रविवार, 17 नवंबर 2019

Hitopadesh


न रणे विजयात् शूरोऽध्ययनात् न च पण्डितः
न वक्ता वाक्पटुत्वेन न दाता चार्थ दानतः ।
इन्द्रियाणां जये शूरो धर्मं चरति पण्डितः
हित प्रायोक्तिभिः वक्ता दाता सन्मान दानतः ॥
अर्थात्...
रणमैदान में विजय प्राप्त करने से नहीं, बल्कि इंद्रियविजय से इन्सान शूर कहलाता है;
अध्ययन से नहीं, बल्कि धर्माचरण से इन्सान पण्डित कहलाता है;
वाक्चातुर्य से नहीं, पर हितकारक वाणी से व्यक्ति वक्ता कहलाता है; और
(केवल) धन देने से नहीं, बल्कि सम्मान देने से (सम्मानपूर्वक देने से) इन्साना दाता बनता है ।

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