शुक्रवार, 31 जुलाई 2020

*प्रत्येक नक्षत्र को चार चरणों में बांटा गया है*

*प्रत्येक नक्षत्र को चार चरणों में बांटा गया है* 

एक नक्षत्र13डीग्री20| का होता है अतः नक्षत्र के एक चरण की दूरी 13/20|/4 = 30/20| होती है | सवा दो नक्षत्र अर्थात ९ चरण (30/0 ) की एक राशि होती है | चंद्रमा सवा दो दिन में एक राशि पार कर लेता है अर्थात 30/0 आगे बढ़ जाता है यानी सवा दो दिन तक चंद्रमा एक ही राशि में रहता है | 27 दिन में सभी १२ राशियाँ और नक्षत्र पार कर लेता है | इन चरणों के लिए कुछ अक्षर निश्चित किये गए हैं, जिसके हिसाब से किसी जातक का नामकरण किया जाता है |
क्रमांक नक्षत्र नक्षत्र चरण चरणाक्षर राशि
1 अश्विनी 1,2,3,4 चू, चे, चो, ला मेष
2 भरणी 1,2,3,4 ली, लू, ले, लो
3 कृत्तिका 1 अ
3 कृत्तिका 2,3,4 ई, ऊ, ए वृष
4 रोहिणी 1,2,3,4 ओ, वा, वी, वू,
5 मृगशिरा 1,2 वे, वो
5 मृगशिरा 3,4 का, की मिथुन
6 आर्द्रा 1,2,3,4 वु, घ, ड, छ
7 पुनर्वसु 1,2,3 के, को, हा
7 पुनर्वसु 4 ही कर्क
8 पुष्य 1,2,3,4 हू, हे, हो, डा
9 अश्लेषा 1,2,3,4 डी, डू, डे, डो
10 मघा 1,2,3,4 मा, मी, मू मे सिंह
11 पूर्व फाल्गुनी 1,2,3,4 मो, टा, टी, टू
12 उत्तरा फाल्गुनी 1 टे
12 उत्तरा फाल्गुनी 2,3,4 टो, पा, पी कन्या
13 हस्त 1,2,3,4 पू, ष, ण, ठ
14 चित्रा 1,2 पे, पो
14 चित्रा 3,4 रा, री, ब तुला
15 स्वाति 1,2,3,4 स, रे, रो, ता
16 विशाखा 1,2,3 ती, तू, ते
16 विशाखा 4 तो वृश्चिक
17 अनुराधा 1,2,3,4 ना, नी, नू, ने
18 ज्येष्ठा 1,2,3,4 नो, या, यी, यूं
19 मूल 1,2,3,4 ये, यो, भा, भी धनु
20 पूर्वाषाढ़ 1,2,3,4 भू, ध, फा, ढा
21 उत्तराषाढ़ 1 भे
21 उत्तराषाढ़ 2,3,4 भो, जा, जी मकर
22 श्रवण 1,2,3,4 खी, खू, खे, खो
23 धनिष्ठा 1,2 गा, गी
23 धनिष्ठा 3,4 गू, गे कुम्भ
24 शतभिषा 1,2,3,4 गो, सा, सी, सू
25 पूर्वाभाद्रपद 1,2,3 से, सो, दा
25 पूर्वाभाद्रपद 4 दी मीन
26 उत्तरा भाद्रपद 1,2,3,4 दू, थ, झ, ञ
27 रेवती 1,2,3,4 दे, दो, चा, ची
अब हमने लग्न कुंडली और चन्द्र ।अब हम नवांश कुंडली और कुंडली के विभिन्न विषय यथा भाव, नक्षत्रों का प्रभाव आदि का ध्यान  इस अध्याय में करेंगे |नवांश कुंडली – नवांश कुंडली एक प्रकार के लग्न कुंडली को सूक्ष्मदर्शी यंत्र से देखने जैसा है | यदि हम प्रत्येक राशि को नौ बराबर हिस्से में बांटे तो प्रत्येक छोटा हिस्सा 300/9 = 3030| का होगा १२ राशियों में कुल मिलकर 108 नवमांश होंगे, परन्तु नवांशो के स्वामी का क्रम राशियों के स्वामी के क्रम से ही चलता है | लग्न कुंडली जातक का शरीर है तो चन्द्र कुंडली मन हैं एवं नवांश कुंडली जातक की आत्मा होती है | नवमांश कुंडली से जातक की पत्नी पत्नी या जातिका के पति का विचार किया जाता है | पारिवारिक सुख दुःख में भी नवमांश कुंडली से बहुत सहायता मिलती है | यहाँ यह उल्लेखनीय है कि जो ग्रह लग्न कुंडली में जिस राशि में होता है यदि उसी राशि का नवमांश कुंडली में भी आ जाता है तो वह ग्रह वर्गोत्तम हो जाता है और उस ग्रह के फल देने की क्षमता द्विगुणित हो जाती है | वर्गोतम ग्रह को फलित ज्योतिष में अच्छा माना जाता है |

उदाहरण – माना किसी जातक के लिए ग्रह स्पष्ट निम्नलिखित है |
लग्न –
लग्न 4s19032|
सूर्य 7s1030|
चन्द्र 7s2605|
मंगल 8s1905|
बुध 7s0024|
गुरु 6s28011|
शुक्र 7s0022|
शनि 6s506|
राहु 2s11015|
केतु 8s11015|इस जातक का नवांश – लग्न सिंह राशि में 19032| जो कि सिंह राशि के छठवें भाग के अंतर्गत (नवमांश चक्र में इतने डिग्री पर  सिंह राशि देखें) आने से नवमांश लग्न कन्या हुई | इसी प्रकार सूर्य वृश्चिक राशि में 1030| में होने से नवमांश कुंडली में कर्क राशि में रहेगा (नवमांश चक्र में इतने डिग्री पर वृश्चिक राशि देखें) | चंद्रमा वृश्चिक में सातवें भाग में मकर राशि में, मंगल धनु राशि के पांचवे भाग से सिंह राशि में, बुध वृश्चिक राशि के प्रथम भाग से कर्क राशि में, गुरु तुला राशि के नौवें भाग से मिथुन राशि में, शुक्र वृश्चिक राशि के पहले भाग से कर्क राशि में, शनि तुला राशि के दुसरे भाग से वृश्चिक राशि में, राहू मिथुन राशि में चौथे भाग से मकर राशि में होगा और अंत में केतु धनु राशि में चौथे स्थान से कर्क राशि में होगा |
किसी जातक की विवेचना लग्न कुंडली, चन्द्र कुडंली व् नवांश कुंडली तीनो को देख कर ही करना उत्तम होता है | उक्त बातों से स्पष्ट है कि सामान्यतः मात्र जन्म कुंडली को देख कर या मात्र राशि के आधार पर कुछ बातें बता कर दूसरों को प्रभावित करना मनोरंजन का साधन मात्र है | इसी प्रकार नित्य प्रातः समाचार पत्र आदि में केवल राशि के अनुसार फल देखकर प्रसन्न हो जाना भी आपका मनोविलास ही है | इस बात का वास्तविक ज्योतिष विज्ञान से कोई सम्बन्ध नहीं है |
भावेश – अब आपने कुंडली बनाना तो सीख लिया अब समझते हैं कि इसमें प्रयुक्त विभिन्न शब्दावली या अन्कावली और भावों का क्या तात्पर्य है ? जैसा हम जानते हैं कि कुंडली में जो अंक लिखे हैं वह राशि बताते हैं उदाहरण के लिए यदि उपरोक्त लग्न  कुंडली में 5  नंबर लिखा है अतः कहा जा सकता है कि लग्न या प्रथम भाव में 5 अर्थात सिंह राशि पड़ी है | हम पहले से ही जानते हैं कि सिंह राशि का स्वामी ग्रह सूर्य है | अतः ज्योतिषीय भाषा में कहेंगे कि प्रथम भाव का स्वामी सूर्य है (क्योंकि पहले घर में 5 लिखा है) भाव के स्वामी को भावेश  भी कहते हैं (कह सकते हैं कि राशि के स्वामी को उस भाव का भावेश कहते हैं) | प्रथम भाव के स्वामी को प्रथमेश या लग्नेश भी कहते हैं | इसी प्रकार द्वितीय भाव के स्वामी को द्वितीयेश, तृतीय भाव के स्वामी को तृतीयेश इत्यादि कहते हैं |
जैसा कि बताया गया कि जिस भाव में, जो राशि लिखी होती है उस राशि का स्वामी ग्रह उस भाव का भावेश कहलाता है | भावेश अपनी राशि वाले भाव में बैठा हो सका है और किसी अन्य राशि वाले भाव में भी बैठा हो सकता है | उदाहरण के लिए उपरोक्त लग्न कुंडली में प्रथम भाव सिंह राशि लिखी है | सिंह राशि का स्वामी ग्रह सूर्य है जो चौथे भाव में वृश्चिक राशि में बैठा है | कहा जाएगा कि लग्न भावेश चतुर्थ भाव में बैठा है | यदि कोई ग्रह अपनी ही राशि में बैठा हो तो कहा जायेगा कि भावेश अपने भाव में बैठे हैं | इसी प्रकार सभी भावों के बारे में जान सकते हैं |
स्वामी ग्रह होने का अभिप्राय ये है कि जो ग्रह जिस राशि का स्वामी ग्रह कहा जाता है, उसका उस राशि पर विशेष अधिकार रहना कहा गया है | उदाहरणार्थ जैसे ग्रामाधिपति को अपने ग्राम से प्रेम होता है और उस ग्राम वाले का भी अपने स्वामी से एक विशेष सम्बन्ध होता है और जब ग्रामाधिपति अपने स्थान में रहता है तो वह विशेष रूप से पराक्रमी और संतुष्ट रहता है | ज्योतिष शास्त्र में ग्रहाधिपत्य से वैसा ही अनुमान बताया गया है |  राशियों के स्वामियों को याद करने के लिए एक आसान तरीका निम्न प्रकार है |
सूर्य जातक में कहा गया है –अहम् राजा शशि राज्ञी नेता भूमिसुतः खगः | सौम्यः कुमारो मंत्री च गुरुस्तद्वल्ल्भा भृगुः || 
प्रेष्यास्त्थेव सम्प्रोक्तः सर्वदा तनुजो मम |
अर्थात सूर्य राजा और चंद्रमा रानी है | बुध युवराज, मंगल नायक, बृहस्पति देवमंत्री, शुक्र दैत्यमंत्री और शनि दास है | (ऊपर के श्लोक में “गुरुस्तद्वल्ल्भा भृगुः” का अर्थ होता है, बृहस्पति की प्रियतमा शुक्र है परन्तु यह भाव न तो पुराणोक्त ही है और न ही ज्योतिष शास्त्र में पाया जाता है
भाव – यद्यपि कुंडली में एकैक राशि का एकैक स्थान होता है, परन्तु एक भाव ठीक एक ही राशि का सर्वदा नहीं होता | इसका कारण यह है कि लग्न स्पष्ट 15 अंश पूर्व और 15 अंश बाद का एक भाव (प्रथम भाव) होता है | यों समझिये कि किसी का जन्म मेष के १२ अंश २० कला पर था तो उस कुंडली का प्रथम भाव उसके लगभग १५ अंश पूर्व से अर्थात मीन के 27 अंश २० कला से प्रारंभ होकर लग्न स्पष्ट से 15 अंश बाद तक अर्थात मेष के 27 अंश २० कला  तक हुआ | साधारणतः इसी प्रकार द्वितीय भाव मेष के 27 अंश २० कला के बाद, वृष के 27 अंश २० कला पर्यंत हुआ | इस से बोध होता है कि यद्यपि अन्य स्थानों में भी प्रत्यक्ष रूप से लग्न की एक ही राशि मालूम होती है  तथापि उस भाव के विचारते समय दूसरी राशि का भी सम्बन्ध हो जाना संभव है | इस कारण उस दूसरी राशि में बैठे हुए ग्रहों का भी सम्बन्ध हो सकता है | अतएव फलित ज्योतिष में भाव का साधन तथा भाव कुंडली का प्रयोग समय समय पर अत्यावश्यक हो जाता है |
भाव संधि – जैसे बताया गया है, कि प्रत्येक भाव अपने भावस्फुट से लगभग 15 अंश पूर्व और 15 अंश पश्चात तक होता है और जहां से एक भाव का अंत और दुसरे का प्रारंभ होता है, उसे संधि कहते हैं | इसे दो भावों का योगस्थान समझ सकते हैं | भावों की संधि मालूम करना बड़ा सुगम है | किसी भाव के स्फुट को उसके आगामी भाव स्फुट में जोड़कर उसका अर्द्ध कर देने से उन दोनों भावों की संधिस्फुट हो जायेगी | जैसे मान किसी कुंडली में ‘लग्न स्फुट’ 0|12|20 और द्वितीय भाव स्फुट 1|8|50 है | इन दोनों का योग 1|12|10 जिसका आधा 0|25|35 हुआ और यही प्रथम और द्वितीय भावों की संधि हुई | ऐसे ही अन्य भी निकाली जा सकती है |
अब यदि कोई ग्रह मीन राशि में 25 अंश 35 कला के बाद है तो यद्यपि प्रत्यक्ष रूप से मीन राशि में होने के कारण द्वादश भाव में प्रतीत होगा परन्तु मीन के 25 अंश 35 कला के बाद रहने के कारण उस ग्रह को लग्न या प्रथम भाव में रहने का फल होगा | इसी प्रकार द्वितीय भाव के मेष के 25 अंश 35 कला से वृष के 22 अंश 5 कला पर्यंत चला गया है | यदि कोई ग्रह मेष के 26 अथवा 27 अंशो में रहे तो यह प्रत्यक्ष रूप से लग्न में मालूम होगा पर वह द्वितीय भाव का फल होगा |
भाव की अवधि – हम कुंडली के १२ भावों को २४ घंटो में बाँट सकते हैं और कह सकते हैं कि एक भाव २ घंटे का होता है |सूर्य, चन्द्र तथा शनि ग्रह की स्थिति – कुंडली में भावों में सभी ग्रह महवपूर्ण होते हैं और उनकी स्थिति फलादेश को प्रभावित करती है | किन्तु सूर्य, चन्द्र एवं शनि ग्रहों की स्थिति से व्यक्ति के जीवन के कुछ विशिष्ट तथ्यों का आसानी से पता लग जाता है | भाव में सूर्य की स्थिति से जन्म के समय का ज्ञान हो जाता है | सूर्य एवं चन्द्र दोनों की भाव स्थिति से जन्म की तिथि, जन्म के पक्ष और जन्म के मास का पता लग जाता है | शनि ग्रह की स्थिति से व्यक्ति की वर्तमान आयु का अनुमान हो जाता है | नीचे की दो कुंडलियों से हम उपरोक्त तथ्य मिलायेंगे और पायेंगे कि हम पता कर सकते हैं, कुंडली ठीक बनी है या नहीं |
उदाहरण – कुंडली 1 – जन्मतिथि 27.6.1976, जन्म समय – 4.45 सांय, जन्मस्थान – दिल्ली (आषाढ़ की अमावस, सूर्य – 12.23.25, चंद्रमा – 10.36.29, शनि – 09.03.37
कुंडली 2 – जन्मतिथि 01.08.1979, जन्म समय – 8.30 प्रातः, जन्मस्थान – पलवल (श्रावण शुक्ल अष्टमी) सूर्य 14.43.43, चंद्रमा – 13.17.24, शनि 18.49.30

जन्म का समय – जन्म का समय सूर्य स्थित भाव से जाना जाता है | कुंडली 1 में सूर्य अष्टम भाव में स्थित है | इस भाव का समय 3 बजे से 5 बजे सांय का है और कुंडली का जन्म ४ बजकर 45 मिनट सांय का ही है | यह समय अष्टम भाव के समय के मध्य आता है | इसी प्रकार कुंडली 2 में सूर्य द्वादश भाव् में है | द्वादश भाव का समय 7 बजे से प्रातः 9 बजे आता है | कुंडली 2 में जन्म 8 बजकर ३० मिनट प्रातः का ही है | यहाँ समय द्वादश भाव के समय के मध्य आता है | इस प्रकार दोनों कुंडली का समय प्रमाणित होता है और दोनों कुंडली सही हैं |
जन्म की तिथि – जन्म की तिथि का अनुमान सूर्य चंद्रमा दोनों की स्थिति देखकर लगाया जा सकता है | सूर्य को एक मान कर गिनती करें | यदि सूर्य से गिनती करने पर चन्द्र सातवें स्थान में हो तो पूर्णिमा होती है और यदि सूर्य चंद्रमा दोनों एक ही भाव में हो तो अमावस्या होती है और यदि सातवें स्थान से पहले गिनती आती है तो शुक्ल पक्ष की कोई तिथि और यदि सातवें स्थान से आगे गिनती आती है तो कृष्ण पक्ष की कोई तिथि होती है | प्रत्येक अगली गिनती पर लगभग २ दिन का अंतर पड़ता है | इसी गणित से तिथि का अंदाजा लगाया लग जाता है | कुंडली 1 में सूर्य व् चंद्रमा एक ही भाव में है | अतः अमावस तिथि का जन्म होना चाहिए | व्यक्ति का जन्म भी आषाढ़ कृष्णा अमावस्या का ही है | कुंडली 2 में सूर्य से चंद्रमा की गिनती ४ है और सातवें स्थान से पहले है | अतः जन्म शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि का बनता है | कुंडली २ में जन्म श्रावण शुक्ल अष्टमी तिथि का ही है |
इसे और बेहतर समझते हैं – सूर्य एक राशी पर 30 दिन रहता हैं और चन्द्रमा एक राशी पर लगभग सवा दो दिन तक रहता हैं, तो प्रतिपदा की कुंडली में तो दोनों साथ रहेंगे ही। तिथियाँ शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से गिनी जाती है. पूर्णिमा को 15 तथा अमावस्या को 30 तिथि कहते हैं. जिस दिन सूर्य व चन्द्रमा में 180º का अन्तर (दूरी) होता है अर्थात सूर्य व चन्द्र आमने सामने होते हैं तो वह पूर्णिमा तिथि कहलाती है. और जब सुर्य व चन्द्रमा एक ही स्थान पर होते हैं अर्थात 0º का अन्तर होता है तो अमावस्या तिथि कहलाती है. भचक्र का कुलमान 360º है, तो एक तिथि=360/30=12º अर्थात सूर्य-चन्द्र में 12º का अन्तर पडने पर एक तिथि होती है.

उदाहरण स्वरुप 0º से 12º तक प्रतिपदा (शुक्ल पक्ष) 12º से 24º तक द्वितीय तथा 330º से 360º तक अमावस्या इत्यादि. भारतीय ज्योतिष की परम्परा में तिथि की वृद्धि एंव तिथि का क्षय भी होता है. जिस तिथि में दो बार सूर्योदय आता है वह वृद्धि तिथि कहलाती है तथा जिस तिथि में एक भी सूर्योदय न हो तो उस तिथि का क्षय हो जाता है. उदाहरण के लिए एक तिथि सूर्योदय से पहले प्रारम्भ होती है तथा पूरा दिन रहकर अगले दिन सूर्योदय के 2 घंटे पश्चात तक भी रहती है तो यह तिथि दो सूर्योदय को स्पर्श कर लेती है. इसलिए इस तिथि में वृद्धि हो जाती है . इसी प्रकार एक अन्य तिथि सूर्योदय के पश्चात प्रारम्भ होती है तथा दूसरे दिन सूर्योदय से पहले समाप्त हो जाती है, क्योंकि यह तिथि एक भी सूर्योदय को स्पर्श नहीं करती अतः क्षय होने से तिथि क्षय कहलाती है.
जन्म का पक्ष – जन्म कुंडली में सूर्य ग्रह से घडी की सूइयों के प्रतिकूल क्रम में गिनती करने पर 7 भावों की गिनती तक चन्द्र ग्रह हो तो शुक्ल पक्ष का जन्म है और यदि 7 से आगे भावों में चन्द्र ग्रह हो तो कृष्ण पक्ष का जन्म माना जायेगा | कुंडली 1 में चन्द्र ग्रह और सूर्य ग्रह एक ही भाव अष्टम में है | अतः अमावस्या का दिन है और कृष्ण पक्ष है | कुंडली 2 में चन्द्र 7 की गिनती से पहले है, अतः शुक्ल पक्ष का जन्म प्रमाणित होता है |जन्म का मास – कुंडली 1 में सूर्य मिथुन राशि में स्थित है अतः स्पष्ट है कि मिथुन सौर मास का जन्म है | अंग्रेजी कलेंडर के अनुसार मिथुन सौरमास का समय 14 जून से 16 जुलाई है | यदि सूर्य ग्रह के स्पष्ट अंश प्रारंभिक 15 अंश तक हैं तो जून का और 15 अंश से अधिक 30 अंश तक है तो जुलाई मास का जन्म होगा | इस कुंडली के सूर्तथा शेष अशुभ |
नवम भाव (धर्म भाव) – इसे भाग्य या त्रिकोण भाव् भी कहते हैं | सूर्य और गुरु इस भाव के कारक ग्रह हैं | पिता, भाग्य, गुरु, प्रशंसा, योग्य कार्य, धर्म, दानशीलता, पूर्वजनम के संचित पुण्य, धर्म, कीर्ति, व्याभिचार, सदाचार, तीर्थ यात्रा, विदेश यात्रा आदि विचारणीय विषय है | बुध, शुक्र – शुभ तथा शेष अशुभ |
दशम भाव ( कर्म भाव) – यह केंद्र भाव भी है | सूर्य, गुरु, बुध, शनि इस भाव के कारक ग्रह हैं | पैतृक व्यवसाय, उदरपालन, व्यापार, प्रतिष्ठा, श्रेणी, पद, प्रसिद्धि, प्रभुत्व, पितृप्रेम, नौकरी, नेतृत्व शक्ति, घुटने, पीठ के रोग विचारणीय है |
एकादश भाव (आय भाव) – इसे त्रिषड़ाय भी कहते हैं | एकादश भाव को अशुभ माना जाता है किन्तु भाव स्थित सभी ग्रह सदैव शुभ फल देते हैं | गुरु इस भाव का कारक ग्रह है | आय, लाभ, गडा धन, लाटरी, पितृधन, माता की मृत्यु, व्यापार से लाभ-हानि, चोट, द्वितीय जीवनसाथी, बड़ा भाई, पैर व् एड़ी का दर्द मुख्य विचारणीय विषय हैं |
द्वादश भाव (व्यय भाव) – इसे दुष्ट भाव भी कहते हैं | शनि इस भाव का कारक ग्रह है | द्वादेश सदैव ही मानहानि, धनहानि और अन्य दुसरे अनिष्ट करता है | अपव्यय, धनहानि, कचहरी, राजदंड, सजा, शयन सुख में कमी, ऋण, हत्या, आत्महत्या, अपमान, बायीं आँख, चोरी से हानि आदि विचारणीय विषय हैं | बुध, शुक्र – शुभ तथा शेष अशुभ |पं रामनिवास गुरुय ग्रह के स्पष्ट अंश 15 अंश से कम हैं अतः कुंडली 1 के जातक का जून मास का जन्म बनता है | वैसे भी 27.06.1976 का जन्म है | कुंडली २ में सूर्य कर्क राशि में है | कर्क सौरमास की अवधि 16 जुलाई से 16 अगस्त है और सूर्य के स्पष्ट अंश 15 से थोड़ी अधिक है अतः कुंडली २ वाले जातक का अगस्त में जन्म समझें | वैसे जातक का जन्म 1.8.1979 का ही है |
वर्तमान आयु – वर्तमान आयु का निर्णय शनि की स्थिति से होता है | जन्म के समय शनि किस राशि में था और अब शनि किस राशि में है | इस अवधि को ढाई से गुणा करने पर वर्तमान में व्यक्ति की कितनी आयु है, पता लग जाता है | शनि एक राशि में करीब ढाई वर्ष रहता है | कुंडली 1 में शनि जन्म के समय कर्क राशि में था | माना 2007 में शनि सिंह राशि में आ गया है | अतः 12 राशियों का समय बीत चुका है | व्यक्ति की वर्तमान आयु 12 राशि x 2.5 वर्ष = 30 वर्ष से अधिक होनी चाहिए (कोई आपकी परीक्षा लेने के लिए किसी मरे हुए व्यक्ति की कुंडली भी दिखा सकता है तो इसी विधि से जन्म समय का शनि इस से पहले कब कर्क राशि में था, ये भी देखना जरूरी है और उसे भी ध्यान में रखना चाहिए ) इसी प्रकार कुंडली 2 में जन्म के समय शनि सिंह राशि में था | अब जुलाई, 2007 में शनि पुनः सिंह राशि में आ गया है | इस प्रकार ११ राशियों का समय व्यतीत हो चुका है | अतः जातक की वर्तमान आयु ११ राशि x 2.5 = 27.5 वर्ष से अधिक होनी चाहिए | इस गणित से दोनों व्यक्तियों की वर्तमान आयु सही बैठती है |
केंद्र तथा त्रिकोण – कुंडली में लग्न को और लग्न से चौथे, सातवें और दसवें स्थान (भाव तथा राशि) को केंद्र कहते हैं | लग्न को, लग्न से पंचम तथा नवम स्थान को त्रिकोण कहते हैं | इस तरह से लग्न के दो नाम हो गए | एक केंद्र और दूसरा त्रिकोण, परन्तु लग्न को केंद्र मानते हैं, त्रिकोण नहीं |कुंडली के विभिन्न भाव –
प्रथम भाव – इसे तनु भाव या लग्न कहते हैं | लग्नेश शुभ हो या अशुभ सदैव शुभ फल देता है | सूर्य इस भाव का कारक ग्रह है | प्रथम भाव से विचारणीय विषय हैं – जन्म, सर, शरीर, अंग, आयु, रूप, कद-काठी आदि |
द्वितीय भाव – इसे धन भाव या पणकर भाव भी कहते हैं | यह मारक भाव है | गुरु इस भाव का कारक ग्रह है | द्वितीय भाव के विचारणीय विषय हैं – रुपया, पैसा, धन, नेत्र, मुख, वाणी, आर्थिक स्थिति, कुटुंब, भोजन, जिह्वा, दांत, मृत्यु, नाक आदि | चन्द्रमा, बुध, गुरु शुक्र ये शुभप्रद रहते हैं |
तृतीय भाव – इसे सहज भाव या त्रिषड़ाय भी कहते हैं | यह एक शुभ भाव है, किन्तु सदैव दोषी होता है | मंगल इस भाव का कारक ग्रह है | तृतीय भाव के विचारणीय विषय हैं – छोटे भाई बहन, धैर्य, नौकर-चाकर, लघु यात्राएँ, साहस, डर, कान, मानसिक संतुलन, धर्म, खांसी, श्वास रोग आदि | सूर्य, शनि, मंगल, शुक्र, बुध, चंद्रमा, राहू- ये शुभ ग्रह हैं |
चतुर्थ भाव – यह सुख भाव कहलाता है यह केंद्र भाव है | पापग्रह इसमें अच्छा फल देते हैं | चन्द्र और बुध इस भाव के कारक ग्रह हैं | विचारणीय विषय – मातृ सुख, जमीन, मकान, वाहन सुख, पशु धन, गुप्त धन, मातृ धन, यश, दया, शान्ति, जनसंपर्क, नौकर-चाकर, खेतीबाड़ी, श्वसुर, उदर रोग, कैंसर, विद्या, ह्रदय आदि विचारणीय हैं | बुध, शुक्र – लाभदायक एवं अन्य भयदायक |पंचम भाव (सुत भाव) – इसे त्रिकोण भाव भी कहते हैं | यह एक शुभ भाव है | गुरु इस भाव का कारक ग्रह है | आकस्मिक धन (लाटरी), विद्या, संतान, संतान सुख, बुद्धि, कुशाग्रता, प्रशंसा योग्य कार्य, दान, मनोरंजन, जुआ, पुस्तक लिखना, स्त्रियों के यकृत, गर्भाशय सम्बन्धी रोग इस भाव से विचारणीय हैं | गुरु, शुक्र, बुध, चंद्रमा – अभीष्ट लाभ
षष्ठम भाव (रिपु भाव) – इस भाव को त्रिषड़ाय और दुष्ट भाव भी कहते हैं | शुभ या अशुभ षष्ठेश, अष्टम और द्वादश भाव को छोड़कर सभी भावों की हानि करता है | मंगल और शनि इस भाव के कारक ग्रह हैं | शत्रु, चिंता, रोग, शारीरिक वक्रता, चोट, मुकदमेबाजी, अवसाद, बदनामी,घर बाहर के झगडे, चोरी-डकैती, भाइयों से मत-भेद, घाव, फोड़े-फुंसी विचारणीय विषय है | सूर्य, चंद्रमा, शनि, मंगल, बुध – शुभ तथा गुरु – अशुभ
सप्तम भाव (जाया भाव) – इसे केंद्र भाव भी कहते हैं | यह एक मारक भाव है | पुरुषों के लिए शुक्र और स्त्रियों के लिए गुरु इस भाव के कारक ग्रह हैं | विवाह, पत्नी, यौन सुख, यात्रा, पार्टनर | इसमें सभी ग्रह अशुभ माने जाते हैं | गुदा, मूत्र, नाभि, दाम्पत्य जीवन, रोजगार, व्यापार, बवासीर आदि प्रमुख है | बुध, गुरु, शुक्र – शुभ तथा सूर्य, शनि, मंगल, राहू – हानिकारक |
अष्टम भाव (मृत्यु भाव) – इसे दुष्ट भाव भी कहते हैं | अष्टमेश सभी भावों की हानि करता है | शनि इस भाव का कारक ग्रह है | आयु, जीवन, मृत्यु, प्रेम, बदनामी, पतन, सजा, दुर्घटना, समुद्री यात्रा, वसीयत, दरिद्रता, आलस्य, जीवनसाथी का भाग्य, गुप्त जनेन्द्रिय रोग, दुर्भाग्य, पापकर्म, कर्ज, अकाल मृत्यु, कठिनाइयाँ | बुध, शुक्र – शुभ

बुधवार, 29 जुलाई 2020

*समस्या समाधान*

हर हर महादेव शिव शंभू🌹


*भगवान शिव शंकर बहुत भोले हैं, इसीलिए हम उन्हें भोलेभंडारी कहते है, यदि कोई भक्त सच्ची श्रद्धा से उन्हें सिर्फ एक लोटा पानी भी अर्पित करे तो भी वे प्रसन्न हो जाते हैं।🌹*

*भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए कुछ छोटे और अचूक उपायों के बारे शिवपुराण में भी लिखा है, ये उपाय इतने सरल हैं, कि इन्हें बड़ी ही आसानी से किया जा सकता है। हर समस्या के समाधान के लिए शिवपुराण में एक अलग उपाय बताया गया है, ये उपाय इस प्रकार हैं-

शिवपुराण के अनुसार इन छोटे उपायों से भगवान शिव को आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है :-

👉🏻भगवान शिव को चावल चढ़ाने से धन की प्राप्ति होती है।

👉🏻तिल चढ़ाने से पापों का नाश हो जाता है।

👉🏻जौ अर्पित करने से सुख में वृद्धि होती है।

👉🏻गेहूं चढ़ाने से संतान वृद्धि होती है।

*यह सभी अन्न भगवान को अर्पण करने के बाद जरूरतमंदों में बांट देना चाहिए।*

*शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव को कौन-सा रस (द्रव्य) चढ़ाने से क्या फल मिलता है?*

👉🏻बुखार होने पर भगवान शिव को जल चढ़ाने से शीघ्र लाभ मिलता है,  सुख व संतान की वृद्धि के लिए भी जल द्वारा भगवान शिव की पूजा उत्तम बताई गई है।

👉🏻तीक्ष्ण बुद्धि के लिए शक्कर मिला दूध भगवान शिव को चढ़ाएं।

👉🏻शिवलिंग पर गन्ने का रस चढ़ाया जाए तो सभी आनंदों की प्राप्ति होती है।

👉🏻शिव को गंगा जल चढ़ाने से भोग व मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है।

👉🏻शहद से भगवान शिव का अभिषेक करने से टीबी रोग में आराम मिलता है।

👉🏻यदि कोई व्यक्ति शारीरिक रूप से कमजोर है, तो उसे उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त करने के लिए भगवान शिव का अभिषेक गौ माता के शुद्ध घी से करना चाहिए।

*शिवपुराण के अनुसार, भगवान शिव को कौन-सा फूल चढ़ाने से क्या फल मिलता है?*

👉🏻लाल व सफेद आंकड़े के फूल से भगवान शिव का पूजन करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।

👉🏻चमेली के फूल से पूजन करने पर वाहन सुख मिलता है।

👉🏻अलसी के फूलों से शिव का पूजन करने पर मनुष्य भगवान विष्णु को प्रिय होता है।

👉🏻शमी वृक्ष के पत्तों से पूजन करने पर मोक्ष प्राप्त होता है।

👉🏻बेला के फूल से पूजन करने पर सुंदर व सुशील पत्नी मिलती है।

👉🏻जूही के फूल से भगवान शिव का पूजन करें तो घर में कभी अन्न की कमी नहीं होती।

👉🏻कनेर के फूलों से भगवान शिव का पूजन करने से नए वस्त्र मिलते हैं।

👉🏻हरसिंगार के फूलों से पूजन करने पर सुख-सम्पत्ति में वृद्धि होती है।

👉🏻धतूरे के फूल से पूजन करने पर भगवान शंकर सुयोग्य पुत्र प्रदान करते हैं, जो कुल का नाम रोशन करता है।
*लाल डंठलवाला धतूरा शिव पूजन में शुभ माना गया है।*

👉🏻दूर्वा से भगवान शिव का पूजन करने पर आयु बढ़ती है।

*इन उपायों से प्रसन्न होते हैं, भगवान शिव?*

👉🏻सोमवार के 21 बिल्वपत्रों पर चंदन से ॐ नम: शिवाय लिखकर शिवलिंग पर चढ़ाएं, इससे आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी।

👉🏻अगर आपके घर में किसी भी प्रकार की परेशानी हो तो सोमवार को  सुबह घर में गोमूत्र का छिड़काव करें तथा गुग्गुल का धूप दें।

👉🏻सोमवार को शिवलिंग पर केशर मिला दुध चढाने से विवाह कार्य में आ रही बाधा दूर होती है।

👉🏻सोमवार की नंदी (बैल) को हरा चारा खिलाएं। इससे जीवन में ‘राजा’ ‘महाराजा’ जैसी सुख-समृद्धि आएगी और मन प्रसन्न रहेगा।

👉🏻सोमवार को गरीबों को भोजन कराएं, इससे आपके घर में कभी अन्न की कमी नहीं होगी तथा पितरों की आत्मा को शांति मिलेगी।

👉🏻सोमवार को रोज सुबह जल्दी उठकर स्नान के बाद शिव मंदिर में  भगवान शिव का जल से अभिषेक कर उन्हें काले तिल अर्पण करें तत्पश्चात मन ही मन में *नम: ॐ शिवाय* मंत्र का जप करें। इससे मन को शांति मिलेगी।

👉🏻सोमवार किसी नदी या तालाब जाकर नमः ॐ शिवाय का जप करते हुए आटे की गोलियां मछलियों को खिलाएं, यह धन प्राप्ति का बहुत ही सरल उपाय है।

*शिव की पूजा से बढ़ाए आमदनी?*

👉🏻सावन के महीने में या सोमवार को किसी भी दिन घर में पारद शिवलिंग की स्थापना करें और उसकी यथा विधि पूजन करें। इसके बाद नीचे लिखे मंत्र का 108 बार जप करें।

*मंत्र👉🏻* ऐं ह्रीं श्रीं ॐ नम: शिवाय: श्रीं ह्रीं ऐं। प्रत्येक मंत्र के साथ बिल्वपत्र पारद शिवलिंग पर चढ़ाएं,  बिल्वपत्र के तीनों दलों पर लाल चंदन से क्रमश:👉🏻 *ऐं, ह्री, श्रीं* लिखें, अंतिम 108 वां बिल्वपत्र को शिवलिंग पर चढ़ाने के बाद निकाल लें, तथा उसे अपने पूजन स्थान पर रखकर प्रतिदिन उसकी पूजा करें।

*संतान प्राप्ति के लिए अद्भुत उपाय?*

👉🏻सोमवार के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद भगवान शिव का पूजन करें, इसके पश्चात गेहूं के आटे से 11 शिवलिंग बनाएं। अब प्रत्येक शिवलिंग का शिव महिम्न स्त्रोत से जलाभिषेक करें।
 इस प्रकार 11 बार जलाभिषेक करें, उस जल का कुछ भाग प्रसाद के रूप में ग्रहण करें। यह प्रयोग लगातार 21 दिन तक करें। गर्भ की रक्षा के लिए और संतान प्राप्ति के लिए गर्भ गौरी रुद्राक्ष भी धारण करें। इसे किसी शुभ दिन शुभ मुहूर्त देखकर धारण करें।

*उत्तम स्वास्थ्य और बीमारी ठीक करने के लिए उपाय?*

👉🏻किसी सोमवार को पानी में दूध व काले तिल डालकर शिवलिंग का अभिषेक करें, अभिषेक के लिए तांबे के बर्तन को छोड़कर किसी अन्य धातु के बर्तन का उपयोग करें।

👉🏻अभिषेक करते समय👉🏻 *ॐ जूं स:* मंत्र का जाप करते रहें। इसके बाद भगवान शिव से रोग निवारण के लिए प्रार्थना करें और प्रत्येक सोमवार को रात में सवा नौ बजे के बाद गाय के सवा पाव कच्चे दूध से शिवलिंग का अभिषेक करने का संकल्प लें। इस उपाय से बीमारी ठीक होने में लाभ मिलता है
 *श्री रांदल ज्योतिष कार्यालय सुरेन्द्रनगर पंडयाजी +९१९८२४४१७०९०*


रविवार, 26 जुलाई 2020

*शनैश्चरस्तोत्रम्*

*शनैश्चरस्तोत्रम्*

*|| श्रीगणेशाय नमः ॥*

अस्य श्रीशनैश्चरस्तोत्रस्य । दशरथ ऋषिः ।
शनैश्चरो देवता । त्रिष्टुप् छन्दः ॥

शनैश्चरप्रीत्यर्थ जपे विनियोगः ।
दशरथ उवाच ॥

कोणोऽन्तको रौद्रयमोऽथ बभ्रुः कृष्णः शनिः पिंगलमन्दसौरिः ।
नित्यं स्मृतो यो हरते च पीडां तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥ १॥

सुरासुराः किंपुरुषोरगेन्द्रा गन्धर्वविद्याधरपन्नगाश्च ।
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥ २॥

नरा नरेन्द्राः पशवो मृगेन्द्रा वन्याश्च ये कीटपतंगभृङ्गाः ।
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥ ३॥

देशाश्च दुर्गाणि वनानि यत्र सेनानिवेशाः पुरपत्तनानि ।
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥ ४॥

तिलैर्यवैर्माषगुडान्नदानैर्लोहेन नीलाम्बरदानतो वा ।
प्रीणाति मन्त्रैर्निजवासरे च तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥ ५॥

प्रयागकूले यमुनातटे च सरस्वतीपुण्यजले गुहायाम् ।
यो योगिनां ध्यानगतोऽपि सूक्ष्मस्तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥ ६॥

अन्यप्रदेशात्स्वगृहं प्रविष्टस्तदीयवारे स नरः सुखी स्यात् ।
गृहाद् गतो यो न पुनः प्रयाति तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥ ७॥

स्रष्टा स्वयंभूर्भुवनत्रयस्य त्राता हरीशो हरते पिनाकी ।
एकस्त्रिधा ऋग्यजुःसाममूर्तिस्तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥ ८॥

शन्यष्टकं यः प्रयतः प्रभाते नित्यं सुपुत्रैः पशुबान्धवैश्च ।
पठेत्तु सौख्यं भुवि भोगयुक्तः प्राप्नोति निर्वाणपदं तदन्ते ॥ ९॥

कोणस्थः पिङ्गलो बभ्रुः कृष्णो रौद्रोऽन्तको यमः ।
सौरिः शनैश्चरो मन्दः पिप्पलादेन संस्तुतः ॥ १०॥

एतानि दश नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत् ।
शनैश्चरकृता पीडा न कदाचिद्भविष्यति ॥ ११॥

*॥ इति श्रीब्रह्माण्डपुराणे श्रीशनैश्चरस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥*.
श्री रांदल ज्योतिष कार्यालय सुरेन्द्रनगर 
पंडयाजी ९८२४४१७०९०...

शनिवार, 18 जुलाई 2020

*રુદ્રાભિષેક કરવાથી થી શુ લાભ થાય?*શિવમહાપુરણ ને આધાર ગણી

*રુદ્રાભિષેક કરવાથી થી શુ લાભ થાય?*
શિવમહાપુરણ ને આધાર ગણી 

શિવ મહાપુરાણ અનુસાર ક્યાં દ્રવ્યથી અભિષેક કરવાથી કરવાથી કયા ફળની પ્રાપ્તિ થાય અથવા આપ જે ઉદ્દેશ્યની પૂર્તિ માટે રુદ્રાભિષેક કરી રહ્યા છો એનાં માટે ક્યાં દ્રવ્યનો ઉપયોગ કરવો જોઈએનો ઉલ્લેખ શિવ પુરાણમાં કરવામાં આવ્યો છે એનું સવિસ્તાર વર્ણન પ્રસ્તુત કરી રહ્યો છુ.આશા છે આપને એ મુજબ રુદ્રાભિષેક કરાવવાથી પૂર્ણ લાભ પ્રાપ્ત થશે.

श्लोक

*जलेन वृष्टिमाप्नोति व्याधिशांत्यै कुशोदकै*

*दध्ना च पशुकामाय श्रिया इक्षुरसेन वै*।

*मध्वाज्येन धनार्थी स्यान्मुमुक्षुस्तीर्थवारिणा*।

*पुत्रार्थी पुत्रमाप्नोति पयसा चाभिषेचनात*।।

*बन्ध्या वा काकबंध्या वा मृतवत्सा यांगना*।

*जवरप्रकोपशांत्यर्थम् जलधारा शिवप्रिया*।।

*घृतधारा शिवे कार्या यावन्मन्त्रसहस्त्रकम्*।

*तदा वंशस्यविस्तारो जायते नात्र संशयः*।

*प्रमेह रोग शांत्यर्थम् प्राप्नुयात मान्सेप्सितम*।

*केवलं दुग्धधारा च वदा कार्या विशेषतः*।

*शर्करा मिश्रिता तत्र यदा बुद्धिर्जडा भवेत्*।

*श्रेष्ठा बुद्धिर्भवेत्तस्य कृपया शङ्करस्य च!*

*सार्षपेनैव तैलेन शत्रुनाशो भवेदिह!*

*पापक्षयार्थी मधुना निर्व्याधिः सर्पिषा तथा*।।

*जीवनार्थी तू पयसा श्रीकामीक्षुरसेन वै*।

*पुत्रार्थी शर्करायास्तु रसेनार्चेतिछवं तथा*।

*महलिंगाभिषेकेन सुप्रीतः शंकरो मुदा*।

*कुर्याद्विधानं रुद्राणां यजुर्वेद्विनिर्मितम्*।

🔱🕉️ *અર્થાત્* 🕉️🔱

➡️-જલથી રુદ્રાભિષેક કરવાથી વૃષ્ટિ થાય છે. 
➡️-કુશા(ડાભ)ના જળથી અભિષેકથી રોગ અને દુઃખથી છુટકારો મળે છે. 
➡️-દહીથી અભિષેક કરવાથી પશુ,મકાન અને વાહનની પ્રાપ્તિ થાય છે. 
➡️-શેરડીના રસથી અભિષેક કરવાથી લક્ષ્મી પ્રાપ્તિ થાય છે. 
➡️-મધ યુક્ત જળથી અભિષેક કરવાથી ધનની વૃદ્ધિ થાય છે. 
➡️-તીર્થના જળથી અભિષેક કરવાથી મોક્ષની પ્રાપ્તિ થાય છે.
➡️-અત્તર યુક્ત જળથી અભિષેક કરવાથી બીમારી નષ્ટ થાય છે.
➡️-દૂધથી અભિષેક કરવાથી પુત્ર પ્રાપ્તિ, પ્રમેહ રોગની શાંતિ તથા મનોકામના પૂર્ણ થાય છે. 
➡️-ગંગાજળથી અભિષેક કરવાથી તાવમાં મુક્તિ મળે છે.
➡️-દૂધ,સાકર મિશ્રિત અભિષેક કરવાથી સદ્બુદ્ધીની પ્રાપ્તિ થાય છે. 
➡️-ઘી થી અભિષેક કરવાથી વંશ વિસ્તાર વધે છે.
➡️-સરસવના તેલથી અભિષેક કરવાથી રોગ તથા શત્રુઓનો નાશ થાય છે. 
➡️-શુદ્ધ મધથી રુદ્રાભિષેક કરવાથી પાપ ક્ષય થાય છે. 

આ પ્રકારે શિવના રુદ્રરુપનું પૂજન અને અભિષેક કરવાથી જાણતા અજાણતાં થવાવાળા પાપાચરણથી મુક્ત થવાય છે.અને સાધકમાં શિવત્વ રુપ સત્યં શિવમ્ સુંદરમ્ નો ઉદય થાય છે.એ પછી શિવ કૃપાથી સમૃદ્ધિ, ધન-ધાન્ય,વિદ્યા અને સંતાન સુખની પ્રાપ્તિ થાય છે અને તમામ મનોકામનાઓ પૂર્ણ થાય છે. 
ૐ શિવોહમ્.....!
🕉️🔱🕉️🔱🕉️🔱🕉️🔱
*પવિત્ર શ્રાવણ માસમા અભિષેક કરો* 

*શિવજી ની ફોજ માં* 
            *સદા રહો મોઝ માં*

बुधवार, 15 जुलाई 2020

*किस राशि में कौन- सा पौधा शुभ रहेगा आइए जाने*

*किस राशि में कौन- सा पौधा शुभ रहेगा आइए जाने*

*१.मेष राशि:-* मेष राशि वाले को अपने राशि स्वामी मंगल के पेड़ लाल चंदन, अनार, नीबू, तुलसी और खैर का पेड़ लगाना चाहिए।
*२.वृष राशि:-* इस राशि वालों को अपने राशि स्वामी शुक्र के अनुसार गुलर (ऊमर), चमेली, नीबू और पलास के पेड़ लगाने चाहिए।
*३.मिथुन राशि:-* इस राशि का स्वामी बुध होता है। अपामार्ग, आम, कटहल, अंगूर, बेल और गुलाव के पौधे लगाना चाहिए।
*४.कर्क राशि:-* कर्क राशि का स्वामी चन्दमा है, पलाश, सफ़ेद गुलाव, चांदनी, मोगरा और गेंदा के पेड़ लगाने चाहिए।
*५:-सिंह राशि:-* राशि का स्वामी सूर्य है, अपामार्ग, लाल गुलाव, लाल गेंदा और लाल चन्दन का पेड़ लगाना चाहिए।
*६:-कन्या राशि:-* इस राशि का स्वामी बुध होता है।अपामार्ग, आम, कटहल, अंगूर, बेल और गुलाव के पौधे लगाना चाहिए।
*७:-तुला राशि:-* इस राशि वालों को अपने राशि स्वामी शुक्र के अनुसार गुलर (ऊमर), चमेली, नीबू और पलास के पेड़ लगाने चाहिए।
*८:-वृश्चिक राशि:-* इस राशि वाले को अपने राशि स्वामी मंगल के पेड़ लाल चंदन, अनार, नीबू, तुलसी और खैर का पेड़ लगाना चाहिए।
*९:-धनु राशि:-* इस राशि वालों का गुरु स्वामी होता है, पीपल, बरगद, पपीता और पीले चन्दन का पेड़ लगाना चाहिए।
*१०:-मकर राशि:-* मकर राशि वालों को शनि देव का पेड़ शमी, तुलसी, आंवरी, सतावर और अमरुद का पेड़ लगाना चाहिए।
*११:-कुंभ राशि:-* इस राशि वालों को शनि देव का पेड़ शमी, तुलसी, आंवरी, सतावर और अमरुद का पेड़ लगाना चाहिए।
*१२:-मीन राशि:-* इस राशि वालों का गुरु स्वामी होता है, पीपल, बरगद, पपीता और पीले चन्दन का पेड़ लगाना चाहिए...श्री रांदल ज्योतिष कार्यालय सुरेन्द्रनगर पंडयाजी ९८२४४१७०९०...

मंगलवार, 14 जुलाई 2020

माँ_नर्मदा_की_महिमा

माँ_नर्मदा_की_महिमा

श्री नर्मदा पुराण का संक्षिप्त रूप लेख के रूप में माँ नर्मदा की महिमा से आप सभी को परिचित करने के लिए दे रहा हूँ।

"त्वदीय पाद पंकजं नमामि देवी नर्मदे।नर्मदा सरितां वरा -नर्मदा को सरितां वरा" क्यों माना जाता है ?

नर्मदा माता की असंख्य विशेषताओ में श्रीनर्मदा की कृपा द्रष्टि से दिखे कुछ कारण यह है :-

नर्मदा सरितां वरा।
-नर्मदा नदियों में सर्वश्रेष्ठ हैं !

नर्मदा तट पर दाह संस्कार के बाद,गंगा तट पर इसलिए नहीं जाते हैं क्योंकि नर्मदा जी से मिलने गंगा जी स्वयं आती है।

नर्मदा नदी पर ही नर्मदा पुराण है।

अन्य नदियों का पुराण नहीं हैं।

नर्मदा अपने उदगम स्थान अमरकंटक में प्रकट होकर नीचे से ऊपर की और प्रवाहित होती हैं,जबकि जल का स्वभाविक हैं ऊपर से नीचे बहना।

नर्मदा जल में प्रवाहित लकड़ी एवं अस्थियां कालांतर में पाषण रूप में परिवर्तित हो जाती हैं।

नर्मदा अपने उदगम स्थान से लेकर समुद्र पर्यन्त उत्तर एवं दक्षिण दोनों तटों में,दोनों और सात मील तक पृथ्वी के अंदर ही अंदर प्रवाहित होती हैं।

पृथ्वी के उपर तो वे मात्र दर्शनार्थ प्रवाहित होती हैं।

उलेखनीय है कि भूकंप मापक यंत्रों ने भी पृथ्वी की इस दरार को स्वीकृत किया हैं।

नर्मदा से अधिक तीव्र जल प्रवाह वेग विश्व की किसी अन्य नदी का नहीं है।

नर्मदा से प्रवाहित जल घर में लाकर प्रतिदिन जल चढाने से नर्मदा का जल बढ़ता है।

नर्मदा तट में जीवाश्म प्राप्त होते हैं।

अनेक क्षेत्रों के वृक्ष आज भी पाषण रूप में परिवर्तित देखे जा सकते हैं।

नर्मदा से प्राप्त शिवलिग ही देश के समस्त शिव मंदिरों में स्थापित हैं क्योकि शिवलिग केवल नर्मदा में ही प्राप्त होते हैं अन्यत्र नहीं।

नर्मदा में ही बाण लिंग शिव एवं नर्मदेश्वर (शिव ) प्राप्त होते है अन्यत्र नहीं।

नर्मदा के किनारे ही नागमणि वाले मणि नागेश्वर सर्प रहते हैं अन्यत्र नहीं।

नर्मदा का हर कंकड़ शंकर होता है,उसकी प्राण प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं होती क्योकि वह स्वयं ही प्रतिष्टित
रहता है।

नर्मदा में वर्ष में एक बार गंगा आदि समस्त नदियाँ स्वयं ही नर्मदा जी से मिलने आती हैं।

नर्मदा राज राजेश्वरी हैं,वे कहीं नहीं जाती हैं।

नर्मदा में समस्त तीर्थ वर्ष में एक बार नर्मदा के दर्शनार्थ स्वयं आते हैं।

नर्मदा के किनारे तटों पर वे समस्त तीर्थ अद्रश्य रूप में स्थापित है जिनका वर्णन किसी भी पुराण धर्मशास्त्र या कथाओं में आया हैं।

नर्मदा का प्रादुर्भाव सृष्टिंके प्रारम्भ में सोमप नामक पितरों ने श्राद्ध के लिए किया था।

नर्मदा में ही श्राद्ध की उत्पति एवं पितरो द्वारा ब्रह्माण्ड  का प्रथम श्राद्ध हुआ था अतः नर्मदा श्राद्ध जननी हैं।

नर्मदा पुराण के अनुसार नर्मदा ही एक मात्र ऐसी देवी (नदी )हैं जो सदा हास्यमुद्रा में रहती है।

नर्मदा तट पर ही सिद्दी प्राप्त होती है।

ब्रम्हांड के समस्त देव,ऋषिमुनि,मानव भले ही उनकी तपस्या का क्षेत्र कही भी रहा हो,सिद्धि प्राप्त करने के लिए नर्मदा तट पर अवश्य आये हैं।

नर्मदा तट पर सिद्धि पाकर ही वे विश्व प्रसिद्ध हुए हैं।

नर्मदा के प्रवाहित जल में नियमित स्नान करने से असाध्य चर्मरोग मिट जाता है।

नर्मदा के प्रवाहित जल में तीन वर्षों तक प्रत्येक रविवार को नियमित स्नान करने से श्वेत कुष्ठ रोग मिट जाता हैं किन्तु कोई भी रविवार खंडित नहीं होना चाहिए।

नर्मदा स्नान से समस्त क्रूर ग्रहों की शांति हो जाती है।

नर्मदा तट पर ग्रहों की शांति हेतु किया गया जप पूजन हवन,तत्काल फलदायी होता है।

नर्मदा अपने भक्तों को जीवन काल में दर्शन अवश्य देती हैं भले ही उस रूप में हम माता को पहिचान न सके।

नर्मदा की कृपा से मानव अपने कार्य क्षेत्र में एक बार उन्नति के शिखर पर अवश्य जाता है।

नर्मदा कभी भी मर्यादा भंग नहीं करती है।

वे वर्षा काल में पूर्व दिशा से प्रवाहित होकर पश्चिम दिशा के ओर ही जाती हैं जबकि अन्य नदियाँ वर्षा काल में अपने तट बंध तोडकर अन्य दिशा में भी प्रवाहित होने लगती हैं।

नर्मदा पर्वतो का मान मर्दन करती हुई पर्वतीय क्षेत्रमें प्रवाहित होकर जन धन हानि नहीं करती हैं।
(मानव निर्मित बांधों को छोडकर।)

अन्य नदियाँ मैदानी रेतीले भूभाग में प्रवाहित होकर बाढ़ रूपी विनाशकारी तांडव करती हैं।

नर्मदा ने प्रकट होते ही अपने अद्भुत आलौकिक सौन्दार्य से समस्त सुरों ,देवो को चमत्कृत करके खूब छकाया था।

नर्मदा की चमत्कारी लीला को देखकर शिव पर्वती हसते -हसते हांफने लगे थे।

नेत्रों से अविरल आनंदाश्रु प्रवाहित हो रहे थे।

उन्होंने नर्मदा का वरदान पूर्वक नामकरण करते हुए कहा - देवी तुमने हमारे ह्रदय को अत्यंत हर्षित कर दिया।

अब पृथ्वी पर इसी प्रकार नर्म(हास्य,हर्ष)
दा(देती रहो)

अतः आज से तुम्हारा नाम नर्मदा होगा।

नर्मदा के किनारे ही देश की प्राचीनतम-कोल,

किरात,व्याध,गोंड़,भील,म्लेच्छ आदि जनजातियों के लोग रहा करते थे।वे वड़ेशिव भक्त थे।

नर्मदा ही विश्व में एक मात्र ऐसी नदी हैं जिनकी परिक्रमा का विधान हैं,अन्य नदियों की परिक्रमा नहीं होती हैं।

नर्मदा का एक नाम दचिन गंगा है।

नर्मदा मनुष्यों को देवत्व प्रदान कर अजर अमर बनाती हैं।

नर्मदा में ६० करोड़,६०हजार तीर्थ है।
(कलियुग में यह प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर नहीं होते।)

नर्मदा चाहे ग्राम हो या वन सभी स्थानों में पवित्र हैं जबकि गंगा कनखल में एवं सरस्वती कुरुक्षेत्र में ही अधिक पवित्र मानी गई हैं।

नर्मदा दर्शन मात्र से ही प्राणी को पवित्र
कर देती हैं जबकि सरस्वती तीन दिनों
तक स्नान से,यमुना सात दिनों तक
स्नान से गंगा एक दिन के स्नान से
प्राणी को पवित्र करती हैं।

नर्मदा पितरों की भी पुत्री हैं अतः नर्मदा
तट पर किया हुआ श्राद्ध अक्षय होता है।

नर्मदा शिव की इला नामक शक्ति हैं।

नर्मदा को नमस्कार कर नर्मदा का
नामोच्चारण करने से सर्प दंश का
भय नहीं रहता है।

नर्मदा के इस मंत्र का जप करने से
विषधर सर्प का जहर उतर जाता है।

नर्मदाये नमः प्रातः,नर्मदाये नमो निशि।
नमोस्तु नर्मदे तुम्यम,त्राहि माम विष सर्पतह।

(प्रातः काल नर्मदा को नमस्कार,रात्रि
में नर्मदा को नमस्कार,हे नर्मदा तुम्हे
नमस्कार है,मुझे विषधर सापों से
बचाओं।

(साप के विष से मेरी रक्षा करो।)

नर्मदा आनंद तत्व,ज्ञान तत्व,सिद्धि तत्व,
मोक्ष तत्व प्रदान कर शाश्वत सुख शांति
प्रदान करती हैं।

नर्मदा का रहस्य कोई भी ज्ञानी विज्ञानी
नहीं जान सकता है।

नर्मदा अपने भक्तो पर कृपा कर स्वयं ही
दिव्य दृष्टि प्रदान करती है।

नर्मदा का कोई भी दर्शन नहीं
कर सकता है।

नर्मदा स्वयं भक्तों पर कृपा करके
उन्हें बुलाती है।

नर्मदा के दर्शन हेतु समस्त अवतारों में
भगवान् स्वयं ही उनके निकट गए थे।

नर्मदा सुख शांति समृद्धि प्रदायनी देवी हैं।

नर्मदा वह अमर तत्व हैं ,जिसे पाकर मनुष्य
पूर्ण तृप्त हो जाता है।

नर्मदा देव एवं पितृ दोनो कार्यों के लिए
अत्यंत पवित्र मानी गई हैं।

नर्मदा का सारे देश में श्री सत्यनारायण
व्रत कथा के रूप में इति श्री रेवा खंडे
कहा जाता है।

श्री सत्यनारायण की कथा अर्थात घर
बैठे नर्मदा का स्मरण।

नर्मदा में सदाशिव शांति से वास करते हैं
क्योंकि जहाँ नर्मदा हैं और जहां शिव हैं,
वहां नर्मदा हैं।

नर्मदा शिव के साथ ही यदि अमरकंटक
की युति भी हो तो साधक को लक्षित लक्ष्य
की प्राप्ति होती हैं।

नर्मदा के किनारे सृष्टि के समस्त
खनिज पदार्थ हैं।

नर्मदा तट पर ही भगवान् धन्वन्तरी की समस्त
औषधीयां प्राप्त होती हैं।

नर्मदा तट पर ही त्रेता युग में भगवान् श्रीराम
द्वारा प्रथम बार कुंभेश्वरनाथ तीर्थ की स्थापना
हुई थी जिसमें सृष्टि के समस्त तीर्थों का जल,
ऋषि मुनियों द्वारा कुम्भ घटों में लाया गया था।

नर्मदा के त्रिपुरी तीर्थ देश का केंद्र बिंदु भी था।

नर्मदा नदी ब्रम्हांड के मध्य भाग
में प्रवाहित होती हैं।

नर्मदा हमारे शरीर रूपी ब्रह्माण्ड के मध्य
भाग(ह्रदय )को पवित्र करें तो हृदय स्थित
अष्टदल कमल पर कल्याणकारी सदा शिव
स्वयमेव आसीन हो जावेगें।

नर्मदा का ज्योतिष शास्त्र मुह्र्तों में रेखा
विभाजन के रूप में महत्त्व वर्णित हैं।
(भारतीय ज्यातिष )
नर्मदा के दक्षिण और गुजरात के भागों में
विक्रम सम्बत का वर्ष ,कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा
को प्रारंभ होता हैं।(भारतीय ज्यातिष)

नर्मदा सर्वदा हमारे अन्तः करण में स्थित हैं।

नर्मदा माता के कुछ शव्द सूत्र उनके चरणों
में समर्पित हैं।

उनका रह्र्स्य महिमा भगवान् शिव के
अतिरिक्त कौन जान सकता हैं ?

नर्मदा तट पर दाह संस्कार के बाद,गंगा तट
पर इसलिए नहीं जाते हैं कि,नर्मदा जी से
मिलने गंगा जी स्वयं आती है |

माघ मास के शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथि को
नर्मदा जयंती मनाने की परंपरा है

*श्रीनर्मदाष्टकम*

त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।
नमामि देवी नर्मदे, नमामि देवी नर्मदे।

सबिंदु सिन्धु सुस्खल तरंग भंग रंजितम।
द्विषत्सु पाप जात जात कारि वारि संयुतम।।
कृतान्त दूत काल भुत भीति हारि वर्मदे।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।

त्वदम्बु लीन दीन मीन दिव्य सम्प्रदायकम।
कलौ मलौघ भारहारि सर्वतीर्थ नायकं।।
सुमस्त्य कच्छ नक्र चक्र चक्रवाक् शर्मदे।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।

 महागभीर नीर पुर पापधुत भूतलं।
ध्वनत समस्त पातकारि दरितापदाचलम।।
जगल्ल्ये महाभये मृकुंडूसूनु हर्म्यदे।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।

गतं तदैव में भयं त्वदम्बु वीक्षितम यदा।
मृकुंडूसूनु शौनका सुरारी सेवी सर्वदा।।
पुनर्भवाब्धि जन्मजं भवाब्धि दुःख वर्मदे।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।

अलक्षलक्ष किन्न रामरासुरादी पूजितं।
सुलक्ष नीर तीर धीर पक्षीलक्ष कुजितम।।
वशिष्ठशिष्ट पिप्पलाद कर्दमादि शर्मदे।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।

सनत्कुमार नाचिकेत कश्यपात्रि षटपदै।
धृतम स्वकीय मानषेशु नारदादि षटपदै:।।
रविन्दु रन्ति देवदेव राजकर्म शर्मदे।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।

अलक्षलक्ष लक्षपाप लक्ष सार सायुधं।
ततस्तु जीवजंतु तंतु भुक्तिमुक्ति दायकं।।
विरन्ची विष्णु शंकरं स्वकीयधाम वर्मदे।।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।

अहोमृतम श्रुवन श्रुतम महेषकेश जातटे।
किरात सूत वाड़वेषु पण्डिते शठे नटे।।
दुरंत पाप ताप हारि सर्वजंतु शर्मदे।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।

इदन्तु नर्मदाष्टकम त्रिकलामेव ये सदा।
पठन्ति ते निरंतरम न यान्ति दुर्गतिम कदा।।
सुलभ्य देव दुर्लभं महेशधाम गौरवम।
पुनर्भवा नरा न वै त्रिलोकयंती रौरवम।।

त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।
नमामि देवी नर्मदे, नमामि देवी नर्मदे।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।

समस्त चराचर प्राणियों एवं सकल
विश्व का कल्याण करो मातु नर्मदे।

रविवार, 12 जुलाई 2020

रोग निवारण के कुछ पारंपरिक उपाय? मानो न मानो आपकी इच्छा तर्क वितर्क न करें।

रोग निवारण के कुछ पारंपरिक उपाय? मानो न मानो आपकी इच्छा तर्क वितर्क न करें।

जिस घर में जब कोई रोग आ जाता है तो उस रोगी के साथ साथ उस घर के सभी व्यक्ति भी मानसिक रूप से चिंता और आशांति का अनुभव करने लगते है , लेकिन कुछ छोटी छोटी बातो को ध्यान में रखकर हम हालत पर काबू पा सकते है , शीघ्र स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सकते है ।

1.यदि आपके परिवार में कोई व्यक्ति बीमार है तो अगर संभव हो तो उसे सोमवार को डॉक्टर को दिखाएँ और उसकी दवा की पहली खुराक भगवान शिव को अर्पित करके कुछ राशी भी चड़ा दें और रोगी व्यक्ति के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की प्रार्थना करें , व्यक्ति के बहुत जल्दी ही ठीक हो जाने की सम्भावना बन जाती है ।

2.हर पूर्णिमा को किसी भी शिव मंदिर में भगवान भोलेनाथ से अपने परिवार को निरोग रखने की प्रार्थना रखें ,तत्पश्चात मंदिर में और गरीबों में कुछ ना कुछ फल,मिठाई और नगद दान अवश्य दें ।

3.रोगी व्यक्ति को मंगलवार और शनिवार किसी भी दिन हनुमान जी की मूर्ति से सिंदूर लेकर उसके माथे पर लगाने से उसका दिल मजबूत होता है और रोगी जल्दी स्वस्थ भी होता है ।

4.यदि कोई बीमार व्यक्ति प्रात: काल एक गिलास पानी लेकर पूर्व दिशा की ओर मुंह करके खड़े होकर एँ मन्त्र का 21 बार जाप करके पी जाय एवं ईश्वर से अपने रोग को दूर करने के लिए प्रार्थना करें तो शीघ्र ही स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है। यह प्रयोग सोमवार से शुरू करके रविवार तक लगातार 7 दिन तक करना चाहिए । 

5.अशोक के वृक्ष की ताजा तीन पत्तियों को प्रतिदिन प्रातः चबाने से चिंताओं से मुक्ति मिलती है और स्वास्थ्य भी उत्तम बना रहता है । 

6.यदि किसी बीमार व्यक्ति का रोग ठीक ना हो रहा हो तो उसके तकिये के नीचे सहदेई और पीपल की जड़ रखने से बीमारी जल्दी ठीक होती है । 

7.यदि किसी रोगी को मृत्युतुल्य पीड़ा हो रही हो , तो जौ के आटे ( बाजार में यह आसानी से उपलब्ध है ) में काले तिल और सरसों का तेल मिला कर रोटी बना कर रोगी के ऊपर से 7 बार उतार कर किसी भैंसे को खिलाएं त्वरित लाभ मिलता है । 

8.सूर्य जब भी मेष राशी में ( 13 से 15 अप्रैल ) में प्रवेश करें तो प्रात: काल नीम की ताजी कपोलें गुड़ व मसूर के साथ पीस कर खाने से वर्ष भर रोग दूर रहते है , यह घर के सभी छोटे बड़े व्यक्तियों को खाना चाहिए । 

9.यदि कोई व्यक्ति लम्बे समय से बीमार है तो उसे घर के दक्षिण पश्चिम कोने ( नैत्रत्य कोण ) के कमरे में दक्षिण दिशा में सर रखकर सुलाएं , उनकी दवाएं और जल कमरे के ईशान कोण में रखें । ध्यान रखें रोगी व्यक्ति अपनी दवाएं और अपना खाना पीना ईशान कोण अथवा पूर्व की तरफ मुंह करके ही खाएं । 

10.यदि घर का कोई व्यक्ति अधिक समय से बीमार हो तो उसके तकिये के नीचे मणिक्य रखने से वह जल्दी स्वस्थ होता है । 

11.सभी रोगों में पीपल की सेवा से बहुत लाभ प्राप्त होता है , रविवार को छोड़कर नियमित रूप से पीपल के वृक्ष पर प्रात: मीठा जल चड़ाकर उसकी जड़ जो छूकर अपने माथे से लगायें पुरुष पीपल की 7 परिक्रमा करें स्त्री ना करें और अपने रोग को दूर करने की प्रार्थना करें अति शीघ्र लाभ मिलता है । 

12.यदि आपके परिवार में कोई लम्बे समय से बीमार है तो आप प्रति माह कम से कम एक बार किसी भी अस्पताल में जाकर गरीबों में अपनी सामर्थ्यानुसार दवा एवं फलों का वितरण अवश्य करें, इससे रोगी को भी लाभ होगा और घर के अन्य सभी सदस्य भी निरोगी रहेंगे। यह बहुत ही चमत्कारी और सिद्ध प्रयोग है । 

13.यदि आप कभी किसी भी बीमार व्यक्ति को देखने जाएँ तो फूल और फल लेकर अवश्य जाएँ और यदि संभव हो तो कुछ ना कुछ नकद राशी भी अवश्य दें , इससे आपके परिवार का सदैव रोगों से बचाव होगा ।

14.रोगी व्यक्ति को पान में गुलाब की सात पंखुडियां खिलाने से अगर उसको कोई नजर लगी है तो उससे छुटकारा मिलता है और दवा भी जल्दी असर करती है । 

15..यदि कोई व्यक्ति मरणासन्न अवस्था में हो उसके बचने की कोई आशा ना हो परन्तु उसके प्राण भी नहीं निकल रहें हो तो उसके हाथ से नमक का दान करवाना चाहिए । 

16. स्वस्थ शरीर के लिए एक रुपये का सिक्का लें। रात को उसे सिरहाने रख कर सो जाएं। प्रातः इसे ष्मशान की सीमा में फेंक आएं। शरीर स्वस्थ रहेगा। 

17. यदि कोई व्यक्ति काफी समय से बीमार है तो एक नारियल से उसकी नज़र उतार कर उस नारियल को तंदूर/अंगीठी/हवनकुंड अथवा किसी तसले में आग जलाकर उसमें जलाने से रोगी अति शीघ्र स्वस्थ होने लगता है ।

18. सात जटा वाले नारियल शुक्ल पक्ष के सोमवार को ॐ नमा शिवाये मन्त्र का जाप करते हुए नदी में प्रवाहित करने से उस व्यक्ति के घर से रोग और दरिद्रता का नाश होता है । 

19. रोगी के पीने वाले जल में थोड़ा सा गंगाजल मिला दीजिये ,वह जब भी जल पिए उसे वह जल ही पीने को दिया जाय....... शीघ्र स्वास्थ्य लाभ मिलेगा । 

20. जिस व्यक्ति की तबियत ख़राब रहती है उसके पलंग की पाए में चाँदी के तार में एक गोमती चक्र बांध दें स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानी दूर होने लगेगी । ( गोमती चक्र को पहले गंगाजल में धोकर घर के मंदिर में रखकर तिलक लगाकर धुप/दीप/अगरबत्ती दिखाकर शुद्ध कर लें।) 

21. एक देसी पान,गुलाब का फूल और ग्यारह बताशे बीमार व्यक्ति के ऊपर से 31 बार उतार कर किसी चौराहे पर रख दें ध्यान रहे कोई टोके नहीं ....व्यक्ति को शीघ्रता से स्वास्थ्य लाभ मिलने लगेगा । 

22. यदि कोई व्यक्ति तमाम इलाज के बाद भी बीमार रहता है तो पुष्य नक्षत्र में सहदेवी की जड़ उसके पास रखिये .....रोग दूर लगेगा । 

23.पीपल के वृक्ष को प्रातः 12 बजे के पहले, जल में थोड़ा दूध मिला कर सींचें और शाम को तेल का दीपक और अगरबत्ती जलाएं। ऐसा किसी भी वार से शुरू करके 7 दिन तक करें। बीमार व्यक्ति को आराम मिलना प्रारम्भ हो जायेगा। 

24. किसी कब्र या दरगाह पर सूर्यास्त के पश्चात् तेल का दीपक जलाएं। अगरबत्ती जलाएं और बताशे रखें, फिर वापस मुड़ कर न देखें। बीमार व्यक्ति शीघ्र अच्छा हो जायेगा। 

25. धोबी के घर से तुरंत धुलकर आये वस्त्रों को मन ही मन रोगी के अच्छे स्वास्थ्य की प्रार्थना करते हुए रोगी के शरीर से स्पर्श करा देने से बहुत जल्दी आराम मिलता है । 

26. हर माह के प्रथम सोमवार को सुबह सवेरे अपने ईष्ट देव का नाम लेते हुए थोड़ी सी पीली सरसों अपने सर पर से 7 बार घुमाकर घर से बाहर फ़ेंक दें .....रोग आपके पास भी नहीं आयेंगे । 

27. यदि घर में आपकी माता जी को निरंतर कोई रोग सता रहा है तो सोमवार के दिन 121 किसी भी साइज़ के पेड़े लेकर बच्चो और गरीबों में बाँट दें ......निश्चय ही रोग में आराम मिलेगा । 

28. अशोक के ताजे तीन पत्ते सुबह सुबह रोजाना बिना कुछ खाए चबाये जाएँ तो व्यक्ति शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ रहता है ....इसके सेवन से रोग और चिन्ताओं का भी नाश होता है। 

29. सदैव ध्यान दें भैया दूज (यम दीतिया) के दिन बहन के घर उसके हाथ से बना भोजन करने से, गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु के घर/मंदिर से प्रसाद लेकर खाने से, बसंत पंचमी के दिन पत्नी के हाथ से बने पीले चावल खाने से एवं मात्र नवमी के दिन माँ के हाथ से बना भोजन करने से व्यक्ति निरोगी रहता है उसकी आयु में निसंदेह वृद्धि होती है। 

30. स्वस्थ जीवन जीने के लिये रात्रि को अपने सिरहाने पानी किसी लोटे या गिलास में रख दें। सुबह उसे पी कर बर्तन को उल्टा रख दें तथा दिन में भी पानी पीने के बाद बर्तन को उल्टा रखने से व्यक्ति सदैव स्वस्थ बना रहता है। 

31. बाजार से कपास के थोड़े से फूल खरीद लें। रविवार शाम 5 फूल, आधा गिलास पानी में साफ कर के भिगो दें। सोमवार को प्रात: उठ कर फूल को निकाल कर फेंक दें तथा बचे हुए पानी को पी जाएं। जिस पात्र में पानी पीएं, उसे कहीं पर भी उल्टा कर के रख दें। कुछ ही दिनों में आश्चर्यजनक स्वास्थ्य लाभ अनुभव करेंगे। 

32. रात्रि के समय शयन कक्ष में कपूर जलाने से पितृ दोष का नाश होता है, घर में शांति बनी रहती है, बुरे स्वप्न नहीं आते है और सभी प्रकार के रोगों से भी छुटकारा मिलता है । 

33. पूर्णिमा के दिन रात्रि में घर में खीर बनाएं। ठंडी होने पर उसका मंदिर में मां लक्ष्मी को भोग लगाएं एवं चन्द्रमा और अपने पितरों का मन ही मन स्मरण करें और कुछ खीर काले कुत्तों को दे दें। ऐसा वर्ष भर पूर्णिमा में करते रहने से घर में सुख शांति, निरोगिता एवं हर्ष और उल्लास का वातावरण बना रहता है धन की कभी भी कमी नहीं रहती है । 

34. घर में कोई बीमार हो जाए तो उस रोगी को शहद में चन्दन मिला कर चटाएं | 

35. यदि घर में पुत्र बीमार हो तो कन्याओं को हलवा खिलाएं एवं पीपल के पेड़ की लकड़ी को सिरहाने रखें। 

36. जिस घर में स्त्रीवर्ग को निरन्तर स्वास्थ्य की पीड़ाएँ रहती हो, उस घर में तुलसी का पौधा लगाकर उसकी श्रद्धापूर्वक देखशल करने, संध्या के समय घी का दीपक जलाने से रोग पीड़ाएँ शीघ्र ही समाप्त होती है।

37. यदि घर में किसी की तबियत ज्यादा ख़राब लग रही है तो रविवार के दिन बूंदी के सवा किलो लड्डू किसी भी धार्मिक स्थान चड़ा कर उसका कम से कम 75% वहीँ पर प्रसाद के रूप में बांटे। 

38. अगर परिवार में कोई परिवार में कोई व्यक्ति बीमार है तथा लगातार दवा सेवन के पश्चात् भी स्वास्थ्य लाभ नहीं हो रहा है, तो किसी भी रविवार से लगातार 3 दिन तक गेहूं के आटे का पेड़ा तथा एक लोटा पानी व्यक्ति के सिर के ऊपर से उसार कर जल को पौधे में डाल दें तथा पेड़ा गाय को खिला दें। इन 3 दिनों के अन्दर व्यक्ति अवश्य ही स्वस्थ महसूस करने लगेगा। अगर इस अवधि में रोगी ठीक हो जाता है, तो भी इस प्रयोग को अवश्य पूरा करना चाहिए। 

39. पीपल के वृक्ष को प्रात: 12 बजे के पहले, जल में थोड़ा दूध मिला कर सींचें और शाम को तेल का दीपक और अगरबत्ती जलाएं। ऐसा किसी भी दिन से शुरू करके 7 दिन तक करें ( अगर सोमवार से शुरू करें तो अति उत्तम होगा )। रोग से ग्रस्त व्यक्ति को जल्दी ही आराम मिलना प्रारम्भ हो जायेगा। 

40. शुक्रवार रात को मुठ्ठी भर काले साबुत चने भिगोयें। शनिवार की शाम उन्हें छानकर काले कपड़े में एक कील और एक काले कोयले के टुकड़े के साथ बांध दें । फिर इस पोटली को रोगी के ऊपर से 7 बार वार कर किसी तालाब या कुएं में फेंक दें। ऐसा लगातार 3 शनिवार करें। बीमार व्यक्ति शीघ्र अच्छा हो जायेगा| 

41. यदि कोई प्राणी कहीं देर तक बैठा हो और उसके हाथ या पैर सुन्न हो जाएँ तो जो अंग सुन्न हो गया हो, उस पर उंगली से 27 का अंक लिख दीजिये, उसका सुन्न अंग तुरंत ठीक हो जाएगा। 

42. काले तिल और जौ का आटा तेल में गूंथकर एक मोटी रोटी बनाकर उसे अच्छी तरह सेंकें। गुड को तेल में मिश्रित करके जिस व्यक्ति के मरने की आशंका हो, उसके सिर पर से 7 बार उतार कर मंगलवार या शनिवार को किसी भैंस को खिला दें।यह क्रिया करते समय ईश्वर से रोगी को शीघ्र स्वस्थ करने की प्रार्थना करते रहें। 

43. गुड के गुलगुले सवाएं लेकर उसे 7 बार रोगी के सर से उतार कर मंगलवार या शनिवार व इतवार को चील-कौए को डाल दें, रोगी को तुरंत राहत मिलने लगती है।
श्री रांदल ज्योतिष कार्यालय सुरेन्द्रनगर पंडयाजी ९८२४४१७०९०... 

शनिवार, 4 जुलाई 2020

चंद्र ग्रहण

*दिनांक :- ०५ जुलाई २०२० छायाकल्प (मांद्य) चंद्रग्रहण एक बहुत बड़ा परिवर्तन*

धनु राशि और मूल नक्षत्र तथा पूर्वाषाढा नक्षत्र में होनेवाले इस छायाकल्प चंद्रग्रहण का समय भारतीय समयानुसार रात को ०८:३४ मिनिट से प्रारंभ होकर रात के ११:२५ मिनिट तक रहेगा ॥

यह ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देनेवाला है इसलिए भारत में इसके नियमों का पालन करना आवश्यक नहीं है, यह ग्रहण अमेरिका, अफ्रीका और दक्षिण - पूर्वीय युरोप में दिखाई देगा ॥

● ग्रहण स्पर्श :- रात्रि :- ०८:३४ मिनिट ॥
■ ग्रहण मध्य :- रात्रि :- ०९:५९ मिनिट ॥
● ग्रहण मोक्ष :- रात्रि :- ११:२५ मिनिट ॥

जिसमें मंगल का राशि परिवर्तन हैं, सूर्य का राशि परिवर्तन हैं, गुरु की धन राशि में वापसी लेकिन वक्री रहेंगे, शुक्र मार्गी यानी प्राकृतिक आपदाएं ज्यादा आयेगी, शायद विश्व युद्ध भी हो सकता है, तमाम वैश्विक शक्तियां लड़ने को हावी होगी, किसी ख्यातिप्राप्त - यशस्वी और कीर्तिमान राजनीति नेता की हत्या भी होगी, कुछ जगह पर आपसी लड़ाईया होगी, बड़े जल प्रलय का खतरा भी हम सभी पर मंडरा रहा है, लेकिन डरने की नहीं केवल सावधानी बरतने की जरूरत है ॥
श्री रांदल ज्योतिष कार्यालय सुरेन्द्रनगर पंडयाजी ९८२४४१७०९०...