|| महाधनी योगः ||
महाधनी योग :
सद्व्योमगेहैः कलिते चतुष्टये केन्द्रेऽथ मन्दे यदि सस्वमन्दिरे ||प्राप्तौ प्रबन्धेऽथ भवे बृहस्पतौ पुत्रे रवौ सस्वगृहे ‘ महाधनी '||
|| महाधनी योगः||
। यदि चारों केन्द्र स्थानों में शुभग्रह हों अथवा पंचम या एकादश में मकर या कुम्भ का शनि हो । यदि एकादश स्थान में बृहस्पति हो और पंचम स्थान में सिह राशि का सूर्य हो तो इन योगों में व्यक्ति महाधनी होता है । ।
ऊपर संस्कृत टीका में सुधासागर के उद्धरण दिए गए हैं । उन्हीं के आधार पर ये योग ग्रन्थकार ने कहे हैं । इनके अतिरिक्त भी कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए ।
धनेश , धनस्थान में स्थित ग्रह और धनभाव पर दष्टि रखने वाला यह ये तीन यह प्रत्यक्ष घनदाता हैं । इनकी दशान्तर्दशा में अपने - अपने कारकत्व के आधार पर धन लाभ होता है । इसके अतिरिक्त लग्नेश , लाभेश व धनेश स्वक्षेत्री हों अथवा धनेश व लाभेश उच्चत्रिकोण स्वमित्र गृही हों तो व्यक्ति धनी होता है । लग्नेश व घनेश का सम्बन्ध भी धनप्रद होता है ।
चारों केन्द्र स्थानों में शुभग्रह हों यह तभी सम्भव है जब शुक्ल पक्ष में अष्टमी से आगे का जन्म हो । बध पापसंगरहित हो । गुरु व शक्र निसर्गतः बिना किसी शर्त के शुभग्रह है । लेकिन चन्द्र बुध समय - परिस्थिति सापेक्ष शुभ है । तथापि यह बहुत सुलभ योग नहीं है ।
पंडयाजी +9824417090
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