बुधवार, 7 जून 2023

*क्या ज्योतिष बताता है किन राशि वालों के पास होता है ज्यादा धन*

*क्या ज्योतिष बताता है किन राशि वालों के पास होता है ज्यादा धन*
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*क्या ज्योतिष यह बता सकता है कि किन राशि वालों के पास ज्यादा धन होता है और कौनसी राशि वाले लोग जिंदगीभर संघर्ष ही करते रहे हैं? आओ जानते हैं इस संबंध में महत्वपूर्ण जानकारी।*
 
1. वैसे ज्योतिष स्पष्ट रूप से यह नहीं कहता है कि किन राशि वालों के पास ज्यादा धन रहता है और किन के पास कम और कौन संघर्षमय जीवन यापन करता है। क्योंकि प्रत्येक राशि के लोग अमीर है और गरीब ही। अमीरी या गरीबी पर किसी भी राशि का अधिकार नहीं। यह तो कुंडली की दशा और उसके कर्म ही तय करते हैं कि वह अमीर बनेगा या गरीब।
 
2. लेकिन फिर भी कहा जाता है कि धन कमाने या धन प्राप्त करने की प्रबल इच्छा मुख्‍यत: चार राशियों के लोगों में होती है। जैसे शुक्र की राशि वृषभ, मंगल की राशि वृश्चिक, चंद्र की राशि कर्क और सूर्य की राशि सिंह में भौतिक सुख सुविधाएं प्राप्त करने की प्रबल आकांक्षा रहती हैं।
 
3. कुंडली के अनुसार धन का संबंध दूसरे और आठवें घर से होता है जिस पर वृष और वृश्चिक का राज होता है। लेकिन ग्यारहवां भाव आय, बारहवां भाव व्यय का और नौवां भाव भाग्य का होता है। इसे देखकर भी तय किया जाता है कि जातक के पास धन की आवक कितनी है।

*🚩कुछ स्थितियों अनुसार अब जानिए कुंडली से धन के योग है या नहीं*
 
1. यदि सातवें भाव में मंगल या शनि बैठे हों और ग्यारहवें भाव में शनि या मंगल या राहु बैठा हो तो व्यक्ति खेल, जुआ, दलाली या वकालात आदि के द्वारा धन पाता है।

2. कुंडली के त्रिकोण घरों या केन्द्र में यदि गुरु, शुक्र, चंद्र और बुध बैठे हो या फिर 3, 6 और ग्यारहवें भाव में सूर्य, राहु, शनि, मंगल आदि ग्रह बैठे हो तब व्यक्ति राहु या शनि या शुक्र या बुध की दशा में असीम धन प्राप्त करता है।

3. गुरु जब कर्क, धनु या मीन राशि का और पांचवें भाव का स्वामी दसवें भाव में हो तो व्यक्ति पुत्र और पुत्रियों के द्वारा अपार धन लाभ पाता है।

4. गुरु जब दसवें या ग्यारहवें भाव में और सूर्य और मंगल चौथे और पांचवें भाव में हो या ग्रह इसकी विपरीत स्थिति में हो तो व्यक्ति प्रशासनिक क्षमताओं के द्वारा धन अर्जित करता है।

5. बुध, शुक्र और शनि जिस भाव में एक साथ हो वह व्यक्ति को व्यापार में बहुत उन्नति कर धनवान बना देता है।

6. दसवें भाव का स्वामी वृषभ राशि या तुला राशि में और शुक्र या सातवें भाव का स्वामी दसवें भाव में हो तो व्यक्ति विवाह के द्वारा और पत्नी की कमाई से बहुत धन पाता है।

7. शनि जब तुला, मकर या कुंभ राशि में होता है, तब अकाउंटेंट बनकर धन अर्जित करता है।

8. बुध, शुक्र और गुरु किसी भी ग्रह में एक साथ हो तब व्यक्ति धार्मिक कार्यों द्वारा धनवान होता है। जिनमें पुरोहित, पंडित, ज्योतिष, कथाकार और धर्म संस्था का प्रमुख बनकर धनवान हो जाता है।

9. मंगल चौथे, सूर्य पांचवें और गुरु ग्यारहवें या पांचवें भाव में होने पर व्यक्ति को पैतृक संपत्ति से, कृषि या भवन से आय प्राप्त होती है, जो निरंतर बढ़ती जाती है। इसे करोड़पति योग कहते हैं।

10. यदि सातवें भाव में मंगल या शनि बैठे हो और ग्यारहवें भाव में केतु को छोड़कर अन्य कोई ग्रह बैठा हो, तब व्यक्ति व्यापार-व्यवसाय के द्वारा अतुलनीय धन प्राप्त करता है। यदि केतु ग्यारहवें भाव में बैठा हो तब व्यक्ति विदेशी व्यापार से धन प्राप्त करता है।

11. शुक्र का जन्म कुंडली में उच्च होना या बली होना शुक्र योग बनाता हैं, इसके अतिरिक्त शुक्र की बारहवीं स्थिति भी इस योग का निर्माण करती हैं। किसी भी जन्म कुंडली में शुक्र की मजबूत स्थिति धनवान बनाने वाली होती है।

12. पंचम में शनि बैठे हो (स्वक्षैत्री) और लाभ भवन में सूर्य-चंद्र एक साथ हो तो भी जातक निश्चित धनवान होता है।

13. पंचम भाव शुक्र क्षेत्र (वृषभ-तुला) हो और उसमें 'शुक्र' स्थित हो तथा लग्न में मंगल विराजमान हो तो व्यक्ति धनवान होता है।

14. चंद्र-क्षेत्रीय पंचम में चंद्रमा हो और उत्तम भाव में शनि हो तो जातक धनवान होता है।

15. पंचम भाव में धन या मीन का गुरु स्थित हो और लाभ स्थान बुध-युक्त हो तो जातक धनी होता है।

16. पांचवें घर में सिंह के सूर्य हो और लाभ स्थान में शनि, चंद्र-शुक्र से युक्त हो तो जातक धनी होता है।

17. कर्क लग्न में चंद्रमा हो और बुध, गुरु का योग या दृष्टि पंचम स्थान पर हो तो जातक धनी होता है।

18. पंचम भाव में मेष या वृश्चिक का मंगल हो और लाभ स्थान में शुक्र स्थित हो तो जातक निश्चित धनी होता है।

19. विषम लग्न में शनि केन्द्रगत हो तथा गुरु व शुक्र एक दूसरे से केंद्र भाव में हो तो यह कोटीपति योग बनता हैं।

20. गुरु व चंद्र की केंद्रगत स्थिति के द्वारा गजकेसरी योग का निर्माण होता हैं। इस योग में चंद्र पर गुरु का शुभ प्रभाव होता हैं। यह योग हर प्रकार के धन देने में सक्षम हैं। चाहे वह भौतिक वस्तु हो या अध्यात्मिक शक्ति।

21. किसी जातक की जन्म कुण्डली में यदि मंगल ग्रह शुक्र ग्रह के साथ युग्म में स्थित हो तो ऐसे जातक को स्त्री पक्ष से धन की प्राप्ति होती है।

22. किसी जातक की जन्म कुण्डली में यदि मंगल ग्रह बृहस्पति ग्रह के साथ युति में हो तो ऐसे जातक को धन मिलता है।

23. यदि अष्टम भाव का मालिक उच्च का हो तथा धनेश व लाभेश के प्रभाव में हों तो व्यक्ति को निश्चित रूप में अचानक धन लाभ होता हैं।

24. चंद्र एवम मंगल के एक साथ स्थित होने से चंद्र मंगल योग बनता हैं, जो धन का कारक है।

25. जिस भी जातक की कुंडली में शुक्र लग्न से अथवा चन्द्रमा से केन्द्र के घरों में स्थित है अर्थात शुक्र यदि कुंडली में लग्न अथवा चन्द्रमा से 1, 4, 7 अथवा 10वें घर में वृष, तुला अथवा मीन राशि में स्थित है तो कुंडली में मालव्य योग बनता है। यह भी सुख और धन देने वाला योग है।

26. मंगल का रूचक योग, बुध का भद्र योग, गुरु का हंस योग, और शनि के शश योग में भी व्यक्ति धनवान बनता है।
                
              

मंगलवार, 6 जून 2023

*व्यापार में सफलता के योग:--> *1- यदि कुंडली में सप्तमेश सप्तम भाव में हो या सप्तम भाव पर सप्तमेश की दृष्टि हो तो बिजनेस में सफलता मिलती है। 2- सप्तमेश स्व या उच्च राशि में होकर शुभ भाव (केंद्र-त्रिकोण आदि) में हो तो बिजनेस के अच्छे योग होते हैं। 3- यदि लाभेश लाभ स्थान में ही स्थित हो तो व्यापार में अच्छी सफलता मिलती है। 4- लाभेश की लाभ स्थान पर दृष्टि हो तो व्यापार में सफलता मिलती है. 5- यदि लाभेश दशम भाव में और दशमेश लाभ स्थान में हो तो अच्छा व्यापारिक योग होता है। 6- दशमेश का भाग्येश के साथ राशि परिवर्तन भी व्यापार में सफलता देता है। 7- यदि धनेश और लाभेश का योग शुभ स्थान पर हो या धनेश और लाभेश का राशि परिवर्तन हो रहा हो तो भी व्यापार में सफलता मिलती है। 8- सप्तमेश यदि मित्र राशि में शुभ भावों में स्थित हो तो भी बिजनेस में जाने का योग होता है। 9- यदि सप्तमेश और दशमेश का राशि परिवर्तन हो अर्थात सप्तमेश दशम भाव में और दशमेश सप्तम भाव में हो तो भी बिजनेस में सफलता मिलती है। 10- बुध स्व या उच्च राशि (मिथुन, कन्या) में होकर शुभ भावों में हो तो बिजनेस में जाने का अच्छा योग होता है। 11- बुध यदि शुभ स्थान केंद्र-त्रिकोण में मित्र राशि में हो और सप्तम भाव, सप्तमेश अच्छी स्थिति में हो तो भी बिजनेस में सफलता मिल जाती है। 12- यदि लाभेश (ग्यारहवे भाव का स्वामी) पाप भाव (6,8,12) में हो तो ऐसे में बिजनेस में संघर्ष की स्थिति रहती है। 13- कुंडली के एकादश भाव में किसी पाप योग (ग्रहण योग, गुरुचांडाल योग आदि) का बनना भी बिजनेस में संघर्ष उत्पन्न करके सफलता को कम करता है। 14- कुंडली में सप्मेश का पाप भाव या नीच राशि में होना भी बिजनेस के क्षेत्र में संघर्ष देता है। *उपाय:-->*अगर किसी का व्यापार ठीक से नहीं चल रहा तो वे इस एक उपाय को अवश्य करें, इसस आपके व्यापार कारोबार में तेजी से वृद्धि होने लगती है।- प्रति दिन हनुमान जी के दर्शन करें एवं सुबह शाम श्री हनुमान चालीसा का पाठ जरूर करें एवं दोनों समय घी का दीपक भी जलाये, इससे अंदर की नकारात्मक ऊर्जा खत्म होने लगेगी और कुछ ही दिनों आपका कारोबार में वृद्धि होने लगेगी ।

व्यापार में सफलता के योग:-->   

*विवाहिता स्त्री को गुरू करना चाहिये या नहीं ?*

*विवाहिता स्त्री को गुरू करना चाहिये या नहीं ?* 

आइए इसके बारे में हमारे शास्त्र क्या कहते हैं ,देखें—
*पति प्रतिकूल जनम जहँ जाई। बिधवा होइ पाइ तरुनाई।*

गुरूग्निद्विर्जातिनां वर्णाणां ब्रह्मणो गुरूः।
पतिरेकोगुरू स्त्रीणां सर्वस्याम्यगतो गुरूः।।
       (पदम पुं . स्वर्ग खं 40-75)

*अर्थ :—* अग्नि ब्राह्मणो का गुरू है।अन्य वर्णो का ब्राह्मण गुरू है। एक मात्र उनका पति ही स्त्रीयों का गुरू है, तथा अतिथि सब का गुरू है।

पतिर्बन्धु गतिर्भर्ता दैवतं गुरूरेव च।
सर्वस्याच्च परः स्वामी न गुरू स्वामीनः परः।।
(ब्रह्मवैवतं पु. कृष्ण जन्म खं 57-11)

*अर्थ >* स्त्रियों का सच्चा बन्धु पति है, पति ही उसकी गति है। पति ही उसका एक मात्र देवता है। पति ही उसका स्वामी है और स्वामी से ऊपर उसका कोई गुरू नहीं।।

भर्ता देवो गुरूर्भता धर्मतीर्थव्रतानी च।
तस्मात सर्वं परित्यज्य पतिमेकं समर्चयेत्।।
  (स्कन्द पु. काशी खण्ड पूर्व 30-48)

*अर्थ >* स्त्रियों के लिए पति ही इष्ट देवता है। पति ही गुरू है। पति ही धर्म है, तीर्थ और व्रत आदि है। स्त्री को पृथक कुछ करना अपेक्षित नहीं है।

दुःशीलो दुर्भगो वृध्दो जड़ो रोग्यधनोSपि वा।
पतिः स्त्रीभिर्न हातव्यो लोकेप्सुभिरपातकी।।
           (श्रीमद् भा. 10-29-25)

अर्थ > *पतिव्रता स्त्री को पति के अलावा और किसी को पूजना नहीं चाहिए, चाहे पति बुरे स्वभाव वाला हो, भाग्यहीन, वृध्द, मुर्ख, रोगी या निर्धन हो। पर वह पातकी न होना चाहिए।

रामचरितमानस के अरण्यकांड में माता अनसूयाजी ने मातासीता को पतिव्रतधर्म का उपदेश देते हुये कहा था, पढ़े भावार्थ सहित।

*मातु पिता भ्राता हितकारी। मितप्रद सब सुनु राजकुमारी॥अमित दानि भर्ता बयदेही। अधम सो नारि जो सेव न तेही॥*

*भावार्थ:-* हे राजकुमारी! सुनिए- माता, पिता, भाई सभी हित करने वाले हैं, परन्तु ये सब एक सीमा तक ही (सुख) देने वाले हैं, परन्तु हे जानकी! पति तो (मोक्ष रूप) असीम (सुख) देने वाला है। वह स्त्री अधम है, जो ऐसे पति की सेवा नहीं करती॥

*धीरज धर्म मित्र अरु नारी। आपद काल परिखिअहिं चारी॥*
*बृद्ध रोगबस जड़ धनहीना। अंध बधिर क्रोधी अति दीना॥*

*भावार्थ:-* धैर्य, धर्म, मित्र और स्त्री- इन चारों की विपत्ति के समय ही परीक्षा होती है। वृद्ध, रोगी, मूर्ख, निर्धन, अंधा, बहरा, क्रोधी और अत्यन्त ही दीन-॥

*ऐसेहु पति कर किएँ अपमाना।नारि पाव जमपुर दुख नाना॥*
*एकइ धर्म एक ब्रत नेमा। कायँ बचन मन पति पद प्रेमा॥*

भावार्थ:- ऐसे भी पति का अपमान करने से स्त्री यमपुर में भाँति-भाँति के दुःख पाती है। शरीर, वचन और मन से पति के चरणों में प्रेम करना स्त्री के लिए, बस यह एक ही धर्म है, एक ही व्रत है और एक ही नियम है॥

*जग पतिब्रता चारि बिधि अहहीं। बेद पुरान संत सब कहहीं॥*
*उत्तम के अस बस मन माहीं। सपनेहुँ आन पुरुष जग नाहीं॥*

भावार्थ:- जगत में चार प्रकार की पतिव्रताएँ हैं। वेद, पुराण और संत सब ऐसा कहते हैं कि उत्तम श्रेणी की पतिव्रता के मन में ऐसा भाव बसा रहता है कि जगत में (मेरे पति को छोड़कर) दूसरा पुरुष स्वप्न में भी नहीं है॥

*मध्यम परपति देखइ कैसें। भ्राता पिता पुत्र निज जैसें॥*
*धर्म बिचारि समुझि कुल रहई। सो निकिष्ट त्रिय श्रुति अस कहई॥*

भावार्थ:- मध्यम श्रेणी की पतिव्रता पराए पति को कैसे देखती है, जैसे वह अपना सगा भाई, पिता या पुत्र हो (अर्थात समान अवस्था वाले को वह भाई के रूप में देखती है, बड़े को पिता के रूप में और छोटे को पुत्र के रूप में देखती है।) जो धर्म को विचारकर और अपने कुल की मर्यादा समझकर बची रहती है, वह निकृष्ट (निम्न श्रेणी की) स्त्री है, ऐसा वेद कहते हैं॥

*बिनु अवसर भय तें रह जोई। जानेहु अधम नारि जग सोई॥*
*पति बंचक परपति रति करई। रौरव नरक कल्प सत परई॥*

भावार्थ:-और जो स्त्री मौका न मिलने से या भयवश पतिव्रता बनी रहती है, जगत में उसे अधम स्त्री जानना। पति को धोखा देने वाली जो स्त्री पराए पति से रति करती है, वह तो सौ कल्प तक रौरव नरक में पड़ी रहती है॥

*छन सुख लागि जनम सत कोटी। दुख न समुझ तेहि सम को खोटी॥*
*बिनु श्रम नारि परम गति लहई। पतिब्रत धर्म छाड़ि छल गहई॥*

भावार्थ:-क्षणभर के सुख के लिए जो सौ करोड़ (असंख्य) जन्मों के दुःख को नहीं समझती, उसके समान दुष्टा कौन होगी। जो स्त्री छल छोड़कर पतिव्रत धर्म को ग्रहण करती है, वह बिना ही परिश्रम परम गति को प्राप्त करती है॥

*पति प्रतिकूल जनम जहँ जाई। बिधवा होइ पाइ तरुनाई॥*

भावार्थ:-किन्तु जो पति के प्रतिकूल चलती है, वह जहाँ भी जाकर जन्म लेती है, वहीं जवानी पाकर (भरी जवानी में) विधवा हो जाती है॥

*सहज अपावनि नारि पति सेवत सुभ गति लहइ।*
*जसु गावत श्रुति चारि अजहुँ तुलसिका हरिहि प्रिय॥*

भावार्थ:- स्त्री जन्म से ही अपवित्र है, किन्तु पति की सेवा करके वह अनायास ही शुभ गति प्राप्त कर लेती है। (पतिव्रत धर्म के कारण ही) आज भी 'तुलसीजी' भगवान को प्रिय हैं और चारों वेद उनका यश गाते हैं॥

वेदों, पुराणों, भागवत आदि शास्त्रो ने स्त्री को बाहर का गुरू न करने के लिए कहा यह शास्त्रों के उपरोक्त श्लोकों से ज्ञात होता है। आज हर स्त्री बाहर के गुरूओं के पीछे पागलों की तरह पड जाती हैं तथा उनके पीछे अपने पति की कड़े परिश्रम की कमाई लुटाती फिरती हैं।

आज सत्संग आध्यात्मिक ज्ञान की जगह न होकर व्यापारिक स्थलबन गया है।इसलिए सावधान हो जाइये।

गुरू करने से पहले देख लो कि वह गुरू जिन शास्त्रों का सहारा लेकर हमें ज्ञान दे रहा है, वह स्वयं उस पर कितना चल रहा है? हिन्दू धर्म में पति के रहते किसी को गुरु बनाने की इजाजत नहीं है। आप कोई भी समागम देख लो,  औरतो ने ही भीड़ लगाई हुई है। परिवार जाए भाड़ में।  बाबा की सेवा करके मोक्ष प्राप्त करना है बस..!!

खुद फैसला कीजिये।
बदलाव कहाँ चहिये||

*नमः पार्वतीपतये हर हर महादेव*