बुधवार, 2 जुलाई 2025

॥ श्रीकामाक्षी नवरत्नमालिका स्तोत्रम् ॥

॥ श्रीकामाक्षी नवरत्नमालिका स्तोत्रम् ॥


उद्यत्कोटि निशाकर प्रतिभटां भद्रासने सुस्थितां
संख्यातीतगुणोज्ज्वलां भगवतीं त्रैलोक्य सम्मोहिनीम् ।
चेटीभूत समस्त देवमहिलां दिव्याम्बरालङ्कृतां
वन्दे कामविलोचनामनुदिनं वाञ्छातिरिक्तप्रदाम् ॥ १॥

मैं प्रतिदिन उन माॅं कामाक्षी की पूजा करता हूॅं, जिनकी दिव्य छटा कोटि चन्द्रमा की प्रभा को म्लान कर देती है, जो भद्रासन में बैठी हुईं हैं, जो असंख्य गुण सम्पन्ना हैं, जो तीनों लोक को मोहित कर रखीं हैं, जो दिव्याभरणोंसे सुसज्जिता हैं, देवाङ्गना जिनकी सेवा करतीं हैं तथा जो भक्तोंको आशातिरिक्त फल देतीं हैं।

भद्रां भूषणगन्धमाल्यरुचिरां सन्ध्याभ्रशोणाम्बरां
हस्तन्यस्त शुकाम्बुजां हरिविरिञ्चाद्यैस्सदा पूजिताम् ।
नित्याऽनित्यविवेकदां निरुपमां नित्यादि शक्त्यावृतां
वन्दे कामविलोचनामनुदिनं वाञ्छातिरिक्तप्रदाम् ॥ २॥

मैं नित्य उन भगवती कामाक्षी की पूजा करता हूॅं, जो दिव्यालंकार, सुगन्धी द्रव्य, पुष्पमाला, रक्तवस्त्र आदि से सुशोभिता हैं, जिनके अलंकार उदीयमान सूर्यके भांति लाल हैं, जो हाथमें एक तोता और कमल धारण की हुईं है, ब्रह्मा, विष्णु भी जिनकी पूजा करते हैं एवं जो नाना शक्तियां से घिरी हुई होकर भक्तोंको मनोवाञ्छा से अधिक फल देतीं हैं।

श्रीमच्चिन्मय कामकोटिनिलयां सर्वज्ञपीठेश्वरीं
मूलाम्नाय मठाधिपैर्यतिवरैस्संसेविताङ्घ्रिद्वयाम् ।
इच्छाज्ञान समस्त शक्तिसहितां सामीप्य मुक्त्यदिदां
वन्दे कामविलोचनामनुदिनं वाञ्छातिरिक्तप्रदाम् ॥ ३॥
मैं नित्य उन भगवती कामाक्षी की वन्दना करता हूॅं,- जो‌ पूर्ण चैतन्य स्वरूपा होकर कामकोटि में निवास करतीं हैं, जो सर्वज्ञपीठाधीश्वरी हैं , जिनके चरणयुगल मूलाम्नाया मठ के सन्यासीओं द्वारा पूजित होतीं हैं एवं जो इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति आदि सभी शक्तिओं से सम्पन्ना हैं तथा भक्तोंको मोक्ष और आशातिरिक्त फल प्रदान करतीं हैं ।

वेद्यां वैदिकमन्त्रकैरभिनुतामोङ्कारनादात्मिकां
कौलाचार विवर्जितां समयिनीं कन्दर्पकान्तिप्रदाम् ।
जातीचम्पकमल्लिका परिलसत्कण्ठां मनोहारिणीं
वन्दे कामविलोचनामनुदिनं वाञ्छातिरिक्तप्रदाम् ॥ ४॥

मैं नित्य माॅं कामाक्षी की पूजन खरता हूॅं, केवल ही जाननेयोग्या हैं, जो वेदमन्त्रोंसे आराधिता हैं, ॐ-कार स्वरूपा हैं, जो कौलाचार से दूर वैदिक तन्त्रके ईश्वरी हैं, कामदेवके प्राणदात्री हैं तथा जो जाति, चम्पक, मल्लिका आदि पुष्पोंसे सुशोभिता हैं एवं हमें मनोवाञ्छाके अधिक फल देतीं हैं। 

भक्तानां परिपालनोत्सुकतमां भाग्यप्रदां निर्मलां
शोकारण्यदवानलां प्रणमतां स्वर्धेनुवत्कामदाम् ।
मुद्रानन्दित मानसां मुनिगणैराराधितामम्बिकाम्
वन्दे कामविलोचनामनुदिनं वाञ्छातिरिक्तप्रदाम् ॥ ५॥

मैं नित्य उन पावनी भगवती कामाक्षी को पूजता हूॅं, जो सदा भक्तोंको अपने बछड़े जैसे पालन करने के लिये उत्सुक रहतीं हैं, उन्हें सौभाग्य प्रदान करतीं हैं, संसारके दु:खोंका नाश करतीं हैं, उन्हें कामधेनु के भांति वर प्रदान करतीं हैं, जिनके मन मुद्रासे प्रसन्न होता है ,‌ जो भगवान शिवके अर्धांगिनी हैं एवं भक्तों के मनोवाञ्छासे अधिक फल देतीं हैं।

कैवल्यैक परायणां कलरवां काश्मीरपङ्काञ्चितां
राजत्काञ्चन रत्नचारु मकुटां राजीवपत्रेक्षणाम् ।
दिव्यौघैर्मनुजैश्च सिद्धनिवहैर्भूनिर्जरैस्सेवितां
वन्दे कामविलोचनामनुदिनं वाञ्छातिरिक्तप्रदाम् ॥ ६॥

मैं नित्य उन माॅं कामाक्षी की वन्दना करता हूॅं, - जो मोक्ष पाने का एकमात्र गति हैं, जो रत्नजडित स्वर्णालंकार तथा स्वर्णमुकुट से सुसज्जिता हैं, जिनके नेत्र कमलके पंखुड़ियों जैसी हैं तथा जो सिद्ध, मुनि, मनुष्य, देवता, ब्राह्मणोंसे सेविता हैं‌ एवं भक्तोंको आशातिरिक्त‌ फल देतीं हैं।

मायां मानवपालिनीं मधुमतीं मन्दारमालाधरां
सोमाद्यध्वरसप्रियां सुरनुतां शृङ्गारसारोदयाम् ।
चारुस्मेरमुखाम्बुजां त्रिणयनां नीलालकालङ्कृतां
वन्दे कामविलोचनामनुदिनं वाञ्छातिरिक्तप्रदाम् ॥ ७॥

मैं उन देवि कामाक्षी की वन्दना करता हूॅं जो मायास्वरूपा हैं, जगत के पालयित्री हैं, मधुरा हैं, जो मन्दार पुष्प के माला पहनी हुईं हैं‌, जो सभी देवताओं द्वारा पूजिता हैं, जिनके त्रिनयन और मन्दहास्य युक्त कमलवदन, कुञ्चित केशपाश‌ उनकी सौन्दर्यको और बढ़ा देते हैं एवं जो देवि हमारे मनोवाञ्छा से अधिक फलदायिनी हैं।

ब्रह्मानन्दसुखावहां शुभकरीं स्वज्ञानदां देहिनां
ध्येयां धर्मविवर्धिनीं धनकरीं धामत्रयाराधिताम् ।
मन्त्राणामधिदेवतां प्रजपतां सर्वार्थसिद्धिप्रदां
वन्दे कामविलोचनामनुदिनं वाञ्छातिरिक्तप्रदाम् ॥ ८॥

मैं प्रतिदिन उन भगवती कामाक्षी की पूजा करता हूॅं जो ब्रह्मानन्ददायिनी हैं, सौभाग्यदायिनी हैं, ज्ञानदायिनी हैं, हैं, जिनकी ध्यान करने से जीवोंको चैतन्य प्रदान करतीं हैं, जो धर्म का विस्तार करतीं हैं, सम्पद प्रदान करतीं हैं, जो तीन धामोंमें ( काञ्चीमें - कामाक्षी, मदुराई - मीनाक्षी, काशी - विशालाक्षी ) सुपूजिता हैं, जो चतुर्वर्ग तथा आशातिरिक्त फलदात्रीं हैं।

संसारार्णवतारिणीं शतमखस्कन्देभवक्त्रेडितां
सोमार्धोज्ज्वलशेखरामगसुतामाकर्णपूर्णेक्षणाम् ।
वीणागान विलोलुपां विजयदां वन्ध्यात्वदोषापहां
वन्दे कामविलोचनामनुदिनं वाञ्छातिरिक्तप्रदाम् ॥ ९॥

मैं नित्य भगवती कामाक्षीको पूजता हूॅं जो भवसागर पार करानेवालीं हैं, जो इन्द्र, स्कन्द, तथा गणपति द्वारा पूजिता हैं, जिनके मस्तक पर अर्द्धचन्द्र सुशोभित है, जो शैलपुत्री हैं, जिनके आकर्णपूरित नेत्र है, जो वीना और सङ्गीत में रुचि रखतीं है, युद्धमें विजयप्रदान करतीं हैं, स्त्रियोंके वन्ध्यात्व दूर करतीं हैं तथा भक्तोंके मनोवाञ्छासे अधिक कृपा करतीं हैं ।