शुक्रवार, 22 अप्रैल 2022

महत्त्वपूर्ण ज्योतिष योग

महत्त्वपूर्ण ज्योतिष योग


पापकर्तरीयोग- चन्द्र या लग्न के दोनों ओर पापग्रह स्थित हों तो स्वास्थ्य कष्ट, आर्थिक कष्ट, अवगुण आदि फल प्राप्त होते हैं।

शकटयोग- गुरु से चन्द्र की स्थिति 6-8-12 हो तो जीवन में समृद्धि एवं आर्थिक कष्ट आते रहते हैं। वह दुराग्रही आदि अवगुण वाला होता है।

हर्षयोग- षष्ठेश किसी त्रिक स्थान में हो, या कोई त्रिकेश षष्ठस्थ हो, तो जातक अनेक शुभ फल प्राप्त करता है।

सरलयोग- अष्टमेश यदि किसी त्रिक भाव में हो, या त्रिकेश अष्टमस्थ हो तो जातक धनवान, निर्भय, विद्वान, दीर्घायु आदि होता है।

विमलयोग- द्वादशेश त्रिकस्थ हो, या त्रिकेश द्वादशस्थ हो तो धनसंग्रह, आत्मनिर्भर, सुखी, सम्मानित, प्रसिद्ध आदि होता है।

विपरीत राजयोग- जब त्रिकेश की स्थिति त्रिक भावों में एक दूसरे की राशि में हो, परस्पर परिवर्तन योग हो तो राजयोग का फल देते हैं। ये ऐसा फल तभी देते हैं, जब ये अन्य ग्रहों से न युत हों न दृष्ट हों।

बुधादित्ययोग- बुध एवं सूर्य की युति हो, तो जातक बुद्धिमान, कुशल, सम्मानित, विद्वान, आदि होता है।

पर्वतयोग- लग्नेश एवं द्वादशेश एक दूसरे से केन्द्र में हों या केन्द्र में शुभ ग्रह हों तथा 6-8 भाव पाप प्रभाव से मुक्त हो तो जातक धनवान, समृद्ध आदि होता है।

काहलयोग- चतुर्थेश एवं नवमेश एक दूसरे से केन्द्र में हों और लग्नेश सबल हो तो जातक दुराग्रही, नेतृत्व सम्पन्न, उदार, प्रसिद्ध आदि होता है।

चन्द्र-मङ्गलयोग- कुण्डली के शुभ भाव में इन ग्रहों की युति हो, विशेषतः दशम भाव में तो यह धनदायक योग होता है। गुरु की दृष्टि यदि इस युति पर हों तो इस योग से उत्पन्न दुर्गुण का शमन करती है।

गुरु-मङ्गलयोग- कुण्डली के शुभ भाव में इन ग्रहों की युति हो, तो जातक धनवान, सुदृढ़ प्रकृति वाला, अनेक स्रोतों से धन पाता है।

गुरु-चांडालयोग- इस युति के कारण जातक को भाग्यबाधा, अनैतिक कर्म,  आजीविका में कष्ट आदि सहना पड़ता है।

लक्ष्मीयोग- नवमेश उच्च/मूलत्रिकोण/स्वक्षेत्री होकर केन्द्रस्थ हो तथा लग्नेश सबल हो तो जातक धनवान एवं उत्तम गुणों वाला होता है।

गौरीयोग- यदि स्वराशि या सर्वोच्च राशिगत शुक्र और नवमेश दोनों केन्द्र/ त्रिकोण में स्थित हो और उक्त स्थिति में चन्द्रमा व गुरु से दृष्ट हो तो जातक सम्मानित परिवार से युक्त, उत्तम सन्तति एवं प्रसंशनीय होता है।

चतुस्सागरयोग- समस्त शुभ एवं अशुभ ग्रह केन्द्रस्थ हो तो जातक उत्तम सम्मान, समृद्धशाली, स्वस्थ, नाम एवं यश पाता है।

श्रीकण्ठयोग- लग्नेश, सूर्य तथा चन्द्र केन्द्र/त्रिकोण में होकर उच्च/स्वराशि/मित्रराशिस्थ हों तो जातक धार्मिक, पुण्यकर्मा होता है।

श्रीनाथयोग- सप्तमेश दशमस्थ हो तथा दशमेश उच्चस्थ होकर नवमेश से युत हो तो जातक धनी, चतुर, धार्मिक, सर्वप्रिय होता है।

सरस्वतीयोग- गुरु एवं चन्द्र में राशि परिवर्तन योग हो तथा गुरु की चन्द्र पर दृष्टि हो तो जातक कवित्त्व योग्यता, कौशल युत,प्रशंसनीय एवं उत्तम परिवार वाला होता है।

शंखयोग- पञ्चमेश एवं षष्ठेश परस्पर केन्द्रस्थ हों तथा लग्नेश सबल हो। अथवा लग्नेश एवं दशमेश चर राशि में हो और नवमेश सबल हो तो जातक विद्वान, धार्मिक, उत्तम परिवार वाला, दीर्घायु आदि होता है।
श्री रांदल ज्योतिष कार्यालय सुरेन्द्रनगर पंड्याजी+919824417090...+918702000033...

शुक्रवार, 15 अप्रैल 2022

*🌹गुरु करेगा मीन राशि में प्रवेश, 13 अप्रैल से बदले सभी के दिन🌹*

*🌹गुरु करेगा मीन राशि में प्रवेश, 13 अप्रैल से बदले  सभी के दिन🌹*

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐*🌸13 अप्रैल 2022 को बृहस्पति ग्रह शनि की कुंभ राशि से अपनी स्वराशि मीन में करीब 12 साल बाद प्रवेश करेगा। गुरु कर्क में उच्च, मकर में नीच का होता है। यह ग्रह उच्च राशि के अलावा 2, 5, 9, 12वें भाव में हो या इनमें गोचर करे तो शुभ फल देता है। आओ जानते हैं गुरु के गोचर का क्या होगा 12 राशियों पर असर।* *🌻बृहस्पति ग्रह के राशि परिवर्तन से 12 राशियों का राशिफल :-*🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀 *🌷
1. मेष राशि:-* 2022 अप्रैल के महीने में बृहस्पति अपनी स्वराशि और मेष राशि के बारहवें भाव में गोचर करेगा। आपको इस दौरान पैतृक संपत्ति से किसी प्रकार का लाभ होने की संभावना है। आपके लिए अच्‍छा समय रहेगा। परिवार में सुख और समृद्धि आएगी। आप व्यापारी हैं तो लाभ के योग बन रहे हैं और नौकरीपेशा हैं तो पदोन्नति होने की संभावना है। विवाह नहीं हुआ है तो योग बन रहे हैं। घर खरीदने और कोई अच्‍छा कार्य करने के योग भी बन रहे हैं। कुल मिलाकर आपका भविष्य उज्जवल है। *
🌷2. वृषभ:-* आपके लिए गुरु ग्रह का गोचर 11वें भाव में होगा। इससे कार्यस्थल पर सकारात्मक परिणाम देखने को मिल सकते हैं। आपको नई जॉब का प्रस्ताव आ सकता है। साथ ही अगर आप जॉब कर रहे हैं तो आपकी पदोन्नति हो सकती है। साथ ही इस समय आप नया व्यवसाय भी शुरू कर सकते हैं। इस समय आपकी कार्यशैली में भी सुधार आएगा, जिससे कार्यस्थल पर आपकी वाहवाही हो सकती है। *
🌷3. मिथुन राशि-*: आपके लिए गुरु ग्रह का गोचर 10वें भाव में होगा। इस दौरान आपके कारोबारी जीवन में उन्नति होगी। नौकरीपेशा जातक के लिए भी यह अच्‍छा समय है। आपके मान सम्मान में बढ़ोतरी होगी। निवेश के लिए भी यह अच्छा समय है। परिवार में मतभेद होने की संभावना है। *
🌷4. कर्क राशि-*: बृहस्पति आपकी राशि के 9वें भाव में गोचर करेगा। यह अवधि आपके लिए अनुकूल रह सकती है। अचल संपत्ति के योग बन रहे हैं। व्यापार और नौकरी में लाभ होगा। बस आपको व्यर्थ की यात्रा से बचना होगा। *
🌷5. सिंह राशि:-* बृहस्पति आपकी राशि के 8वें भाव में गोचर करेगा। इस दौरान आपकी आर्थिक स्थिति में थोड़ा बहुत सुधार होगा। आमदानी में बढ़ोतरी होगी। धार्मिकता की ओर रूझान होगा। हालांकि पारिवारिक जीवन में थोड़ी कठिनाइयां पैदा हो सकती है। संतान की सेहत का ध्यान रखे।*
🌷6. कन्या राशि:-* बृहस्पति आपकी राशि के सप्तम भाव में गोचर करेगा। यह गोचर आपके लिए सकारात्मक साबित हो सकता है। यात्रा का योग बनेगा। अविवाहित है तो विवाह के योग बन रहे हैं। दांपत्य जीवन में सुधार होगा। व्यापार में उन्नति और नौकरी में पदोन्नति के योग हैं। आर्थिक पक्ष मजबूत होगा। *
🌷7. तुला राशि:-* बृहस्पति आपकी राशि के छठे भाव में गोचर करेगा। करियर में तरक्की होगी। नौकरी की तलाश पूरी होगी। नौकरीपेशा हैं तो योग्यताओं के कारण पदोन्नति या वेतन में वृद्धि हो सकती हैं। व्यापार में उतार चढ़ाव देखने को मिल सकता है और सेहत‍ बिगड़ सकती है। *
🌷8. वृश्‍चिक राशि:-* अप्रैल माह 2022 में बृहस्पति आपके पांचवें भाव में गोचर करेगा। आपकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। व्यापार में विस्तार होगा। नौकरी में पदोन्नति होगी। करियर में उन्नती करेंगे। परिवार में खुशी का माहौल रहेगा। *
🌷9. धनु:-* बृहस्पति आपकी राशि के चतुर्थ भाव में उदय होगा। यह गोचर आपकी सुख और सुविधाओं में विस्तार करेगा। संपत्ति खरीदने के योग बनेंगे। नौकरी और व्यापार में उन्नति होगी। विवाह और यात्रा के योग बन रहे हैं। यह गोचर आपके लिए शुभ है। *
🌷10. मकर राशि:-* बृहस्पति आपके तीसरे भाव से गोचर करेगा। भाई-बहनों किसी प्रकार का विवाद हो सकता है। व्यापारियों को सफलता मिलेगी। व्यापार विस्तार या निवेश के लिए अच्‍छा समय है। नौकरीपेशा हैं तो ज्यादा परिश्रम करना पड़ सकता है। *
🌷11. कुंभ राशि:-* अप्रैल माह में बृहस्पति आपके दूसरे भाव में गोचर करेगा। इस दौरान व्यापार-व्यवसाय में अच्छे लाभ के साथ वृद्धि देख सकते हैं। नौकरी में सैलरी बढने के साथ ही पदोन्नति के भी योग बन रहे हैं। पारिवारिक में खुशी का समाचार मिलेगा। साथ ही आपको अपनी पैतृक संपत्ति से भी लाभ मिलने की संभावना है। *
🌷12. मीन राशि:-* अप्रैल माह में बृहस्पति आपकी राशि के लग्न भाव में गोचर करेगा। इस गोचर से आपके व्यक्तित्व में निखार आ जाएगा। आत्मविश्‍वास बढ़ेगा। आशा के अनुरूप सफलता मिलेगी। नौकरी और व्यवसाय में चुनौती होती तो लोगों का सहयोग मिलेगा। आपकी आमदान में बढ़ोतरी होगी।  
श्री रांदल ज्योतिष कार्यालय सुरेन्द्रनगर पंड्याजी
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रविवार, 10 अप्रैल 2022

माँ अन्नपूर्णा की कथा

 माँ अन्नपूर्णा की कथा
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अन्नपूर्णा देवी हिन्दू धर्म में मान्य देवी-देवताओं में विशेष रूप से पूजनीय हैं। इन्हें माँ जगदम्बा का ही एक रूप माना गया है, जिनसे सम्पूर्ण विश्व का संचालन होता है। इन्हीं जगदम्बा के अन्नपूर्णा स्वरूप से संसार का भरण-पोषण होता है। अन्नपूर्णा का शाब्दिक अर्थ है- 'धान्य' (अन्न) की अधिष्ठात्री। सनातन धर्म की मान्यता है कि प्राणियों को भोजन माँ अन्नपूर्णा की कृपा से ही प्राप्त होता है। शिव की अर्धांगनी, कलियुग में माता अन्नपूर्णा की पुरी काशी है, किंतु सम्पूर्ण जगत् उनके नियंत्रण में है। बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी के अन्नपूर्णाजी के आधिपत्य में आने की कथा बडी रोचक है। भगवान शंकर जब पार्वती के संग विवाह करने के पश्चात् उनके पिता के क्षेत्र हिमालय के अन्तर्गत कैलास पर रहने लगे, तब देवी ने अपने मायके में निवास करने के बजाय अपने पति की नगरी काशी में रहने की इच्छा व्यक्त की। महादेव उन्हें साथ लेकर अपने सनातन गृह अविमुक्त-क्षेत्र (काशी) आ गए। काशी उस समय केवल एक महाश्मशान नगरी थी। माता पार्वती को सामान्य गृहस्थ स्त्री के समान ही अपने घर का मात्र श्मशान होना नहीं भाया। इस पर यह व्यवस्था बनी कि सत्य, त्रेता, और द्वापर, इन तीन युगों में काशी श्मशान रहे और कलियुग में यह अन्नपूर्णा की पुरी होकर बसे। इसी कारण वर्तमान समय में अन्नपूर्णा का मंदिर काशी का प्रधान देवीपीठ हुआ। स्कन्दपुराण के 'काशीखण्ड' में लिखा है कि भगवान विश्वेश्वर गृहस्थ हैं और भवानी उनकी गृहस्थी चलाती हैं। अत: काशीवासियों के योग-क्षेम का भार इन्हीं पर है। 'ब्रह्मवैव‌र्त्तपुराण' के काशी-रहस्य के अनुसार भवानी ही अन्नपूर्णा हैं। परन्तु जनमानस आज भी अन्नपूर्णा को ही भवानी मानता है। श्रद्धालुओं की ऐसी धारणा है कि माँ अन्नपूर्णा की नगरी काशी में कभी कोई भूखा नहीं सोता है। 

माता अन्नपूर्णा से शिवजी ने भिक्षा क्यो मांगी
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पौराणिक हिन्दू ग्रंथों के अनुसार प्राचीन समय में किसी कारणवश धरती बंजर हो गई, जिस वजह से धान्य-अन्न उत्पन्न नहीं हो सका, भूमि पर खाने-पीने का सामान खत्म होने लगा जिससे पृथ्वीवासियों की चिंता बढ़ गई। परेशान होकर वे लोग ब्रह्माजी और श्रीहरि विष्णु की शरण में गए और उनके पास पहुंचकर उनसे इस समस्या का हल निकालने की प्रार्थना की।
इसपर ब्रह्मा और श्री‍हरि विष्णु जी ने पृथ्वीवासियों की चिंता को जाकर भगवान शिव को बताया। पूरी बात सुनने के बाद भगवान शिव ने पृथ्वीलोक पर जाकर गहराई से निरीक्षण किया। इसके बाद पृथ्वीवासियों की चिंता दूर करने के लिए भगवान शिव ने एक भिखारी का रूप धारण किया और माता पार्वती ने माता अन्नपूर्णा का रूप धारण किया। माता अन्नपूर्णा से भिक्षा मांगकर भगवान शिव ने धरती पर रहने वाले सभी लोगों में ये अन्न बांट दिया। इससे धरतीवासियों की अन्न की समस्या का अंत हो गया और तभी से मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन अन्नपूर्णा जयंती मनाई जाने लगी।

अन्नपूर्णा माता की उपासना से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। ये अपने भक्त की सभी विपत्तियों से रक्षा करती हैं। इनके प्रसन्न हो जाने पर अनेक जन्मों से चली आ रही दरिद्रता का भी निवारण हो जाता है। ये अपने भक्त को सांसारिक सुख प्रदान करने के साथ मोक्ष भी प्रदान करती हैं। तभी तो ऋषि-मुनि इनकी स्तुति करते हुए कहते हैं।

शोषिणीसर्वपापानांमोचनी सकलापदाम्।दारिद्र्यदमनीनित्यंसुख-मोक्ष-प्रदायिनी॥ 

काशी की पारम्परिक 'नवगौरी यात्रा' में आठवीं भवानी गौरी तथा नवदुर्गा यात्रा में अष्टम महागौरी का दर्शन-पूजन अन्नपूर्णा मंदिर में ही होता है। अष्टसिद्धियों की स्वामिनी अन्नपूर्णाजी की चैत्र तथा आश्विन के नवरात्र में अष्टमी के दिन 108 परिक्रमा करने से अनन्त पुण्य फल प्राप्त होता है। सामान्य दिनों में अन्नपूर्णा माता की आठ परिक्रमा करनी चाहिए। प्रत्येक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन अन्नपूर्णा देवी के निमित्त व्रत रखते हुए उनकी उपासना करने से घर में कभी धन-धान्य की कमी नहीं होती है। भविष्यपुराण में मार्गशीर्ष मास के अन्नपूर्णा व्रत की कथा का विस्तार से वर्णन मिलता है। काशी के कुछ प्राचीन पंचांग मार्गशीर्ष की पूर्णिमा में अन्नपूर्णा जयंती का पर्व प्रकाशित करते हैं। अन्नपूर्णा देवी का रंग जवापुष्प के समान है। इनके तीन नेत्र हैं, मस्तक पर अ‌र्द्धचन्द्र सुशोभित है। भगवती अन्नपूर्णा अनुपम लावण्य से युक्त नवयुवती के सदृश हैं। बन्धूक के फूलों के मध्य दिव्य आभूषणों से विभूषित होकर ये प्रसन्न मुद्रा में स्वर्ण-सिंहासन पर विराजमान हैं। देवी के बायें हाथ में अन्न से पूर्ण माणिक्य, रत्न से जडा पात्र तथा दाहिने हाथ में रत्नों से निर्मित कलछूल है। अन्नपूर्णा माता अन्न दान में सदा तल्लीन रहती हैं। देवीभागवत में राजा बृहद्रथ की कथा से अन्नपूर्णा माता और उनकी पुरी काशी की महिमा उजागर होती है। भगवती अन्नपूर्णा पृथ्वी पर साक्षात कल्पलता हैं, क्योंकि ये अपने भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करती हैं। स्वयं भगवान शंकर इनकी प्रशंसा में कहते हैं- "मैं अपने पांचों मुख से भी अन्नपूर्णा का पूरा गुण-गान कर सकने में समर्थ नहीं हूँ। यद्यपि बाबा विश्वनाथ काशी में शरीर त्यागने वाले को तारक-मंत्र देकर मुक्ति प्रदान करते हैं, तथापि इसकी याचना माँ अन्नपूर्णा से ही की जाती है। गृहस्थ धन-धान्य की तो योगी ज्ञान-वैराग्य की भिक्षा इनसे मांगते हैं।

अन्नपूर्णेसदा पूर्णेशङ्करप्राणवल्लभे। ज्ञान-वैराग्य-सिद्धयर्थम् भिक्षाम्देहिचपार्वति॥ 

मंत्र-महोदधि, तन्त्रसार, पुरश्चर्यार्णव आदि ग्रन्थों में अन्नपूर्णा देवी के अनेक मंत्रों का उल्लेख तथा उनकी साधना-विधि का वर्णन मिलता है। मंत्रशास्त्र के सुप्रसिद्ध ग्रंथ 'शारदातिलक' में अन्नपूर्णा के सत्रह अक्षरों वाले निम्न मंत्र का विधान वर्णित है- 

"ह्रीं नम: भगवतिमाहेश्वरिअन्नपूर्णेस्वाहा" 

मंत्र को सिद्ध करने के लिए इसका सोलह हज़ार बार जप करके, उस संख्या का दशांश (1600 बार) घी से युक्त अन्न के द्वारा होम करना चाहिए। जप से पूर्व यह ध्यान करना होता है।
 रक्ताम्विचित्रवसनाम्नवचन्द्रचूडामन्नप्रदाननिरताम्स्तनभारनम्राम्।नृत्यन्तमिन्दुशकलाभरणंविलोक्यहृष्टांभजेद्भगवतीम्भवदु:खहन्त्रीम्॥ 

अर्थात 'जिनका शरीर रक्त वर्ण का है, जो अनेक रंग के सूतों से बुना वस्त्र धारण करने वाली हैं, जिनके मस्तक पर बालचंद्र विराजमान हैं, जो तीनों लोकों के वासियों को सदैव अन्न प्रदान करने में व्यस्त रहती हैं, यौवन से सम्पन्न, भगवान शंकर को अपने सामने नाचते देख प्रसन्न रहने वाली, संसार के सब दु:खों को दूर करने वाली, भगवती अन्नपूर्णा का मैं स्मरण करता हूँ।' प्रात:काल नित्य 108 बार अन्नपूर्णा मंत्र का जप करने से घर में कभी अन्न-धन का अभाव नहीं होता। शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन अन्नपूर्णा का पूजन-हवन करने से वे अति प्रसन्न होती हैं। करुणा मूर्ति ये देवी अपने भक्त को भोग के साथ मोक्ष प्रदान करती हैं। सम्पूर्ण विश्व के अधिपति विश्वनाथ की अर्धांगिनी अन्नपूर्णा सबका बिना किसी भेद-भाव के भरण-पोषण करती हैं। जो भी भक्ति-भाव से इन वात्सल्यमयी माता का अपने घर में आवाहन करता है, माँ अन्नपूर्णा उसके यहाँ सूक्ष्म रूप से अवश्य वास करती हैं। 

माता अन्नपूर्णा की व्रत कथा
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काशी निवासी धनंजय की पत्नी का नाम सुलक्षणा था । उसे अन्य सब सुख प्राप्त थे, केवल निर्धनता ही उसके दुःख का कारण थी। यह दुःख उसे हर समय सताता था । एक दिन सुलक्षणा पति से बोली- स्वामी! आप कुछ उद्यम करो तो काम चले । इस प्रकार कब तक काम चलेगा ? सुलक्षण्णा की बात धनंजय के मन में बैठ और वह उसी दिन विश्वनाथ शंकर जी को प्रसन्न करने के लिए बैठ गया और कहने लगा- हे देवाधिदेव विश्वेश्वर ! मुझे पूजा-पाठ कुछ आता नहीं है, केवल तुम्हारे भरोसे बैठा हूँ । इतनी विनती करके वह दो-तीन दिन भूखा-प्यासा बैठा रहा । यह देखकर भगवान शंकर ने उसके कान में ‘अन्नपूर्णा ! अन्नपूर्णा!! अन्नपूर्णा!!!’ इस प्रकार तीन बार कहा। यह कौन, क्या कह गया ? इसी सोच में धनंजय पड़ गया कि मन्दिर से आते ब्राह्मणों को देखकर पूछने लगा- पंडितजी ! अन्नपूर्णा कौन है ? ब्राह्मणों ने कहा- तू अन्न छोड़ बैठा है, सो तुझे अन्न की ही बात सूझती है । जा घर जाकर अन्न ग्रहण कर । धनंजय घर गया, स्त्री से सारी बात कही, वह बोली-नाथ! चिंता मत करो, स्वयं शंकरजी ने यह मंत्र दिया है। वे स्वयं ही खुलासा करेंगे। आप फिर जाकर उनकी आराधना करो । धनंजय फिर जैसा का तैसा पूजा में बैठ गया। रात्रि में शंकर जी ने आज्ञा दी । कहा- तू पूर्व दिशा में चला जा । वह अन्नपूर्णा का नाम जपता जाता और रास्ते में फल खाता, झरनों का पानी पीता जाता । इस प्रकार कितने ही दिनों तक चलता गया । वहां उसे चांदी सी चमकती बन की शोभा देखने में आई । सुन्दर सरोवर देखने में या, उसके किनारे कितनी ही अप्सराएं झुण्ड बनाए बैठीं थीं । एक कथा कहती थीं । और सब ‘मां अन्नपूर्णा’ इस प्रकार बार-बार कहती थीं।
यह अगहन मास की उजेली रात्रि थी और आज से ही व्रत का ए आरम्भ था । जिस शब्द की खोज करने वह निकला था, वह उसे वहां सुनने को मिला । धनंजय ने उनके पास जाकर पूछा- हे देवियो ! आप यह क्या करती हो? उन सबने कहा हम सब मां अन्नपूर्णा का व्रत करती हैं । व्रत करने से गई पूजा क्या होता है? यह किसी ने किया भी है? इसे कब किया जाए? कैसा व्रत है में और कैसी विधि है? मुझसे भी कहो। वे कहने लगीं- इस व्रत को सब कोईकर सकते हैं । इक्कीस दिन तक के लिए 21 गांठ का सूत लेना चाहिए । 21 दिन यदि न बनें तो एक दिन उपवास करें, यह भी न बनें तो केवलकथा सुनकर प्रसाद लें। निराहार रहकर कथा कहें, कथा सुनने वाला कोई न मिले तो पीपल के पत्तों को रख सुपारी या घृत कुमारी (गुवारपाठ) वृक्ष को सामने कर दीपक को साक्षी कर सूर्य, गाय, तुलसी या महादेव को बिना कथा सुनाए मुख में दाना न डालें। यदि भूल से कुछ पड़ जाए तो एक दिवस फिर उपवास करें। व्रत के दिन क्रोध न करें और झूठ न बोलें। धनंजय बोला- इस व्रत के करने से क्या होगा ? वे कहने लगीं- इसके करने से अन्धों को नेत्र मिले, लूलों को हाथ मिले, निर्धन के घर धन आए, बांझी को संतान मिले, मूर्ख को विद्या आए, जो जिस कामना से व्रत करे, मां उसकी इच्छा पूरी करती है। वह कहने लगा- बहिनों! मेरे भी धन नहीं है, विद्या नहीं है, कुछ भी तो नहीं है, मैं तो दुखिया ब्राह्मण हूँ, मुझे इस व्रत का सूत दोगी? हां भाई तेरा कल्याण हो , तुझे देंगी, ले इस व्रत का मंगलसूत ले। धनंजय ने व्रत किया । व्रत पूरा हुआ, तभी सरोवर में से 21 खण्ड की सुवर्ण सीढ़ी हीरा मोती जड़ी हुई प्रकट हुई। धनंजय जय ‘अन्नपूर्णा’ ‘अन्नपूर्णा’ कहता जाता था। इस प्रकार कितनी ही सीढि़यां उतर गया तो क्या देखता है कि करोड़ों सूर्य से प्रकाशमान अन्नपूर्णा का मन्दिर है, उसके सामने सुवर्ण सिंघासन पर माता अन्नपूर्णा विराजमान हैं। सामने भिक्षा हेतु शंकर भगवान खड़े हैं। देवांगनाएं चंवर डुलाती हैं। कितनी ही हथियार बांधे पहरा देती हैं। धनंजय दौड़कर जगदम्बा के चरणों में गिर गया। देवी उसके मन का क्लेश जान गईं । धनंजय कहने लगा- माता! आप तो अन्तर्यामिनी हो। आपको अपनी दशा क्या बताऊँ ? माता बोली - मेरा व्रत किया है, जा संसार तेरा सत्कार करेगा । माता ने धनंजय की जिह्नवा पर बीज मंत्र लिख दिया । अब तो उसके रोम-रोम में विद्या प्रकट हो गई । इतने में क्या देखता है कि वह काशी विश्वनाथ के मन्दिर में खड़ा है। मां का वरदान ले धनंजय घर आया । सुलक्षणा से सब बात कही । माता जी की कृपा से उसके घर में सम्पत्ति उमड़ने लगी। छोटा सा घर बहुत बड़ा गिना जाने लगा। जैसे शहद के छत्ते में मक्खियां जमा होती हैं, उसी प्रकार अनेक सगे सम्बंधी आकर उसकी बड़ाई करने लगे। कहने लगे-इतना धन और इतना बड़ा घर, सुन्दर संतान नहीं तो इस कमाई का कौन भोग करेगा? सुलक्षणा से संतान नहीं है, इसलिए तुम दूसरा विवाह करो । अनिच्छा होते हुए भी धनंजय को दूसरा विवाह करना पड़ा और सती सुलक्षणा को सौत का दुःख उठाना पड़ा । इस प्रकार दिन बीतते गय फिर अगहन मास आया। नये बंधन से बंधे पति से सुलक्षणा ने कहलाया कि हम व्रत के प्रभाव से सुखी हुए हैं । इस कारण यह व्रत छोड़ना नहीं चाहिए । यह माता जी का प्रताप है। जो हम इतने सम्पन्न और सुखी हैं । सुलक्षणा की बात सुन धनंजय उसके यहां आया और व्रत में बैठ गया। नयी बहू को इस व्रत की खबर नहीं थी। वह धनंजय के आने की राह देख रही थी । दिन बीतते गये और व्रत पूर्ण होने में तीन दिवस बाकी थे कि नयी बहू को खबर पड़ी। उसके मन में ईष्र्या की ज्वाला दहक रही थी । सुलक्षणा के घर आ पहुँची ओैर उसने वहां भगदड़ मचा दी । वह धनंजय को अपने साथ ले गई । नये घर में धनंजय को थोड़ी देर के लिए निद्रा ने आ दबाया । इसी समय नई बहू ने उसका व्रत का सूत तोड़कर आग में फेंक दिया । अब तो माता जी का कोप जाग गया । घर में अकस्मात आग लग गई, सब कुछ जलकर खाक हो गया । सुलक्षणा जान गई और पति को फिर अपने घर ले आई । नई बहू रूठ कर पिता के घर जा बैठी । पति को परमेश्वर मानने वाली सुलक्षणा बोली- नाथ ! घबड़ाना नहीं । माता जी की कृपा अलौकिक है । पुत्र कुपुत्र हो जाता है पर माता कुमाता नहीं होती। अब आप श्रद्धा और भक्ति से आराधना शुरू करो। वे जरूर हमारा कल्याण करेंगी । धनंजय फिर माता के पीछे पड़ गया। फिर वहीं सरोवर सीढ़ी प्रकट हुई, उसमें ‘ मां अन्नपूर्णा’ कहकर वह उतर गया। वहां जा माता जी के चरणों में रुदन करने लगा । माता प्रसन्न हो बोलीं-यह मेरी स्वर्ण की मूर्ति ले, उसकी पूजा करना, तू फिर सुखी हो जायेगा, जा तुझे मेरा आशीर्वाद है । तेरी स्त्री सुलक्षणा ने श्रद्धा से मेरा व्रत किया है, उसे मैंने पुत्र दिया है । धनंजय ने आँखें खोलीं तो खुद को काशी विश्वनाथ के मन्दिर में खड़ा पाया । वहां से फिर उसी प्रकार घर को आया । इधर सुलक्षणा के दिन चढ़े और महीने पूरे होते ही पुत्र का जन्म हुआ । गांव में आश्चर्य की लहर दौड़ गई । मानता आने लगा। इस प्रकार उसी गांव के निःसंतान सेठ के पुत्र होने पर उसने माता अन्नपूर्णा का मन्दिर बनवा दिया, उसमें माता जी धूमधाम से पधारीं, यज्ञ किया और धनंजय को मन्दिर के आचार्य का पद दे दिया । जीविका के लिए मन्दिर की दक्षिणा और रहने के लिए बड़ा सुन्दर सा भवन दिया। धनंजय स्त्री-पुत्र सहित वहां रहने लगा । माता जी की चढ़ावे में भरपूर आमदनी होने लगी। उधर नई बहू के पिता के घर डाका पड़ा, सब लुट गया, वे भीख मांगकर पेट भरने लगे । सुलक्षणा ने यह सुना तो उन्हे बुला भेजा, अलग घर में रख लिया और उनके अन्न-वस्त्र का प्रबंध कर दिया । धनंजय, सुलक्षणा और उसका पुत्र माता जी की कृपा से आनन्द से रहने लगे। माता जी ने जैसे इनके भण्डार भरे वैसे सबके भण्डार भरें।

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शनिवार, 9 अप्रैल 2022

॥गणगौर गौरी पूजा॥ चैत्र शुक्ल पक्ष तृतीया

॥गणगौर गौरी पूजा॥ 
चैत्र शुक्ल पक्ष तृतीया
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उमा महेश्वर स्तोत्रम्
नमः शिवाभ्यां नवयौवनाभ्यां
परस्पराश्लिष्टवपुर्धराभ्याम् ।
नगेन्द्रकन्यावृषकेतनाभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 1 ॥
नमः शिवाभ्यां सरसोत्सवाभ्यां
नमस्कृताभीष्टवरप्रदाभ्याम् ।
नारायणेनार्चितपादुकाभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 2 ॥
नमः शिवाभ्यां वृषवाहनाभ्यां
विरिञ्चिविष्ण्विन्द्रसुपूजिताभ्याम् ।
विभूतिपाटीरविलेपनाभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 3 ॥
नमः शिवाभ्यां जगदीश्वराभ्यां
जगत्पतिभ्यां जयविग्रहाभ्याम् ।
जम्भारिमुख्यैरभिवन्दिताभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 4 ॥
नमः शिवाभ्यां परमौषधाभ्यां
पञ्चाक्षरीपञ्जररञ्जिताभ्याम् ।
प्रपञ्चसृष्टिस्थितिसंहृताभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 5 ॥
नमः शिवाभ्यामतिसुन्दराभ्यां
अत्यन्तमासक्तहृदम्बुजाभ्याम् ।
अशेषलोकैकहितङ्कराभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 6 ॥
नमः शिवाभ्यां कलिनाशनाभ्यां
कङ्कालकल्याणवपुर्धराभ्याम् ।
कैलासशैलस्थितदेवताभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 7 ॥
नमः शिवाभ्यामशुभापहाभ्यां
अशेषलोकैकविशेषिताभ्याम् ।
अकुण्ठिताभ्यां स्मृतिसम्भृताभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 8 ॥
नमः शिवाभ्यां रथवाहनाभ्यां
रवीन्दुवैश्वानरलोचनाभ्याम् ।
राकाशशाङ्काभमुखाम्बुजाभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 9 ॥
नमः शिवाभ्यां जटिलन्धराभ्यां
जरामृतिभ्यां च विवर्जिताभ्याम् ।
जनार्दनाब्जोद्भवपूजिताभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 10 ॥
नमः शिवाभ्यां विषमेक्षणाभ्यां
बिल्वच्छदामल्लिकदामभृद्भ्याम् ।
शोभावतीशान्तवतीश्वराभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 11 ॥
नमः शिवाभ्यां पशुपालकाभ्यां
जगत्रयीरक्षणबद्धहृद्भ्याम् ।
समस्तदेवासुरपूजिताभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 12 ॥
स्तोत्रं त्रिसन्ध्यं शिवपार्वतीभ्यां
भक्त्या पठेद्द्वादशकं नरो यः ।
स सर्वसौभाग्यफलानि
भुङ्क्ते शतायुरान्ते शिवलोकमेति ॥ 13 ॥ श्री रांदल ज्योतिष कार्यालय सुरेन्द्रनगर पंड्याजी+919824417090...

शुक्रवार, 1 अप्रैल 2022

*नवरात्री के नौ दिन माँ के अलग-अलग भोग*

*नवरात्री के नौ दिन माँ के अलग-अलग भोग*

१ - प्रथम नवरात्रि पर मां को गाय का शुद्ध घी या फिर सफेद मिठाई अर्पित की जाती है।

२ -दूसरे नवरात्रि के दिन मां को शक्कर का भोग लगाएं और भोग लगाने के बाद इसे घर में सभी सदस्यों को दें। इससे उम्र में वृद्धि होती है।

३ -तृतीय नवरात्रि के दिन दूध या दूध से बनी मिठाई, खीर का भोग मां को लगाएं एवं इसे ब्राह्मण को दान करें। इससे दुखों से मुक्ति होकर परम आनंद की प्राप्ति होती है। 

४- चतुर्थ नवरात्र पर मां भगवती को मालपुए का भोग लगाएं और ब्राह्मण को दान दें। इससे बुद्धि का विकास होने के साथ निर्णय लेने की शक्ति बढ़ती है। 

५ -नवरात्रि के पांचवें दिन मां को केले का नैवेद्य अर्पित करने से शरीर स्वस्थ रहता है। 

६ -नवरात्रि के छठे दिन मां को शहद का भोग लगाएं, इससे आकर्षण शक्ति में वृद्धि होती है। 

७ -सप्तमी पर मां को गुड़ का नैवेद्य अर्पित करने और इसे ब्राह्मण को दान करने से शोक से मुक्ति मिलती है एवं अचानक आने वाले संकटों से रक्षा भी होती है।

८ -अष्टमी व नवमी पर मां को नारियल का भोग लगाएं और नारियल का दान करें। इससे संतान संबंधी परेशानियों से मुक्ति मिलती है।
श्री रांदल ज्योतिष कार्यालय सुरेन्द्रनगर पंड्याजी+919824417090...