद्देश्य या लक्ष्य विनियोग है।
मन्त्र के वाक् या शब्द रूप में वेद में ३ अंग हैं।
(२) ऋषि-२ तत्त्वों के बीच का सम्पर्क ऋषि (रस्सी) है। २ पिण्डों के बीच प्रकाश, आकर्षण आदि द्वारा सम्बन्ध ऋषि है। हमारा तारों से सम्पर्क उनसे आते प्रकाश द्वारा है, अतः वे भी ऋषि हैं, जैसे सप्तर्षि। भौतिक रूप में ब्रह्म तथा सामान्य मनुष्य के बीच सम्बन्ध जोड़ने वाला ऋषि है, जैसे मन्त्र-द्रष्टा ऋषि। वह ३ विश्वों -आकाश, पृथ्वी तथा मनुष्य-के बीच सम्बन्ध का दर्शन कर अन्य लोगों को बताता है। इसे यास्क निरुक्त (१/२०) में परोवरीय सम्बन्ध कहा है-ऊपर से नीचे ज्ञान का प्रवाह। मनुष्य शरीर के भीतर नाड़ी तन्त्र ऋषि है, विशेषकर मनुष्य मस्तिष्क के २ भागों को जोड़ने वाले तन्तु।
(३) देवता-आकाश में फैली ऊर्जा प्राण है। उसका क्रियात्मक रूप देव है, निष्क्रिय रूप असुर-
ऋषिभ्यः पितरो जाताः, पितृभ्यो देव-दानवाः।
देवेभ्यश्च जगत् सर्वं चरं स्थाण्वनुपूर्वशः॥ (मनु स्मृति, ३/२०१)
प्राणो वा असुः (शतपथ ब्राह्मण, ६/६/२/६)
दिवा देवानसृजत, नक्तमसुरान्, यद्दिवा देवानसृजत तद्देवानां देवत्वं, यदसूर्य्यं तदसुराणामसुरत्वम्। (षड्विंश ब्राह्मण, ४/१)
आकाश के विभिन्न क्षेत्रों या पिण्डों का क्रियात्मक प्राण देवता है। मनुष्य शरीर में विभिन्न अंग, मस्तिष्क या सुषुम्ना के चक्र आदि देव हैं। आकाश के शून्य में भी विश्वव्यापी प्राण इन्द्र है जो माया द्वारा विभिन्न रूप धारण करता है-
नेन्द्रात् ऋते पवते पवते धाम किं च न (ऋक्, ९/६९/६)
इन्द्रो मायाभिः पुरुरूप ईयते (ऋक्, ६/४७/१८)
(४) छन्द-वाक् का परिमाण छन्द है-
यदक्षरपरिमाणं तच्छन्दः। (ऋक् सर्वानुक्रमणी, २/६)
वाक् के विस्तार आकाश की माप भी छन्द है-
छन्दांसि वा अस्य (अग्नेः) सप्त धाम प्रियाणि। (शतपथ ब्राह्मण, ९/२/३/४४, वा.यजु, १७/७९)
छन्द का मूल अर्थ है छादन करने वाला, आवरण। देश या काल का आवरण ही माप है। वाक् अर्थ में छन्द एक वाक्य की माप है। उसके पाद वाक्यांश या पद हैं। छन्द या पाद के अनुसार ही वेद मन्त्रों का अर्थ होता है। पाद भंग कर अन्वय नहीं हो सकता है।
तेषामृग्यत्रार्थवशेन पाद व्यवस्था। (मीमांसा सूत्र, २/१/३५)
क्रिया रूप में तन्त्र केलिए मन्त्र के ३ अतिरिक्त अंग हैं-
(५) बीज-किसी कार्य या परिणाम का कारण रूप मूल।
(६) शक्ति-प्राण या ऊर्जा का स्रोत जो ऊर्जा द्वारा कार्य कर सके।
(७) कीलक-द्वार खोलना या बन्द करना (पाईप का वाल्व)। कीलक से अंग्रेजी में की + लक (key + lock) हुआ है। किसी क्रिया की विधि जानने से ही क्रिया आरम्भ की जा सकती है। अतः ज्ञान रूप शिव कीलक हैं।
मन्त्र का प्राभाव तथा अर्थ समझने के लिए दुर्गा सप्तशती में ४ अन्य अंग कहे गये हैं-
(८) कवच-शरीर के ९ रन्ध्र की रक्षक रूप में ९ दुर्गा हैं। आकाश में रन्ध्र (घनत्व की कमी) नवम आयाम है, जिससे निर्माण या सृष्टि होती है। सृष्टि के ९ सर्ग ९ दुर्गा रूप हैं। भौतिक रूप में देश की रक्षा के लिए ९ दुर्ग होते हैं। शुक्र नीति (४/५०-५४)-९ दुर्ग-ऐरिण (कांटा, पत्थर गुप्तमार्ग), पारिख (खाई से घिरा), पारिघ (परकोट युक्त), वन (कांटे आदि वन से घिरा), धन्व (जिस भाग में जल का अभाव हो), जल (जल से घिरा), गिरि (जल स्थान मीं ऊंचा पर्वत जैसा), सैन्य (छावनी), सहाय (अनुकूल बन्धु जन)।
(९) अर्गला-अर्गला का अर्थ है द्वार का कपाट जिससे वह खोला और बन्द किया जाता है। आधुनिक मशीनों में इसे वाल्व कहते हैं, जिससे उर्जा का प्रवाह रोका जा सकता है। मनुष्य हृदय के भी ४ द्वारों में रक्त सञ्चार को नियमित करने के लिए अर्गला हैं।
(१०) तत्त्व-किसी पुर या रचना की निर्माण सामग्री।
(११) वेद-वेद का अर्थ ज्ञान है। किसी वस्तु का ज्ञान ४ प्रकार से होता है अतः वेद के ४ विभाग हैं-
ऋक् = मूर्त्ति (भौतिक पिण्ड तथा रचना),
यजुर्वेद (क्रिया-आन्तरिक = कृष्ण, बाह्य या दृश्य = शुक्ल),
साम (प्रभाव क्षेत्र जिसके भीतर उसका अनुभव हो सकता है। अनुभव के बाद उसका ज्ञान एकत्व तथा वर्गीकरण द्वारा होता है जिसे परा और अपरा विद्या कहते हैं),
अथर्व = सनातन ब्रह्म, आधार जिसके सन्दर्भ में ज्ञान होता है)।
ऋग्भ्यो जातां सर्वशो मूर्त्तिमाहुः, सर्वा गतिर्याजुषी हैव शश्वत्।
सर्वं तेजं सामरूप्यं ह शश्वत्, सर्वं हेदं ब्रह्मणा हैव सृष्टम्॥ (तैत्तिरीय ब्राह्मण, ३/१२/८/१)
२. महामन्त्र-
(१) प्रणव-वेद के सभी वाक्य या श्लोक मन्त्र हैं। इनका मूल मन्त्र ॐ है, जो प्रायः किसी मन्त्र का अङ्ग नहीं है, किन्तु पाठ के समय ॐ से ही मन्त्र का आरम्भ होता है। ब्रह्मा के मुख से ॐ तथ अथ का प्रथम उच्चारण हुआ था, अतः ये माङ्गलिक शब्द हैं (ब्रह्म सूत्र, १/१/१ का शाङ्कर भाष्य) -
ओङ्कारश्चाथशब्दश्च द्वावेतौ ब्रह्मणः पुरा।
कण्ठं भित्त्वा विनिर्यातौ तेन माङ्गलिकावुभौ॥
केवल यजुर्वेद के कुछ मन्त्रों में ॐ स्पष्ट रूप से लिखित है-
ॐ प्रतिष्ठ (वाज. सं, २/१३)
ॐ क्रतो स्मर (वाज.सं, ४०/१५, ईशावास्योपनिषद्, १५)
ॐ खं ब्रह्म (काण्व सं, ४०/१५, वाज.सं, ४०/१७, ईशावास्योपनिषद्, १७)
ॐ का अन्य शब्द से सन्धि होने पर यह ओम् लिखा जाता है-
ओमिति ब्रह्म (तैत्तिरीय उपनिषद्, १/८/१)
ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म (गीता, ८/१३, ब्रह्मविद्या, प्रणव आदि उपनिषद्)
प्रणवः सर्ववेदेषु (गीता, ७/८), वेद्यं पवित्रमोङ्कारः (गीता, ९/१७)
ऋचो अक्षरे परमे व्योमन् यस्मिन् देवा अधिविश्वे निषेदुः।
यस्तन्न वेद किमृचा करिष्यति य इत्तद्विदुस्त इमे समासते॥
(ऋक्, १/१६४/३९, श्वेताश्वतर उपनिषद्, ४/८)
यहां, व्योम = वि + ओम = परम शूुन्य जिसमें ॐ भी अव्यक्त है। वही देव तथा विश्व का अधिष्ठान है। जो इसे नहीं जानता उसकी ऋचा क्या कर सकती है?
व्यक्त रूप में ॐ के ४ पाद हैं-अ, उ, म्, विन्दु (अर्द्धमात्रा)। तन्त्र में अर्धमात्रा विन्दु के ९ स्तर तक अर्ध भाग किये हैं, जो विश्व के ९ सर्ग के अनुसार हैं। अव्यक्त ध्वनि से ॐकार उत्पत्ति का वर्णन भागवत पुराण (१२/६/३७-४५) में है। इसे वेद तथा मनुष्य नमन करते हैं, नव जाते हैं, अतः इसे प्रणव कहा है। प्रणव का आकार धनुष जैसा ऋक् (६/७), विशेषकर मन्त्र ३ में है, जिसका सारांश है-
धनुर्गृहीत्वौपनिषदं महास्त्रं, शरं ह्युपासा निशितं सन्धयीत।
आयम्य तद् भावगतेन चेतसा लक्ष्यं तदेवाक्षरं सोम्य विद्धि॥३॥
प्रणवो धनुः शरो ह्यात्मा ब्रह्म तल्लक्षणमुच्यते।
अप्रमत्तेन वेद्धव्यं शरवत्तन्मयो भवेत्॥४॥
(मुण्डकोपनिषद्, २/२/३-४)
ॐ के धनुष-बाण आकार का वर्णन देवीभागवत (७/३६/६), मार्कण्डेय अध्याय ४२, पुराणों में भी है।
(२) त्रितार प्रणव-वेद में ॐ के अन्य रूप ’ईं’ तथा ’श्रीं’ हैं।
’ईं’ गुप्त प्रणव है। इसमें तत् (अव्यक्त ब्रह्म) सत् (दृश्य जगत्) तथा दर्शक जीवात्मा का समन्वय है-
ॐ तत्-सत् इति निर्देशः ब्रह्मणः त्रिविधः स्मृतः। (गीता, १७/२३)
अधिदैविक, अधिभौतिक, अध्यात्मिक विश्वों के समन्वय रूप में यह एक ही अक्षर है, जिसे जानने से वेद ज्ञात होता है-
य ईं चकार न सो अस्य वेद य ईं ददर्श हिरुगिन्नु तस्मात्। (ऋक्, १/१६४/३२)
इन ३ के समन्वय रूप प्रत्यक्ष विश्व का धारक ब्रह्म को ३ माता (पृथ्वी) तथा ३ पिता (द्यौ) निम्न दृष्टि से नहीं देखते हैं।
तिस्रो मातॄस्त्रीन् पितॄन् बिभ्रदेक ऊर्ध्वतस्थौ नेमवग्लापयन्ति॥ (ऋक्, १/१६४/१०)
नेमवग्लापयन्ति = न + ईं + अव-ग्लापयन्ति।
जो अन्तः गुहा में ईं को स्पष्ट देखता है (चिकेत) वह अमृत चैतन्य धारा प्राप्त करता है-
य ईं चिकेत गुहा भवनमा यः ससाद धारामृतस्य (ऋक्, १/६७/४)
धारा, इला आदि पद्मिनी रूप श्री हैं-
तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्ये (श्री सूक्त)
पद्मिनीमीं = पद्मिनीं + ईं।
ईङ्काराय स्वाहा। ईङ्कृताय स्वाहा। (तैत्तिरीय सं, ७/१/१९/९)
ॐ का तृतीय वैदिक रूप श्री है जो परब्रह्म की शक्ति या महिमा है (श्री = तेज)।
श्रीश्च ते लक्ष्मीश्च पत्न्यौ (वाज. यजु, ३१/२२)
दृश्य जगत् या सम्पत्ति लक्ष्मी है, अदृश्य तेज या सम्पत्ति श्री है।
या श्रीः स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मीः (दुर्गा सप्तशती, ४/५)
= सुकृति लोगों के घर में अदृश्य सम्पत्ति (अलक्ष्मी) जैसे श्री (तेज), प्रतिभा, ख्याति आदि रहती है।
श्री त्रयी वेद रूप है-
अहेबुध्निय मन्त्रं मे गोपायायमृषयस्त्रयी विदा विदुः।
ऋचः सामानि यजूँषि साहि श्रीरमृता सताम्॥ (तैत्तिरीय ब्राह्मण, १/२/१/६)
शब्दात्मिकां सुवैमलर्ग्यजुषां निधान-मुद्गीथ रम्य पदपाठवतां च साम्नाम्।
देवी त्रयी भगवती भवभावनाय वार्ता च सर्वजगतां परमार्तिहन्त्री॥
(दुर्गा सप्तशती, ४/१०)
(३) तीन विभाग-ॐ = अव्यक्त प्रणव, ईं = गुप्त प्रणव, श्रीः = शाक्त प्रणव-तीनों के ३-३ खण्ड हैं। तन्त्र के मन्त्रों का अन्त भी श्रीं से होता है-
ॐ ह्रीं श्रीं (षोडशी मन्त्र), ऐं ह्रीं श्रीं (त्रितार मन्त्र)।
ॐ = अ + उ + म्।
ईं = इ + ई + म्। इ = इह (यहां) लोक।
ईं = दृश्य जगत् (ई गति व्याप्ति ब्रजन कान्त्यशन खादनेषु, धातु पाठ, २/४१), म् = ब्रह्म।
श्रीं = श + र + ईं।
श = महालक्ष्मी, र = धन, ई = तुष्टि।
ह्रीं-ह = शिव, र = प्रकृति, ई = महामाया। नाद (अनुस्वार) = विश्वाम्बा।
(४) दीक्षा और अधिकार-जप के लिए छोटा मन्त्र होता है। अध्ययन के लिए सभी मन्त्र पढ़े जा सकते हैं किन्तु साधना के लिए एक ही मन्त्र उचित है। एक साथ २ मन्त्रों का जप नहीं हो सकता है। मानसिक जप के लिए मन्त्र केवल १-२ अक्षर का होता है। मन उस पर धीरे धीरे स्थिर होता है। चञ्चल होने के कारण वह इधर उधर घूमता है, थक कर पुनः मन्त्र पर आता है-जैसे उड़ि जहाज को पन्छी पुनि जहाज पर आवे। किस व्यक्ति के लिए कौन मन्त्र उचित है यह निर्णय योग्य गुरु ही कर सकता है। इसकी विधि सिखाना और शिष्य को साधना करने योग्य बनाना दीक्षा है। इसमें अधिकार की चर्चा निरर्थक है। डाक्टर सभी दवा और ओषधियों के बारे में पढ़ता है। किन्तु हर ओषधि खाना उसके लिए आवश्यक नहीं है। अच्छा है कि किसी ओषधि की आवश्यकता न पड़े। भोजन में भी अपनी आवश्यकता के अनुरूप ही खा सकते हैं।
३. भागवत मन्त्र-
(१) परम जप- भागवत पुराण का महामन्त्र है-
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।
इससे गजेन्द्र मोक्ष स्तुति का आरम्भ होता है-
एवं व्यवसितो बुद्ध्या समाधाय मनो हृदि।
जजाप परमं जाप्यं प्राग्जन्मन्यनुशिक्षितम्॥१॥
ॐ नमो भगवते तस्मै यत एतच्चिदात्मकम्।
पुरुषायादिबीजाय परेशायाभिधीमहि॥२॥
(भागवत पुराण, ८/३/१-२)
जब गजेन्द्र को अन्य कोई उपाय नहीं सूझा तो उसने व्यवसित बुद्धि से चिन्तन कर परम मन्त्र का जाप किया। परम मन्त्र का अर्थ है, अभ्युदय और मोक्ष देने वाला। अन्य मन्त्र भौतिक सुखों के लिए हैं। जाप की विधि है कि सभी वासनाओं को मन में लीन कर मन का हृदय में आधान किया, समाधान होने से समाधि हुयी तब मन्त्र का जप हुआ। यह पूर्व जन्म के संस्कार द्वारा स्मृति तथा बुद्धि हुई। 'ॐ नमो भगवते' से मन्त्र का आरम्भ हुआ। उसके बाद वासुदेव का अर्थ है-चिदात्मक, पुरुष, आदिबीज, परेश आदि।
(२) नेति-उसके बाद कई श्लोकों में कहा है कि परब्रह्म वासुदेव का कोई एक वर्णन सम्भव नहीं है, इसे नेति (न + इति) कहा है, अर्थात् ब्रह्म का कोई भी वर्णन पूर्ण नहीं है।
न विद्यते यस्य च जन्म कर्म वा, न नामरूपे गुणदोष एव वा।
तथापि लोकाप्ययसम्भवाय यः, स्वमायया तान्यनुकालमृच्छति॥८॥
स वै न देवासुर मर्त्य तिर्यङ्, न स्त्री न षण्ढो न पुमान् न जन्तुः।
नायं गुणः कर्म न सन्न चासन्, निषेधशेषो जयतादशेषः॥३४॥
(यहां षण्ढ का अर्थ नपुंसक है, आजकल यह पुरुषवाची है। ऋषभ या वृषभ प्रशंसा के लिए कहते थे -पुरुषर्षभ, अभी मूर्ख या नपुंसक को कहते हैं।)
निर्विशेष अव्यक्त की व्याख्या व्यक्त शब्दों से नहीं की जा सकती है। अतः केवल उप-वर्णन होता है। इसे ईशावास्योपनिषद् में पर्यगात् (घेर कर) कहा है-
स पर्यगात् शुक्रं अकायं अव्रणं अस्नाविरं -----।
(३) अभिगमन- निर्विशेष के उपवर्णन के बाद कोई भी लिङ्गाभिमानी (स्वरूप धारी) देवता नहीं आये क्योंकि उनकी स्तुति नहीं हो रही थी। तब विश्व की आत्मा नारायण स्वयं छन्द रूपी गरुड़ पर आये। शरीर धारी की गति संसर्प है, आत्मा की गति मनोजव है, अभिगमन (हिन्दी में अभी पहुंच गये)।
एवं गजेन्द्रमुपवर्णित निर्विशेषं, ब्रह्मादयो विविधलिङ्गभिधाभिमानाः।
नैते यदोपससृपुर्निखिलात्मकत्वात्, तत्राखिलामरमयोहरिराविरासीत्॥३०॥
छन्दोमयेन गरुडेन समुह्यमानश्चक्रायुधोऽभ्यगमदाशु यतो गजेन्द्रः॥३१॥
ब्रह्म की तत्क्षण गति ईशावास्योपनिषद् में भी है-
अनेजदेकं मनसो जवीयो नैनद्देवा आप्नुवन् पूर्वमर्शन्। तद्धावतोऽन्यानत्येति तिष्ठन् --॥४॥
(४) तान्त्रिक अर्थ- यहां गजेन्द्र शरीर पर या स्थूल सम्पत्ति पर अभिमान करने वाला जीव है, जिसे काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मात्सर्य शत्रुओं ने बन्धन में बान्ध रखा है। इससे गुरु तथा ब्रह्म कृपा से ही काट कर ऊपर उठा जा सकता है।
स्वामी विष्णुतीर्थ ने सौन्दर्य लहरी श्लोक ९ की टीका में कहा है कि मूलाधार के बाद स्वाधिष्ठान का भेदन नहीं किया जाता है, उससे काम वासना आदि जाग्रत होती है जो साधना में बाधा है। मूलाधार के बाद सीधा मणिपूर चक्र में जाते हैं। वह सूर्य रूपी विष्णु है, जिसके द्वारा स्वाधिष्ठान का स्वतः भेद हो जाता है। स्वाधिष्ठान जल या वरुण मण्डल है जो मकर या ग्राह पर आरूढ़ है। उसका भेदन ही ग्राह का सिर काटना है।
महीं मूलाधारे कमपि मणिपूरे हुतवहं,
स्थितं स्वाधिष्ठाने हृदि मरुतमाकाशमुपरि।
मनोऽपि भ्रूमध्ये सकलमपि भित्त्वा कुलपथं,
सहस्रारे पद्मे सह रहसि पत्या विहरसि॥
(शंकराचार्य कृत सौन्दर्य लहरी, ९)
स्वाधिष्ठान स्वरूप-अर्धेन्दु रूपलसितं शरदिन्दु शुभ्रं,
वंकार बीजममलं मकराधिरूढम्॥१५॥
तस्यांकदेश-कलितो हरिरेव पायात्,
नील-प्रकाश रुचिर श्रियमादधानः।
पीताम्बरः प्रथम-यौवन-गर्वधारी,
श्रीवत्स-कौस्तुभधरो धृतवेदबाहुः॥१६॥(षट्चक्र निरूपण)
(५) गरुड़- यहां छन्दोमय गरुड़ रहस्यमय है। विष्णु मन्दिर के बाहर गरुड़ स्तम्भ रहता है। एक गरुड़ पक्षी है। गरुड़ एक मनुष्य जाति थी जिसके राजा का भवन यवद्वीप सहित सप्तद्वीप में लिखा है (रामायण, किष्किन्धा काण्ड, ४०/३९)। कम्बोडिया का एक प्रान्त वैनतेय है जिसका अर्थ गरुड़ है (विनता का पुत्र)। यह सप्त द्वीप का विनता क्षेत्र हो सकता है। वेद में गरुड़ का वर्णन सुपर्ण, गरुत्मान् (ऋक्, १/१६४/४६), मूर्धा-वयः छन्द (वाज. यजु, १५/४-५) आदि शब्दों से किया गया है। एक सुपर्ण ने समुद्र में प्रवेश कर भूमि का निर्माण तथा पालन किया (ऋक्, १०/११४/४)। यह ७ ऋषियों का समूह है जो पक्षी रूप में मिल कर सृष्टि करते हैं। स्रोत मुख है, चौकोर शरीर सृष्टि के ४ मूल बल हैं, २ पक्ष समरूपता हैं, पुच्छ निर्माण या परिणति है (शतपथ ब्राह्मण, ६/१/१/२-६)। २ सुपर्ण द्रष्टा तथा कर्त्ता रूपों का समन्वय है। मनुष्य शरीर में इनको आत्मा और जीव कहा है (द्वा सुपर्ण सूक्त- मुण्डक उप. ३/१/१, श्वेताश्वतर उप. ४/६, ऋक् १/१६४/२०, अथर्व ९/९/२०)
सूर्य रूपी विष्णु का वाहन गरुड़ पूरे सौर मण्डल तथा उससे बाहर फैला हुआ है।
सुपर्णोऽसि गरुत्माँस्त्रिवृत्ते शिरो गायत्रञ्चक्षुर्बृहद्रथन्तरे पक्षौ।
स्तोम ऽआत्मा छन्दांस्यङ्गानि यजूँषि नाम।
साम ते तनूर्वामदेव्यँयज्ञायज्ञियम्पुच्छन्धिष्ण्याः शफाः।
सुपर्णोऽसि गरुत्मान्दिवङ्गच्छ स्व पत॥। (वाज. यजु, १२/४)
पृथ्वी सतह पर सूर्य की वार्षिक गति भी सुपर्ण है। दक्षिणायन के अन्त में सूर्य मकर रेखा पर आता है (जब सायन सूर्य मकर राशि में हो)। उस समय के नक्षत्र को तार्क्ष्य (गरुड़, ३ तारा) कहा है। यहां से तार्क्ष्य उत्तरायण गति में आता है जब आत्मा उत्तम लोकों में जाती है। भीष्म पितामह मृत्यु के लिये इसी उत्तरायण की प्रतीक्षा कर रहे थे।
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवा स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥ (यजु २५/१९)
४. वासुदेव और नारायण-
(१) सृष्टि क्रम- सूर्य सिद्धान्त (१२/१२-२९) में सृष्टि उत्पत्ति का वर्णन पुरुष-सूक्त, हिरण्यगर्भ सूक्त, त्रयीमय-यज्ञ, पाञ्चरात्र दर्शन तथा सांख्य दर्शन का समन्वय है। मूल पूरुष के ४ पादों से क्रमशः सृष्टि के क्रम हुए (पुरुष सूक्त)। हिरण्यगर्भ या तेज-पुञ्ज से सृष्टि का आरम्भ हुआ। कर्त्ता रूप पुरुष से प्रकृति के २४ तत्त्व बने (सांख्य)। पुरुष के स्वरूप में परिवर्त्तन ४ प्रकार से हुआ (पाञ्चरात्र)-
वासुदेव-वास स्थान, आकाश।
संकर्षण-परस्पर आकर्षण से पिण्ड बने और उनकी गति स्थिर हुई (आकृष्णेन रजसा वर्तमानः-ऋक्, १/३५/२, वाज, यजु, ३३/४३, ३४/३१)
प्रद्युम्न-तारा निर्माण के बाद तेज का विकिरण।
अनिरुद्ध-असंख्य प्रकार के चराचर पिण्ड (चित्राणि साकं दिवि-यजु, २५/९, चित्रान्-ऋक्, ४/२२/१०)
ऐसा नहीं था कि एक समय केवल वासुदेव रूप या हिरण्यगर्भ था, बाद में क्रमशः संकर्षण आदि बने। पूर्ण विश्व सदा से एक जैसा था जिसमें पूरुष का ३ पाद अव्यक्त तथा ३ पाद निर्मित विश्व है-पादोऽस्य विश्वा भूतानि, त्रिपादस्यामृतं दिवि (पुरुष सूक्त, ३)। अतः भगवत्पाद रामानुजाचार्य ने वासुदेव के ४ रूपों को व्यूह कहा है-पूरा विश्व इनका व्यूहन या मिलन है।
एकपाद्विभूति में श्री भगवान जगत के उदय, विभव और लय की लीला करते हैं। सृष्टि करते समय परमात्मा प्रद्युम्न, पालन करते समय अनिरूद्ध और संहार करते समय संकर्षण कहलाते हैं। इन सभी के मूर्ति प्रतीकों, वस्त्र, आयुध आदि की विस्तृत व्याख्या की है।
(२) नारायण रूप-सृष्टि की क्रिया नारायण है। मूल पूरुष नर था, उससे उत्पन्न अप् के विभिन्न रूप (रस, सरिर्, अप्, अम्भ, मर्, जल आदि) नार हुए। उस नार में ही पुरुष का निवास है-तत् सृष्ट्वा तदेव अनुप्राविशत् (तैत्तिरीय उपनिषद्, २/६)। 
आपो नारा इति प्रोक्ता आपो वै नरसूनवः।
ता यदस्यायनं पूर्वं तेन नारायणः स्मृतः॥ (मनु स्मृति, १/१०)
पूरे विश्व समुद्र में ब्रह्माण्ड रूपी महाविष्णु हैं जो अन्य ब्रह्माण्डों के आकर्षण (संकर्षण) से स्थिर हैं। इस ब्रह्माण्ड में सर्पाकार भुजा अनन्त है (वेद का अहिर्बुध्न्य, पुराण का शेषनाग)। जहां सूर्य है वहां इस भुजा की मोटाई के बराबर गोल में १००० तारा शेष के १००० सिर हैं। इनमें १ सिर सूर्य के क्षेत्र में विन्दुमात्र पृथ्वी है। ब्रह्माण्ड रूपी महाविष्णु की नाभि मूलबर्हणि नक्षत्र के आकर्षण से अमृत ब्रह्म रूप ब्रह्माण्ड स्थित है (काश्यपी पृथ्वी)। सूर्य के आकर्षण या कमल-नाल से पृथ्वी ग्रह रूपी मर्त्य ब्रह्मा हैं।

सुभाषितम्

 *श्लोकेन वा तदर्धेन तदर्धार्धाक्षरेण वा।*
*अबन्ध्यं दिवसं कुर्याद्दानाध्ययनकर्मभिः॥*
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Let not a single day pass without your learning a verse, half a verse, or a fourth of it, or even one letter of it; nor without attending to charity, study and other pious activity.
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ऐसा एक भी दिन नहीं जाना चाहिए जब आपने एक श्लोक, आधा श्लोक, चौथाई श्लोक, या श्लोक का केवल एक अक्षर नहीं सीखा, या आपने दान, अभ्यास या कोई पवित्र कार्य नहीं किया।
 त्यज दुर्जनसंसर्गं भज साधुसमागमम् ।
कुरु पुण्यमहोरात्रं स्मर नित्यमनित्यताम् ।।
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‘हे प्राणी ! तुम दुष्टों का साथ छोड़कर अच्छे-भले ज्ञानी , धर्मपरायण लोगों के साथ रहो। रात-दिन अच्छे-भले काम करो। यह मत भूलो कि यह संसार नाशवान है।यह नश्वर शरीर कब साथ छोड़ दे मालूम नही इस लिये राष्ट्रभक्तों, संतो, धर्मपारायण,कर्मशील की संगति करो ओर ईश्वर को याद रखो।  

                          
 *कामधेनुगुना विद्या ह्यकाले फलदायिनी।*
*प्रवासे मातृसदृशी विद्या गुप्तं धनं स्मृतम्॥*
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Learning is like a cow of desire. It, like her, yields in all seasons. Like a mother, it feeds you on your journey, therefore learning is a hidden treasure.
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विद्या अर्जन करना यह एक कामधेनु के समान है जो हर मौसम में अमृत प्रदान करती है। वह विदेश में माता के समान रक्षक अवं हितकारी होती है। इसीलिए विद्या को एक गुप्त धन कहा जाता है।


 *यदन्येषां हितं न स्यात्*
          *आत्मनः कर्म पौरुषम् ।*
*अपत्रपेत वा येन*
          *न तत्कुर्यात् कथञ्चन ।।*
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भावार्थ -- *अपना जो भी कर्म या पुरुषार्थ दूसरों के लिए हितकर न हो अथवा जिस काम को करके समाज में लज्जित होना पड़े, वह काम कभी नहीं करना चाहिए।*


 *संतोषस्त्रिषु कर्तव्यः स्वदारे भोजने धने।*
*त्रिषु चैव न कर्तव्योऽध्ययने जपदानयोः॥*
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One should be satisfied with one’s wife (spouse), food, and money. One should never be satisfied with one’s study, chanting, and charity.
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अपनी पत्नी , भोजन और धन से संतुष्ट होना चाहिये, अपने अध्ययन, जप और दान से नहीं।


 विद्या त्वमेव ननु बुद्धिमतां नराणां शक्तिस्त्वमेव किल शक्तिमतां सदैव।
त्वं कीर्तिकान्तिकमलामलतुष्टिरूपा मुक्तिप्रदा विरतिरेव मनुष्यलोके।। 
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हे मा अंबे! आप निश्चय ही सदा से बुद्धिमान् पुरुषों की विद्या तथा शक्तिशाली पुरुषों की शक्ति हैं। 
आप कीर्ति, कान्ति, लक्ष्मी तथा निर्मल तुष्टिस्वरूपा हैं और इस मनुष्य लोक में आप ही मोक्ष प्रदान करने वाली विरक्तिस्वरूपा हैं।

 *नरस्याभरणं रूपं रूपस्याभरणं गुणः।*
*गुणस्याभरणं ज्ञानं ज्ञानस्याभरणं क्षमा॥*
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मनुष्य का आभूषण रूप, रूप का आभूषण गुण, गुणों का आभूषण ज्ञान और ज्ञान का आभूषण क्षमा है॥
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Ornament of a man is beauty, ornament of beauty is virtue, ornament of virtues is knowledge and the ornament of knowledge is forgiveness.


 *य ईर्षुः परवित्तेषु*
*रुपे वीर्ये कुलान्वये।* 
*सुखसौभाग्यसत्कारे*
*तस्य व्याधिरनन्तकः॥*
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💹  जो व्यक्ति दूसरों की धन - सम्पति, सौंदर्य, पराक्रम, उच्च कुल, सुख, सौभाग्य और सम्मान से ईर्ष्या व द्वेष करता है वह असाध्य रोगी है। उसका यह रोग कभी नहीं मिटने वाला ।।


 उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः !
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः !!
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Translation: Any work in this world is not completed by mere thinking but only by hard work. Never, a deer himself comes in the mouth of a sleeping lion.
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अर्थ : दुनिया में कोई भी काम सिर्फ सोचने से पूरा नहीं होता बल्कि कठिन परिश्रम से पूरा होता है. कभी भी सोते हुए शेर के मुँह में हिरण खुद नहीं आता।
 *सुखं हि दुःखान्यनुभूय शोभते यथान्धकारादिव दीपदर्शनम्।*
*सुखात्तु यो याति दशां दरिद्रतां धृतः शरीरेण मृतः स जीवति॥*
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दुःख का अनुभव करने के बाद ही सुख का अनुभव शोभा देता है जैसे कि घने अँधेरे से निकलने के बाद दीपक का दर्शन अच्छा लगता है॥ सुख से रहने के बाद जो मनुष्य दरिद्र हो जाता है, वह शरीर रख कर भी मृतक जैसे ही जीवित रहता है॥
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Only after experiencing miseries, one can appreciate happiness, just as the sight of a lamp after experiencing thick darkness gives joy. One who experiences penury after luxury, lives as a dead man.


 *सा भार्या या प्रियं बू्रते स पुत्रो यत्र निवॄति:।*
*तन्मित्रं यत्र विश्वास: स देशो यत्र जीव्यते॥*
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जो मिठी वाणी में बोले वही अच्छी पत्नी है, जिससे सुख तथा समाधान प्रााप्त होता है वही वास्तवीक में पुत्र है, जिस पर हम बीना झीझके संपूर्ण विश्वास कर सकते है वही अपना सच्चा मित्र है तथा जहा पर हम काम करके अपना पेट भर सकते है वही अपना देश है।
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The one who speaks in a sweet voice is a good wife, from whom happiness and solution are obtained, he is the son in reality, on whom we can trust completely without hesitation, he is our true friend and where we can work and fill our stomach. Its own country.


*मूर्खस्य पञ्च चिन्हानि गर्वो दुर्वचनं तथा।*
*क्रोधश्च दृढवादश्च परवाक्येष्वनादरः॥*
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मूर्खों के पाँच लक्षण हैं - गर्व, अपशब्द, क्रोध, हठ और दूसरों की बातों का अनादर॥
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The five characteristics of fools are pride, slander, anger, stubbornness and disrespect for what others say.



 *शत्रौ मित्रे पुत्रे बन्धौ, मा कुरु यत्नं विग्रहसन्धौ।*
*सर्वस्मिन्नपि पश्यात्मानं, सर्वत्रोत्सृज भेदाज्ञानम्॥*
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शत्रु, मित्र, पुत्र, बन्धु-बांधवों से प्रेम और द्वेष मत करो, सबमें अपने आप को ही देखो, इस प्रकार सर्वत्र ही भेद रूपी अज्ञान को त्याग दो॥
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Try not to win the love of your friends, brothers, relatives and son(s) or to fight with your enemies. See yourself in everyone and give up ignorance of duality everywhere.
 *केयूरा न विभूषयन्ति पुरुषं हारा न चन्द्रोज्ज्वलाः न स्नानं न विलोपनं न कुसुमं नालङ्कृता मूर्धजाः।*
*वाण्येका समलङ्करोति पुरुषं या संस्कृता र्धायते क्षीयन्ते खलु भूषणानि सततं वाग्भूषणं भूषणम्॥*
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बाजुबंद मनुष्य को शोभित नहीं करते और न ही चन्द्रमा के समान उज्ज्वल हार, न स्नान, न चन्दन, न फूल और न सजे हुए केश ही शोभा बढ़ाते हैं । केवल सुसंस्कृत प्रकार से धारण की हुई एक वाणी ही उसकी सुन्दर प्रकार से शोभा बढ़ाती है । साधारण आभूषण नष्ट हो जाते हैं, वाणी ही सनातन आभूषण है ॥*
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Bracelets do not adorn a human, nor do necklaces which shine like the moon. Neither a bath, nor an ointment, nor flowers and nor decorated hair adorn them. It is cultured speech alone which properly embellishes a man. All other ornaments lose their glitter, only the jewel of speech ever remains.


 *न अन्नोदकसमं दानं, न तिथि द्वादशीसमा।*
*न गायत्र्याः परो मन्त्रो, न मातु: परदैवतम्॥*
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अन्न और जल के समान दान नहीं है, द्वादशी से समान तिथि नहीं है, गायत्री से बड़ा मंत्र नहीं है और माता से बड़ा देवता नहीं है ॥
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Giving food and water is the highest charity, twelfth moon day is the most auspicious date, 'Gayatri Mantra' is the best among the 'Mantras' and mother is the highest God.
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 *यस्य भार्या गॄहे नास्ति साध्वी च प्रिायवादिनी।*
*अरण्यं तेन गन्तव्यं यथाऽरण्यं तथा गॄहम्॥*
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जिस घर में गॄहिणी साध्वी प्रावॄत्ती की न हो तथा मॄदु भाषी न हो ऐसे घर के गॄहस्त ने घर छोड कर वन में जाना चाहिए क्यों की उसके घर में तथा वन में कोइ अंतर नही है!
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In a house where the housewife is not of Sadhvi Pravati and is not soft-spoken, the housekeeper of such a house should leave the house and go to the forest because there is no difference between his house and the forest!

 *सत्यस्य वचनं श्रेयः सत्यादपि हितं वदेत्।*
*यद्भूतहितमत्यन्तं एतत् सत्यं मतं मम्।।*
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यद्यपि सत्य वचन बोलना श्रेयस्कर है तथापि उस सत्य को ही बोलना चाहिए जिससे सर्वजन का कल्याण हो। मेरे (अर्थात् श्लोककर्ता नारद के) विचार से तो जो बात सभी का कल्याण करती है वही सत्य है।
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Although it is preferable to speak the truth, yet only that truth should be spoken which will benefit all. According to my (ie Narada's) opinion, whatever does good for all is the truth.


 *सुभाषित: सर्वं परवशं दु:खं सर्वमात्मवशं सुखम्।*
*एतद्विद्यात् समासेन लक्षणं सुखदु:खयो:।।*
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दुसरोंपे निर्भर रहना सर्वथा दुखका कारण होता है। आत्मनिर्भर होना सर्वथा सुखका कारण होता है। सारांश, सुख–दु:ख के ये कारण ध्यान मे रखें।
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Being dependent on others is the cause of all suffering. Being self-reliant is the cause of all happiness. Summary, keep these reasons for happiness and sorrow in mind.
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 *सुभाषित: सर्वं परवशं दु:खं सर्वमात्मवशं सुखम्।*
*एतद्विद्यात् समासेन लक्षणं सुखदु:खयो:।।*
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दुसरोंपे निर्भर रहना सर्वथा दुखका कारण होता है। आत्मनिर्भर होना सर्वथा सुखका कारण होता है। सारांश, सुख–दु:ख के ये कारण ध्यान मे रखें।
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Being dependent on others is the cause of all suffering. Being self-reliant is the cause of all happiness. Summary, keep these reasons for happiness and sorrow in mind.
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 *सर्वशास्त्रमयी गीता सर्वदेवमयो हरिः।*
*सर्वतीर्थमयी गंगा सर्ववेदमयो मनुः ॥*
🎋🌸🎋🌸🎋🌸🎋🌸🎋🌸
गीता सर्वशास्त्रमयी है (गीतामें सब शास्त्रोंके सार-तत्त्वका समावेश है)। भगवान् श्रीहरि सर्वदेवमय हैं। गंगा सर्वतीर्थमयी हैं और मनु (उनका धर्मशास्त्र) सर्ववेदमय हैं॥
🎍🔱 *महाभारत, भीष्मपर्व*🎍🔱
The Gita is sarvashastramayi (the Gita contains the essence of all the scriptures). Lord Srihari is omnipresent. Ganga is omnipresent and Manu (his theology) is omnipresent.
 *अज्ञः सुखमाराध्यः सुखतरमाराध्यते विशेषज्ञः।*
*ज्ञानलवदुर्विदग्धं ब्रह्मापि नरं न रञ्जयति॥*
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एक मुर्ख व्यक्ति को समझाना आसान है, एक बुद्धिमान व्यक्ति को समझाना उससे भी आसान है, लेकिन एक अधूरे ज्ञान से भरे व्यक्ति को भगवान ब्रम्हा भी नहीं समझा सकते, क्यूंकि अधूरा ज्ञान मनुष्य को घमंडी और तर्क के प्रति अँधा बना देता है।
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An ignorant man can be easily convinced, a wise man can still more easily be convinced: but even Lord Brahma cannot please him who is puffed up with a little knowledge because half knowledge makes a man very proud and blind to logic



 *व्यालं बालमृणालतन्तुभिरसौ रोद्धुं समुज्जृम्भते छेत्तुं वज्रमणीञ्छिरीषकुसुमप्रान्तेन सन्नह्यते।*

*माधुर्यं मधुबिन्दुना रचयितुं क्षाराम्बुधेरीहते नेतुं वाञ्छति यः खलान्पथि सतां सूक्तैः सुधास्यन्दिभिः॥*
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अपनी शिक्षाप्रद मीठी बातों से दुस्ट पुरुषों को सन्मार्ग पर लाने का प्रयास करना उसी प्रकार है जैसे एक मतवाले हाथी को कमल कि पंखुड़ियों से बस मे करना, या फ़िर हीरे को शिरीशा फूल से काटना अथवा खारे पानी से भरे समुद्र को एक बूंद शहद से मीठा कर देना। अर्थात ये शक्य नहीं ।।
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He who wishes to lead the wicked fool into the path of the virtuous by sweet persuasive language is like one who endeavors to curb a maddened elephant by means of tender lotus filaments, like one who tries to cut the diamond with the edge of the Shirisha flower, or like one who hopes to sweeten the salt waters of the ocean by means of a drop of honey. Its impossible. 

 *प्रहस्य मणिमुद्धरेन्मकरवक्रदंष्ट्रान्तरात् समुद्रमपि सन्तरेत्प्रचलदूर्मिमालाकुलम् ।*
*भुजङ्गमपि कोपितं शिरसि पुष्पवद्धारये न्न तु प्रतिनिविष्टमूर्खजनचित्तमाराधयेत्।।*
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अगर हम चाहें तो मगरमच्छ के दांतों में फसे मोती को भी निकाल सकते हैं, साहस के बल पर हम बड़ी-बड़ी लहरों वाले समुद्र को भी पार कर सकते हैं, यहाँ तक कि हम  गुस्सैल सर्प को भी फूलों की माला तरह अपने गले में पहन सकते हैं लेकिन एक मुर्ख को सही बात समझाना असम्भव है।
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With courage, we could extract the pearl stuck in between crooked teeth of a crocodile. We could sail across an ocean that is tormented by huge waves. We may even be able to wear an angry snake on our head as if it were a flower. However it is impossible to satisfy an obstinate fool.

 *आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्शो महारिपुः।*
*नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कुर्वाणो नावसीदति॥*
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आलस ही आदमी की देह का सबसे बड़ा दुश्मन होता है और परिश्रम सबसे बड़ा दोस्त. परिश्रम करने वाले का कभी नाश या नुकसान नहीं होता.
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Laziness is the biggest enemy of man's body and hard work is the biggest friend. The laborer is never destroyed or harmed.

 *आदित्यस्य गतागतैरहरहः* 
*संक्षीयते जीवितम्*
*व्यापारै र्बहुकार्य भारगुरुभिः* 
*कालो न विज्ञायते ।* 
*दृष्ट्वा जन्म जरा विपत्ति मरणं* 
*त्रासश्च नोत्पद्यते* 
*पीत्वा मोहमयीं प्रमाद मदिरा* 
*मुन्मत्त भूतं जगत् ।।*
🌾🌸🌾🌸🌾🌸🌾🌸🌾🌸
सूर्य के उदय और अस्त के साथ मनुष्यों की ज़िन्दगी रोज़ घटती जाती है । समय भागा जाता है, पर कारोबार में मशगूल रहने के कारण वह भागता हुआ नहीं दीखता । लोगों को पैदा होते, बूढ़े होते, विपत्ति ग्रसित होते और मरते देखकर भी उनमें भय नहीं होता । इससे मालूम होता है  कि मोहमाया, प्रमादरूपी मदिरा के नशे में संसार मतवाला हो रहा है।।🙏

 *प्रथमं सुखं स्वस्थं शरीरम्,*
             *द्वितीयं  सुखं  पवित्रं धनम् ।*
*तृतीयं सुखं शास्त्राणां पठनम्,*
           *चतर्थं सुखं ईश्वरस्य चिन्तनम् ll*
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भावार्थ - *मनुष्य जीवन में पहला सुख स्वस्थ शरीर, दूसरा सुख पवित्र धन, तीसरा सुख पवित्र ग्रन्थ पढ़ना और चौथा प्रमुख सुख ईश्वर का स्मरण, ध्यान और चिन्तन करना l*

 *साहित्यसङ्गीतकलाविहीनः साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीनः।*
*तृणं न खादन्नपि जीवमानस्तद्भागधेयं परमं पशूनाम्॥*
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साहित्य, संगीत और कला से विहीन मनुष्य साक्षात नाख़ून और सींघ रहित पशु के समान है। और ये पशुओं की खुद्किस्मती है की वो उनकी तरह घास नहीं खाता।
🌾🍁🌾🍁🌾🍁🌾🍁🌾🍁
A person destitute of literature, music or the arts is as good as an animal without a trail or horns. It is the good fortunes of the animals that he doesn't eat grass like them.

 *अम्भोजिनीवनवासविलासमेव, हंसस्य हन्ति नितरां कुपितो विधाता।*
*न त्वस्य दुग्धजलभेदविधौ प्रसिद्धां, वैदग्ध्यकीर्तिमपहर्तुमसौ समर्थः॥*
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हंस पर अत्यंत क्रोधित भगवान ब्रम्हा उसे झील के किनारे कमल के फूलों पर सोने से तो रोक सकते हैं लेकिन वे भी हंस से उसकी दूध से दूध और पानी को अलग कर देने की क्षमता या कला को नहीं छीन सकते।  
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Highly irritated God Bramha can destroy for the swan the enjoyment of residing in beds of lotuses, but he can not deprive him of his fame about the natural skill of separating milk from water.
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*दाक्षिण्यं स्वजने, दया परजने, शाट्यं सदा दुर्जने प्रीतिः साधुजने, नयो नृपजने, विद्वज्जनेऽप्यार्जवम्।*
*शौर्यं शत्रुजने, क्षमा गुरुजने,* *नारीजने धूर्तता ये चैवं पुरुषाः* *कलासु कुशलास्तेष्वेव* *लोकस्थितिः॥*
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अपनों के प्रति कर्त्तव्य परायणता और दायित्व का निर्वाह करना, अपरिचितों के प्रति दयालुता का भाव रखना, दुष्टों से सदा सावधानी बरतना, अच्छे लोगों के साथ अच्छाई से पेश आना,  राजाओं से व्यव्हार कुशलता से पेश आना, विद्वानों के साथ सच्चाई से पेश आना, शत्रुओं से बहादुरी से पेश आना, गुरुजनों से नम्रता से पेश आना, महिलाओं के साथ के साथ समझदारी से पेश आना ; इन गुणों या ऐसे गुणों में माहिर लोगों पर ही सामाजिक प्रतिष्ठा निर्भर करती है।
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 *पादाभ्यां न स्पृशेदग्निं,*
      *गुरुं ब्राह्मणमेव च l*
*नैव गां न कुमारीं च,*
    *न वृद्धं न शिशुं तथा ll*
☘️🌷☘️🌷☘️🌷☘️🌷☘️🌷
*भावार्थ :*
*इन सात को कभी पैर नहीं लगना चाहिए। इन्हें पैर से छूने का अर्थ इनका अपमान करना है जिससे घोर पाप लगता है।* 
*ये सात हैं- अग्नि, गुरु, ब्राह्मण, गाय, कुमारी कन्या, वृद्ध तथा अबोध बालक।*

: *प्रलये भिन्नमर्यादा भवन्ति किल* *सागराः ।*
*सागरा भेदमिच्छन्ति प्रलयेऽपि* *न साधवः ।।*
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          समुद्र भी प्रलय की स्थिति में अपनी मर्यादा का उल्लंघन कर देते हैं और किनारों को लांघकर सारे प्रदेश में फैल जाते हैं । परंतु सज्जन व्यक्ति प्रलय के समान भयंकर विपत्ति और कष्ट आने पर भी अपनी सीमा में ही रहते हैं, अपनी मर्यादा नहीं छोड़ते ।।
🙏
 *सूनुः सच्चरितः सती प्रियतमा स्वामी प्रसादोन्मुखः स्निग्धं मित्रमवञ्चकः परिजनो निःक्लेशलेशं मनः।*
*आकारो रुचिरः स्थिरश्च विभवो विद्यावदातं मुखं तुष्टे विष्टपकष्टहारिणि हरौ सम्प्राप्यते देहिना॥*
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सदाचारी पुत्र, पतिव्रता पत्नी, प्रसन्नचित्त और हितैषी मालिक, प्रेम और मदद करने वाले मित्र, निष्कपट सेवक, क्लेशरहित मन, सुन्दर काया, स्थिर धन, ज्ञान से सुशोभुत मुख, ये सब सर्वश्रेष्ठ फल उस मनवांछित फल देनेवाले दुखहर्ता भगवान् विष्णु के अनुग्रह के बिना किसी भी मनुष्य को प्राप्त नहीं हो सकती।
🌿🪴 
 *यज्ञोऽनृतेन क्षरति तपः क्षरति विस्मयात्।*
*आयुर्विप्रापवादेन दानं च* *परिकीर्तनात् ।।*
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भावार्थः - असत्य से यज्ञ नष्ट हो जाता है। विस्मय अर्थात् अहङ्कार से तप क्षीण हो जाता है। विप्र को दुर्वचन कहने से आयु नष्ट हो जाती है। और कहते रहने से दान का फल नष्ट हो जाता है।
: *यदा न कुरूते भावं सर्वभूतेष्वमंगलम्।* 
*समदृष्टेस्तदा पुंसः सर्वाः सुखमया दिश:।।* 
🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼
*जो मनुष्य किसी भी जीव के प्रति अमंगल भावना नहीं रखता, जो मनुष्य सभी की ओर सम्यक् दृष्टी (समान) से देखता है, ऐसे मनुष्य को सब ओर सुख ही सुख है।* 

 *नीर क्षीर विवेके हंस आलस्यम् त्वम् एव तनुषे चेत्।*
*विश्वस्मिन् अधुना अन्य: कुलव्रतं पालयिष्यति क:॥*
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अरे हंस यदि तुम ही पानी तथा दूध भिन्न करना छोड दोगे तो दूसरा कौन तुम्हारा यह कुलव्रत का पालन कर सकता है ? यदि बुद्धि वान् तथा कुशल मनुष्य ही अपना कर्तव्य करना छोड दे तो दूसरा कौन वह काम कर सकता है ?
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Oh swan, if you yourself stop separating water and milk, then who else can follow this fasting of yours? If only a wise and skilled person stops doing his duty, then who else can do that work?

 *कुसुमस्तवकस्येव द्वयी वृत्तिर्मनस्विनः ।*
*मूर्ध्नि वा सर्वलोकस्य शीर्यते वन एव वा॥*
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फूलों के गुच्छे की तरह ही विचारशील मनुष्यों की स्थिति भी इस संसार में केवल दो ही प्रकार की होती है, अर्थात या तो वे सर्वसाधारण के प्रतिनिधि या शिरोमणि ही बनते हैं या फिर वन में ही जीवन व्यतीत(सड़ जाते) कर देते हैं।
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The position of the high-minded is two fold as in the set  of a bunch of flowers, either to be on the head of the people, or wither away in a forest.

 चलं वित्तं चलं चित्तं चले जीवितयौवने ।
चलाचलमिदं सर्वं कीर्तिर्यस्य स जीवति ॥                                                                        🌸🌻🌸🌻🌸🌻🌸                      
वित्त, चित्त, जीवन और युवानी - ये सभी चंचल हैं; पर जिसकी कीर्ति है, उसीको जीया कहते हैं ।                                   
 *परिवर्तिनि संसारे मृतः को वा न जायते।*
*स जातो येन जातेन याति वंशः समुन्नतिम् ॥*
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इस भ्रमणशील व् अस्थिर संसार में ऐसा कौन है जिसका जन्म और मृत्यु न हुआ हो ? लेकिन यथार्थ में जन्म लेना उसी मनुष्य का सफल है जिसके जन्म से उसके वंश के गौरव की वृद्धि हो।

 *नमो नमस्तेस्तु सदा विभावसो, सर्वात्मने सप्तहयाय भानवे।* 
*अनंतशक्तिर्मणि भूषणेन, वदस्व भक्तिं मम मुक्तिमव्ययाम्।।* 
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*तिल हम हैं और गुड आप,*
*मिठाई हम हैं और मिठास आप*
*तन में मस्ती, मन में उमंग,*
*चलो आकाश में डाले रंग*
*उड़ाए सब मिलके पतंग।*
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*मकरसंक्राति की आपको व आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनायें।

*भोगे रोगभयं कुले च्युतिभयं वित्ते नृपालाद्भयं,*
*मौने दैन्यभयं बले रिपुभयं रूपे जरायाभयम।*
*शास्त्रे वादभयं गुणे खलभयं काये कृतान्ताद्भयं,*
*सर्वं वस्तु भयान्वितं भुवि नृणां वैराग्यमेवाभयम।।*
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भावार्थ---भोगों में रोगों का भय, उच्च कुल मे जन्म होने पर अपयश का भय, अधिक धन होने पर राजा का भय, मौन रहने पर दैन्य का भय, बलशाली होने पर शत्रुओं का भय, रूपवान होने पर वृद्धावस्था का भय, शास्त्र मे पारङ्गत होने पर वाद-विवाद का भय, गुणी होने पर दुर्जनों का भय, अच्छा शरीर होने पर यम का भय। इस संसार मे सभी वस्तुएं भययुक्त हैं, मात्र वैराग्य ही अभयता देता है 


*य ईर्षुः परवित्तेषु*
*रुपे वीर्ये कुलान्वये।* 
*सुखसौभाग्यसत्कारे*
*तस्य व्याधिरनन्तकः॥*
🙏🍁🙏🍁🙏🍁🙏🍁🙏
💹  जो व्यक्ति दूसरों की धन - सम्पति, सौंदर्य, पराक्रम, उच्च कुल, सुख, सौभाग्य और सम्मान से ईर्ष्या व द्वेष करता है वह असाध्य रोगी है। उसका यह रोग कभी नहीं मिटने वाला ।।

 *पञ्चेन्द्रियस्य मर्त्यस्य छिद्रं चेदेकमिन्द्रियम् ।
ततोऽस्य* *स्रवति प्रज्ञा दृतेः पात्रादिवोदकम् ।।*
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         मनुष्य की पाँचों इंद्रियों में यदि एक में भी दोष उत्पन्न हो जाता हैं , तो उससे उस मनुष्य की बुद्धि उसी प्रकार बाहर निकल जाती हैं , जैसे मशक ( जल भरने वाली चमड़े की थैली ) के छिद्र से पानी बाहर निकल जाता हैं ।।
‌: *न हि ज्ञानसमं लोके पवित्रं चान्यसाधनं।*
*विज्ञानं सर्वलोकानामु-त्कर्षाय स्मृतं खलु॥*
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इस लोक में ज्ञान के समान पवित्र दूसरा कोई साधन नहीं है, शास्त्रों में विज्ञान को समस्त लोकों की प्रगति के लिए निश्चित किया गया है॥*
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There is nothing more sacred than knowledge in this world. In scriptures, science is considered fundamental to progress of this world.

: *वॄत्तं यत्नेन संरक्ष्येद् वित्तमेति च याति च।*
*अक्षीणो वित्तत: क्षीणो वॄत्ततस्तु हतो हत:॥*
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चरित्र की प्रयत्न पूर्वक रक्षा करनी चाहिए, धन तो आता-जाता रहता है। धन के नष्ट हो जाने से व्यक्ति नष्ट नहीं होता पर चरित्र के नष्ट हो जाने से वह मरे हुए  के  समान है॥
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We should guard our character attentively; money can come and go. If money is lost, nothing is lost but if character is lost, everything is lost.


*ते पुत्रा ये पितुर्भक्ताः स पिता यस्तु पोषकः ।*
*तन्मित्रं यत्र विश्वासः सा भार्या यत्र निर्वृतिः॥*
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*भावार्थ:*
पुत्र वही है जो पिता का कहना मानता हो, पिता वही है जो पुत्रों का पालन-पोषण करे, मित्र वही है जिस पर आप विश्वास कर सकते हों और पत्नी वही है जिससे सुख प्राप्त हो।

*सम्पत् सरस्वती सत्यं सन्तानं सदनुग्रहः।*
*सत्ता सुकृतसम्भारः सकाराः सप्त दुर्लभाः।।*
🌷🪴🌷🪴🌷🪴🌷🪴🌷
इस संसार में स-अक्षर से प्रारम्भ होने वाली सात वस्तुएँ दुर्लभ हैं । १. सम्पत्ति २. सरस्वती अर्थात् विद्या ३. सत्य ४. सन्तान की प्राप्ति ५. सत्पुरुषों की कृपा ६. सत्ता अर्थात् किसी प्राशासनिक पद की प्राप्ति और ७. सत्कर्मों का संग्रह ।

 *गुणो भूषयते रूपं शीलं भूषयते कुलम् ।*
*सिद्धिर्भूषयते विद्यां भोगो भूषयते धनम्।।*

व्यक्ति का गुण उसके स्वरूप को अलङ्कृत करता है । अच्छे सदाचरण से उसके कुल की शोभा होती है । उसके कार्य की निपुणता ही विद्या की शोभा बढ़ाती है, और समुचित उपभोग करने से धन की शोभा बढ़ती है।

 *आदित्यस्य गतागतैरहरहः* 
*संक्षीयते जीवितम्* 
*व्यापारै र्बहुकार्य* *भारगुरुभिः* 
*कालो न विज्ञायते।* 
*दृष्ट्वा जन्म जरा विपत्ति मरणं* 
*त्रासश्च नोत्पद्यते* 
*पीत्वा मोहमयीं प्रमाद मदिरा* 
*मुन्मत्त भूतं जगत्।।* 
💐🌾💐🌾💐🌾💐🌾💐
*सूर्य के उदय और अस्त के साथ मनुष्यों की ज़िन्दगी रोज़ घटती जाती है। समय भागा जाता है, पर कारोबार में मशगूल रहने के कारण वह भागता हुआ नहीं दीखता। लोगों को पैदा होते, बूढ़े होते, विपत्ति ग्रसित होते और मरते देखकर भी उनमें भय नहीं होता। इससे मालूम होता है  कि मोहमाया, प्रमादरूपी मदिरा के नशे में संसार मतवाला हो रहा है।।*




 *जलबिन्दुनिपातेन क्रमशः पूर्यते घटः।*
*स हेतुः सर्वविद्यानां धर्मस्य च धनस्य च।।*
💐🍂💐🍂💐🍂💐🍂💐
जैसे पानी की एक-एक बूँद से घड़ा भर जाता है, उसी प्रकार सभी विद्यायें भी निरन्तर पढ़ते रहने से प्राप्त हो जाती हैं। और वैसे ही मनुष्य थोड़ा-थोड़ा धन एकत्रित कर के धनवान् बन जाता है।
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 *यतः सत्यं यतो धर्मो,*
           *यतो ह्रीरार्जवं यतः l*
*ततो भवति गोविन्दो,*
            *यतः कृष्णस्ततो जय: ll*
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भावार्थ -- *जहाँ सत्य, धर्म, लज्जा और सरलता है वहीं भगवान् श्रीकृष्ण रहते हैं और जहाँ श्रीकृष्ण रहते हैं वहीं जय-विजय होती है ।*

 *क्षणशः कणशश्चैव विद्यामर्थं च साधयेत्।*
*क्षणत्यागे कुतो विद्या कणत्यागे कुतो धनम्॥*
🍁🌴🍁🌴🍁🌴🍁🌴🍁
प्रत्येक क्षण विद्या का अभ्यास करना चाहिए। और एक-एक कण का व्यय न करते हुए धन का सङ्ग्रह करना चाहिए। क्योंकि क्षण के त्याग से विद्या प्राप्त नहीं हो सकती और कण के त्याग से अर्थ (धन) का संग्रह नही हो सकता ।


 *जलबिन्दुनिपातेन क्रमशः पूर्यते घटः।*
*स हेतुः सर्वविद्यानां धर्मस्य च धनस्य च।।*
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जैसे पानी की एक-एक बूँद से घड़ा भर जाता है, उसी प्रकार सभी विद्यायें भी निरन्तर पढ़ते रहने से प्राप्त हो जाती हैं। और वैसे ही मनुष्य थोड़ा-थोड़ा धन एकत्रित कर के धनवान् बन जाता है।


 *सतां हि दर्शनं पुण्यं* 
       *तीर्थभूताश्च सज्जना:।* 
*कालेन फलते तीर्थं* 
       *सद्य: सज्जन सङ्गति:।।* 
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*अर्थात* 
*सज्जनों के दर्शन से पुण्य होता है। सज्जन जीवित तीर्थ है। तीर्थ तो समय आने पर ही फल देता है लेकिन सज्जनों का साथ तो तुरंत फलदाई होता है।*



विद्या त्वमेव ननु बुद्धिमतां नराणां शक्तिस्त्वमेव किल शक्तिमतां सदैव।
त्वं कीर्तिकान्तिकमलामलतुष्टिरूपा मुक्तिप्रदा विरतिरेव मनुष्यलोके।। 
🌺🌷🌺🌷🌺🌷🌺🌷🌺
हे मा सरस्वती! आप निश्चय ही सदा से बुद्धिमान् पुरुषों की विद्या तथा शक्तिशाली पुरुषों की शक्ति हैं। 
आप कीर्ति, कान्ति, लक्ष्मी तथा निर्मल तुष्टिस्वरूपा हैं और इस मनुष्य लोक में आप ही मोक्ष प्रदान करने वाली विरक्तिस्वरूपा हैं।
 *#शिवरूद्राष्टकम*

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*प्रचण्डं प्रकृष्टम प्रगल्भं परेशं*
*अखण्डं अजं  भानुकोटिप्रकाशम् ।*
*त्रयःशूल निर्मूलनं शूलपाणिं*
*भजेऽहम भवानीपतिं भावगम्यम् ।*

*#भावार्थ:*

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*प्रचंड (रुद्ररूप), श्रेष्ठ, तेजस्वी, परमेश्वर, अखंड, अजन्मा, करोड़ों सूर्यों के सामान प्रकाश वाल, तीनों प्रकार के शूलों ( दुःखों ) का निर्मूलन ( निवारण ) करने वाले, हाथ में त्रिशूल धारण किये, भाव ( प्रेम ) के द्वारा प्राप्त होने वाले भवानी (माँ पार्वती ) के पति श्री शंकर जी को मैं भजता हूँ ।।*


 *स्वभावं नैव मुंचन्ति संत: संसर्गतोSसताम्*
*न त्यजन्ति रूतं मंजु काक संपर्कत: पिका:*
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*भावार्थ:* -  જેવી રીતના મધુર કંઠવાળી કોયલ કાગડાઓ ના સંપર્કમાં આવવાથી પોતાના મધુર ગાન ને છોડતી નથી તેવીજ રીતે દુર્જનો ના સંપર્કમાં આવવાથી સજજનો પણ પોતાનું સત્ એટલે કે સજ્જનતા ગુમાવતા નથી।

*येन शुक्लीकृता हंसाः शुकाश्च हरितीकृताः।*
*मयूराश्चित्रिता येन स ते वृत्तिं विधास्यति।।*
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जिस प्रकार ईश्वर ने हंसों को श्वेतवर्ण से युक्त शुकों अर्थात् तोतों को हरितवर्ण से युक्त और मोरों को विविधवर्णों से युक्त बनाया । उसी प्रकार वह ईश्वर तुम्हारी जीविका का भी प्रबन्ध करेगा।

 *सत्यानुसारिणी लक्ष्मीः कीर्तिस्त्यागानुसारिणी।*
*अभ्याससारिणी विद्या बुद्धिः कर्मानुसारिणी॥*
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लक्ष्मी सत्य का अनुसरण करती हैं, कीर्ति त्याग का अनुसरण करती है, विद्या अभ्यास का अनुसरण करती है और बुद्धि कर्म का अनुसरण करती है॥
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Lakshmi Goddess of money follows truth, fame follows renunciation, knowledge follows practice and mind follows actions.

*धॄति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह:।*
*धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्॥*
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धर्म के दस लक्षण हैं - धैर्य, क्षमा, आत्म-नियंत्रण, चोरी न करना, पवित्रता, इन्द्रिय-संयम, बुद्धि, विद्या, सत्य और क्रोध न करना॥


 *क्षमातुल्यं तपो नास्ति न सन्तोषात्परं सुखम्।*
*न तृष्णायाः परो व्याधिर्न च धर्मो दयापरः।।*
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इस संसार में क्षमा के समान कोई तप नहीं है। सन्तोष से बढ़कर कोई सुख नहीं है। तृष्णा के समान कोई रोग नहीं है। और दया से परे कोई धर्म नहीं है।
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There is no penance in this world like forgiveness. There is no greater happiness than contentment. There is no disease like craving. And there is no religion beyond mercy.


  


 *सुवर्णपुष्पितां पृथ्वीं विचिन्वन्ति त्रयो जनाः।*
*शूरश्च कृतविद्यश्च यश्च जानाति सेवितुम्॥*
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पराक्रमी, विद्वान् और सेवा को अच्छी तरह जानने वाला - ये तीन लोग ही सुवर्णपुष्पित पृथिवी का उपभोग कर सकते हैं।
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Mighty, learned and well-versed in service - only these three people can consume the golden flowered earth. 

 *अन्तो नास्ति पिपासायाः संतोषः परमं सुखम्।*
*तस्मात् संतोषमेवेह परं पश्यन्ति पण्डिताः।।*
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पिपासा का अर्थ है लोभ रूपी तृष्णा। वह लोभ रूपी तृष्णा धन से उत्पन्न होती है। उसका अन्त कभी भी नहीं होता है। जो धन का लोभी नहीं है वह सदा संतुष्ट रहता है और आनन्द से जीवन यापन करता है। इसलिए विद्वानों के द्वारा संतोष को सबसे बड़ा सुख बताया गया है।
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 *लक्ष्मीर्वसति जिह्वाग्रे जिह्वाग्रे मित्रशत्रव: ।*
*जिह्वाग्रे बन्धमोक्षौ च जिह्वाग्रे मरणं ध्रुवम् ।।*
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          जिह्वा के अग्र भाग पर लक्ष्मी बसती है। मित्र और शत्रु भी वही बसते है । बन्धन और  मोक्ष भी जिह्वा के अग्र भाग में ही बसते है और ये भी नक्की है की मृत्यु भी जिह्वा पर बसती है, अर्थात जिह्वा का उपयोग बहुत  सोच समझकर करना चाहिये ।।

 *जले तैलं खले गुह्यं पात्रे दानं मनागपि।*
*प्राज्ञे शास्त्रं स्वयं याति विस्तारं वस्तुशक्तितः।।*
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पानी में तेल, दुर्जन में रहस्य, सत्पात्र व्यक्ति को दिया हुआ थोड़ा सा भी दान और बुद्धिमान् पुरुष में वेद-शास्त्र-आदि विद्याएँ स्वयं ही फैलती हैं|
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Oil in water, secret in the wicked, even a small donation given to a deserving person and the Vedas-Shastras-etc.
 *संस्कृतवल्लरी*

        🙏
*मंगल सुप्रभात*

*स्वभावं नैव मुंचन्ति संत: संसर्गतोSसताम्*
*न त्यजन्ति रूतं मंजु काक संपर्कत: पिका:*

*भावार्थ:* -  જેવી રીતના મધુર કંઠવાળી કોયલ કાગડાઓ ના સંપર્કમાં આવવાથી પોતાના મધુર ગાન ને છોડતી નથી તેવીજ રીતે દુર્જનો ના સંપર્કમાં આવવાથી સજજનો પણ પોતાનું સત્ એટલે કે સજ્જનતા ગુમાવતા નથી.

 *अनित्यानि शरीराणि, विभवो नैव शाश्वत: |*
*नित्यं सन्निहितो मृत्यु:, कर्तव्यो धर्मसञ्चय: ||*
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हमारे शरीर सदा रहने वाला नहीं है, धन भी हमेशा टिका नहीं रहता और मृत्यु सदा साथ रहती है, अत: मनुष्य को चाहिए कि वह धर्म के कार्यों को करता रहे | न जाने जीवन कब समाप्त हो जाए | *तयोर्नित्यं प्रियं कुर्यात् आचार्यस्य च सर्वदा।*
*तेषु हि त्रिषु तुष्टेषु तपः सर्वं समाप्यते॥*
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मनुष्य को सदा अपने माता पिता, और गुरुओं का प्रिय करना चाहिए, इन तीनों के सन्तुष्ट होने पर सभी तरह के पुण्य प्राप्त हो जाते हैं।
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One should always love one's mother, father and gurus, on being satisfied with these three, all kinds of virtues are attained



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*महाशिवरात्रि पर कल कैसे करे शिव पूजा*
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सामान्य (लौकिक) मंत्रो से सम्पूर्ण शिवपूजन प्रकार और पद्धति
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शिवपूजन में ध्यान रखने जैसे कुछ खास बाते 
(1)👉 स्नान कर के ही पूजा में बेठे
(2)👉 साफ सुथरा वस्त्र धारण कर ( हो शके तो शिलाई बिना का तो बहोत अच्छा )
(3)👉 आसन एक दम स्वच्छ चाहिए ( दर्भासन हो तो उत्तम )
(4)👉 पूर्व या उत्तर दिशा में मुह कर के ही पूजा करे
(5)👉 बिल्व पत्र पर जो चिकनाहट वाला भाग होता हे वाही शिवलिंग पर चढ़ाये ( कृपया खंडित बिल्व पत्र मत चढ़ाये )
(6)👉 संपूर्ण परिक्रमा कभी भी मत करे ( जहा से जल पसार हो रहा हे वहा से वापस आ जाये )
(7)👉 पूजन में चंपा के पुष्प का प्रयोग ना करे।
(8)👉 बिल्व पत्र के उपरांत आक के फुल, धतुरा पुष्प या नील कमल का प्रयोग अवश्य कर सकते है।
(9)👉 शिव प्रसाद का कभी भी इंकार मत करे ( ये सब के लिए पवित्र हे )।

  पूजन सामग्री 
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शिव की मूर्ति या शिवलिंगम, अबीर- गुलाल, चन्दन ( सफ़ेद ) अगरबत्ती धुप ( गुग्गुल ) बिलिपत्र बिल्व फल, तुलसी, दूर्वा, चावल, पुष्प, फल,मिठाई, पान-सुपारी,जनेऊ, पंचामृत, आसन, कलश, दीपक, शंख, घंट, आरती यह सब चीजो का होना आवश्यक है।

पूजन विधि 
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जो इंसान भगवन शंकर का पूजन करना चाहता हे उसे प्रातः कल जल्दी उठकर प्रातः कर्म पुरे करने के बाद पूर्व दिशा या इशान कोने की और अपना मुख रख कर .. प्रथम आचमन करना चाहिए बाद में खुद के ललाट पर तिलक करना चाहिए बाद में निन्म मंत्र बोल कर शिखा बांधनी चाहिए

शिखा मंत्र👉  ह्रीं उर्ध्वकेशी विरुपाक्षी मस्शोणित भक्षणे। तिष्ठ देवी शिखा मध्ये चामुंडे ह्य पराजिते।।

आचमन मंत्र
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ॐ केशवाय नमः / ॐ नारायणाय नमः / ॐ माधवाय नमः 
तीनो बार पानी हाथ में लेकर पीना चाहिए और बाद में ॐ गोविन्दाय नमः बोल हाथ धो लेने चाहिए बाद में बाये हाथ में पानी ले कर दाये हाथ से पानी .. अपने मुह, कर्ण, आँख, नाक, नाभि, ह्रदय और मस्तक पर लगाना चाहिए और बाद में ह्रीं नमो भगवते वासुदेवाय बोल कर खुद के चारो और पानी के छीटे डालने चाहिए
ह्रीं नमो नारायणाय बोल कर प्राणायाम करना चाहिए

स्वयं एवं सामग्री पवित्रीकरण
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'ॐ अपवित्र: पवित्रो व सर्वावस्था गतोपी व।
य: स्मरेत पूंडरीकाक्षम सह: बाह्याभ्यांतर सूचि।।

( बोल कर शरीर एवं पूजन सामग्री पर जल का छिड़काव करे - शुद्धिकरण के लिए )

न्यास👉  निचे दिए गए मंत्र बोल कर बाजु में लिखे गए अंग पर अपना दाया हाथ का स्पर्श करे।
ह्रीं नं पादाभ्याम नमः / ( दोनों पाव पर ),
ह्रीं मों जानुभ्याम नमः / ( दोनों जंघा पर )
ह्रीं भं कटीभ्याम नमः / ( दोनों कमर पर )
ह्रीं गं नाभ्ये नमः / ( नाभि पर )
ह्रीं वं ह्रदयाय नमः / ( ह्रदय पर )
ह्रीं ते बाहुभ्याम नमः / ( दोनों कंधे पर )
ह्रीं वां कंठाय नमः / ( गले पर )
ह्रीं सुं मुखाय नमः / ( मुख पर )
ह्रीं दें नेत्राभ्याम नमः / ( दोनों नेत्रों पर )
ह्रीं वां ललाटाय नमः / ( ललाट पर )
ह्रीं यां मुध्र्ने नमः / ( मस्तक पर )
ह्रीं नमो भगवते वासुदेवाय नमः / ( पुरे शरीर पर )
तत्पश्चात भगवन शंकर की पूजा करे

(पूजन विधि निम्न प्रकार से हे )
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तिलक मन्त्र👉   स्वस्ति तेस्तु द्विपदेभ्यश्वतुष्पदेभ्य एवच / स्वस्त्यस्त्व पादकेभ्य श्री सर्वेभ्यः स्वस्ति सर्वदा //

नमस्कार मंत्र👉 हाथ मे अक्षत पुष्प लेकर निम्न मंत्र बोलकर नमस्कार करें।
 श्री गणेशाय नमः 
 इष्ट देवताभ्यो नमः 
 कुल देवताभ्यो नमः 
 ग्राम देवताभ्यो नमः 
 स्थान देवताभ्यो नमः 
 सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः 
 गुरुवे नमः  
 मातृ पितरेभ्यो नमः
ॐ शांति शांति शांति

गणपति स्मरण 
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 सुमुखश्चैकदंतश्च कपिलो गज कर्णक  लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायक।।
धुम्र्केतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः  द्वाद्शैतानी नामानी यः पठेच्छुनुयादापी।।
विध्याराम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमेस्त्था। संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते।।
शुक्लाम्बर्धरम देवं शशिवर्ण चतुर्भुजम। प्रसन्न वदनं ध्यायेत्सर्व विघ्नोपशाताये।।
वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि सम प्रभु। निर्विघम कुरु में देव सर्वकार्येशु सर्वदा।।

संकल्प👉 
(दाहिने हाथ में जल अक्षत और द्रव्य लेकर निम्न संकल्प मंत्र बोले :)
'ऊँ विष्णु र्विष्णुर्विष्णु : श्रीमद् भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्त्तमानस्य अद्य श्री ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्री श्वेत वाराह कल्पै वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे युगे कलियुगे कलि प्रथमचरणे भूर्लोके जम्बूद्वीपे भारत वर्षे भरत खंडे आर्यावर्तान्तर्गतैकदेशे ---*--- नगरे ---**--- ग्रामे वा बौद्धावतारे विजय नाम संवत्सरे श्री सूर्ये दक्षिणायने वर्षा ऋतौ महामाँगल्यप्रद मासोत्तमे शुभ भाद्रप्रद मासे शुक्ल पक्षे चतुर्थ्याम्‌ तिथौ भृगुवासरे हस्त नक्षत्रे शुभ योगे गर करणे तुला राशि स्थिते चन्द्रे सिंह राशि स्थिते सूर्य वृष राशि स्थिते देवगुरौ शेषेषु ग्रहेषु च यथा यथा राशि स्थान स्थितेषु सत्सु एवं ग्रह गुणगण विशेषण विशिष्टायाँ चतुर्थ्याम्‌ शुभ पुण्य तिथौ --*-- गौत्रः --*-- अमुक शर्मा, वर्मा, गुप्ता, दासो ऽहं मम आत्मनः श्रीमन्‌ महागणपति प्रीत्यर्थम्‌ यथालब्धोपचारैस्तदीयं पूजनं करिष्ये।''
इसके पश्चात्‌ हाथ का जल किसी पात्र में छोड़ देवें।

नोट👉  ---*--- यहाँ पर अपने नगर का नाम बोलें ---**--- यहाँ पर अपने ग्राम का नाम बोलें ---*--- यहाँ पर अपना कुल गौत्र बोलें ---*--- यहाँ पर अपना नाम बोलकर शर्मा/ वर्मा/ गुप्ता आदि बोलें

द्विग्रक्षण - मंत्र👉  यादातर संस्थितम भूतं स्थानमाश्रित्य सर्वात:/ स्थानं त्यक्त्वा तुं तत्सर्व यत्रस्थं तत्र गछतु //
यह मंत्र बोल कर चावालको अपनी चारो और डाले।

वरुण पूजन👉  
अपाम्पताये वरुणाय नमः। 
सक्लोप्चारार्थे गंधाक्षत पुष्पह: समपुज्यामी।
यह बोल कर कलश के जल में चन्दन - पुष्प डाले और कलश में से थोडा जल हाथ में ले कर निन्म मंत्र बोल कर पूजन सामग्री और खुद पर वो जल के छीटे डाले

दीप पूजन👉 दिपस्त्वं देवरूपश्च कर्मसाक्षी जयप्रद:। 
साज्यश्च वर्तिसंयुक्तं दीपज्योती जमोस्तुते।।
( बोल कर दीप पर चन्दन और पुष्प अर्पण करे )

शंख पूजन👉   लक्ष्मीसहोदरस्त्वंतु विष्णुना विधृत: करे। निर्मितः सर्वदेवेश्च पांचजन्य नमोस्तुते।।
( बोल कर शंख पर चन्दन और पुष्प चढ़ाये )

घंट पूजन👉 देवानं प्रीतये नित्यं संरक्षासां च विनाशने।
 घंट्नादम प्रकुवर्ती ततः घंटा प्रपुज्यत।।
( बोल कर घंट नाद करे और उस पर चन्दन और पुष्प चढ़ाये )

ध्यान मंत्र👉  ध्यायामि दैवतं श्रेष्ठं नित्यं धर्म्यार्थप्राप्तये। 
धर्मार्थ काम मोक्षानाम साधनं ते नमो नमः।।
( बोल कर भगवान शंकर का ध्यान करे )

आहवान मंत्र👉   आगच्छ देवेश तेजोराशे जगत्पतये।
पूजां माया कृतां देव गृहाण सुरसतम।।
( बोल कर भगवन शिव को आह्वाहन करने की भावना करे )

आसन मंत्र👉   सर्वकश्ठंयामदिव्यम नानारत्नसमन्वितम। कर्त्स्वरसमायुक्तामासनम प्रतिगृह्यताम।।
( बोल कर शिवजी कोई आसन अर्पण करे )

खाध्य प्रक्षालन👉 उष्णोदकम निर्मलं च सर्व सौगंध संयुत। 
पद्प्रक्षलानार्थय दत्तं ते प्रतिगुह्यतम।।
( बोल कर शिवजी के पैरो को पखालने हे )

अर्ध्य मंत्र👉  जलं पुष्पं फलं पत्रं दक्षिणा सहितं तथा। गंधाक्षत युतं दिव्ये अर्ध्य दास्ये प्रसिदामे।।
( बोल कर जल पुष्प फल पात्र का अर्ध्य देना चाहिए )

पंचामृत स्नान👉 पायो दाढ़ी धृतम चैव शर्करा मधुसंयुतम। पंचामृतं मयानीतं गृहाण परमेश्वर।।
( बोल कर पंचामृत से स्नान करावे )

स्नान मंत्र👉 गंगा रेवा तथा क्षिप्रा पयोष्नी सहितास्त्था। स्नानार्थ ते प्रसिद परमेश्वर।।
(बोल कर भगवन शंकर को स्वच्छ जल से स्नान कराये और चन्दन पुष्प चढ़ाये )

संकल्प मन्त्र👉 अनेन स्पन्चामृत पुर्वरदोनोने आराध्य देवता: प्रियत्नाम। ( तत पश्यात शिवजी कोई चढ़ा हुवा पुष्प ले कर अपनी आख से स्पर्श कराकर उत्तर दिशा की और फेक दे ,बाद में हाथ को धो कर फिर से चन्दन पुष्प चढ़ाये )

अभिषेक मंत्र👉  सहस्त्राक्षी शतधारम रुषिभी: पावनं कृत। तेन त्वा मभिशिचामी पवामान्य : पुनन्तु में।।
( बोल कर जल शंख में भर कर शिवलिंगम पर अभिषेक करे ) बाद में शिवलिंग या प्रतिमा को स्वच्छ जल से स्नान कराकर उनको साफ कर के उनके स्थान पर विराजमान करवाए

वस्त्र मंत्र👉 सोवर्ण तन्तुभिर्युकतम रजतं वस्त्र्मुत्तमम। परित्य ददामि ते देवे प्रसिद गुह्यतम।।
( बोल कर वस्त्र अर्पण करने की भावना करे )

जनेऊ मन्त्र👉  नवभिस्तन्तुभिर्युकतम त्रिगुणं देवतामयम। उपवीतं प्रदास्यामि गृह्यताम परमेश्वर।।
( बोल कर जनेऊ अर्पण करने की भावना करे )

चन्दन मंत्र👉 मलयाचम संभूतं देवदारु समन्वितम। विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रति गृह्यताम।।
( बोल कर शिवजी को चन्दन का लेप करे )

अक्षत मंत्र👉 अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कंकुमुकदी सुशोभित। 
माया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वर।। 
(बोल चावल चढ़ाये )

पुष्प मंत्र👉 नाना सुगंधी पुष्पानी रुतुकलोदभवानी च। मायानितानी प्रीत्यर्थ तदेव प्रसिद में।।
( बोल कर शिवजी को विविध पुष्पों की माला अर्पण करे )

तुलसी मंत्र👉 तुलसी हेमवर्णा च रत्नावर्नाम च मजहीम / प्रीती सम्पद्नार्थय अर्पयामी हरिप्रियाम।।
( बोल कर तुलसी पात्र अर्पण करे )

बिल्वपत्र मन्त्र👉  त्रिदलं त्रिगुणा कारम त्रिनेत्र च त्र्ययुधाम। 
त्रिजन्म पाप संहारमेकं बिल्वं शिवार्पणं।।
( बोल कर बिल्वपत्र अर्पण करे )

दूर्वा मन्त्र👉  दुर्वकुरण सुहरीतन अमृतान मंगलप्रदान।
आतितामस्तव पूजार्थं प्रसिद परमेश्वर शंकर :।।
( बोल करे दूर्वा दल अर्पण करे )

सौभाग्य द्रव्य👉  हरिद्राम सिंदूर चैव कुमकुमें समन्वितम।
सौभागयारोग्य प्रीत्यर्थं गृहाण परमेश्वर शंकर :।।
( बोल कर अबिल गुलाल चढ़ाये और होश्के तो अलंकर और आभूषण शिवजी को अर्पण करे )

धुप मन्त्र👉 वनस्पति रसोत्पन्न सुगंधें समन्वित :।
देव प्रितिकारो नित्यं धूपों यं प्रति गृह्यताम।।
( बोल कर सुगन्धित धुप करे )

दीप मन्त्र👉  त्वं ज्योति : सर्व देवानं तेजसं तेज उत्तम :.।
आत्म ज्योति: परम धाम दीपो यं प्रति गृह्यताम।।
( बोल कर भगवन शंकर के सामने दीप प्रज्वलित करे )

नैवेध्य मन्त्र👉  नैवेध्यम गृह्यताम देव भक्तिर्मेह्यचलां कुरु।
इप्सितम च वरं देहि पर च पराम गतिम्।।
( बोल कर नैवेध्य चढ़ाये )

भोजन (नैवेद्य मिष्ठान मंत्र) 👉
ॐ प्राणाय स्वाहा.
ॐ अपानाय स्वाहा.
ॐ समानाय स्वाहा
ॐ उदानाय स्वाहा.
ॐ समानाय स्वाहा 
( बोल कर भोजन कराये )

नैवेध्यांते हस्तप्रक्षालानं मुख्प्रक्षालानं आरामनियम च समर्पयामि 

निम्न 5 मंत्र से भोजन करवाए और 3 बार जल अर्पण करें और बाद में देव को चन्दन चढ़ाये।

मुखवास मंत्र👉 एलालवंग संयुक्त पुत्रिफल समन्वितम। 
नागवल्ली दलम दिव्यं देवेश प्रति गुह्याताम।। 
( बोल कर पान सोपारी अर्पण करे )

दक्षिणा मंत्र👉 ह्रीं हेमं वा राजतं वापी पुष्पं वा पत्रमेव च।
दक्षिणाम देवदेवेश गृहाण परमेश्वर शंकर।।
( बोल कर अपनी शक्ति अनुसार दक्षिणा अर्पण करे )

आरती मंत्र👉 सर्व मंगल मंगल्यम देवानं प्रितिदयकम।
निराजन महम कुर्वे प्रसिद परमेश्वर।। ( बोल कर एक बार आरती करे )

आरती भगवान गंगाधर जी की
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ॐ जय गंगाधर जय हर जय गिरिजाधीशा ।
त्वं मां पालय नित्यं कुपया जगदीशा ॥
हर हर हर महादेव ॥ १॥
कैलासे गिरिशिखरे कल्पद्रुमविपिने ।
गुञ्जति मधुकरपुञ्जे कुञ्जवने गहने ॥
कोकिलकूजित खेलत हंसावन ललिता ।
रचयति कलाकलापं नृत्यति मुदसहिता ॥
हर हर हर महादेव ॥ २॥
तस्मिल्ललितसुदेशे शाला मणिरचिता ।
तन्मध्ये हरनिकटे गौरी मुदसहिता ॥
क्रीडा रचयति भूषारञ्जित निजमीशम् ।
इन्द्रादिक सुर सेवत नामयते शीशम् ॥
हर हर हर महादेव ॥ ३॥
बिबुधबधू बहु नृत्यत हृदये मुदसहिता ।
किन्नर गायन कुरुते सप्त स्वर सहिता ॥
धिनकत थै थै धिनकत मृदङ् वादयते ।
क्वण क्वण ललिता वेणुं मधुरं नाटयते ॥
हर हर हर महादेव ॥ ४॥
रुण रुण चरणे रचयति नूपुरमुज्ज्चलिता ।
चक्रावर्ते भ्रमयति कुरुते तां धिक तां ॥
तां तां लुप चुप तां तां डमरू वादयते ।
अंगुष्ठांगुलिनादं लासकतां कुरुते ॥
हर हर हर महादेव ॥ ५॥
कर्पूरद्युतिगौरं पञ्चाननसहितम् ।
त्रिनयनशशिधरमौलिं विषधरकण्ठयुतम् ॥
सुन्दरजटाकलापं पावकयुतभालम् ।
डमरुत्रिशूलपिनाकं करधृतनृकपालम् ॥
हर हर हर महादेव ॥ ६॥
मुण्डै रचयति माला पन्नगमुपवीतम् ।
वामविभागे गिरिजारूपं अतिललितम् ॥
सुन्दरसकलशरीरे कृतभस्माभरणम् ।
इति वृषभध्वजरूपं तापत्रयहरणम् ॥
हर हर हर महादेव ॥ ७॥
शङ्खनिनादं कृत्वा झल्लरि नादयते ।
नीराजयते ब्रह्मा वेदकऋचां पठते ॥
अतिमृदुचरणसरोजं हृत्कमले धृत्वा ।
अवलोकयति महेशं ईशं अभिनत्वा ॥
हर हर हर महादेव ॥ ८॥
ध्यानं आरति समये हृदये अति कृत्वा ।
रामस्त्रिजटानाथं ईशं अभिनत्वा ॥
संगतिमेवं प्रतिदिन पठनं यः कुरुते ।
शिवसायुज्यं गच्छति भक्त्या यः शृणुते ॥
हर हर हर महादेव ॥ ९॥

॥ इति  आरती  भगवान गंगाधर समाप्त ॥

त्रिदेवो की आरती
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ॐ जय शिव ओंकारा,भोले हर शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ हर हर हर महादेव...॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
तीनों रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
अक्षमाला बनमाला मुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद सोहै भोले शशिधारी ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता।
जगकर्ता जगभर्ता जगपालन करता ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठि दर्शन पावत रुचि रुचि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
लक्ष्मी व सावित्री, पार्वती संगा ।
पार्वती अर्धांगनी, शिवलहरी गंगा ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।
पर्वत सौहे पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।
जटा में गंगा बहत है, गल मुंडल माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
ॐ जय शिव ओंकारा भोले हर शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्द्धांगी धारा ।। ॐ हर हर हर महादेव....।।...

आरती के बाद में आरती की चारो और जल की धरा करे और आरती पर पुष्प चढ़ाये सभी को आरती दे और खुद भी आरती ले कर हाथ धो ले।

पुष्पांजलि मंत्र👉 पुष्पांजलि प्रदास्यामि मंत्राक्षर समन्विताम।
तेन त्वं देवदेवेश प्रसिद परमेश्वर।।
( बोल कर पुष्पांजलि अर्पण करे )

प्रदक्षिणा👉 यानी पापानि में देव जन्मान्तर कृतानि च।
तानी सर्वाणी नश्यन्तु प्रदिक्षिने पदे पदे।।
( बोल कर प्रदिक्षिना करे )
बाद में शिवजी के कोई भी मंत्र स्तोत्र या शिव शहस्त्र नाम स्तोत्र का पाठ करे अवश्य शिव कृपा प्राप्त होगी।

पूजा में हुई अशुद्धि के लिये निम्न स्त्रोत्र पाठ से क्षमा याचना करें।

।।देव्पराधक्षमापनस्तोत्रम्।।
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न मन्त्रं नो यन्त्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो
न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथा:।
न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं
परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम्

विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया
विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिरभूत्।
तदेतत् क्षन्तव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे
कुपुत्रो जायेत क्व चिदपि कुमाता न भवति

पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहव: सन्ति सरला:
परं तेषां मध्ये विरलतरलोहं तव सुत:।
मदीयोऽयं त्याग: समुचितमिदं नो तव शिवे
कुपुत्रो जायेत क्व चिदपि कुमाता न भवति

जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता
न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया।
तथापि त्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे
कुपुत्रो जायेत क्व चिदपि कुमाता न भवति

परित्यक्ता देवा विविधविधिसेवाकुलतया
मया पञ्चाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि।
इदानीं चेन्मातस्तव यदि कृपा नापि भविता
निरालम्बो लम्बोदरजननि कं यामि शरणम्

श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा
निरातङ्को रङ्को विहरित चिरं कोटिकनकै:।
तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं
जन: को जानीते जननि जपनीयं 

चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो
जटाधारी कण्ठे भुजगपतिहारी पशुपति:।
कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं
भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम्

न मोक्षस्याकाड्क्षा भवविभववाञ्छापि च न मे
न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुन:।
अतस्त्वां संयाचे जननि जननं यातु मम वै
मृडानी रुद्राणी शिव शिव भवानीति जपत:

नाराधितासि विधिना विविधोपचारै:
किं रुक्षचिन्तनपरैर्न कृतं वचोभि:।
श्यामे त्वमेव यदि किञ्चन मय्यनाथे
धत्से कृपामुचितमम्ब परं तवैव

आपत्सु मग्न: स्मरणं त्वदीयं
करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि।
नैतच्छठत्वं मम भावयेथा:
क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरन्ति

जगदम्ब विचित्रमत्र किं परिपूर्णा करुणास्ति चेन्मयि।
अपराधपरम्परापरं न हि माता समुपेक्षते सुतम्

मत्सम: पातकी नास्ति पापन्घी त्वत्समा न हि।
एवं ज्ञात्वा महादेवि यथा योग्यं तथा कुरु।।

टंकण अशुद्धि के लिए क्षमा प्रार्थी

 *आशुतोष सशाँक शेखर चन्द्र मौली चिदंबरा,*
*कोटि कोटि प्रणाम शम्भू कोटि नमन दिगम्बरा,*

*निर्विकार ओमकार अविनाशी तुम्ही देवाधि देव ,*
*जगत सर्जक प्रलय करता शिवम सत्यम सुंदरा* ,

*निरंकार स्वरूप कालेश्वर महा योगीश्वरा ,*
*दयानिधि दानिश्वर जय जटाधार अभयंकरा,*

*शूल पानी त्रिशूल धारी औगड़ी बाघम्बरी ,*
*जय महेश त्रिलोचनाय विश्वनाथ विशम्भरा,*

*नाथ नागेश्वर हरो हर पाप साप अभिशाप तम,*
*महादेव महान भोले सदा शिव शिव संकरा,*

*जगत पति अनुरकती भक्ति सदैव तेरे चरण हो,*
*क्षमा हो अपराध सब जय जयति जगदीश्वरा,*

*जनम जीवन जगत का संताप ताप मिटे सभी,*
*ओम नमः शिवाय मन जपता रहे पञ्चाक्षरा,*

*आशुतोष सशाँक शेखर चन्द्र मौली चिदम्बरा,*
*कोटि कोटि प्रणाम संभु कोटि नमन दिगम्बरा,*
🕉️🕉️🕉️🙏🏻🙏🏻🙏🏻🕉️🕉️🕉️

*#वेदसारशिवस्तवन*

🕉️🕉️🕉️🌹🌹🌹🕉️🕉️🕉️

*परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं निरीहं निराकारम-ओमकारवेद्यम्।*
*यतो जायते पाल्यते येन विश्वं तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम्॥*

*#भावार्थ:*

🕉️🕉️🕉️🙏🏻🙏🏻🙏🏻🕉️🕉️🕉️
*जो परमात्मा हैं, एक हैं, जगत्के आदिकारण हैं, इच्छारहित हैं, निराकार हैं और प्रणवद्वारा जाननेयोग्य हैं तथा जिनसे सम्पूर्ण विश्वकी उत्पत्ति और पालन होता है और फिर जिनमें उसका लय हो जाता है उन प्रभुको मैं भजता हूँ।*

*💐🌿हर हर महादेव🌿💐*
*शंभो महेश करुणामय शूलपाणे गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्।*
*काशीपते करुणया जगदेतदेक-स्त्वंहंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि।।*
*ॐ_नमः_शिवाय 🕉️🙏*
*जय_भोलेनाथ 🙏🚩*

!! जय श्री महाँकाल !!

*त्वमेव माता च पिता त्वमेव*, 
*त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव*।
*त्वमेव विद्या च द्रविणं त्वमेव,*
*त्वमेव सर्वम् मम देवदेवं*।।

*सरल-सा अर्थ है, 'हे भगवान! तुम्हीं माता हो, तुम्हीं पिता, तुम्हीं बंधु, तुम्हीं सखा हो। तुम्हीं विद्या हो, तुम्हीं द्रव्य, तुम्हीं सब कुछ हो। मेरे देवता हो।*


*विद्या मित्रं प्रवासेषु भार्या मित्रं गृहेषु च।*
 *व्याधितस्यौषधं मित्रं धर्मो मित्रं मृतस्य च॥*
🌾🔱🌾🔱🌾🔱🌾🔱🌾🔱
ज्ञान यात्रा में, पत्नी घर में, औषध रोगी का, तथा धर्म मृतक का (सबसे बड़ा) मित्र होता है।
🌷🏵️🌷🏵️🌷🏵️🌷🏵️🌷🏵️
Knowledge while travelling, wife in home, Medicine for patient, dharma(righteousness) for dead person. Is the biggest friend.




 *अष्टौ गुणा पुरुषं दीपयंति*
*प्रज्ञा सुशीलत्वदमौ श्रुतं च।*
*पराक्रमश्चबहुभाषिता च*
*दानं यथाशक्ति कृतज्ञता च॥*
🌺🌾🌺🌾🌺🌾🌺🌾🌺
आठ गुण पुरुष को सुशोभित करते हैं - बुद्धि, सुन्दर चरित्र, आत्म-नियंत्रण, शास्त्र-अध्ययन, साहस, मितभाषिता, यथाशक्ति दान और कृतज्ञता ॥
🏵️💐🏵️💐🏵️💐🏵️💐🏵️
Eight qualities adorn a man -intellect, good character, self-control, study of scriptures, valor, less talking, charity as per capability and gratitude.



*हस्ती हस्त सहस्त्रेण*
         *शत हस्तेन वाजिनः l*
*श्रृड्गिणी दश हस्तेन* 
         *देशत्यागेन दुर्जनः ।।*
🎄🌺🎄🌺🎄🌺🎄🌺🎄
 *हाथी से हजार गज की दूरी रखें, घोड़े से सौ की, सींग वाले जानवर से दस की.... परंतु जहाँ दुष्ट स्वभाव वाले दुर्जन रहते हो, उस स्थान अथवा क्षेत्र को अतिशीघ्र त्याग देना ही उचित है ।*




 *मातृभक्त्या इहलोकं पितृभक्त्या तु मध्यमम्।*
*गुरुभक्त्या पराँल्लोकान् जयत्येव न संशयः॥*
🌼🪴🌼🪴🌼🪴🌼🪴🌼
कोई भी मनुष्य मातृभक्ति के द्वारा इस लोक को, पितृभक्ति के द्वारा भुवर्लोक को और गुरुभक्ति के द्वारा ब्रह्मादिलोकों को प्राप्त कर लेता है इसमें लेशमात्र भी सन्देह नहीं है ।
🌻🎍🌻🎍🌻🎍🌻🎍🌻
There is no doubt about it that any man attains this world through maternal devotion, Bhuvarloka through paternal devotion and Brahmadilok by Guru-bhakti.

 *राजपत्नी गुरोः पत्नी भ्रातृपत्नी तथैव च।*
*पत्नीमाता स्वमाता च पञ्चैताः मातरः स्मृताः।।*
💃🎄💃🎄💃🎄💃🎄💃
१-राजा की पत्नी. २-गुरु की पत्नी. ३-बड़े भाई की पत्नी. ४-पत्नी की माँ और ५-जन्म देने वाली माँ। ये पाँच माताएँ कहीं गयी हैं। अर्थात् ये सब माँ के समान पूजनीय होती हैं।
🌻 *सभी सन्नारीओ को नारी दिन की शुभकामनाएं*🌻

1- The wife of the king. 2- The wife of the Guru. 3-Wife of elder brother. 4-wife mother and 5-birth mother. These are called five mothers. That is, all of them are worshiped like a mother.




*आचारः परमो धर्म आचारः परमं तपः।*
*आचारः परमं ज्ञानम् आचरात् किं न साध्यते॥*
🌷🌱🌷🌱🌷🌱🌷🌱🌷🌱
सदाचरण सबसे बड़ा धर्म है, सदाचरण सबसे बड़ा तप है, सदाचरण सबसे बड़ा ज्ञान है, सदाचरण से क्या प्राप्त नहीं किया जा सकता है?
🌺🌿🌺🌿🌺🌿🌺🌿🌺🌿
Right conduct is the highest religion/righteousness. Right conduct is the greatest penance. Right conduct is the greatest knowledge. What can't be achieved through right conduct?



 *ददाति प्रतिगृह्णाति गुह्यमाख्याति पृच्छति|*
*भुङ्क्ते भोजयते चैव षड्विधं प्रीतिलक्षणम्।।*
🌹🌴🌹🌴🌹🌴🌹🌴🌹
प्रेम के छः लक्षण होते हैं। १. देना २. लेना ३. रहस्य को बताना ४. रहस्य को पूछना ५. खाना और ६. खिलाना।
🍀💐🍀💐🍀💐🍀💐🍀
There are six characteristics of love. 1. give, 2. take, 3. Telling the secret, 4. Ask the secret, 5. Eat and 6. to feed.

 वर्तमानं निरीक्ष्यैव तं जनं नोपहासयेत्।
कालक्रमेण चांगारो हीरकं जायते ध्रुवम्।।                                                           🌹🏵🌹🏵🌹🏵
किसी भी व्यक्ति की वर्तमान स्थिति को देखकर उसके भविष्य का मजाक मत उड़ाए ! क्योंकि काल में इतनी शक्ति हैं कि वो एक साधारण से कोयले को भी धीरे-धीरे धीरे हीरे में बदल देता है ।
 *कामं क्रोधं लोभं मोहं, त्यक्त्वाऽत्मानं भावय कोऽहम्।*
*आत्मज्ञान विहीना मूढाः, ते पच्यन्ते नरकनिगूढाः॥*
🎍👏🎍👏🎍👏🎍👏🎍👏
काम, क्रोध, लोभ, मोह को छोड़ कर, स्वयं में स्थित होकर विचार करो कि मैं कौन हूँ, जो आत्म- ज्ञान से रहित मोहित व्यक्ति हैं वो बार-बार छिपे हुए इस संसार रूपी नरक में पड़ते हैं॥
🎄🎋🎄🎋🎄🎋🎄🎋🎄🎋
Give up desires, anger, greed and delusion. Ponder over your real nature . Those devoid of the knowledge of self come in this world, a hidden hell, endlessly.
🌵🍁  *शुभाशिषम।।* 🍁🌵

*न वैरमुद्दीपयति प्रशान्तं,न दर्पमारोहति नास्तमेति।* 
*न दुर्गतोऽस्मीति करोत्यकार्यं,तमार्यशीलं परमाहुरार्या:।।* 
*विदुर नीति ‌अध्याय १-११७।*               
🍂🌴🍂🌴🍂🌴🍂🌴🍂
*अर्थात* 
*जो शान्त हुई वैरकी आगको फिर प्रज्वलित नहीं करता, गर्व नहीं करता, हीनता नहीं दिखाता तथा 'मैं विपत्ति में पड़ा हूं ' ऐसा सोचकर अनुचित काम नहीं करता,उस उत्तम आचरण वाले पुरुष को आर्यजन सर्वश्रेष्ठ कहते हैं।*
꧁🙏🏻 *सुप्रभातम्*  🙏🏻꧂

 प्रलये भिन्नमर्यादा भवन्ति किल सागराः ।
सागरा भेदमिच्छन्ति प्रलयेऽपि न साधवः ।।
🪴👍🪴👍🪴👍🪴👍🪴            
          समुद्र भी प्रलय की स्थिति में अपनी मर्यादा का उल्लंघन कर देते हैं और किनारों को लांघकर सारे प्रदेश में फैल जाते हैं । परंतु सज्जन व्यक्ति प्रलय के समान भयंकर विपत्ति और कष्ट आने पर भी अपनी सीमा में ही रहते हैं, अपनी मर्यादा नहीं छोड़ते ।।
🙏🌷 *।। सर्वेभ्य: कल्याणम् ।।* 🌷🙏

 *यन्मायावशवर्ति विश्वमखिलं ब्रह्मादिदेवासुरा*
*यत्सत्त्वादमृषैव भाति सकलं रज्जौ यथाहेर्भ्रमः ।*
*यत्पादप्लवमेकमेव हि* *भवाम्भोधेस्तितीर्षावतां*
*वन्देऽहं तमशेषकारणपरं रामाख्यमीशं हरिम्‌ ॥*
🌾☘️🌾☘️🌾☘️🌾☘️🌾
*जिनकी माया के वशीभूत सम्पूर्ण विश्व, ब्रह्मादि देवता और असुर हैं, जिनकी सत्ता से रस्सी में सर्प के भ्रम की भाँति यह सारा दृश्य जगत्‌ सत्य ही प्रतीत होता है और जिनके केवल चरण ही भवसागर से तरने की इच्छा वालों के लिए एकमात्र नौका हैं, उन समस्त कारणों से परे (सब कारणों के कारण और सबसे श्रेष्ठ) राम कहलाने वाले भगवान हरि की मैं वंदना करता हूँ...*
   
दुर्बलस्य बलं राजा बालानां रोदनं बलम् ।
बलं मूर्खस्य मौनित्वं चौराणामनृतं बलम् ॥                                                🌸⭐🌸⭐🌸⭐🌸⭐🌸
दुर्बलों का बल राजा है; बच्चों का बल रुदन है; मूर्खो का बल मौन है; और चोरों का बल असत्य है ।                                                        
 *केचिद्वदन्ति धनहीनजनो जघन्यः*
*केचिद्वदन्ति गुणहीनजनो जघन्यः।*
*व्यासो वदत्यखिलवेदपुराणविज्ञो*
*नारायणस्मरणहीनजनो जघन्यः ॥*
🌸🏓🌸🏓🌸🏓🌸🏓🌸
कुछ लोग कहते हैं कि धनहीन लोग क्षुद्र हैं; 
कुछ कहते हैं कि गुणहीन लोग क्षुद्र हैं; पर, सभी वेद-पुराण जाननेवाले श्रीव्यास मुनि कहते हैं कि नारायण का (भगवान का) स्मरण न करनेवाले क्षुद्र हैं ।
☘️🌷 *જય માતાજી*🌷☘️
 *अधर्मेणैवते पूर्व ततो भद्राणि पश्यति |*
*ततः सपत्नान् जयति समूलस्तु विनश्यति ||*
🌾💐🌾💐🌾💐🌾💐🌾
कुटिलता व अधर्म से मानव क्षणिक समृद्धि व संपन्नता तो प्राप्त कर लेता है।  शत्रु को भी जीत लेता है। अपनी सफलता पर प्रसन्न भी होता है। परन्तु अन्त मे उसका विनाश निश्चित है।                                              *
 *सुकलापरिपूर्णोऽहं भयं न मेऽस्तीति मोहनिंद्रैषा ।* 
*परिपूर्णस्यैवेन्दोर्भवति भयं सिंहिकासूतो ।।*  
🌼🏓🌼🏓🌼🏓🌼🏓🌼
मैं सभी सुख एवं समृद्धियों से परिपूर्ण होने के कारण मुजे मोहनिंद्रा वश कोई भय नहीं ऐसा मानना भ्रम मात्र है । क्योंकि पूर्णिमा के परिपूर्ण चंद्र को भी ग्रहण का भय होता है ।। 

 *कोऽतिभारः समर्थानां किं दूरं व्यवसायिनाम्।*
*को विदेशः सविद्यानां कः परः प्रियवादिनाम्।।*
💐🌾💐🌾💐🌾💐🌾💐
जो समर्थ है उसके लिए भार कुछ नहीं है। जो व्यापार करता है उसके लिए दूर कहीं नहीं है। जो विद्वान् है उसके लिए विदेश कहीं नहीं है। और मधुर बोलने वाले के लिए पराया कोई नहीं है।।
🌻🪴 *सुमंगलम* 🪴🌻
*न ही कश्चित् विजानाति*
*किं कस्य श्वो भविष्यति।*
*अतः श्वः करणीयानि*
*कुर्यादद्यैव बुद्धिमान्॥*   
🌲🌻🌲🌻🌲🌻🌲🌻🌲
*अर्थात्:-*कल क्या होगा, यह कोई नहीं जानता है। इसलिए कल के करने योग्य कार्य को आज कर लेने वाला ही बुद्धिमान है॥ 
☘️ *आपका हर पल मङ्गलमय हो !_*☘️

रविवार, 20 मार्च 2022

रोचक जानकारी इसे सेव कर सुरक्षित कर ले। ऐसी पोस्ट कम ही आती है।

इसे सेव कर सुरक्षित कर ले। ऐसी पोस्ट कम ही आती है।

विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र (ऋषि मुनियों द्वारा किया गया अनुसंधान)

■ काष्ठा = सैकन्ड का  34000 वाँ भाग
■ 1 त्रुटि  = सैकन्ड का 300 वाँ भाग
■ 2 त्रुटि  = 1 लव ,
■ 1 लव = 1 क्षण
■ 30 क्षण = 1 विपल ,
■ 60 विपल = 1 पल
■ 60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट ) ,
■ 2.5 घड़ी = 1 होरा (घन्टा )
■3 होरा=1प्रहर व 8 प्रहर 1 दिवस (वार)
■ 24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार) ,
■ 7 दिवस = 1 सप्ताह
■ 4 सप्ताह = 1 माह ,
■ 2 माह = 1 ऋतू
■ 6 ऋतू = 1 वर्ष ,
■ 100 वर्ष = 1 शताब्दी
■ 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी ,
■ 432 सहस्राब्दी = 1 युग
■ 2 युग = 1 द्वापर युग ,
■ 3 युग = 1 त्रैता युग ,
■ 4 युग = सतयुग
■ सतयुग + त्रेतायुग + द्वापरयुग + कलियुग = 1 महायुग
■ 72 महायुग = मनवन्तर ,
■ 1000 महायुग = 1 कल्प
■ 1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ )
■ 1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म )
■ महालय  = 730 कल्प ।(ब्राह्मा का अन्त और जन्म )

सम्पूर्ण विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र यहीं है जो हमारे देश भारत में बना हुआ है । ये हमारा भारत जिस पर हमे गर्व होना चाहिये l
दो लिंग : नर और नारी ।
दो पक्ष : शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।
दो पूजा : वैदिकी और तांत्रिकी (पुराणोक्त)।
दो अयन : उत्तरायन और दक्षिणायन।

तीन देव : ब्रह्मा, विष्णु, शंकर।
तीन देवियाँ : महा सरस्वती, महा लक्ष्मी, महा गौरी।
तीन लोक : पृथ्वी, आकाश, पाताल।
तीन गुण : सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण।
तीन स्थिति : ठोस, द्रव, वायु।
तीन स्तर : प्रारंभ, मध्य, अंत।
तीन पड़ाव : बचपन, जवानी, बुढ़ापा।
तीन रचनाएँ : देव, दानव, मानव।
तीन अवस्था : जागृत, मृत, बेहोशी।
तीन काल : भूत, भविष्य, वर्तमान।
तीन नाड़ी : इडा, पिंगला, सुषुम्ना।
तीन संध्या : प्रात:, मध्याह्न, सायं।
तीन शक्ति : इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति।

चार धाम : बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, द्वारका।
चार मुनि : सनत, सनातन, सनंद, सनत कुमार।
चार वर्ण : ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।
चार निति : साम, दाम, दंड, भेद।
चार वेद : सामवेद, ॠग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद।
चार स्त्री : माता, पत्नी, बहन, पुत्री।
चार युग : सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलयुग।
चार समय : सुबह, शाम, दिन, रात।
चार अप्सरा : उर्वशी, रंभा, मेनका, तिलोत्तमा।
चार गुरु : माता, पिता, शिक्षक, आध्यात्मिक गुरु।
चार प्राणी : जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर।
चार जीव : अण्डज, पिंडज, स्वेदज, उद्भिज।
चार वाणी : ओम्कार्, अकार्, उकार, मकार्।
चार आश्रम : ब्रह्मचर्य, ग्राहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास।
चार भोज्य : खाद्य, पेय, लेह्य, चोष्य।
चार पुरुषार्थ : धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।
चार वाद्य : तत्, सुषिर, अवनद्व, घन।

पाँच तत्व : पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु।
पाँच देवता : गणेश, दुर्गा, विष्णु, शंकर, सुर्य।
पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा।
पाँच कर्म : रस, रुप, गंध, स्पर्श, ध्वनि।
पाँच  उंगलियां : अँगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा।
पाँच पूजा उपचार : गंध, पुष्प, धुप, दीप, नैवेद्य।
पाँच अमृत : दूध, दही, घी, शहद, शक्कर।
पाँच प्रेत : भूत, पिशाच, वैताल, कुष्मांड, ब्रह्मराक्षस।
पाँच स्वाद : मीठा, चर्खा, खट्टा, खारा, कड़वा।
पाँच वायु : प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान।
पाँच इन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा, मन।
पाँच वटवृक्ष : सिद्धवट (उज्जैन), अक्षयवट (Prayagraj), बोधिवट (बोधगया), वंशीवट (वृंदावन), साक्षीवट (गया)।
पाँच पत्ते : आम, पीपल, बरगद, गुलर, अशोक।
पाँच कन्या : अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती, द्रौपदी।

छ: ॠतु : शीत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, बसंत, शिशिर।
छ: ज्ञान के अंग : शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष।
छ: कर्म : देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान।
छ: दोष : काम, क्रोध, मद (घमंड), लोभ (लालच),  मोह, आलस्य।

सात छंद : गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती।
सात स्वर : सा, रे, ग, म, प, ध, नि।
सात सुर : षडज्, ॠषभ्, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद।
सात चक्र : सहस्त्रार, आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, मुलाधार।
सात वार : रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि।
सात मिट्टी : गौशाला, घुड़साल, हाथीसाल, राजद्वार, बाम्बी की मिट्टी, नदी संगम, तालाब।
सात महाद्वीप : जम्बुद्वीप (एशिया), प्लक्षद्वीप, शाल्मलीद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप।
सात ॠषि : वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भारद्वाज, अत्रि, वामदेव, शौनक।
सात ॠषि : वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र, भारद्वाज।
सात धातु (शारीरिक) : रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, वीर्य।
सात रंग : बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी, लाल।
सात पाताल : अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल, पाताल।
सात पुरी : मथुरा, हरिद्वार, काशी, अयोध्या, उज्जैन, द्वारका, काञ्ची।
सात धान्य : उड़द, गेहूँ, चना, चांवल, जौ, मूँग, बाजरा।

आठ मातृका : ब्राह्मी, वैष्णवी, माहेश्वरी, कौमारी, ऐन्द्री, वाराही, नारसिंही, चामुंडा।
आठ लक्ष्मी : आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी।
आठ वसु : अप (अह:/अयज), ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्युष, प्रभास।
आठ सिद्धि : अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व।
आठ धातु : सोना, चांदी, ताम्बा, सीसा जस्ता, टिन, लोहा, पारा।

नवदुर्गा : शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री।
नवग्रह : सुर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु।
नवरत्न : हीरा, पन्ना, मोती, माणिक, मूंगा, पुखराज, नीलम, गोमेद, लहसुनिया।
नवनिधि : पद्मनिधि, महापद्मनिधि, नीलनिधि, मुकुंदनिधि, नंदनिधि, मकरनिधि, कच्छपनिधि, शंखनिधि, खर्व/मिश्र निधि।

दस महाविद्या : काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्तिका, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला।
दस दिशाएँ : पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, आग्नेय, नैॠत्य, वायव्य, ईशान, ऊपर, नीचे।
दस दिक्पाल : इन्द्र, अग्नि, यमराज, नैॠिति, वरुण, वायुदेव, कुबेर, ईशान, ब्रह्मा, अनंत।
दस अवतार (विष्णुजी) : मत्स्य, कच्छप, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि।
दस सति : सावित्री, अनुसुइया, मंदोदरी, तुलसी, द्रौपदी, गांधारी, सीता, दमयन्ती, सुलक्षणा, अरुंधती।

*उक्त जानकारी शास्त्रोक्त 📚 आधार पर... हे.....💐
जय श्री राम राधे कृष्णा राधे श्याम🙏🙏
                                                ऐसी जानकारी बार-बार नहीं आती, और आगे भेजें, ताकि लोगों को सनातन धर्म की जानकारी हो  सके आपका आभार धन्यवाद होगा

1-अष्टाध्यायी               पाणिनी
2-रामायण                    वाल्मीकि
3-महाभारत                  वेदव्यास
4-अर्थशास्त्र                  चाणक्य
5-महाभाष्य                  पतंजलि
6-सत्सहसारिका सूत्र      नागार्जुन
7-बुद्धचरित                  अश्वघोष
8-सौंदरानन्द                 अश्वघोष
9-महाविभाषाशास्त्र        वसुमित्र
10- स्वप्नवासवदत्ता        भास
11-कामसूत्र                  वात्स्यायन
12-कुमारसंभवम्           कालिदास
13-अभिज्ञानशकुंतलम्    कालिदास  
14-विक्रमोउर्वशियां        कालिदास
15-मेघदूत                    कालिदास
16-रघुवंशम्                  कालिदास
17-मालविकाग्निमित्रम्   कालिदास
18-नाट्यशास्त्र              भरतमुनि
19-देवीचंद्रगुप्तम          विशाखदत्त
20-मृच्छकटिकम्          शूद्रक
21-सूर्य सिद्धान्त           आर्यभट्ट
22-वृहतसिंता               बरामिहिर
23-पंचतंत्र।                  विष्णु शर्मा
24-कथासरित्सागर        सोमदेव
25-अभिधम्मकोश         वसुबन्धु
26-मुद्राराक्षस               विशाखदत्त
27-रावणवध।              भटिट
28-किरातार्जुनीयम्       भारवि
29-दशकुमारचरितम्     दंडी
30-हर्षचरित                वाणभट्ट
31-कादंबरी                वाणभट्ट
32-वासवदत्ता             सुबंधु
33-नागानंद                हर्षवधन
34-रत्नावली               हर्षवर्धन
35-प्रियदर्शिका            हर्षवर्धन
36-मालतीमाधव         भवभूति
37-पृथ्वीराज विजय     जयानक
38-कर्पूरमंजरी            राजशेखर
39-काव्यमीमांसा         राजशेखर
40-नवसहसांक चरित   पदम् गुप्त
41-शब्दानुशासन         राजभोज
42-वृहतकथामंजरी      क्षेमेन्द्र
43-नैषधचरितम           श्रीहर्ष
44-विक्रमांकदेवचरित   बिल्हण
45-कुमारपालचरित      हेमचन्द्र
46-गीतगोविन्द            जयदेव
47-पृथ्वीराजरासो         चंदरवरदाई
48-राजतरंगिणी           कल्हण
49-रासमाला               सोमेश्वर
50-शिशुपाल वध          माघ
51-गौडवाहो                वाकपति
52-रामचरित                सन्धयाकरनंदी
53-द्वयाश्रय काव्य         हेमचन्द्र

वेद-ज्ञान:-

प्र.1-  वेद किसे कहते है ?
उत्तर-  ईश्वरीय ज्ञान की पुस्तक को वेद कहते है।

प्र.2-  वेद-ज्ञान किसने दिया ?
उत्तर-  ईश्वर ने दिया।

प्र.3-  ईश्वर ने वेद-ज्ञान कब दिया ?
उत्तर-  ईश्वर ने सृष्टि के आरंभ में वेद-ज्ञान दिया।

प्र.4-  ईश्वर ने वेद ज्ञान क्यों दिया ?
उत्तर- मनुष्य-मात्र के कल्याण         के लिए।

प्र.5-  वेद कितने है ?
उत्तर- चार ।                                                  
1-ऋग्वेद 
2-यजुर्वेद  
3-सामवेद
4-अथर्ववेद

प्र.6-  वेदों के ब्राह्मण ।
        वेद              ब्राह्मण
1 - ऋग्वेद      -     ऐतरेय
2 - यजुर्वेद      -     शतपथ
3 - सामवेद     -    तांड्य
4 - अथर्ववेद   -   गोपथ

प्र.7-  वेदों के उपवेद कितने है।
उत्तर -  चार।
      वेद                     उपवेद
    1- ऋग्वेद       -     आयुर्वेद
    2- यजुर्वेद       -    धनुर्वेद
    3 -सामवेद      -     गंधर्ववेद
    4- अथर्ववेद    -     अर्थवेद

प्र 8-  वेदों के अंग हैं ।
उत्तर -  छः ।
1 - शिक्षा
2 - कल्प
3 - निरूक्त
4 - व्याकरण
5 - छंद
6 - ज्योतिष

प्र.9- वेदों का ज्ञान ईश्वर ने किन किन ऋषियो को दिया ?
उत्तर- चार ऋषियों को।
         वेद                ऋषि
1- ऋग्वेद         -      अग्नि
2 - यजुर्वेद       -       वायु
3 - सामवेद      -      आदित्य
4 - अथर्ववेद    -     अंगिरा

प्र.10-  वेदों का ज्ञान ईश्वर ने ऋषियों को कैसे दिया ?
उत्तर- समाधि की अवस्था में।

प्र.11-  वेदों में कैसे ज्ञान है ?
उत्तर-  सब सत्य विद्याओं का ज्ञान-विज्ञान।

प्र.12-  वेदो के विषय कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-   चार ।
        ऋषि        विषय
1-  ऋग्वेद    -    ज्ञान
2-  यजुर्वेद    -    कर्म
3-  सामवे     -    उपासना
4-  अथर्ववेद -    विज्ञान

प्र.13-  वेदों में।

ऋग्वेद में।
1-  मंडल      -  10
2 - अष्टक     -   08
3 - सूक्त        -  1028
4 - अनुवाक  -   85 
5 - ऋचाएं     -  10589

यजुर्वेद में।
1- अध्याय    -  40
2- मंत्र           - 1975

सामवेद में।
1-  आरचिक   -  06
2 - अध्याय     -   06
3-  ऋचाएं       -  1875

अथर्ववेद में।
1- कांड      -    20
2- सूक्त      -   731
3 - मंत्र       -   5977
          
प्र.14-  वेद पढ़ने का अधिकार किसको है ?                                                                                                                                                              उत्तर-  मनुष्य-मात्र को वेद पढ़ने का अधिकार है।

प्र.15-  क्या वेदों में मूर्तिपूजा का विधान है ?
उत्तर-  बिलकुल भी नहीं।

प्र.16-  क्या वेदों में अवतारवाद का प्रमाण है ?
उत्तर-  नहीं।

प्र.17-  सबसे बड़ा वेद कौन-सा है ?
उत्तर-  ऋग्वेद।

प्र.18-  वेदों की उत्पत्ति कब हुई ?
उत्तर-  वेदो की उत्पत्ति सृष्टि के आदि से परमात्मा द्वारा हुई । अर्थात 1 अरब 96 करोड़ 8 लाख 43 हजार वर्ष पूर्व । 

प्र.19-  वेद-ज्ञान के सहायक दर्शन-शास्त्र ( उपअंग ) कितने हैं और उनके लेखकों का क्या नाम है ?
उत्तर- 
1-  न्याय दर्शन  - गौतम मुनि।
2- वैशेषिक दर्शन  - कणाद मुनि।
3- योगदर्शन  - पतंजलि मुनि।
4- मीमांसा दर्शन  - जैमिनी मुनि।
5- सांख्य दर्शन  - कपिल मुनि।
6- वेदांत दर्शन  - व्यास मुनि।

प्र.20-  शास्त्रों के विषय क्या है ?
उत्तर-  आत्मा,  परमात्मा, प्रकृति,  जगत की उत्पत्ति,  मुक्ति अर्थात सब प्रकार का भौतिक व आध्यात्मिक  ज्ञान-विज्ञान आदि।

प्र.21-  प्रामाणिक उपनिषदे कितनी है ?
उत्तर-  केवल ग्यारह।

प्र.22-  उपनिषदों के नाम बतावे ?
उत्तर-  
01-ईश ( ईशावास्य )  
02-केन  
03-कठ  
04-प्रश्न  
05-मुंडक  
06-मांडू  
07-ऐतरेय  
08-तैत्तिरीय 
09-छांदोग्य 
10-वृहदारण्यक 
11-श्वेताश्वतर ।

प्र.23-  उपनिषदों के विषय कहाँ से लिए गए है ?
उत्तर- वेदों से।
प्र.24- चार वर्ण।
उत्तर- 
1- ब्राह्मण
2- क्षत्रिय
3- वैश्य
4- शूद्र

प्र.25- चार युग।
1- सतयुग - 17,28000  वर्षों का नाम ( सतयुग ) रखा है।
2- त्रेतायुग- 12,96000  वर्षों का नाम ( त्रेतायुग ) रखा है।
3- द्वापरयुग- 8,64000  वर्षों का नाम है।
4- कलयुग- 4,32000  वर्षों का नाम है।
कलयुग के 5122  वर्षों का भोग हो चुका है अभी तक।
4,27024 वर्षों का भोग होना है। 

पंच महायज्ञ
       1- ब्रह्मयज्ञ   
       2- देवयज्ञ
       3- पितृयज्ञ
       4- बलिवैश्वदेवयज्ञ
       5- अतिथियज्ञ
   
स्वर्ग  -  जहाँ सुख है।
नरक  -  जहाँ दुःख है।.

*#भगवान_शिव के  "35" रहस्य!!!!!!!!

भगवान शिव अर्थात पार्वती के पति शंकर जिन्हें महादेव, भोलेनाथ, आदिनाथ आदि कहा जाता है।

*🔱1. आदिनाथ शिव : -* सर्वप्रथम शिव ने ही धरती पर जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया इसलिए उन्हें 'आदिदेव' भी कहा जाता है। 'आदि' का अर्थ प्रारंभ। आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम 'आदिश' भी है।

*🔱2. शिव के अस्त्र-शस्त्र : -* शिव का धनुष पिनाक, चक्र भवरेंदु और सुदर्शन, अस्त्र पाशुपतास्त्र और शस्त्र त्रिशूल है। उक्त सभी का उन्होंने ही निर्माण किया था।

*🔱3. भगवान शिव का नाग : -* शिव के गले में जो नाग लिपटा रहता है उसका नाम वासुकि है। वासुकि के बड़े भाई का नाम शेषनाग है।

*🔱4. शिव की अर्द्धांगिनी : -* शिव की पहली पत्नी सती ने ही अगले जन्म में पार्वती के रूप में जन्म लिया और वही उमा, उर्मि, काली कही गई हैं।

*🔱5. शिव के पुत्र : -* शिव के प्रमुख 6 पुत्र हैं- गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा। सभी के जन्म की कथा रोचक है।

*🔱6. शिव के शिष्य : -* शिव के 7 शिष्य हैं जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि माना गया है। इन ऋषियों ने ही शिव के ज्ञान को संपूर्ण धरती पर प्रचारित किया जिसके चलते भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई। शिव ने ही गुरु और शिष्य परंपरा की शुरुआत की थी। शिव के शिष्य हैं- बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज इसके अलावा 8वें गौरशिरस मुनि भी थे।

*🔱7. शिव के गण : -* शिव के गणों में भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय प्रमुख हैं। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का गण माना जाता है। 

*🔱8. शिव पंचायत : -* भगवान सूर्य, गणपति, देवी, रुद्र और विष्णु ये शिव पंचायत कहलाते हैं।

*🔱9. शिव के द्वारपाल : -* नंदी, स्कंद, रिटी, वृषभ, भृंगी, गणेश, उमा-महेश्वर और महाकाल।

*🔱10. शिव पार्षद : -* जिस तरह जय और विजय विष्णु के पार्षद हैं उसी तरह बाण, रावण, चंड, नंदी, भृंगी आदि शिव के पार्षद हैं।

*🔱11. सभी धर्मों का केंद्र शिव : -* शिव की वेशभूषा ऐसी है कि प्रत्येक धर्म के लोग उनमें अपने प्रतीक ढूंढ सकते हैं। मुशरिक, यजीदी, साबिईन, सुबी, इब्राहीमी धर्मों में शिव के होने की छाप स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। शिव के शिष्यों से एक ऐसी परंपरा की शुरुआत हुई, जो आगे चलकर शैव, सिद्ध, नाथ, दिगंबर और सूफी संप्रदाय में वि‍भक्त हो गई।

*🔱12. बौद्ध साहित्य के मर्मज्ञ अंतरराष्ट्रीय : -*  ख्यातिप्राप्त विद्वान प्रोफेसर उपासक का मानना है कि शंकर ने ही बुद्ध के रूप में जन्म लिया था। उन्होंने पालि ग्रंथों में वर्णित 27 बुद्धों का उल्लेख करते हुए बताया कि इनमें बुद्ध के 3 नाम अतिप्राचीन हैं- तणंकर, शणंकर और मेघंकर।

*🔱13. देवता और असुर दोनों के प्रिय शिव : -* भगवान शिव को देवों के साथ असुर, दानव, राक्षस, पिशाच, गंधर्व, यक्ष आदि सभी पूजते हैं। वे रावण को भी वरदान देते हैं और राम को भी। उन्होंने भस्मासुर, शुक्राचार्य आदि कई असुरों को वरदान दिया था। शिव, सभी आदिवासी, वनवासी जाति, वर्ण, धर्म और समाज के सर्वोच्च देवता हैं।

*🔱14. शिव चिह्न : -* वनवासी से लेकर सभी साधारण व्‍यक्ति जिस चिह्न की पूजा कर सकें, उस पत्‍थर के ढेले, बटिया को शिव का चिह्न माना जाता है। इसके अलावा रुद्राक्ष और त्रिशूल को भी शिव का चिह्न माना गया है। कुछ लोग डमरू और अर्द्ध चन्द्र को भी शिव का चिह्न मानते हैं, हालांकि ज्यादातर लोग शिवलिंग अर्थात शिव की ज्योति का पूजन करते हैं।

*🔱15. शिव की गुफा : -* शिव ने भस्मासुर से बचने के लिए एक पहाड़ी में अपने त्रिशूल से एक गुफा बनाई और वे फिर उसी गुफा में छिप गए। वह गुफा जम्मू से 150 किलोमीटर दूर त्रिकूटा की पहाड़ियों पर है। दूसरी ओर भगवान शिव ने जहां पार्वती को अमृत ज्ञान दिया था वह गुफा 'अमरनाथ गुफा' के नाम से प्रसिद्ध है।

*🔱16. शिव के पैरों के निशान : -* श्रीपद- श्रीलंका में रतन द्वीप पहाड़ की चोटी पर स्थित श्रीपद नामक मंदिर में शिव के पैरों के निशान हैं। ये पदचिह्न 5 फुट 7 इंच लंबे और 2 फुट 6 इंच चौड़े हैं। इस स्थान को सिवानोलीपदम कहते हैं। कुछ लोग इसे आदम पीक कहते हैं।

रुद्र पद- तमिलनाडु के नागपट्टीनम जिले के थिरुवेंगडू क्षेत्र में श्रीस्वेदारण्येश्‍वर का मंदिर में शिव के पदचिह्न हैं जिसे 'रुद्र पदम' कहा जाता है। इसके अलावा थिरुवन्नामलाई में भी एक स्थान पर शिव के पदचिह्न हैं।

तेजपुर- असम के तेजपुर में ब्रह्मपुत्र नदी के पास स्थित रुद्रपद मंदिर में शिव के दाएं पैर का निशान है।

जागेश्वर- उत्तराखंड के अल्मोड़ा से 36 किलोमीटर दूर जागेश्वर मंदिर की पहाड़ी से लगभग साढ़े 4 किलोमीटर दूर जंगल में भीम के पास शिव के पदचिह्न हैं। पांडवों को दर्शन देने से बचने के लिए उन्होंने अपना एक पैर यहां और दूसरा कैलाश में रखा था।

रांची- झारखंड के रांची रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर की दूरी पर 'रांची हिल' पर शिवजी के पैरों के निशान हैं। इस स्थान को 'पहाड़ी बाबा मंदिर' कहा जाता है।

*🔱17. शिव के अवतार : -* वीरभद्र, पिप्पलाद, नंदी, भैरव, महेश, अश्वत्थामा, शरभावतार, गृहपति, दुर्वासा, हनुमान, वृषभ, यतिनाथ, कृष्णदर्शन, अवधूत, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, किरात, सुनटनर्तक, ब्रह्मचारी, यक्ष, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, द्विज, नतेश्वर आदि हुए हैं। वेदों में रुद्रों का जिक्र है। रुद्र 11 बताए जाते हैं- कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शंभू, चण्ड तथा भव।

*🔱18. शिव का विरोधाभासिक परिवार : -* शिवपुत्र कार्तिकेय का वाहन मयूर है, जबकि शिव के गले में वासुकि नाग है। स्वभाव से मयूर और नाग आपस में दुश्मन हैं। इधर गणपति का वाहन चूहा है, जबकि सांप मूषकभक्षी जीव है। पार्वती का वाहन शेर है, लेकिन शिवजी का वाहन तो नंदी बैल है। इस विरोधाभास या वैचारिक भिन्नता के बावजूद परिवार में एकता है।

*🔱19.*  ति‍ब्बत स्थित कैलाश पर्वत पर उनका निवास है। जहां पर शिव विराजमान हैं उस पर्वत के ठीक नीचे पाताल लोक है जो भगवान विष्णु का स्थान है। शिव के आसन के ऊपर वायुमंडल के पार क्रमश: स्वर्ग लोक और फिर ब्रह्माजी का स्थान है।

*🔱20.शिव भक्त : -* ब्रह्मा, विष्णु और सभी देवी-देवताओं सहित भगवान राम और कृष्ण भी शिव भक्त है। हरिवंश पुराण के अनुसार, कैलास पर्वत पर कृष्ण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। भगवान राम ने रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापित कर उनकी पूजा-अर्चना की थी।

*🔱21.शिव ध्यान : -* शिव की भक्ति हेतु शिव का ध्यान-पूजन किया जाता है। शिवलिंग को बिल्वपत्र चढ़ाकर शिवलिंग के समीप मंत्र जाप या ध्यान करने से मोक्ष का मार्ग पुष्ट होता है।

*🔱22.शिव मंत्र : -* दो ही शिव के मंत्र हैं पहला- ॐ नम: शिवाय। दूसरा महामृत्युंजय मंत्र- ॐ ह्रौं जू सः। ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जू ह्रौं ॐ ॥ है।

*🔱23.शिव व्रत और त्योहार : -* सोमवार, प्रदोष और श्रावण मास में शिव व्रत रखे जाते हैं। शिवरात्रि और महाशिवरात्रि शिव का प्रमुख पर्व त्योहार है।

*🔱24.शिव प्रचारक : -* भगवान शंकर की परंपरा को उनके शिष्यों बृहस्पति, विशालाक्ष (शिव), शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज, अगस्त्य मुनि, गौरशिरस मुनि, नंदी, कार्तिकेय, भैरवनाथ आदि ने आगे बढ़ाया। इसके अलावा वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, बाण, रावण, जय और विजय ने भी शैवपंथ का प्रचार किया। इस परंपरा में सबसे बड़ा नाम आदिगुरु भगवान दत्तात्रेय का आता है। दत्तात्रेय के बाद आदि शंकराचार्य, मत्स्येन्द्रनाथ और गुरु गुरुगोरखनाथ का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।

*🔱25.शिव महिमा : -* शिव ने कालकूट नामक विष पिया था जो अमृत मंथन के दौरान निकला था। शिव ने भस्मासुर जैसे कई असुरों को वरदान दिया था। शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था। शिव ने गणेश और राजा दक्ष के सिर को जोड़ दिया था। ब्रह्मा द्वारा छल किए जाने पर शिव ने ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया था।

*🔱26.शैव परम्परा : -* दसनामी, शाक्त, सिद्ध, दिगंबर, नाथ, लिंगायत, तमिल शैव, कालमुख शैव, कश्मीरी शैव, वीरशैव, नाग, लकुलीश, पाशुपत, कापालिक, कालदमन और महेश्वर सभी शैव परंपरा से हैं। चंद्रवंशी, सूर्यवंशी, अग्निवंशी और नागवंशी भी शिव की परंपरा से ही माने जाते हैं। भारत की असुर, रक्ष और आदिवासी जाति के आराध्य देव शिव ही हैं। शैव धर्म भारत के आदिवासियों का धर्म है।

*🔱27.शिव के प्रमुख नाम : -*  शिव के वैसे तो अनेक नाम हैं जिनमें 108 नामों का उल्लेख पुराणों में मिलता है लेकिन यहां प्रचलित नाम जानें- महेश, नीलकंठ, महादेव, महाकाल, शंकर, पशुपतिनाथ, गंगाधर, नटराज, त्रिनेत्र, भोलेनाथ, आदिदेव, आदिनाथ, त्रियंबक, त्रिलोकेश, जटाशंकर, जगदीश, प्रलयंकर, विश्वनाथ, विश्वेश्वर, हर, शिवशंभु, भूतनाथ और रुद्र।

*🔱28.अमरनाथ के अमृत वचन : -* शिव ने अपनी अर्धांगिनी पार्वती को मोक्ष हेतु अमरनाथ की गुफा में जो ज्ञान दिया उस ज्ञान की आज अनेकानेक शाखाएं हो चली हैं। वह ज्ञानयोग और तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है। 'विज्ञान भैरव तंत्र' एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है।

*🔱29.शिव ग्रंथ : -* वेद और उपनिषद सहित विज्ञान भैरव तंत्र, शिव पुराण और शिव संहिता में शिव की संपूर्ण शिक्षा और दीक्षा समाई हुई है। तंत्र के अनेक ग्रंथों में उनकी शिक्षा का विस्तार हुआ है।

*🔱30.शिवलिंग : -* वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है, उसे लिंग कहते हैं। इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है। वस्तुत: यह संपूर्ण सृष्टि बिंदु-नाद स्वरूप है। बिंदु शक्ति है और नाद शिव। बिंदु अर्थात ऊर्जा और नाद अर्थात ध्वनि। यही दो संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार है। इसी कारण प्रतीक स्वरूप शिवलिंग की पूजा-अर्चना है।

*🔱31.बारह ज्योतिर्लिंग : -* सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ॐकारेश्वर, वैद्यनाथ, भीमशंकर, रामेश्वर, नागेश्वर, विश्वनाथजी, त्र्यम्बकेश्वर, केदारनाथ, घृष्णेश्वर। ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति के संबंध में अनेकों मान्यताएं प्रचलित है। ज्योतिर्लिंग यानी 'व्यापक ब्रह्मात्मलिंग' जिसका अर्थ है 'व्यापक प्रकाश'। जो शिवलिंग के बारह खंड हैं। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है।

 दूसरी मान्यता अनुसार शिव पुराण के अनुसार प्राचीनकाल में आकाश से ज्‍योति पिंड पृथ्‍वी पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया। इस तरह के अनेकों उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे। भारत में गिरे अनेकों पिंडों में से प्रमुख बारह पिंड को ही ज्‍योतिर्लिंग में शामिल किया गया।

*🔱32.शिव का दर्शन : -* शिव के जीवन और दर्शन को जो लोग यथार्थ दृष्टि से देखते हैं वे सही बुद्धि वाले और यथार्थ को पकड़ने वाले शिवभक्त हैं, क्योंकि शिव का दर्शन कहता है कि यथार्थ में जियो, वर्तमान में जियो, अपनी चित्तवृत्तियों से लड़ो मत, उन्हें अजनबी बनकर देखो और कल्पना का भी यथार्थ के लिए उपयोग करो। आइंस्टीन से पूर्व शिव ने ही कहा था कि कल्पना ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है।

*🔱33.शिव और शंकर : -* शिव का नाम शंकर के साथ जोड़ा जाता है। लोग कहते हैं- शिव, शंकर, भोलेनाथ। इस तरह अनजाने ही कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम बताते हैं। असल में, दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की हैं। शंकर को हमेशा तपस्वी रूप में दिखाया जाता है। कई जगह तो शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए दिखाया गया है। अत: शिव और शंकर दो अलग अलग सत्ताएं है। हालांकि शंकर को भी शिवरूप माना गया है। माना जाता है कि महेष (नंदी) और महाकाल भगवान शंकर के द्वारपाल हैं। रुद्र देवता शंकर की पंचायत के सदस्य हैं।

*🔱34. देवों के देव महादेव :* देवताओं की दैत्यों से प्रतिस्पर्धा चलती रहती थी। ऐसे में जब भी देवताओं पर घोर संकट आता था तो वे सभी देवाधिदेव महादेव के पास जाते थे। दैत्यों, राक्षसों सहित देवताओं ने भी शिव को कई बार चुनौती दी, लेकिन वे सभी परास्त होकर शिव के समक्ष झुक गए इसीलिए शिव हैं देवों के देव महादेव। वे दैत्यों, दानवों और भूतों के भी प्रिय भगवान हैं। वे राम को भी वरदान देते हैं और रावण को भी।