रविवार, 23 जुलाई 2023

मुहूर्तग्रन्थों का इतिहास

★★★मुहूर्तग्रन्थों का इतिहास ★★★

  √मुहूर्तग्रन्थ और उनके कर्ताओं का थोड़ा सा इतिहास लिख कर यह स्कन्ध समाप्त करेंगे। आगे लिखे हुए स्वल्प इतिहास से ज्ञात होगा कि मुहूर्तविषयक ग्रन्थ अनेक है। उनमें से जिनका प्रत्यक्ष या परम्परया थोड़ा बहुत परिचय है उन्हीं का वर्णन यहां करेंगे ।

√● रत्नकोश (लगभग शक ५६० ) – यह ग्रन्थ लल्ल का है। इसे मैंने नहीं देखा है । श्रीपति ने रत्नमाला इसी के आधार पर बनाई है अतः यह आधुनिक मुहूर्तग्रन्थों सदृश ही होगा। 

√●रत्नमाला (लगभग शक ९६१ ) – यह ग्रन्थ श्रीपतिकृत है। इसमें केवल उपर्युक्त मुहूर्तग्रन्थोक्त ही विषय हैं।' इस पर माधव की टीका है। माधव का काल शक ११८५ है । इन्होंने टीका में अनेक ग्रन्थों के वचन दिये हैं। उनमें से यहां मुहूर्तस्कन्ध- सम्बन्धी ग्रन्थों और ग्रन्थकारों के वे नाम लिखते हैं जिनके विषय में इसके पूर्व या पश्चात् कुछ भी नहीं लिखा गया है। ग्रन्थकारों के नाम: -- ब्रह्मशंभु, योगेश्वर (ये दोनों नाम वास्तुप्रकरण में आये हैं) और श्रीधर । ग्रन्थों के नाम - भास्करव्यवहार, भीम पराक्रम, दैवज्ञवल्लभ, आचारसार (यह कदाचित् आचारविषयक ग्रन्थ होगा), त्रिवि - क्रमशत, केशवव्यवहार, तिलकव्यवहार, योगयात्रा, विद्याधारीविलास, विवाहपटल, विश्वकर्मशास्त्र (यह नाम वास्तुप्रकरण में आया है)। इनके अतिरिक्त जातकग्रन्थ लघुजातक, यवनजातक, वृद्धजातक, शकुनग्रन्थ नरपतिजयचर्या और प्रश्नग्रन्थ विद्व- ज्जनवल्लभ के भी वचन दिये हैं। टीका में वारप्रकरण में इन्होंने लिखा है-इह आनन्दपुरे विषुवच्छाया ५।२० विषुवत्कर्णः १३।८। इससे ज्ञात होता है कि इनका स्थान आनन्दपुर है और उसका अक्षांश २४ है ।

√● राजमार्तण्ड —यह ग्रन्थ भोजकृत है। यह शक ९६४ के लगभग बना होगा ।

√● विद्वज्जनवल्लभ – तंजौर के महाराष्ट्र राजकीय पुस्तकालय की सूची में इस ग्रन्थ के विषय में लिखा है --यह ग्रन्थ भोजकृत ( अर्थात् शक ९६४ के आसपास का) है। इसमें १८ प्रकरण और सब लगभग १८५ श्लोक हैं। प्रकरणों के नाम क्रमशः लाभालाभ,शत्रुगमागम, गमागम, प्रेषितागम, यात्रा, जयपराजय, सन्धि, आश्रय, बन्धा- बन्ध, रोगी, कन्यालाभ, गर्भधारणा, जन्म, वृष्टि, क्षिप्तधन (१६ वां प्रकरण खण्डित है), मिश्र और चिन्ता हैं। भोजकृत संहितास्कन्धीय एक ग्रन्थ राजमार्तण्ड के रहते हुए उनका यह दूसरा ग्रन्थ बनाना शंकास्पद है। दूसरे का हो तो भी यह निश्चित है कि यह शक ११८५ के पहिले का है क्योंकि माधवकृत रत्नमाला की टीका में इसका नाम है।

√●अद्भुतसागर मिथिला के राजा लक्ष्मणसेन के पुत्र महाराजाधिराज बल्ल मेन ने यह ग्रन्थ बनाया है। इसमें लिखा है कि बल्लालसेन दशक २०८२ में गद्दी पर बेटे और उन्होंने शक १०९० में यह प्रन्य बनाया। इसमें वाराहीहिता सदृश विषय है उसकी अपेक्षा कुछ नवीन भी है या नहीं यह नहीं देखा है तथापि सुधाकर ने लिखा है कि ग्रन्थ देखने योग्य है। इसमें अध्यायों को आवर्त कहा है। ग्रहणविषयक आवर्त में लिखा है कि बूधभार्गवाच्छादन के बिना यदि सूर्य में चित्र दिखाई दें तो परचक आता है। इससे सिद्ध होता है कि उन्हें बुधशुत्रकृत सूर्यबिम्बभेद और सूर्य के धब्बों का ज्ञान था क्योंकि बिम्बभेद के बिना दिखाई देने वाले छिद्र सूर्य के धब्बे ही है। इन्होंने लिखा है कि दोनों अयन कब होते हैं, इसे मैने ठीक देखा है (और उसके द्वारा अयनांश निश्चित किया है। इससे इनकी अन्वेषकता व्यक्त होती है। इस ग्रन्थ में अनेक ग्रन्थकारादिकों के नाम आये हैं। उनमें बसन्तराज और प्रभाकर तथा वटक- णिका, विष्णुधर्मोत्तर और भागवत ग्रन्थ है।

√●व्यवहारप्रदीप — इस नाम का संहितामुहूर्त स्कन्ध का एक उत्तम ग्रन्थ पद्मनाभकृत है। यमुनापुर नगर के निवासी शिवदास नामक ब्राह्मण के पुत्र गंगादास थे। उनके पुत्र कृष्णदास पद्मनाभ के पिता थे। इनके ग्रन्थ में भीमपराक्रम, श्रीपतिकृत रत्नमाला, दीपिका रूपनारायण, राजमार्तण्ड, सारसागर, रत्नावली, ज्योतिस्तन्त्र (गणितग्रन्थ), व्यवहारचण्डेश्वर और मुक्तावली के वचन आये है। सुधाकर ने लिखा है कि भास्कर- कथित बीजगणितप्रत्यकार पद्मनाभ ये ही है परन्तु बात ऐसी नहीं है। बीजगणित- ग्रन्वकार पद्मनाभ शक ७०० के पहिले के हैं और व्यवहारप्रदीप शक ९६४ के बाद का है क्योंकि इसमें रत्नमाला और राजमार्तण्ड का उल्लेख है। पद्मनाभ के ग्रन्थ में लिखे हुए सूर्यसिद्धान्त और वाराही संहिता इत्यादिकों के वचन उन ग्रन्थों में मिलते हैं परन्तु उसका एक श्लोक और उसमें शौनकसंहिता, वसिष्ठसंहिता और ज्योतिस्तन्त्र के नाम पर उद्धृत किये हुए एक-एक श्लोक अर्थात् सब चार श्लोक सिद्धान्तशिरोमणि में है'। सुधाकर ने लिखा है कि भास्कराचार्य ने ये श्लोक उन ग्रन्थों मे लिये है परन्तु उन श्लोकों के स्वरूप से मुझे पद्मनाभ का ही लेख अविश्वसनीय प्रतीत होता है और यह ग्रन्थ शक १०७२ के बाद का ज्ञात होता है।

√●ज्योतिर्विदाभरण – यह मुहूर्तग्रन्थ है। इसमें लिखा है कि इसे रघुवंशादि काव्यों के रचयिता कालिदास ने गतकलि ३०६८ में बनाया है पर यह कथन मिथ्या है। इसमें ऐन्द्रयोग का तृतीय अंश व्यतीत होने पर सूर्यचन्द्रमा का क्रान्तिसाम्य बताया है, इससे इसका रचनाकाल लगभग शक ११६४ निश्चित होता है। यदि इसके रचयिता कालिदास ही है. तो निश्चित है कि वे रघुवंशकार कालिदास से भिन्न हैं।

√●विवाहवृन्दावन (लगभग शक ११६५ ) – मुहूर्तग्रन्थों के एक प्रकरण विवाह के विषय में केशव नामक ज्योतिषी ने यह ग्रन्थ बनाया है। इसका वर्णन ऊपर कर चुके हैं। रत्नमालाटीकाकार माधव की शक ११८५ की टीका में केशव का नाम आया है, वे केशव अनुमानतः विवाहवृन्दावनकार ही होंगे अतः इस ग्रन्थ का काल लगभग शक ११६५ अधिक सयुक्तिक ज्ञात होता है। माधव की टीका में केशव व्यवहार नामक एक ग्रन्थ का उल्लेख है। वह भी इन्हीं का होगा ।

√●विवाहपटल (शार्ङ्गधरकृत) — यह विवाहविषयक मुहूर्तग्रन्थ है । इसमें हेमाद्रि बीर माधव के नाम आये हैं और पीताम्बरकृत विवाहपटल की शक १४४६ की टीका में इसका उल्लेख है अतः इसका रचनाकाल शक १४०० के आसपास होगा। मालूम होता है, इसका एक नाम सारसमुच्चय भी है। गणेशकृत मुहूर्ततत्त्व की टीका (लगभग शक १४५०) में शार्ङ्गघर और सारसमुच्चय के नाम आये हैं। इससे भी सिद्ध होता है कि शार्ङ्गधर का काल शक १४०० से अर्वाचीन नहीं है। अब यहां इसमें आये हुए उन ग्रन्थकारादिकों के नाम लिखते हैं जिनके विषय में इसके पूर्व कुछ भी नहीं लिखा गया है । ग्रन्थकार — हरि, गदाधर, मुकुन्द, भार्गव, पवनेश्वर, लक्ष्मीधरभट्ट । ग्रन्थ- मुक्तावली, लक्ष्मीघरपटल, गदाघरपटल, रत्नोज्ज्वलसंहिता । ये सब ग्रन्थ और ग्रन्थ- कार प्रायः मुहूर्तस्कन्ध के हैं।

√●मुहूर्ततत्त्व — यह ग्रन्थ नन्दिग्रामस्य केशव का है अतः इसका काल लगभग शक १४२० होगा। इसमें आरम्भ में मुहर्तग्रन्थों के उपर्युक्त विषय तो हैं ही पर उसके बागे "मुहूर्तखण्डः समाप्तः अय संहिताखण्ड: " लिख कर ग्रहचार, ग्रहयुद्ध इत्यादि बराहसंहिता के बहुत से विषयों का संक्षिप्त वर्णन किया है तथापि उस समय इन विषयों का प्रत्यक्ष उपयोग होता रहा होगा—यह शङ्कास्पद है। इस ग्रन्थ में नौकाविषयक एक विशिष्ट प्रकरण है। वह यात्रा के बाद है। उसमें नौका बनाने, उसे पानी में छोड़ने, उससे यात्रा करने इत्यादि के मुहूर्त लिखे हैं। अन्य किसी भी मुहूर्तग्रन्थ में यह प्रकरण नहीं है। इसकी टीका में पूर्वाचार्यों के आधारभूत वचन बिलकुल नहीं दिये हैं। श्लोकों में नाल और सुकाण शब्दों का प्रयोग किया गया है। इनके विषय में टीकाकार गणेशदैवज्ञ ने लिखा है-लौकिकाविमो प्रयोगी गृहीतौ अभिधानादिष्व-दृष्टत्वात । समुद्रतटवासी होने के कारण मल्लाह इनसे नौकासम्बन्धी मुहूर्त पूछते रहे होंगे अतः यह नवीन प्रकरण इन्होंने स्वयं बनाया होगा। नावप्रदीप नामक इनका एक स्वतन्त्र ग्रन्थ (डे० का० सं० नं० ३३२ सन् १८८२-८३) भी है। मुहूर्ततस्व सम्प्रति प्रचलित है। उस पर ग्रन्थकार के पुत्र गणेशदेवज्ञ की टीका है। वह लगभन शक १४५० की होगी। वह छप चुकी है। उसमें आये हुए मुहूर्तग्रन्थकारों और ग्रन्थों के वे नाम यहां लिखते हैं जिनके विषय में अब तक कुछ नहीं लिखा गया है। ग्रन्थकार —– वसन्तराव, भूपाल, नृसिंह। ग्रन्थ — विवाहपटल, ज्योतिषसार, शान्ति- पटल, संहितादीपक संग्रह मुहूर्तसंग्रह, अर्णव, विघिरत्न, श्रीधरीय, ज्योतिषार्क, भूपाल वल्लभ, ज्योतिषप्रकाश' ।

√●विवाहपटल (पीताम्बरकृत ) – यह ग्रन्थ शक १४४४ का है। इसमें ५२ श्लोक हैं। इस पर ग्रन्थकार की ही शक १४४६ की निर्णयामृत नाम की विस्तृत टीका है। पीताम्बर के पिता का नाम राम और पितामह का नाम जगन्नाथ था। वे महानदी- मुखस्थ स्तम्भतीर्थ (खंभात) के निवासी गौड़ ब्राह्मण थे। अब यहां इस ग्रन्थ की टीका में आये हुए ज्योतिष ग्रन्यादिकों के के नाम लिखते हैं जिनके विषय में इसके पूर्व कुछ नहीं लिखा है । ग्रन्यकार - प्रभाकर, वैद्यनाथ, मधुसूदन, वसन्तराज, सुरेश्वर, वामन, भागुरि, आशाधर, अनन्तभट्ट, मदन, भूपालवल्लभ । ग्रन्थ – चिन्तामणि, विवाहकौमुदी, वैद्यनाथकृत विवाहपटल, व्यवहारतत्त्वशत, रूपनारायणग्रन्य, ज्योतिष- प्रकाश, संहिताप्रदीप, चूड़ारल, संहितासार, मौंजीपटल, धर्मतत्त्वकलानिधि संग्रह, त्रिविक्रमभाष्य, ज्योतिषसार, ज्योतिनिबन्ध, सन्देहदोषौषध, सज्जनवल्लभ, ज्योति- श्चिन्तामणि, ज्योतिर्विवरण, ज्योतिविवेक, फलप्रदीप, गोरजपटल, कालविवेक । ये सब ग्रन्थकार और ग्रन्थ प्रायः मुहूर्तस्कन्ध के हैं। इनके अतिरिक्त ताजिकतिलक और सामुद्रतिलक के नाम आये हैं ।

√●ज्योतिनिबन्ध – यह शिवदासविरचित धर्मशास्त्र पर मुहूर्तग्रन्थ है। पीताम्बर- कृत विवाहपटल की टीका में इसका उल्लेख है अतः यह शक १४४६ के पहिले का है। 

√●ज्योतिषदर्पण – यह ग्रन्थ गद्यपद्यात्मक है। इसे कञ्चपल्लु नामक ज्योतिषी ने शक १४७९ में बनाया है। मैंने इसकी अपूर्ण प्रति देखी है। ग्रन्थकार की शाखा कण्व, गोत्र वत्स और निवास ग्राम कोंडपल्ली था। उन्होंने वहां की विषुवच्छाया ३।३६ और देशान्तरयोजन ४० पूर्व लिखा है। उनका कथन है कि मेरा पवाङ्ग काञ्ची पर्यन्त चलता है। नरगिरि के नृसिंह उनके कुल देवता थे। उन्होंने पैलुमटीय नामक ग्रन्थ का उल्लेख किया है।

√●मुहूर्तमार्तण्ड ( शक १४९३ ) – इस ग्रन्थ का सम्प्रति बड़ा प्रचार है। इसके कर्ता नारायण का वृत्त ऊपर लिख चुके हैं। मालूम होता है उन्होंने अपने पिता से ही अध्ययन किया था। उन्होंने स्वयं इस ग्रन्थ की टीका की है। इसमें भिन्न- भिन्न छन्दों के १६० श्लोक हैं। बहुत से लोग काव्यग्रन्थ की भांति इसका अध्ययन करते हैं। इसमें ऊपर बताये हुए मुहूर्तग्रन्थों के ही विषय हैं पर ग्रन्थकार ने टीका के क्षारम्भ में लिखा है— संहितास्कन्ध चिकीर्षुराह । टीका में अनेक ग्रन्थकारों के वचन दिये हैं। उनमें से उन मुहूर्तग्रन्थकारों और ग्रन्थों के नाम यहां लिखते हैं जिनके विषय में इसके पूर्व कुछ नहीं लिखा है। ग्रन्थकार - गोपिराज, मॅगनाथ, म्हालगी (ये नाम वास्तुप्रकरण में है ) । ग्रन्थ — उद्वाहतत्व, मुहर्तदर्पण, कश्यपपटल, संहितासारावली, व्यवहारसार, शिल्पशास्त्र, बृहद्वास्तुपद्धति, समरांगण, व्यवहारसारस्वत ( इसमें के अन्तिम ६ नाम वास्तुप्रकरण में हैं), रत्नावली। इनके अतिरिक्त गणितग्रन्थ स्फुटकरण और जातकग्रन्य जातकोत्तम के भी नाम आये हैं। यह ग्रन्थ टीकासहित छपा है।

√●तोडरानन्द - यह बड़ा विस्तृत ग्रन्थ है। इसे नीलकण्ट ने शक १५०९ के लगभग बनाया है। मैंने इसका कुछ भाग देखा है। उसमें चण्डेश्वर, यवनेश्वर, दुर्गादित्य प्रन्यकार और देवज्ञमनोहर, व्यवहारोच्चय, कल्पलता इत्यादि ग्रन्थों के अनेकों वचन दिये हैं। 

√●मुहूर्तचिन्तामणि- यह बड़ा प्रचलित ग्रन्थ है। रामभट नामक ज्योतिषी ने इसे शक १५२२ में बनाया है। रामभट का वृत्तान्त ऊपर लिख चुके हैं। इसमें मुहूर्तग्रन्थों के उपर्युक्त ही विषय हैं। इस पर ग्रन्थकार की प्रमिताक्षरा और उनके भतीजे गोविन्द की पीयूषधारा नाम्नी प्रसिद्ध टीका है। ये दोनों टीकाएँ छप चुकी हैं। पीयूषधारा टीका ( शक १५२५) में आये हुए ज्योतिषग्रन्थों के वे नाम जिनके विषय में अब तक कुछ नहीं लिखा गया है ये हैं- जगन्मोहन और ज्योतिषरत्नसंग्रह ।

√● मुहूर्तचूड़ामणि – इसे शिव नामक ज्योतिषी ने बनाया है। शिव का कुलवृत्तान्त ऊपर लिख चुके हैं। इस ग्रन्थ का रचनाकाल लगभग शक १५४० होगा । 

√●मुहूर्तकल्पद्रुम – कृष्णात्रिगोत्रीय विट्ठलदीक्षित ने यह ग्रन्थ बनाया है। इस पर उन्हीं की शक १५४९ की मुहूर्त कल्पद्रुममञ्जरी नाम की टीका है। 

√●मुहूर्तमाला - इसे विक्रमसंवत् १७१७ (शक १५८२, सन् १६६०) में रघुनाथ नामक ज्योतिषी ने काशी में बनाया है। रघुनाथ शाण्डिल्य गोत्रीय महाराष्ट्र चित्पा वन ब्राह्मण थे। इनके पूर्वज दक्षिण कोंकण में दाभोल के दक्षिण पालशेत में रहते थे । इनके पिता का नाम केशव था। इनके पिता नृसिंह काशी में जाकर रहने लगे थे। ये अकबर बादशाह के मान्य थे। अकबर ने जब आसेरी का किला जीता उस समय नृसिंह को ज्योतिवित्सरस पदवी मिली। यह ग्रन्थ छप चुका है। ग्रन्थकार ने लिखा है- 

"जित्वा दाराशाहं सूजाशाहं मुरादशाहञ्च । 
औरंगजेबशाहे शासत्यवनी ममायमुद्योगः ॥"

√◆मुहूर्तदीपक — इसे भुज (कच्छ) निवासी महादेव नामक ज्योतिषी ने शक १५८३ में बनाया है। उनके पिता का नाम कान्हजी था। उन्होंने अपने पिता को रैवतकराज पूजितपद कहा है। ग्रन्थकार ने स्वयं इसकी टीका की है। आफ्रेंच के कथनानुसार उसमें अमृतकुंभ, लक्षणसमुच्चय और सारसंग्रह ग्रन्थों के भी नाम आये हैं । ग्रन्थकार ने लिखा है कि में अमुकामुक ग्रन्थ बना रहा हूं। उनमें इसके पहिले न आये हुए नाम व्यवहारप्रकाश और राजवल्लभ है। यह ग्रन्थ छप चुका है। 

√●मुहूर्तगणपति — विक्रमसंवत् १७४२ (शक १६०७) में गणपति नामक ज्योतिषी ने इसे बनाया है। इन्होंने अपने वृतान्त में लिखा है- "गौडोर्वीशशिरोविभूषणमणिर्गोपालदासोऽभवन्मान्धातेत्यभिरक्षिताद्व्यलभतेख्याति स दिल्लीश्वरात् (यह औरंगजेब होगा ) । तत्पुत्रो विजयी मनोहरनृपो विद्योतते सर्वदा ॥"

 इस मनोहर राजा को ग्रन्थकार ने 'गौडान्वयकुमुदगणानन्दिचंद्र' भी कहा है। मनोहर के पुत्र युवराज राम की इच्छानुसार इन्होंने यह ग्रन्थ बनाया है। ये भारद्वाज गोत्रीय औदीच्य गुर्जर ब्राह्मण थे। इनका उपनाम रावल मालूम होता है। इनके पिता इत्यादिकों के नाम क्रमशः हरिशंकर, रामदास, यशोधर और बाषि थे । यह ग्रन्थ छप चुका है।

√● मुहूर्तसिन्धु — पूनानिवासी वेदशास्त्रसम्पन्न गंगाधरशास्त्री दातारं (जन्मशक १७४४, समाधिशक १८१०) ने मुहूर्तसिन्धु नामक संस्कृतमराठी ग्रन्थ शक १८०५ में बनाया है। इसमें भिन्न भिन्न लगभग ३८ ग्रन्थों के आधार पर मुहूर्तादिक और उनके अपवाद-प्रत्यपवादों का विस्तृत विवेचन किया है। यह ग्रन्थ छप चुका है।

 जिनके काल के विषय में कुछ बातें ज्ञात थीं उन ग्रन्थों का वर्णन यहां तक किया गया। इनके अतिरिक्त और भी बहुत से मुहूर्तग्रन्थ हैं। 

सम्प्रति इस (महाराष्ट्र) प्रान्त के पञ्चाङ्गों में सवत्सरफल प्रायः कल्पलता नामक ग्रन्थ द्वारा लिखा जाता है। इसे जलदग्रामवासी रुद्रभटात्मज सोमदेवज्ञ ने शक १५६४ में बनाया है । कोई कोई राजावलि ग्रन्थ से भी फल लिखते हैं। कुछ अन्य प्रान्तों में जगन्मोहन नरेन्द्रवल्ली और समयसिद्धान्तांजन इत्यादिकों द्वारा लिखते हैं ।
#त्रिस्कन्धज्योतिर्विद् #ज्योतिषनिरूपण_भ्रान्तिनिवारण #shulba #नक्षत्रविद् #ज्योतिर्विज्ञानम् #वैदिकज्योतिष #ज्योतिषशास्त्र #नक्षत्रविज्ञान  #फलितशास्त्र....

मंगलवार, 11 जुलाई 2023

रुद्राक्ष किसको कौन सा मुखी धारण करना चाहिए :-

रुद्राक्ष किसको कौन सा मुखी धारण करना चाहिए :-
रुद्राक्ष १ मुखी से २१ मुखी,, रुद्राक्ष,,
जन्म लग्न के अनुसार रुद्राक्ष धारण,,
लग्न त्रिकोणाधिपति ग्रह लाभकारी रुद्राक्ष,,,
अंक शास्त्र के अनुसार रुद्राक्ष - धारणरुद्राक्ष १ मुखी से २१ मुखी,, रुद्राक्ष,,जन्म लग्न के अनुसार रुद्राक्ष धारण,,लग्न त्रिकोणाधिपति ग्रह लाभकारी रुद्राक्ष,,,अंक शास्त्र के अनुसार रुद्राक्ष - धारण रुद्राक्ष मंत्र
१ मुखी शिव 1-ॐ नमः शिवाय । 2 –ॐ ह्रीं नमः
२ मुखी अर्धनारीश्वर ॐ नमः।
३ मुखी अग्निदेव ॐ क्लीं नमः।
४ मुखी ब्रह्मा,सरस्वती ॐ ह्रीं नमः।
५ मुखी कालाग्नि रुद्र ॐ ह्रीं नमः।
६ मुखी कार्तिकेय, इन्द्र,इंद्राणी ॐ ह्रीं हुं नमः।
७ मुखी नागराज अनंत,सप्तर्षि,सप्तमातृकाएँ ॐ हुं नमः।
८ मुखी भैरव,अष्ट विनायक ॐ हुं नमः।
९ मुखी माँ दुर्गा १-ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै नमः २-ॐ ह्रीं हुं नमः।
१० मुखी विष्णु १-ॐ नमो भवाते वासुदेवाय २-ॐ ह्रीं नमः।
११ मुखी एकादश रुद्र १-ॐ तत्पुरुषाय विदमहे महादेवय धीमही तन्नो रुद्रः प्रचोदयात २-ॐ ह्रीं हुं नमः।
१२ मुखी सूर्य १-ॐ ह्रीम् घृणिः सूर्यआदित्यः श्रीं २-ॐ क्रौं क्ष्रौं रौं नमः।
१३ मुखी कार्तिकेय, इंद्र १-ऐं हुं क्षुं क्लीं कुमाराय नमः २-ॐ ह्रीं नमः।
१४ मुखी शिव,हनुमान,आज्ञा चक्र ॐ नमः।
१५ मुखी पशुपति ॐ पशुपत्यै नमः।
१६ मुखी महामृत्युंजय ,महाकाल ॐ ह्रौं जूं सः त्र्यंबकम् यजमहे सुगंधिम् पुष्टिवर्धनम उर्वारुकमिव बंधनान् मृत्योर्मुक्षीय सः जूं ह्रौं ॐ।
१७ मुखी विश्वकर्मा ,माँ कात्यायनी ॐ विश्वकर्मणे नमः।
१८ मुखी माँ पार्वती ॐ नमो भगवाते नारायणाय।
१९ मुखी नारायण ॐ नमो भवाते वासुदेवाय।
२० मुखी ब्रह्मा ॐ सच्चिदेकं ब्रह्म।
२१ मुखी कुबेर ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये धनधान्य समृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा॥
आपकी ग्रह - राशि - नक्षत्र के अनुसार रुद्राक्ष धारण करेंग्रह राशि नक्षत्र लाभकारी रुद्राक्ष 
मंगल मेष मृगषिरा - चित्रा - धनिष्ठा ३ मुखी।
शुक्र वृषभ भरणी -  पूर्वाफाल्गुनी - पूर्वाषाढ़ा ६ मुखी,
१३ मुखी,१५ मुखी।
बुध मिथुन आष्लेषा - ज्येष्ठा - रेवती ४ मुखी।
चन्द्र कर्क रोहिणी - हस्त - श्रवण २ मुखी, गौरी-शंकर रुद्राक्ष। सूर्य सिंह कृत्तिका - उत्तराफाल्गुनी - उत्तराषाढ़ाण १ मुखी, १२ मुखी।
बुध कन्या आष्लेषा - ज्येष्ठा-रेवती ४ मुखी।
शुक्र तुला भरणी - पूर्वाफाल्गुनी - पूर्वाषाढ़ा ६ मुखी,१३ मुखी,१५ मुखी।
मंगल वृष्चिक मृगषिरा - चित्रा - धनिष्ठा ३ मुखी।
गुरु धनु - मीन पुनर्वसु - विशाखा - पूर्वाभाद्रपद ५ मुखी। 
शनि मकर - कुंभ पुष्य - अनुराधा - उत्तराभाद्रपद ७ मुखी, १४ मुखी।
शनि मकर - कुंभ पुष्य - अनुराधा - उत्तराभाद्रपद ७ मुखी, १४ मुखी।
गुरु धनु-मीन पुनर्वसु - विशाखा - पूर्वाभाद्रपद ५ मुखी।
राहु - आर्द्रा -स्वाति - षतभिषाण८ मुखी, १८ मुखी।
केतु - अश्विनी - मघा - मूल ९ मुखी,१७ मुखी।
नवग्रह दोष निवारणार्थ १० मुखी, २१ मुखी विशेषः १० मुखी और ११ मुखी किसी एक ग्रह का प्रतिनिधित्व नहीं करते।बल्कि नवग्रहों के दोष निवारणार्थ प्रयोग मे लाय जाते हैं ।जन्म लग्न के अनुसार रुद्राक्ष धारण भारतीय ज्योतिषशास्त्र के अनुसार रत्न धारण करने के लिए जन्म लग्न का उपयोग सर्वाधिक प्रचलित है।  रत्न प्रकृति का एक अनुपम उपहार है। आदि काल से ग्रह दोषों तथा अन्य समस्याओं से मुक्ति हेतु रत्न धारण करने की परंपरा है। आपकी कुंडली के अनुरूप सही और दोषमुक्त रत्न धारण करना फलदायी होता है। अन्यथा उपयोग करने पर यह नुकसानदेह भी हो सकता है। वर्तमान समय में शुद्ध एवं दोषमुक्त रत्न बहुत कीमती हो गए हैं, जिससे वे जनसाधारण की पहुंच के बाहर हो गए हैं। अतः विकल्प के रूप में रुद्राक्ष धारण एक सरल एवं सस्ता उपाय है। साथ ही रुद्राक्ष धारण से कोई नुकसान भी नहीं है, बल्कि यह किसी न किसी रूप में जातक को लाभ ही प्रदान करता है। क्योंकि रुद्राक्ष पर ग्रहों के साथ साथ देवताओं का वास माना जाता है। कुंडली में त्रिकोण अर्थात लग्न, पंचम एवं नवम भाव सर्वाधिक बलशाली माना गया है। लग्न अर्थात जीवन, आयुष्य एवं आरोग्य, पंचम अर्थात बल, बुद्धि, विद्या एवं प्रसिद्धि, नवम अर्थात भाग्य एवं धर्म। अतः लग्न के अनुसार कुंडली के त्रिकोण भाव के स्वामी ग्रह कभी अशुभ फल नहीं देते, अशुभ स्थान पर रहने पर भी मदद ही करते हैं । इसलिए इनके रुद्राक्ष धारण करना सर्वाधिक शुभ है। इस संदर्भ में एक संक्षिप्त विवरण यहां तालिका में प्रस्तुत है।हमने कई बार देखा है कि कुंडली में शुभ-योग मौजूद होने के बावजूद उन योगों से संबंधित ग्रहों के रत्न धारण करना लग्नानुसार अशुभ होता है। उदाहरण के रूप में मकर लग्न में सूर्य अष्टमेश हो, तो अशुभ और चंद्र सप्तमेश हो, तो मारक होता है। मंगल चतुर्थेष-एकादषेष होने पर भी लग्नेष शनि का शत्रु होने के कारण अशुभ नहीं होता। गुरु तृतीयेश-व्ययेश होने के कारण अत्यंत अशुभ होता है। ऐसे में मकर लग्न के जातकों के लिए माणिक्य, मोती, मूंगा और पुखराज धारण करना अशुभ है। परंतु यदि मकर लग्न की कुंडली में बुधादित्य ,गजकेसरी, लक्ष्मी जैसा शुभ योग हो और वह सूर्य, चंद्र, मंगल या गुरु से संबंधित हो, तो इन योगों के शुभाशुभ प्रभाव में वृद्धि हेतु इन ग्रहों से संबंधित रुद्राक्ष धारण करना चाहिए, अर्थात गजकेसरी योग के लिए दो और पांच मुखी, लक्ष्मी योग के लिए दो और तीन मुखी और बुधादित्य योग के लिए चार और एक मुखी रुद्राक्ष।रुद्राक्ष ग्रहों के शुभफल सदैव देते हैं परंतु अशुभफल नहीं देते।लग्न त्रिकोणाधिपति ग्रह लाभकारी रुद्राक्षमेष मंगल-सूर्य-गुरु ३ मुखी + 1 या १२ मुखी + ५ मुखीवृषश् शुक्र-बुध-षनि ६ या १३ मुखी + ४ मुखी + ७ या १४ मुखीमिथुन बुध-षुक्र-षनि ४ मुखी + ६ या १३ मुखी + ७ या १४ मुखीकर्क चंद्र-मंगल-गुरु २ मुखी + ३ मुखी + ५ मुखीसिंह सूर्य-गुरु-मंगल 1 या १२ मुखी + ५ मुखी + ६ मुखीकन्या बुध-षनि-षुक्र ४ मुखी + ७ या १४ मुखी + ६ या १३ मुखीतुला शुक्र-षनि-बुध ६ या १३ मुखी + ७ या १४ मुखी + ४ मुखीवृष्चिक मंगल-गुरु-चंद्र ३ मुखी + ५ मुखी + २ मुखीधनु गुरु-मंगल-सिंह ५ मुखी + ३ मुखी + 1 या १२ मुखीमकर शनि-षुक्र-बुध ७ या १४ मुखी + ६ या १३ मुखी + ४ मुखीकुंभ शनि-बुध-षुक्र ७ या १४ मुखी + ४ मुखी + ६ या १३ मुखीमीन गुरु-चंद्र-मंगल ५ मुखी + २ मुखी + ३ मुखीअंकषास्त्र के अनुसार रुद्राक्ष-धारणजिन जातकों जन्म लग्न, राशि, नक्षत्र नहीं मालूम है वे अंक ज्योतिष के अनुसार जातक को अपने मूलांक, भाग्यांक और नामांक के अनुरूप रुद्राक्ष धारण कर सकते हैं। 1 से ९ तक के अंक मूलांक होते हैं। प्रत्येक अंक किसी ग्रह विशेष का प्रतिनिधित्व करता है, जैसे अंक 1 सूर्य, २ चंद्र, ३ गुरु, ४ राहु, ५ बुध, ६ शुक्र, ७ केतु, ८ शनि और ९ मंगल का। अतः जातक को मूलांक, भाग्यांक और नामांक से संबंधित ग्रह के रुद्राक्ष धारण करने चाहिए।आप अपने कार्य-क्षेत्र के अनुसार भी रुद्राक्ष धारण का सकते हैंकुछ लोगों के पास जन्म कुंडली इत्यादि की जानकारी नहीं होती वे लोग अपने कार्यक्षेत्र के अनुसार भी रुद्राक्ष का लाभ उठा सकते हैं । कार्य की प्रकृति के अनुरूप रुद्राक्ष-धारण करना कैरियर के सर्वांगीण विकास हेतु शुभ एवं फलदायी होता है। किस कार्य क्षेत्र के लिए कौन सा रुद्राक्ष धारण करना चाहिए, इसका एक संक्षिप्त विवरण यहां प्रस्तुत है।नेता-मंत्री-विधायक सांसदों के लिए - 1 और १४ मुखी।प्रशासनिक अधिकारियों के लिए - 1 और १४ मुखी।जज एवं न्यायाधीशों के लिए - २ और १४ मुखी।वकील के लिए - ४, ६ और १३ मुखी।बैंक मैनेजर के लिए - ११ और १३ मुखी।बैंक में कार्यरत कर्मचारियों के लिए - ४ और ११ मुखी।चार्टर्ड एकाउन्टेंट एवं कंपनी सेक्रेटरी के लिए - ४, ६, ८ और १२ मुखी।एकाउन्टेंट एवं खाता-बही का कार्य करने वाले कर्मचारियों के लिए - ४ और १२ मुखी।पुलिस अधिकारी के लिए - ९ और १३ मुखी।पुलिस/मिलिट्री सेवा में काम करने वालों के लिए - ४ और ९ मुखी।डॉक्टर एवं वैद्य के लिए - १, ७, ८ और ११ मुखी।फिजीशियन (डॉक्टर) के लिए - १० और ११ मुखी।सर्जन (डॉक्टर) के लिए - १०, १२ और १४ मुखी।नर्स-केमिस्ट-कंपाउण्डर के लिए - ३ और ४ मुखी।दवा-विक्रेता या मेडिकल एजेंट के लिए - १, ७ और १० मुखी।मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव के लिए - ३ और १० मुखी।मेकैनिकल इंजीनियर के लिए - १० और ११ मुखी।सिविल इंजीनियर के लिए - ८ और १४ मुखी।इलेक्ट्रिकल इंजीनियर के लिए - ७ और ११ मुखी।कंप्यूटर सॉफ्टवेयर इंजीनियर के लिए - १४ मुखी और गौरी-शंकर।कंप्यूटर हार्डवेयर इंजीनियर के लिए - ९ और १२ मुखी।पायलट और वायुसेना अधिकारी के लिए - १० और ११ मुखी।जलयान चालक के लिए - ८ और १२ मुखी।रेल-बस-कार चालक के लिए - ७ और १० मुखी।प्रोफेसर एवं अध्यापक के लिए - ४, ६ और १४ मुखी।गणितज्ञ या गणित के प्रोफेसर के लिए - ३, ४, ७ और ११ मुखी।इतिहास के प्रोफेसर के लिए - ४, ११ और ७ या १४ मुखी।भूगोल के प्रोफेसर के लिए - ३, ४ और ११ मुखी।क्लर्क, टाइपिस्ट, स्टेनोग्रॉफर के लिए - १, ४, ८ और ११ मुखी।ठेकेदार के लिए - ११, १३ और १४ मुखी।प्रॉपर्टी डीलर के लिए - ३, ४, १० और १४ मुखी।दुकानदार के लिए - १०, १३ और १४ मुखी।मार्केटिंग एवं फायनान्स व्यवसायिओं के लिए - ९, १२ और १४ मुखी।उद्योगपति के लिए - १२ और १४ मुखी।संगीतकारों-कवियों के लिए - ९ और १३ मुखी।लेखक या प्रकाशक के लिए - १, ४, ८ और ११ मुखी।पुस्तक व्यवसाय से संबंधित एजेंट के लिए - १, ४ और ९ मुखी।दार्शनिक और विचारक के लिए - ७, ११ और १४ मुखी।होटल मालिक के लिए - १, १३ और १४ मुखी।रेस्टोरेंट मालिक के लिए - २, ४, ६ और ११ मुखी।सिनेमाघर-थियेटर के मालिक या फिल्म-डिस्ट्रीब्यूटर के लिए - १, ४, ६ और ११ मुखी।सोडा वाटर व्यवसाय के लिए - २, ४ और १२ मुखी।फैंसी स्टोर, सौन्दर्य-प्रसाधन सामग्री के विक्रेताओं के लिए - ४, ६ और ११ मुखी रुद्राक्ष।कपड़ा व्यापारी के लिए - २ और ४ मुखी।बिजली की दुकान-विक्रेता के लिए - १, ३, ९ और ११ मुखी।रेडियो दुकान-विक्रेता के लिए - १, ९ और ११ मुखी।लकडी+ या फर्नीचर विक्रेता के लिए - १, ४, ६ और ११ मुखी।ज्योतिषी के लिए - १, ४, ११ और १४ मुखी रुद्राक्ष ।पुरोहित के लिए - १, ९ और ११ मुखी।ज्योतिष तथा र्धामिक कृत्यों से संबंधित व्यवसाय के लिए - १, ४ और ११ मुखी।जासूस या डिटेक्टिव एंजेसी के लिए - ३, ४, ९, ११ और १४ मुखी।जीवन में सफलता के लिए - १, ११ और १४ मुखी।जीवन में उच्चतम सफलता के लिए - १, ११, १४ और २१ मुखी।विशेष : इनके साथ-साथ ५ मुखी रुद्राक्ष भी धारण किया जाना चाहिए। श्री रांदल ज्योतिष कार्यालय सुरेन्द्रनगर पंड्याजी +९१९८२४४१७०९०...