मंगलवार, 23 जून 2020

#भगवान_जगन्नाथजी__सुभद्राजी_तथा_बलभद्र_जी_के #रथों_का_संक्षिप्त_वर्णन

#भगवान_जगन्नाथजी__सुभद्राजी_तथा_बलभद्र_जी_के

                   #रथों_का_संक्षिप्त_वर्णन

      #भगवान्_जगन्नाथजी_के_रथ_का_संक्षिप्त_परिचय
  
  1. रथ का नाम -नंदीघोष रथ
  2 कुल काष्ठ खंडो की संख्या -832
  3.कुल चक्के -16
  4. रथ की ऊंचाई- 45 फीट
  5.रथ की लंबाई चौड़ाई - 34 फ़ीट 6 इंच
  6.रथ के सारथि का नाम - दारुक
  7.रथ के रक्षक का नाम- गरुड़
  8. रथ में लगे रस्से का नाम-  शंखचूड़ नागुनी
  9.पताके का रंग- त्रैलोक्य मोहिनी
  10. रथ के घोड़ो के नाम : वराह,गोवर्धन,कृष्णा,गोपीकृष्णा,नृसिंह,राम,नारायण,त्रिविक्रम,हनुमान,रूद्र ।।

          #सुभद्राजी_के_रथ_का_संक्षिप्त_परिचय

  1. रथ का नाम - देवदलन रथ
  2 कुल काष्ठ खंडो की संख्या -593
  3.कुल चक्के -12
  4. रथ की ऊंचाई- 43 फीट
  5.रथ की लंबाई चौड़ाई - 31 फ़ीट 6 इंच
  6.रथ के सारथि का नाम - अर्जुन
  7.रथ के रक्षक नाम- जयदुर्गा
  8. रथ में लगे रस्से का नाम-  स्वर्णचूड़ नागुनी
  9.पताके का रंग- नदंबिका
  10. रथ के घोड़ो के नाम -रुचिका,मोचिका, जीत,अपराजिता ।।

          #बलभद्जी_के_रथ_का_संक्षिप्त_परिचय

  1. रथ का नाम -तालध्वज रथ
  2 कुल काष्ठ खंडो की संख्या -763
  3.कुल चक्के -14
  4. रथ की ऊंचाई- 44 फीट
  5.रथ की लंबाई चौड़ाई - 33 फ़ीट
  6.रथ के सारथि का नाम - मातली
  7.रथ के रक्षक का नाम-वासुदेव
  8. रथ में लगे रस्से का नाम-  वासुकि नाग
  9.पताके का रंग- उन्नानी
  10. रथ के घोड़ो के नाम -तीव्र ,घोर,दीर्घाश्रम,स्वर्ण नाभ ।।

    भगवान् श्री कृष्ण जी के 51 नाम और उन के अर्थ:....

   1 कृष्ण : सब को अपनी ओर आकर्षित करने वाला.।
   2 गिरिधर : गिरी: पर्वत ,धर: धारण करने वाला। अर्थात गोवर्धन पर्वत को उठाने वाले।
   3 मुरलीधर : मुरली को धारण करने वाले।
   4 पीताम्बर धारी : पीत :पिला, अम्बर:वस्त्र। जिस ने पिले वस्त्रों को धारण किया हुआ है।
   5 मधुसूदन : मधु नामक दैत्य को मारने वाले।
   6 यशोदा या देवकी नंदन : यशोदा और देवकी को खुश करने वाला पुत्र।
   7 गोपाल : गौओं का या पृथ्वी का पालन करने वाला।
   8 गोविन्द : गौओं का रक्षक।
   9 आनंद कंद : आनंद की राशि देंने वाला।
   10 कुञ्ज बिहारी : कुंज नामक गली में विहार करने वाला।
   11 चक्रधारी : जिस ने सुदर्शन चक्र या ज्ञान चक्र या शक्ति चक्र को धारण किया हुआ है।
   12 श्याम : सांवले रंग वाला।
   13 माधव : माया के पति।
   14 मुरारी : मुर नामक दैत्य के शत्रु।
   15 असुरारी : असुरों के शत्रु।
   16 बनवारी : वनो में विहार करने वाले।
   17 मुकुंद : जिन के पास निधियाँ है।
   18 योगीश्वर : योगियों के ईश्वर या मालिक।
   19 गोपेश : गोपियों के मालिक।
   20 हरि : दुःखों का हरण करने वाले।
   21 मदन : सूंदर।
   22 मनोहर : मन का हरण करने वाले।
   23 मोहन : सम्मोहित करने वाले।
   24 जगदीश : जगत के मालिक।
   25 पालनहार : सब का पालन पोषण करने वाले।
   26 कंसारी : कंस के शत्रु।
   27 रुख्मीनि वलभ : रुक्मणी के पति ।
   28 केशव : केशी नाम दैत्य को मारने वाले. या पानी के उपर निवास करने वाले या जिन के बाल सुंदर है।
   29 वासुदेव :वसुदेव के पुत्र होने के कारन।
   30 रणछोर :युद्ध भूमि स भागने वाले।
   31 गुड़ाकेश : निद्रा को जितने वाले।
   32 हृषिकेश : इन्द्रियों को जितने वाले।
   33 सारथी : अर्जुन का रथ चलने के कारण।
   35 पूर्ण परब्रह्म : देवताओ के भी मालिक।
   36 देवेश : देवों के भी ईश।
   37 नाग नथिया : कालियाँ नाग को मारने के कारण।
   38 वृष्णिपति : इस कुल में उतपन्न होने के कारण
   39 यदुपति : यादवों के मालिक।
   40 यदुवंशी : यदु वंश में अवतार धारण करने के कारण।
   41 द्वारकाधीश : द्वारका नगरी के मालिक।
   42 नागर : सुंदर।
   43 छलिया : छल करने वाले।
   44 मथुरा गोकुल वासी : इन स्थानों पर निवास करने के कारण।
   45 रमण : सदा अपने आनंद में लीन रहने वाले।
   46 दामोदर : पेट पर जिन के रस्सी बांध दी गयी थी। 
   47 अघहारी : पापों का हरण करने वाले।
   48 सखा : अर्जुन और सुदामा के साथ मित्रता निभाने के कारण।
   49 रास रचिया : रास रचाने के कारण।
   50 अच्युत : जिस के धाम से कोई वापिस नही आता है।
   51 नन्द लाला : नन्द के पुत्र होने के कारण।

🙏🌺          ।। जय श्री जगन्नाथ ।।         🌺🙏

नवरात्रि में माँ के मंत्रों द्वारा भौतिक तापो से मुक्ति के उपाय

नवरात्रि में माँ के मंत्रों द्वारा भौतिक तापो से मुक्ति के उपाय
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माँ दुर्गा के इन मंत्रो का जाप प्रति दिन भी कर सकते हैं। पर नवरात्र में जाप करने से शीघ्र प्रभाव देखा गया हैं।

सर्व प्रकार कि बाधा मुक्ति हेतु:
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सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वितः। 
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः॥

अर्थातः- मनुष्य मेरे प्रसाद से सब ""बाधाओं से मुक्त"" तथा धन, धान्य एवं पुत्र से सम्पन्न होगा- इसमें जरा भी संदेह नहीं है। 

कम से कम सवा लाख जप कर 'दशांश' हवन अवश्य करें। 

किसी भी प्रकार के संकट या बाधा कि आशंका होने पर इस मंत्र का प्रयोग करें। उक्त मंत्र का श्रद्धा एवं विश्वास से जाप करने से व्यक्ति सभी प्रकार की बाधा से मुक्त होकर धन-धान्य एवं पुत्र की प्राप्ति होती हैं।

बाधा शान्ति हेतु:
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सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि। 
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्॥

अर्थातः- सर्वेश्वरि! तुम इसी प्रकार तीनों लोकों की समस्त बाधाओं को शान्त करो और हमारे शत्रुओं का नाश करती रहो।

विपत्ति नाश हेतु:
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शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे। सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥

अर्थातः- शरण में आये हुए दीनों एवं पीडितों की रक्षा में संलग्न रहनेवाली तथा सबकी पीडा दूर करनेवाली नारायणी देवी! तुम्हें नमस्कार है।

पाप नाश हेतु:
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हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत्। सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्योऽन: सुतानिव॥

अर्थातः- देवि! जो अपनी ध्वनि से सम्पूर्ण जगत् को व्याप्त करके दैत्यों के तेज नष्ट किये देता है, वह तुम्हारा घण्टा हमलोगों की पापों से उसी प्रकार रक्षा करे, जैसे माता अपने पुत्रों की बुरे कर्मो से रक्षा करती है।

विपत्तिनाश और शुभ की प्राप्ति हेतु:
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करोतु सा न: शुभहेतुरीश्वरी शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापदः।

अर्थातः- वह कल्याण की साधनभूता ईश्वरी हमारा कल्याण और मङ्गल करे तथा सारी आपत्तियों का नाश कर डाले।

भय नाश हेतु:
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सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते। भयेभ्याहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते॥
एतत्ते वदनं सौम्यं लोचनत्रयभूषितम्। पातु न: सर्वभीतिभ्य: कात्यायनि नमोऽस्तु ते॥
ज्वालाकरालमत्युग्रमशेषासुरसूदनम्। त्रिशूलं पातु नो भीतेर्भद्रकालि नमोऽस्तु ते॥

अर्थातः- सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी तथा सब प्रकार की शक्ति यों से सम्पन्न दिव्यरूपा दुर्गे देवि! सब भयों से हमारी रक्षा करो; तुम्हें नमस्कार है। कात्यायनी! यह तीन लोचनों से विभूषित तुम्हारा सौम्य मुख सब प्रकार के भयों से हमारी रक्षा करे। तुम्हें नमस्कार है। भद्रकाली! ज्वालाओं के कारण विकराल प्रतीत होनेवाला, अत्यन्त भयंकर और समस्त असुरों का संहार करनेवाला तुम्हारा त्रिशूल भय से हमें बचाये। तुम्हें नमस्कार है।

सर्व प्रकार के कल्याण हेतु:
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सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥

अर्थातः- नारायणी! आप सब प्रकार का मङ्गल प्रदान करनेवाली मङ्गलमयी हो। कल्याणदायिनी शिवा हो। सब पुरुषार्थो को सिद्ध करनेवाली, शरणागतवत्सला, तीन नेत्रोंवाली एवं गौरी हो। आपको नमस्कार हैं।
व्यक्ति दु:ख, दरिद्रता और भय से परेशान हो चाहकर भी या परीश्रम के उपरांत भी सफलता प्राप्त नहीं होरही हों तो उपरोक्त मंत्र का प्रयोग करें।

सुलक्षणा पत्‍‌नी की प्राप्ति हेतु:
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पत्‍‌नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्। तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥

अर्थातः- मन की इच्छा के अनुसार चलनेवाली मनोहर पत्‍‌नी प्रदान करो, जो दुर्गम संसारसागर से तारनेवाली तथा उत्तम कुल में उत्पन्न हुई हो।

शक्ति प्राप्ति हेतु:
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सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्ति भूते सनातनि। गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते॥

अर्थातः- तुम सृष्टि, पालन और संहार करने वाली शक्ति भूता, सनातनी देवी, गुणों का आधार तथा सर्वगुणमयी हो। नारायणि! तुम्हें नमस्कार है।

रक्षा प्राप्ति हेतु:
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शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके। घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि:स्वनेन च॥

अर्थातः- देवि! आप शूल से हमारी रक्षा करें। अम्बिके! आप खड्ग से भी हमारी रक्षा करें तथा घण्टा की ध्वनि और धनुष की टंकार से भी हमलोगों की रक्षा करें।

देह को सुरक्षित रखने हेतु एवं उसे किसी भी प्रकार कि चोट या हानी या किसी भी प्रकार के अस्त्र-सस्त्र से सुरक्षित रखने हेतु इस मंत्र का श्रद्धा से नियम पूर्वक जाप करें।

विद्या प्राप्ति एवं मातृभाव हेतु:
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विद्या: समस्तास्तव देवि भेदा: स्त्रिय: समस्ता: सकला जगत्सु।
त्वयैकया पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुति: स्तव्यपरा परोक्तिः॥

अर्थातः- देवि! विश्वकि सम्पूर्ण विद्याएँ तुम्हारे ही भिन्न-भिन्न स्वरूप हैं। जगत् में जितनी स्त्रियाँ हैं, वे सब तुम्हारी ही मूर्तियाँ हैं। जगदम्ब! एकमात्र तुमने ही इस विश्व को व्याप्त कर रखा है। तुम्हारी स्तुति क्या हो सकती है? तुम तो स्तवन करने योग्य पदार्थो से परे हो।

समस्त प्रकार कि विद्याओं की प्राप्ति हेतु और समस्त स्त्रियों में मातृभाव की प्राप्ति के लिये इस मंत्रका पाठ करें।

प्रसन्नता की प्राप्ति हेतु:
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प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि। त्रैलोक्यवासिनामीडये लोकानां वरदा भव॥

अर्थातः- विश्व की पीडा दूर करनेवाली देवि! हम तुम्हारे चरणों पर पडे हुए हैं, हमपर प्रसन्न होओ। त्रिलोकनिवासियों की पूजनीय परमेश्वरि! सब लोगों को वरदान दो।

आरोग्य और सौभाग्य की प्राप्ति हेतु:
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देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्। रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

अर्थातः- मुझे सौभाग्य और आरोग्य दो। परम सुख दो, रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि मेरे शत्रुओं का नाश करो।

महामारी नाश हेतु:
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जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥

अर्थातः- जयन्ती, मङ्गला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा और स्वधा- इन नामों से प्रसिद्ध जगदम्बिके! तुम्हें मेरा नमस्कार हो।

रोग नाश हेतु:
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रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति॥

अर्थातः- देवि! तुमहारे प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवाछित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो। जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके हैं, उन पर विपत्ति तो आती ही नहीं। तुम्हारी शरण में गये हुए मनुष्य दूसरों को शरण देनेवाले हो जाते हैं।

विश्व की रक्षा हेतु:
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या श्री: स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मी: पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धि:।
श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा तां त्वां नता: स्म परिपालय देवि विश्वम्॥

अर्थातः- जो पुण्यात्माओं के घरों में स्वयं ही लक्ष्मीरूप से, पापियों के यहाँ दरिद्रतारूप से, शुद्ध अन्त:करणवाले पुरुषों के हृदय में बुद्धिरूप से, सत्पुरुषों में श्रद्धारूप से तथा कुलीन मनुष्य में लज्जारूप से निवास करती हैं, उन आप भगवती दुर्गा को हम नमस्कार करते हैं। देवि! आप सम्पूर्ण विश्व का पालन कीजिये।

विश्वव्यापी विपत्तियों के नाश हेतु:
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देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य।
प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य॥

अर्थातः- शरणागत की पीडा दूर करनेवाली देवि! हमपर प्रसन्न होओ। सम्पूर्ण जगत् की माता! प्रसन्न होओ। विश्वेश्वरि! विश्व की रक्षा करो। देवि! तुम्हीं चराचर जगत् की अधीश्वरी हो।

विश्व के पाप-ताप निवारण हेतु:
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देवि प्रसीद परिपालय नोऽरिभीतेर्नित्यं यथासुरवधादधुनैव सद्य:।
पापानि सर्वजगतां प्रशमं नयाशु उत्पातपाकजनितांश्च महोपसर्गान्॥

अर्थातः- देवि! प्रसन्न होओ। जैसे इस समय असुरों का वध करके तुमने शीघ्र ही हमारी रक्षा की है, उसी प्रकार सदा हमें शत्रुओं के भय से बचाओ। सम्पूर्ण जगत् का पाप नष्ट कर दो और उत्पात एवं पापों के फलस्वरूप प्राप्त होनेवाले महामारी आदि बडे-बडे उपद्रवों को शीघ्र दूर करो।

विश्व के अशुभ तथा भय का विनाश करने हेतु:
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यस्या: प्रभावमतुलं भगवाननन्तो ब्रह्मा हरश्च न हि वक्तु मलं बलं च।
सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु॥

अर्थातः- जिनके अनुपम प्रभाव और बल का वर्णन करने में भगवान् शेषनाग, ब्रह्माजी तथा महादेवजी भी समर्थ नहीं हैं, वे भगवती चण्डिका सम्पूर्ण जगत् का पालन एवं अशुभ भय का नाश करने का विचार करें।

सामूहिक कल्याण हेतु:
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देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्त्या निश्शेषदेवगणशक्ति समूहमूत्र्या।
तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां भक्त्या नता: स्म विदधातु शुभानि सा न:॥

अर्थातः- सम्पूर्ण देवताओं की शक्ति का समुदाय ही जिनका स्वरूप है तथा जिन देवी ने अपनी शक्ति से सम्पूर्ण जगत् को व्याप्त कर रखा है, समस्त देवताओं और महर्षियों की पूजनीया उन जगदम्बा को हम भक्ति पूर्वक नमस्कार करते हैं। वे हमलोगों का कल्याण करें।

कैसे करें मंत्र जाप :-
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नवरात्रि के प्रतिपदा के दिन संकल्प लेकर प्रातःकाल स्नान करके पूर्व या उत्तर दिशा कि और मुख करके दुर्गा कि मूर्ति या चित्र की पंचोपचार या दक्षोपचार या "षोड्षोपचार से पूजा करें।

शुद्ध-पवित्र आसन ग्रहण कर रुद्राक्ष, स्फटिक, तुलसी या चंदन कि माला से मंत्र का जाप १,५,७,११ माला जाप पूर्ण कर अपने कार्य उद्देश्य कि पूर्ति हेतु मां से प्राथना करें। 
संपूर्ण नवरात्रि में जाप करने से मनोवांच्छित कामना अवश्य पूरी होती हैं।

उपरोक्त मंत्र के विधि-विधान के अनुसार जाप करने से मां कि कृपा से व्यक्ति को पाप और कष्टों से छुटकारा मिलता हैं 
और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग सुगम प्रतित होता हैं।
श्री रांदल ज्योतिष कार्यालय सुरेन्द्रनगर पंडयाजी ९८२४४१७०९०...

रविवार, 14 जून 2020

*व्यक्ति के चरित्र और स्वभावपर* *वारो एवं जन्मतिथि का प्रभाव*

*व्यक्ति के चरित्र और स्वभावपर* 
*वारो एवं जन्मतिथि का प्रभाव*

*वारो का जातक के स्वभाव पर प्रभाव-*

सप्ताह में कुल सात दिन या सात वार होते है। हम सभी लोगों का जन्म इन सातों वारों में से किसी एक वार को हुआ है। ज्योतिषशास्त्र कहता हैं, वार का हमारे व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव पड़ता है। हमारा जन्म जिस वार में होता है उस वार के प्रभाव से हमारा व्यवहार और चरित्र भी प्रभावित होता है। आइये देखें कि किस वार में जन्म लेने पर व्यक्ति का स्वभाव कैसा होता है।
1 रविवार को पैदा हुये जातक
रविवार सप्ताह का प्रथम दिन होता है. इसे सूर्य का दिन माना जाता है. इस दिन जिस व्यक्ति का जन्म होता है वे व्यक्ति तेजस्वी, गर्वीले और पित्त प्रकृति के होते है . इनके स्वभाव में क्रोध और ओज भरा होता है. ये चतुर और गुणवान होते हैं. इस तिथि के जातक उत्साही और दानी होते हैं. अगर संघर्ष की स्थिति पैदा हो जाए तो उसमें पूरी तकत लगा देते हैं.
2 सोमवार को पैदा हुये जातक
सोमवार यानी सप्ताह का दूसरा दिन, इस वार को जन्म लेने वाला व्यक्ति बुद्धिमान होता है . इनकी प्रकृति यानी इनका स्वभाव शांत होता है. इनकी वाणी मधुर और मोहित करने वाली होती है. ये स्थिर स्वभाव वाले होते हैं सुख हो या दु:ख सभी स्थिति में ये समान रहते हैं. धन के मामले में भी ये भाग्यशाली होते हैं. इन्हें सरकार व समाज से मान सम्मान मिलता है
3 मंगलवार को पैदा हुये जातक
मंगलवार को जिस व्यक्ति का जन्म होता है वह व्यक्ति जटिल बुद्धि वाला होता है, ये किस भी बातको आसानी से नहीं मानते हैं और सभी बातों में इन्हें कुछ न कुछ खोट दिखाई देता है. ये युद्ध प्रेमी और पराक्रमी होते हैं. ये अपनी बातो पर कायम रहने वाले होते हैं. जरूरत पड़ने पर इस तिथि के जातक हिंसा पर भी उतर आते हैं. इनके स्वभाव की एक बड़ी विशेषता है कि ये अपने कुटुम्बों का पूरा ख्याल रखते हैं.
4 बुध को पैदा हुये जातक
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार बुधवार को जन्म लेने वाले व्यक्ति मधुर वचन बोलने वाले होते हैं . इस तिथि के जातक पठन पाठन में रूचि लेते हैं और ज्ञानी होते हैं. ये लेखन में रूचि लेते हैं और अधिकांशत: इसे अपनी जीवका बनाते हैं. ये अपने विषय के अच्छे जानकार होते हैं. इनके पास सम्पत्ति होती है परंतु ये धोखा देने में भी आगे होते हैं.
5 बृहस्पतिवार को पैदा हुये जातक
बृहस्पतिवार सप्ताह का पांचवा दिन होता है. इसे गुरूवार भी कहा जाता है. इस तिथि को जिनका जन्म होता है, वे विद्या एवं धन से युक्त होता है अर्थात ये ज्ञानी और धनवान होते हैं. ये विवेकशील होते हैं और शिक्षण को अपना पेशा बनाना पसंद करते हैं. ये लोगों के सम्मुख आदर और सम्मान के साथ प्रस्तुत होते हैं. ये सलाहकार भी उच्च स्तर के होते हैं.
6 शुक्रवार को पैदा हुये जातक
जिस व्यक्ति का जन्म शुक्रवार को होता है वह व्यक्ति चंचल स्वभाव का होता है . ये सांसारिक सुखों में लिप्त रहने वाले होते हैं. ये तर्क करने में निपुण और नैतिकता में बढ़ चढ कर होते हैं. ये धनवान और कामदेव के गुणों से प्रभावित रहते हैं . इनकी बुद्धि तीक्ष्ण होती है. ये ईश्वर की सत्ता में अंधविश्वास नहीं रखते हैं.
7 शनिवार को पैदा हुये जातक
जिस व्यक्ति का जन्म शनिवार को होता है उस व्यक्ति का स्वभाव कठोर होता है . ये पराक्रमी व परिश्रमी होते हैं. अगर इनके ऊपर दु:ख भी आये तो ये उसे भी सहना जानते हैं. ये न्यायी एवं गंभीर स्वभाव के होते हैं. सेवा करना इन्हें काफी पसंद होता है।

*जन्मतिथि का प्रभाव-*

प्रतिपदा से लेकर अमावस तक तिथियों का एक चक्र होता है जैसे अंग्रेजी तिथि में 1 से 30 या 31 तारीख का चक्र होता है। ज्योतिषशास्त्र में सभी तिथियों का अपना महत्व है। सभी तिथि अपने आप में विशिष्ट होती है। हमारे स्वभाव और व्यवहार पर तिथियों का काफी प्रभाव पड़ता है ऐसा ज्योतिषशास्त्री मानते हैं। हमारा जन्म जिस तिथि में होता है उसके अनुसार हमारा स्वभाव होता है। आइये तिथिवार व्यक्ति के स्वभाव के विषय में जानकारी प्राप्त करें।
1.प्रतिपदा:
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जिस व्यक्ति का जन्म प्रतिपदा तिथि में होता है वह व्यक्ति अनैतिक तथा कानून के विरूद्ध जाकर काम करने वाला होता है इन्हें मांस मदिरा काफी पसंद होता है, यानी ये तामसी भोजन के शौकीन होते हैं। आम तौर पर इनकी दोस्ती ऐसे लोगों से रहती है जिन्हें समाज में सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता अर्थात बदमाश और ग़लत काम करने वाले लोग।
2.द्वितीया तिथि:
ज्योतिषशास्त्र कहता है, द्वितीया तिथि में जिस व्यक्ति का जन्म होता है, उस व्यक्ति का हृदय साफ नहीं होता है। इस तिथि के जातक का मन किसी की खुशी को देखकर आमतौर पर खुश नहीं होता, बल्कि उनके प्रति ग़लत विचार रखता है। इनके मन में कपट और छल का घर होता है, ये अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए किसी को भी धोखा दे सकते हैं। इनकी बातें बनावटी और सत्य से दूर होती हैं। इनके हृदय में दया की भावना बहुत ही कम रहती है, यह किसी की भलाई तभी करते हैं जबकि उससे अपना भी लाभ हो। ये परायी स्त्री से लगाव रखते हैं जिससे इन्हें अपमानित भी होना पड़ता है।
3.तृतीया तिथि:
तृतीया तिथि में जन्म लेने वाला व्यक्ति मानसिक रूप से अस्थिर होता है अर्थात उनकी बुद्धि भ्रमित होती है। इस तिथि का जातक आलसी और मेहनत से जी चुराने वाला होता है। ये दूसरे व्यक्ति से जल्दी घुलते मिलते नहीं हैं बल्कि लोगों के प्रति इनके मन में द्वेष की भावना रहती है। इनके जीवन में धन की कमी रहती है, इन्हें धन कमाने के लिए काफी मेहनत और परिश्रम करना होता है।
4.चतुर्थी तिथि:
ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार जिस व्यक्ति का जन्म चतुर्थी तिथि को होता है वह व्यक्ति बहुत ही भाग्यशाली होता है। इस तिथि में जन्म लेने वाला व्यक्ति बुद्धिमान एवं अच्छे संस्कारों वाला होता है। ये मित्रों के प्रति प्रेम भाव रखते हैं। इनकी संतान अच्छी होती है। इन्हें धन की कमी का सामना नहीं करना होता है और ये सांसारिक सुखों का पूर्ण उपभोग करते हैं।
5.पंचमी तिथि:
पंचमी तिथि बहुत ही शुभ होती है। इस तिथि में जन्म लेने वाला व्यक्ति गुणवान होता है। इस तिथि में जिस व्यक्ति का जन्म होता है वह माता पिता की सेवा को धर्म समझता है, इनके व्यवहार में सामाजिक व्यक्ति की झलक दिखाई देती है। इनके स्वभाव में उदारता और दानशीलता स्पष्ट दिखाई देती है। ये हर प्रकार के सांसारिक भोग का आनन्द लेते हैं और धन धान्य से परिपूर्ण जीवन का मज़ा प्राप्त करते हैं।
6.षष्टी तिथि:
षष्टी तिथि को जन्म लेने वाला व्यक्ति सैर सपाटा पसंद करने वाला होता है। इन्हें देश-विदेश घुमने का शौक होता है अत: ये काफी यात्राएं करते हैं। इनकी यात्राएं मनोरंजन और व्यवसाय दोनों से ही प्रेरित होती हैं। इनका स्वभाव कुछ रूखा होता है और छोटी छोटी बातों पर लड़ने को तैयार हो जाता हैं।
7.सप्तमी:
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जिस व्यक्ति का जन्म सप्तमी तिथि को होता है वह व्यक्ति बहुत ही भाग्यशाली होता है। इस तिथि का जातक गुणवान और प्रतिभाशाली होता है, ये अपने मोहक व्यक्तित्व से लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने की योग्यता रखते हैं। इनके बच्चे गुणवान और योग्य होते हैं। धन धान्य के मामले में भी यह काफी भाग्यशाली होते हैं। ये संतोषी स्वभाव के होते हैं इन्हें जितना मिलता है उतने से ही संतुष्ट रहते हैं।
8.अष्टमी:
अष्टमी तिथि को जिनका जन्म होता है वह व्यक्ति धर्मात्मा होता है। मनुष्यों पर दया करने वाला तथा गुणवान होता है। ये कठिन से कठिन कार्य को भी अपनी निपुणता से पूरा कर लेते हैं। इस तिथि के जातक सत्य का पालन करने वाले होते हैं यानी सदा सच बोलने की चेष्टा करते हैं। इनके मुख से असत्य तभी निकलता है जबकि किसी मज़बूर को लाभ मिले।
9.नवमी:
नवमी तिथि को जन्म लेने वाला व्यक्ति भाग्यशाली एवं धर्मात्मा होता है। इस तिथि का जातक धर्मशास्त्रों का अध्ययन कर शास्त्रों में विद्वता हासिल करता है। ये ईश्वर में पूर्ण भक्ति एवं श्रद्धा रखते हैं। धनी स्त्रियों से इनकी संगत रहती है इनके पुत्र गुणवान होते हैं।
10.दशमी:
देशभक्ति तथा परोपकार के मामले में दशमी तिथि के जातक श्रेष्ठ होते हैं। देश व दूसरों के हितों मे लिए ये सर्वस्व न्यौछावर करने हेतु तत्पर रहते हैं। इस तिथि के जातक धर-अधर्म के बीच अंतर को अच्छी तरह समझते हैं और हमेशा धर्म पर चलने वाले होते हैं।
11.एकादशी:
एकादशी तिथि को जन्म लेने वाला व्यक्ति धार्मिक तथा सौभाग्यशाली होता है। मन, बुद्धि और हृदय से ये पवित्र होते हैं। इनकी बुद्धि तीक्ष्ण होती और लोगों में बुद्धिमानी के लिए जाने जाते है। इनकी संतान गुणवान और अच्छे संस्कारों वाली होती है, इन्हें अपने बच्चों से सुख व सहयोग मिलता है। समाज के प्रतिष्ठित लोगों से इन्हें मान सम्मान मिलता है।
12.द्वादशी:
द्वादशी तिथि में जन्म लेने वाले व्यक्ति का स्वभाव अस्थिर होता है। इनका मन किसी भी विषय में केन्द्रित नहीं हो पाता है बल्कि हर पल इनका मन चंचल रहता है। इस तिथि के जातक का शरीर पतला व कमज़ोर होता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से इनकी स्थिति अच्छी नहीं रहती है। ये यात्रा के शौकीन होते हैं और सैर सपाटे का आनन्द लेते हैं।
13.त्रयोदशी:
त्रयोदशी तिथि ज्योतिषशास्त्र में अत्यंत श्रेष्ठ माना जाता है। इस तिथि में जन्म लेने वाला व्यक्ति महापुरूष होता है। इस तिथि में जन्म लेने वाला व्यक्ति बुद्धिमान होता है और अनेक विषयों में अच्छी जानकारी रखता है। ये काफी विद्वान होते हैं। ये मनुष्यों के प्रति दया भाव रखते हैं तथा किसी की भलाई करने हेतु तत्पर रहते हैं। इस तिथि के जातक समाज में काफी प्रसिद्धि हासिल करते हैं।
14.चतुर्दशी:
जिस व्यक्ति का जन्म चतुर्दशी तिथि को होता है वह व्यक्ति नेक हृदय का एवं धार्मिक विचारों वाला होता है। इस तिथि का जातक श्रेष्ठ आचरण करने वाला होता है अर्थात धर्म के रास्ते पर चलने वाला होता है। इनकी संगति भी उच्च विचारधारा रखने वाले लोगों से होती है। ये बड़ों की बातों का पालन करते हें। आर्थिक रूप से ये सम्पन्न होते हैं। देश व समाज में इन्हें मान प्रतिष्ठा मिलती है।
15.पूर्णिमा:
जिस व्यक्ति का जन्म पूर्णिमा तिथि को होता है वह व्यक्ति पूर्ण चन्द्र की तरह आकर्षक और मोहक व्यक्तित्व का स्वामी होता है। इनकी बुद्धि उच्च स्तर की होती है। ये अच्छे खान पान के शौकीन होते हैं। ये सदा अपने कर्म में जुटे रहते हैं। ये परिश्रमी होते हैं और धनवान होते हैं। ये परायी स्त्रियो पर मोहित रहते हैं।
16.अमावस:
अमावस्या तिथि को जन्म लेने वाला व्यक्ति चतुर और कुटिल होता है। इनके मन में दया की भावना बहुत ही कम रहती है। इनके स्वभाव में ईर्ष्या अर्थात दूसरों से जलने की प्रवृति होती है। इनके व्यवहार व आचरण में कठोरता दिखाई देती है। ये दीर्घसूत्री अर्थात किसी भी कार्य को पूरा करने में काफी समय लेने वाले होते हैं। ये झगड़ा करने में भी आगे रहते हैं...

सोमवार, 1 जून 2020

*भीम एकादशी*

*एकादशी व्रत कथा*

   *निर्जला एकादशी*
🙏🙏भीम एकादशी 🙏🙏
    युधिष्ठिर ने कहा: जनार्दन ! ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष में जो एकादशी पड़ती हो, कृपया उसका वर्णन कीजिये ।

भगवान श्रीकृष्ण बोले: राजन् ! इसका वर्णन परम धर्मात्मा सत्यवतीनन्दन व्यासजी करेंगे, क्योंकि ये सम्पूर्ण शास्त्रों के तत्त्वज्ञ और वेद वेदांगों के पारंगत विद्वान हैं ।

तब वेदव्यासजी कहने लगे: दोनों ही पक्षों की एकादशियों के दिन भोजन न करे । द्वादशी के दिन स्नान आदि से पवित्र हो फूलों से भगवान केशव की पूजा करे । फिर नित्य कर्म समाप्त होने के पश्चात् पहलेब्राह्मणों को भोजन देकर अन्त में स्वयं भोजन करे । राजन् ! जननाशौच और मरणाशौच में भी एकादशी को भोजन नहीं करना चाहिए ।

यह सुनकर भीमसेन बोले: परम बुद्धिमान पितामह ! मेरी उत्तम बात सुनिये । राजा युधिष्ठिर, माता कुन्ती, द्रौपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव ये एकादशी को कभी भोजन नहीं करते तथा मुझसे भी हमेशा यहीकहते हैं कि : ‘भीमसेन ! तुम भी एकादशी को न खाया करो…’ किन्तु मैं उन लोगों से यही कहता हूँ कि मुझसे भूख नहीं सही जायेगी ।

भीमसेन की बात सुनकर व्यासजी ने कहा : यदि तुम्हें स्वर्गलोक की प्राप्ति अभीष्ट है और नरक को दूषित समझते हो तो दोनों पक्षों की एकादशीयों के दिन भोजन न करना ।

भीमसेन बोले : महाबुद्धिमान पितामह ! मैं आपके सामने सच्ची बात कहता हूँ । एक बार भोजन करके भी मुझसे व्रत नहीं किया जा सकता, फिर उपवास करके तो मैं रह ही कैसे सकता हूँ? मेरे उदर में वृकनामक अग्नि सदा प्रज्वलित रहती है, अत: जब मैं बहुत अधिक खाता हूँ, तभी यह शांत होती है । इसलिए महामुने ! मैं वर्षभर में केवल एक ही उपवास कर सकता हूँ । जिससे स्वर्ग की प्राप्ति सुलभ हो तथाजिसके करने से मैं कल्याण का भागी हो सकूँ, ऐसा कोई एक व्रत निश्चय करके बताइये । मैं उसका यथोचित रुप से पालन करुँगा ।

व्यासजी ने कहा: भीम ! ज्येष्ठ मास में सूर्य वृष राशि पर हो या मिथुन राशि पर, शुक्लपक्ष में जो एकादशी हो, उसका यत्नपूर्वक निर्जल व्रत करो । केवल कुल्ला या आचमन करने के लिए मुख में जल डालसकते हो, उसको छोड़कर किसी प्रकार का जल विद्वान पुरुष मुख में न डाले, अन्यथा व्रत भंग हो जाता है । 
एकादशी को सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्योदय तक मनुष्य जल का त्याग करे तो यह व्रत पूर्णहोता है । 
तदनन्तर द्वादशी को प्रभातकाल में स्नान करके ब्राह्मणों को विधिपूर्वक जल और सुवर्ण का दान करे । इस प्रकार सब कार्य पूरा करके जितेन्द्रिय पुरुष ब्राह्मणों के साथ भोजन करे । 
वर्षभर में जितनीएकादशीयाँ होती हैं, उन सबका फल निर्जला एकादशी के सेवन से मनुष्य प्राप्त कर लेता है, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है । शंख, चक्र और गदा धारण करनेवाले भगवान केशव ने मुझसे कहा था कि: ‘यदि मानवसबको छोड़कर एकमात्र मेरी शरण में आ जाय और एकादशी को निराहार रहे तो वह सब पापों से छूट जाता है ।’

एकादशी व्रत करनेवाले पुरुष के पास विशालकाय, विकराल आकृति और काले रंगवाले दण्ड पाशधारी भयंकर यमदूत नहीं जाते । अंतकाल में पीताम्बरधारी, सौम्य स्वभाववाले, हाथ में सुदर्शन धारण करनेवालेऔर मन के समान वेगशाली विष्णुदूत आखिर इस वैष्णव पुरुष को भगवान विष्णु के धाम में ले जाते हैं । 
अत: निर्जला एकादशी को पूर्ण यत्न करके उपवास और श्रीहरि का पूजन करो । स्त्री हो या पुरुष, यदिउसने मेरु पर्वत के बराबर भी महान पाप किया हो तो वह सब इस एकादशी व्रत के प्रभाव से भस्म हो जाता है । जो मनुष्य उस दिन जल के नियम का पालन करता है, वह पुण्य का भागी होता है । उसे एक-एकप्रहर में कोटि-कोटि स्वर्णमुद्रा दान करने का फल प्राप्त होता सुना गया है । मनुष्य निर्जला एकादशी के दिन स्नान, दान, जप, होम आदि जो कुछ भी करता है, वह सब अक्षय होता है, यह भगवान श्रीकृष्ण काकथन है । निर्जला एकादशी को विधिपूर्वक उत्तम रीति से उपवास करके मानव वैष्णवपद को प्राप्त कर लेता है । जो मनुष्य एकादशी के दिन अन्न खाता है, वह पाप का भोजन करता है । इस लोक में वह चाण्डालके समान है और मरने पर दुर्गति को प्राप्त होता है ।

जो ज्येष्ठ के शुक्लपक्ष में एकादशी को उपवास करके दान करेंगे, वे परम पद को प्राप्त होंगे । जिन्होंने एकादशी को उपवास किया है, वे ब्रह्महत्यारे, शराबी, चोर तथा गुरुद्रोही होने पर भी सब पातकों से मुक्त हो जातेहैं ।

कुन्तीनन्दन ! ‘निर्जला एकादशी’ के दिन श्रद्धालु स्त्री पुरुषों के लिए जो विशेष दान और कर्त्तव्य विहित हैं, उन्हें सुनो: उस दिन जल में शयन करनेवाले भगवान विष्णु का पूजन और जलमयी धेनु का दान करनाचाहिए अथवा प्रत्यक्ष धेनु या घृतमयी धेनु का दान उचित है । पर्याप्त दक्षिणा और भाँति-भाँति के मिष्ठान्नों द्वारा यत्नपूर्वक ब्राह्मणों को सन्तुष्ट करना चाहिए । ऐसा करने से ब्राह्मण अवश्य संतुष्ट होते हैं और उनकेसंतुष्ट होने पर श्रीहरि मोक्ष प्रदान करते हैं । जिन्होंने शम, दम, और दान में प्रवृत हो श्रीहरि की पूजा और रात्रि में जागरण करते हुए इस ‘निर्जला एकादशी’ का व्रत किया है, उन्होंने अपने साथ ही बीती हुई सौपीढ़ियों को और आनेवाली सौ पीढ़ियों को भगवान वासुदेव के परम धाम में पहुँचा दिया है । 
निर्जला एकादशी के दिन अन्न, वस्त्र, गौ, जल, शैय्या, सुन्दर आसन, कमण्डलु तथा छाता दान करने चाहिए । जो श्रेष्ठतथा सुपात्र ब्राह्मण को जूता दान करता है, वह सोने के विमान पर बैठकर स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है । 
जो इस एकादशी की महिमा को भक्तिपूर्वक सुनता अथवा उसका वर्णन करता है, वह स्वर्गलोक में जाताहै । 
पहले दन्तधावन करके यह नियम लेना चाहिए कि : ‘मैं भगवानकेशव की प्रसन्न्ता के लिए एकादशी को निराहार रहकर आचमन के सिवा दूसरे जल का भी त्याग करुँगा ।’ द्वादशी को देवेश्वर भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए । गन्ध, धूप, पुष्प और सुन्दर वस्त्र सेविधिपूर्वक पूजन करके जल के घड़े के दान का संकल्प करते हुए निम्नांकित मंत्र का उच्चारण करे :

देवदेव ह्रषीकेश संसारार्णवतारक ।

उदकुम्भप्रदानेन नय मां परमां गतिम्॥

‘संसारसागर से तारनेवाले हे देवदेव ह्रषीकेश ! इस जल के घड़े का दान करने से आप मुझे परम गति की प्राप्ति कराइये ।’

भीमसेन ! ज्येष्ठ मास में शुक्लपक्ष की जो शुभ एकादशी होती है, उसका निर्जल व्रत करना चाहिए । उस दिन श्रेष्ठ ब्राह्मणों को शक्कर के साथ जल के घड़े दान करने चाहिए । ऐसा करने से मनुष्य भगवान विष्णुके समीप पहुँचकर आनन्द का अनुभव करता है । तत्पश्चात् द्वादशी को ब्राह्मण भोजन कराने के बाद स्वयं भोजन करे । जो इस प्रकार पूर्ण रुप से पापनाशिनी एकादशी का व्रत करता है, वह सब पापों से मुक्त होआनंदमय पद को प्राप्त होता है ।

यह सुनकर भीमसेन ने भी इस शुभ एकादशी का व्रत आरम्भ कर दिया । तबसे यह लोक मे भीम एकादशी के नाम से विख्यात हुई ।और द्वादशी - पाण्डव द्वादशी से प्रसिद्ध हुई। 

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