शनिवार, 15 मई 2021

हमें रोज मंदिर जाना चाहिए,,,

हमें रोज मंदिर जाना चाहिए
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भारतीय परंपरा में मंदिर जाने का बहुत महत्व है। धर्म और पूजा पाठ के अलावा मंदिर में कदम रखते ही हमे चौमुखी लाभ मिलते है।

मंदिर जाने से हमारा समाजिक दायरा बड़ता है और हमे अन्य धार्मिक प्राणियों से मिलने का सौभाग्य प्राप्त होता है।

हमारे मंदिर जाने से समाज संगठित होता है और धर्म, देश और हमारे संस्कारों कि रक्षा तथा उन्नति होती है।

हम मंदिर मे जा कर सूर्य को जल अर्पित करते है जिसकी अलौकिक किरणो से हमे बहुत लाभ होता है।

हम पीपल के पास जा कर जल अर्पण करते है जिससे हमे वहाँ फैली ख़ास तरह की आक्सिजन मिलती है। पीपल ही एक अकेला दिव्य वृक्ष है रात्रि मे भी चंद्रमा की किरणों मे विध्मान सुर्य फोटोन से फ़ोटोविषलेशन कर कार्बनडाईओक्साईड CO2 को विघटित करता है और विशेष आक्सिजन पैदा करता है तथा कार्बन को अपने तने में एकत्रित कर लेता है।

जब हम मंदिर में आरती और कीर्तन के दौरान ताली बजाते है तो हमे एक्यूप्रेशर से लाभ मिलता है।

मंदिर मे जब हम दण्डवत हो कर माथा धरती पर लगाते है तो हमारा घमण्ड चूर चूर होकर धरती मे समाहित हो जाता है।

चालीसा और आरती के जाप से हमारी वाणी मे दिव्यता आती है। वैज्ञानिक शोध से साबित हुआ है कि ओम् के उच्चारण से हमारा चित एकाग्र होता है ।

मंदिर मे हमारे द्वारा दिए गये दान सामाजिक कार्यो में लगते है जिससे हमारे मन मे शान्ति आती है और हमे पुण्य अर्जित होता है।

मंदिर मे नित दिन जाने से नये लोगों से प्ररिचय होता है और कई ज़रूरी जानकारी मिलती है।

मंदिर की घंटी के श्रवण का फ़ायदा
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मंदिर के के बाहर एक विशेष धातू के सम्मिश्रण से बनी घंटी लगी होती हैं। ये घंटी इस ढंग से लगी होती हैं कि श्रद्धालु ठीक इसके नीचे खड़े होकर इसे बजाता है। घंटी के बीच का हिलने वाला गोला ठीक हमारे मस्तिष्क के ऊपर बिचो-बीच होना चाहिए।

इस घंटी से निकलने वाली ध्वनि हमारे मस्तिष्क की दाईं और बाईं तरफ से एकरूपता बनाती है। घंटी की ७ सेकंड तक की टन्कार हमारे शरीर के सातों आरोग्य केंद्रों को क्रियाशील करती हैं।

जब हमारा ध्यान मंदिर की घंटी की लुप्त होती ध्वनि पर केन्द्रित होता है तो हमारा मन सभी संसारिक विषमताओ से हट कर प्रभु के चरणों मे अर्पित हो जाता है। मंदिर से बाहर आते हुए हम फिर से घंटी बजा कर हम संसारिक जिम्मेवारियो मे वापस आ जाते है।

आरती मे बजाये जाने वाली छोटी घंटी की विशेष प्रतिध्वनि से हमारी पित्त सन्तुलित होती है। शायद इसी कारण से गऊमाता के गले मे भी घंटी बाँधी जाती है क्योंकि ये सर्वमान्य है गाय मे पित्त ज्यादा होती है।

इसी प्रकार आरती के बाद शंख बजाया जाता जो श्रद्धालुओ के लिए बहुत सुखदायी और स्वास्थ्य वर्धक है।

आरती की ज्योत से स्पर्श का फ़ायदा
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आरती के बाद जब हम ईश्वर का आशीर्वाद ले रहे होते हैं तो हम कपूर या दीये की आरती पर अपना हाथ घुमाते हैं। इससे हमारी हथेली का अग्नि स्पर्श होता है जो हमारे ख़ून को ज्योत की दिव्य उषमता देता है।

कपूर और देसी गौधृत के दिव्य प्रताप से हमारे अन्दर पल रहे सभी जीवाणु संक्रमण समाप्त हो जाते है। हाल ही में फैले स्वाइन फुल्यू के जैविक संक्रमण से बचने मे कपूर की अहम भुमिका की बहुत चर्चा हुई थी।

ज्योत पर फरने के उपरान्त हम अपनी ऊष्म हाथेलियो को आंखों से लगाते हैं और हमें गर्माहट महसूस होती है। यह गर्माहट से हमारी आँखो कि सुक्षम इद्रिसाँ खुल जाति है और उन में ज्यादा रक्त प्रवाहित होने लगता है जिससे हमारी आँखो कि ज्योति मे वृद्धि हो ।

ज्योत पर हथेली रखना हमारे द्वारा जाने अन्जाने मे किये गए किसी भी प्रकार के पाप के प्रयायचित का भी प्रतीक है।

मंदिर में फैली दिव्य सुगंध का फ़ायदा
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हम मंदिर में भगवान को अर्पित करने के लिए फूल लेकर जाते हैं, जो पवित्र होते हैं और उनसे अच्छी खुशबू आ रही होती है। मंदिर में अन्य श्रद्धालु द्वारा अर्पित सभी फूलो से वहाँ एक बग़ीचे जैसा खूशबूदार माहौल बन जाता है। कपूर और अगरबत्ती से भी भरपुर खुशबू निकल रही होती है। इन सब दिव्य सुगंध से हमारी इंद्रियाँ सक्रिय हो जाती हैं और स्वास्थ्य (aromatherapy) और उत्साह वर्धन होता है।

मंदिर मे प्राप्त प्रसाद का फ़ायदा
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मंदिर में भगवान के दर्शन के बाद हमें तुलसी, चरणामृत और प्रसाद मिलता है। चरणामृत एक दिव्य पेय प्रसाद होता है जिसे गाय के दुग्ध, दही, शहद, मिस्री, गंगाजल और तुलसी से बना कर विशेष धातु के बर्तन में रखा जाता है। आयुर्वेद के मुताबिक यह चरणामृत हमारे शरीर के तीनों दोषों को संतुलित रखता है। चरणामृत के साथ दी गई तुलसी हम बिना चबाए निगल लेते है जिससे हमारे सभी रोग ठीक हो जाते है।

मंदिर में फैली पुरे ब्रह्मांड की उर्जा से लाभ
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पूजा के बाद जब हम भगवान की मूर्ति की परिक्रमा करते हैं तो वहॉ मौजूद समस्त सृष्टि की सकारात्मक ऊर्जा को अपने अंदर समाहित कर लेते हैं। ये पुरे ब्रह्मांड की दैवीय उर्जा गर्भस्थान के गुम्बद के शिखर पर विघ्यमान धातु के कलश से प्रवाहित हो कर ईश्वर की मूर्ति के नीचे दबाई गई धातु पिंड तक जाती है और धरती में समा जाती है। गर्भस्थान की प्ररिक्रमा के दोरान हमे इस ब्रह्मांडिय उर्जा से लाभ मिलता है।

मंदिर की भुमि को इसी सकारात्मक ऊर्जा का वाहक माना जाता है। यह ऊर्जा भक्तों में पैर के जरिए ही प्रवेश कर सकती है। इसलिए मंदिर के अंदर नंगे पांव जाते हैं।

मंदिर जाने से संकल्प शक्ति का विकास
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हम रोज़ मंदिर जा कर अपने जीवन और व्यापारिक उद्देश्यों को दोहराते है भगवान के समक्ष उन्हे पुरा करने का संकल्प लेते है और ईश्वर से हमारी सफलता का आशिर्वाद माँगते है।

हमे मंदिर जाने मे पहले उस दिन की कार्य सुची लिख लेनी चाहिए और उसे मंदिर ले कर जाना चाहिए और उन सभी कार्य को सुचारू रूप से आज पुरा करने का संकल्प करना चाहिए।

मंदिर जाने से में गो ग्रास और गो रक्षा का लाभ
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आजकल शहर मे धरो मे गो माता रखने का प्रवधान नही है पर हम मंदिर जा कर गो ग्रास दे सकने के अपने संस्कारों को जारी रख सकते है। हर मंदिर मे सबही आरती के बाद गो रक्षा का संकल्प ज़रूर दोहराया जाता है।

इस प्रकार मंदिर में केवल पाँच मिनट के लघु समय में किये जाने वाले सभी प्रकलनो से हमारा स्वास्थ्य में वर्धन होता है, सोच सकारात्मक बनती है, मन की शान्ति मिलती है, इच्छाओं की पूर्ति होती है, संतुष्टि का अनुभव होता है, उत्साह में वृद्धि होती है, व्यापार मे मुनाफ़ा होता है और समाज मे प्रतिष्ठा बढ़ती है।
श्री रांदल ज्योतिष कार्यालय पंडयाजी सुरेन्द्रनगर गुजरात राज्य+919824417090/+91780200033,,,

बुधवार, 12 मई 2021

आइए जानें अक्षय तृतीया का महत्व......!!!

आइए जानें अक्षय तृतीया का महत्व......!!! 

शास्त्रों में अक्षय तृतीया को स्वयंसिद्ध मुहूर्त माना गया है। अक्षय तृतीया के दिन मांगलिक कार्य जैसे-विवाह, गृहप्रवेश, व्यापार अथवा उद्योग का आरंभ करना अति शुभ फलदायक होता है। सही मायने में अक्षय तृतीया अपने नाम के अनुरूप शुभ फल प्रदान करती है। अक्षय तृतीया पर सूर्य व चंद्रमा अपनी उच्च राशि में रहते हैं।
इस वर्ष 2021 में अक्षय तृतीया 14 मई 2021 दिन शुक्रवार को होगी।

तो आइए जानें 25 बातों से अक्षय तृतीया का महत्व...

1.“न माधव समो मासो न कृतेन युगं समम्।
न च वेद समं शास्त्रं न तीर्थ गंगयां समम्।।”

वैशाख के समान कोई मास नहीं है, सत्ययुग के समान कोई युग नहीं हैं, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है। उसी तरह अक्षय तृतीया के समान कोई तिथि नहीं है।

2 .अक्षय तृतीया के विषय में मान्यता है कि इस दिन जो भी काम किया जाता है उसमें बरकत होती है। यानी इस दिन जो भी अच्छा काम करेंगे उसका फल कभी समाप्त नहीं होगा अगर कोई बुरा काम करेंगे तो उस काम का परिणाम भी कई जन्मों तक पीछा नहीं छोड़ेगा।

3. धरती पर भगवान विष्णु ने 24 रूपों में अवतार लिया था। इनमें छठा अवतार भगवान परशुराम का था। पुराणों में उनका जन्म अक्षय तृतीया को हुआ था।

4. इस दिन धरती पर गंगा अवतरित हुई। सतयुग, द्वापर व त्रेतायुग के प्रारंभ की गणना इस दिन से होती है।

5.शास्त्रों की इस मान्यता को वर्तमान में व्यापारिक रूप दे दिया गया है जिसके कारण अक्षय तृतीया के मूल उद्देश्य से हटकर लोग खरीदारी में लगे रहते हैं। वास्तव में यह वस्तु खरीदने का दिन नहीं है। वस्तु की खरीदारी में आपका संचित धन खर्च होता है।

6. नया वाहन लेना या गृह प्रवेश करना, आभूषण खरीदना इत्यादि जैसे कार्यों के लिए तो लोग इस तिथि का विशेष उपयोग करते हैं। मान्यता है कि यह दिन सभी का जीवन में अच्छे भाग्य और सफलता को लाता है। इसलिए लोग जमीन जायदाद संबंधी कार्य, शेयर मार्केट में निवेश रीयल एस्टेट के सौदे या कोई नया बिजनेस शुरू करने जैसे काम भी लोग इसी दिन करने की चाह रखते हैं...

7. वैशाख मास की विशिष्टता इसमें आने वाली अक्षय तृतीया के कारण अक्षुण्ण हो जाती है। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाए जाने वाले इस पर्व का उल्लेख विष्णु धर्म सूत्र, मत्स्य पुराण, नारदीय पुराण तथा भविष्य पुराण आदि में मिलता है।

8.यह समय अपनी योग्यता को निखारने और अपनी क्षमता को बढ़ाने के लिए उत्तम है।

9. यह मुहूर्त अपने कर्मों को सही दिशा में प्रोत्साहित करने के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। शायद यही मुख्य कारण है कि इस काल को ‘दान’ इत्यादि के लिए सबसे अच्छा माना जाता है।

10. ‘वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को आखातीज के रुप में मनाया जाता है भारतीय जनमानस में यह अक्षय तीज के नाम से प्रसिद्ध है।

11.पुराणों के अनुसार इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान,दान,जप,स्वाध्याय आदि करना शुभ फलदायी माना जाता है इस तिथि में किए गए शुभ कर्म का फल क्षय नहीं होता है इसको सतयुग के आरंभ की तिथि भी माना जाता है इसलिए इसे’कृतयुगादि’ तिथि भी कहते हैं ।

12.यदि इसी दिन रविवार हो तो वह सर्वाधिक शुभ और पुण्यदायी होने के साथ-साथ अक्षय प्रभाव रखने वाली भी हो जाती है।

13. मत्स्य पुराण के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन अक्षत पुष्प दीप आदि द्वारा भगवान विष्णु की आराधना करने से विष्णु भगवान की विशेष कृपा प्राप्त होती है तथा संतान भी अक्षय बनी रहती है।

14.दीन दुखियों की सेवा करना, वस्त्रादि का दान करना ओर शुभ कर्म की ओर अग्रसर रहते हुए मन वचन व अपने कर्म से अपने मनुष्य धर्म का पालन करना ही अक्षय तृतीया पर्व की सार्थकता है।

15. कलियुग के नकारात्मक प्रभाव से बचने के लिए इस दिन भगवान विष्णु की उपासना करके दान अवश्य करना चाहिए। ऐसा करने से निश्चय ही अगले जन्म में समृद्धि, ऐश्वर्य व सुख की प्राप्ति होती है।

16. भविष्य पुराण के एक प्रसंग के अनुसार शाकल नगर रहने वाले एक वणिक नामक धर्मात्मा अक्षय तृतीया के दिन पूर्ण श्रद्धा भाव से स्नान ध्यान व दान कर्म किया करता था जबकि उसकी पत्नी उसको मना करती थी,मृत्यु बाद किए गए दान पुण्य के प्रभाव से वणिक द्वारकानगरी में सर्वसुख सम्पन्न राजा के रुप में अवतरित हुआ।

17. इस दिन पवित्र नदियों में स्नान कर सामर्थ्य अनुसार जल,अनाज,गन्ना,दही,सत्तू,फल,सुराही,हाथ से बने पंखे वस्त्रादि का दान करना विशेष फल प्रदान करने वाला माना गया है।

18. दान को वैज्ञानिक तर्कों में ऊर्जा के रूपांतरण से जोड़ कर देखा जा सकता है। दुर्भाग्य को सौभाग्य में परिवर्तित करने के लिए यह दिवस सर्वश्रेष्ठ है।

19. यदि अक्षय तृतीया रोहिणी नक्षत्र को आए तो इस दिवस की महत्ता हजारों गुणा बढ़ जाती है, ऐसी मान्यता है। किसानों में यह लोक विश्वास है कि यदि इस तिथि को चंद्रमा के अस्त होते समय रोहिणी आगे होगी तो फसल के लिए अच्छा होगा और यदि पीछे होगी तो उपज अच्छी नहीं होगी।

20. इस दिन प्राप्त आशीर्वाद बेहद तीव्र फलदायक माने जाते हैं। भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि की गणना युगादि तिथियों में होती है। सतयुग, त्रेता और कलयुग का आरंभ इसी तिथि को हुआ और इसी तिथि को द्वापर युग समाप्त हुआ था।

21.रेणुका के पुत्र परशुराम और ब्रह्मा के पुत्र अक्षय कुमार का प्राकट्य इसी दिन हुआ था। इस दिन श्वेत पुष्पों से पूजन कल्याणकारी माना जाता है।

22.धन और भौतिक वस्तुओं की प्राप्ति तथा भौतिक उन्नति के लिए इस दिन का विशेष महत्व है। धन प्राप्ति के मंत्र, अनुष्ठान व उपासना बेहद प्रभावी होते हैं। स्वर्ण, रजत, आभूषण, वस्त्र, वाहन और संपत्ति के क्रय के लिए मान्यताओं ने इस दिन को विशेष बताया और बनाया है। बिना पंचांग देखे इस दिन को श्रेष्ठ मुहुर्तों में शुमार किया जाता है।

23.दान करने से जाने-अनजाने हुए पापों का बोझ हल्का होता है और पुण्य की पूंजी बढ़ती है। अक्षय तृतीया के विषय में कहा गया है कि इस दिन किया गया दान खर्च नहीं होता है, यानी आप जितना दान करते हैं उससे कई गुणा आपके अलौकिक कोष में जमा हो जाता है।

24. मृत्यु के बाद जब अन्य लोक में जाना पड़ता है तब उस धन से दिया गया दान विभिन्न रूपों में प्राप्त होता है। पुनर्जन्म लेकर जब धरती पर आते हैं तब भी उस कोष में जमा धन के कारण धरती पर भौतिक सुख एवं वैभव प्राप्त होता है। इस दिन स्वर्ण, भूमि, पंखा, जल, सत्तू, जौ, छाता, वस्त्र कुछ भी दान कर सकते हैं। जौ दान करने से स्वर्ण दान का फल प्राप्त होता है।

25. इस तिथि को चारों धामों में से उल्लेखनीय एक धाम भगवान श्री बद्रीनारायण के पट खुलते हैं। अक्षय तृतीया को ही वृंदावन में श्रीबिहारीजी के चरणों के दर्शन वर्ष में एक बार ही होते हैं।
*श्री रांदल ज्योतिष कार्यालय* पंडयाजी सुरेन्द्रनगर गुजरात राज्य +919824417090/ +917802000033.